मन को भा जानेवाले दिन‌

याद मुझे अक्सर आ जाते,आने,दो आने वाले दिन|

दूध मलाई गरम जलेबी,और रबड़ी खाने वाले दिन||

 

तीस रुपये में मझले काका, दिल्ली तक होकर आ जाते|

एक रुपये में ताजा खाना ,होटल में छककर खा आते||

 

बिन कुंडी के बाथ रूम में ,बेसुर में गानेवाले दिन|

याद मुझे अक्सर आ जाते,आने दो आने वाले दिन||

 

नाई काका बाल बनाने ,पेटी लेकर घर आ जाते|

दो रुपये में एक सैकड़ा, चाचा हरे सिंगाड़े लाते||

 

जेब खर्च के लिये पिता से, दो पैसे पाने वाले दिन|

याद मुझे अक्सर आ जाते, आने दो आने वाले दिन||

 

गब्बर बैल जुती गाड़ी में, भेरों के मेले में जाना|

फुलकी,गरम कचौड़ी,बर्फी,किसी हाथ ठेले पर खाना||

 

हँसते गाते, धूम मचाते,मन को भा जाने वाले दिन|

याद मुझे अक्सर आ जाते, आने दो आने वाले ||

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

1 COMMENT

  1. धन्यवाद – प्रभु दयाल जी

    वो दिन हवा हुए जब खलील खान फाख्ता उड़ाते थे |
    वो दिन जब दौड़ लगते थे और नदी में नहाते थे |
    वो दिन जब तख्ती लिखते थे और स्लेट तोड़ते थे |
    बड़ों की देखा देखी बैलो की सानी भी करते थे और गाय पर हाथ फेरते थे |
    वो दिन भी क्या दिन थे | कहाँ गए वो दिन |
    उन दिनों की याद दिलाना एक बड़े पुण्य का काम है |
    स्कूल जाने के लिए दो पैसे मिलते थे और लगता था कारून का खज़ाना मिल गया |
    अगर कभी एक आना मिल गया तो समझो बड़ा दिन हो गया |

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