आ मौत मुझे मार

जीहाँ कुछ ऐसा ही हो रहा है. जापान के परमाणु हादसे में हज़ारों लोग मर चुके हैं और लाखों के सर पर मौत का ख़तरा मंडरा रहा है. ११ मार्च के भूकंप व सुनामी के बाद फुकुशिमा के परमाणु रिएक्टरों में हुए विध्वंस से शुरू हुए विनाश पर काबू पाने में असफल होने के बाद अब जापान सरकार ने इन रिएक्टरों को सदा के लिए दफन करने का फैसला कर लिया है. मौत के इन दानवों को स्थापित करने के बाद अब इन्हें बंद करना कोई आसान काम नहीं. फुकुशिमा प्लांट को चलाने वाली कंपनी ‘ टोकियो इलेक्ट्रोनिक पावर’ के अनुसार इन्हें बंद करने ( Decommissioning ) पर लगभग १२ अरब डालर का खर्चा होगा और ३० साल लगेंगे . इन प्लांट्स को लगाने वाली कंपनी ‘हिताची जनरल इलेक्ट्रिकल’ ही इन्हें बंद करने का काम करेंगी. इस कार्य में ‘एक्सेलान’ और ‘बेकटेल’ भी काम करेंगी. इन परमाणु रिएक्टरों को ३० साल की मेहनत और १२ अरब डालर खर्च कर के बंद कर देने के बाद भी मुसीबत ख़त्म नहीं होगी, सैकड़ों नहीं हज़ारो, लाखों साल तक विकीर्ण का ख़तरा बना रहेगा.
पच्चीस वर्ष पूर्व सन १९८६ में युक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु संयत्र में दुर्घटना हुई थी. ५५०० लोगों के मरने के बाद कितने विकीर्ण का शिकार बन कर मौत से भी बुरी यातना भोगते रहे, इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं. कुल ६५००० से १०५,००० लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया है. तब लेबल-७ आपात स्थिति घोषित की गयी थी. इसके बाद से पश्चिमी देशों ने परमाणु संयंत्र लगाने से तौबा कर ली है. तब से अमेरिका के लाखों करोड़ के पामाणु संयंत्र बेकार पड़े हैं. आर्थिक मंदी से मर रहे अमेरिका और उसके साथी देशों ने भारत की ( विदेशी हितों के लिए सदा काम करने वाली )  सरकार को काबू करके लाखों करोड़ रुपये का जंक भारत के माथे मढ़ने का प्रबंध कर लिया है. जिस दिन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने जनमत के विरोध की हवा निकालने के लिए ये कहा की ‘भारतीय परमाणू संस्थान’ को अधिक जवाबदेह बनाया जाएगा, उसके अगले दिन ही भारत के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक डा. बलराम ( भारतीय विज्ञानं संस्थान, बेंगलूर के निदेशक ) ने नुक्लियर कार्यक्रमों पर रोक लगाने की मांग की जिसका समर्थन देश के ६० वैज्ञानिकों और प्रमुख बुद्धिजीवियों ने किया.
इन परिस्थितियों की पूरी तरह अनदेखी करते हुए भारत सरकार परमाणु संयंत्रों को देश में लगाने के लिए जी-जान से लगी हुई है. भारत सरकार बार-बार कह रही है की यह तकनीक पूरी सुरक्षित है. तो क्या हमारे पास जापान और अमेरिका से अधिक अनुभव और कुशलता है जो हमें विकीर्ण के खतरों का सामना नहीं करना पडेगा ? नज़र आ रहा है कि सरकार सच नहीं बोल रही, देश के नहीं किसी और के हित में बात और काम कर रही है.  पामाणु ऊर्जा हेतु खरीद की जा रही सामग्री के बारे में प्राथमिक जानकारी से समझा जा सकता है कि यह कितना खतरनाक साबित होने वाला है और अव्यवहारिक भी है.
 भारत के जैतापुर में जो ई.पी.आर. ( यूरोपीय प्रेशराज़ड रिएक्टर्ज ) तकनीक आयात की जा रही है, उसकी सुरक्षा के बारे में अनेक गंभीर आशंकाएं है. इस तकनीक के रिएक्टर अभीतक संसार में कहीं भी पूरी तरह न तो कहीं बने हैं और न ही चले हैं. दुनिया में अभीतक ई.पी.आर. निर्माण और प्रयोग कि अवस्था से गुजर रहा है. इस तकनीक को बेचने वाली कंपनी ‘अरेवा’ भारी वित्तीय संकट से जूझ रही है.  इसने २००९ में फ़्रांस सरकार से ४ अरब डालर का बेलआउट पॅकेज  मांगा था.  अपनी आर्थिक दुर्दशा के सुधर के लिए उसे अपना जंक और खतरनाक तकनीक बेचनी है. अरेवा ने अपना पहला ई.पी.आर फिनलैंड  को  बेचा था जो आजतक नहीं लग पाया है. मुकदमेबाज़ी  शुरू हो चुकी है और सयंत्र लगाने कि लागत ९०% तक बढ़ चुकी है.
दूसरा ई.पी.आर. फ्रास ने स्वयं अपने देश में लगाने का फैसला किया. २००७ में इसका निर्माण शुरू हुआ था जो आज तक पूरा नहीं हुआ और न आगे होने की आशा है. फ्रांस की ‘न्यूक्लियर सेफ्टी एजेंसी’ ने इस तकनीक के रिएक्टर में कई गंभीर कमियाँ पायी हैं. इस संयंत्र के विरोध में फ्रांस के अनेक नगरों में ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए है. अब जापान की त्रासदी के बाद तो विरोध और भी तेज़ होना स्वाभाविक है. फ्रांस सरकार भी कोई भारत की सरकार तो है नहीं जो अपने देश की हितों को बेच कर विदेशियों के हित में काम करे.
 आर्थिक बदहाली से जूझती अपने देश की कंपनियों के लिए बाज़ार तलाश करने का दबाव उस पर भी अमेरिका से कम तो है नहीं. अतः एक भारत ही है जहां वे अपने लाखों करोड़ के बेकार होरहे खतरनाक जंक को बेच सकता है. वही सब अब भारत में चल रहा है जिसके चलते सरकार परमाणु सौदे के लिए भरपूर समर्थन व सहयोग दे रही है. विरोधी दल भी जो चुप बैठे हैं तो समझ लें कि उनकी मिट्ठी भी ठीक से गर्म हो चुकी होगी. वरना वे खुलकर इस मुद्दे पर सरकार को घेरते. पर ऐसा कुछ न होना सारी कहानी कह रहा है. जनता इसे न देखे, समझें तो और बात है. 
चीन ने भी दो ई.पी.आर खरीदने का ठेका दिया था जो जापान की दुर्घटना के बाद खटाई में पड़ना सुनिश्चित है.संयुक्त अरब अमीरात ने ई.पी.आर के हो रहे सौदे को अचानक ठुकरा दिया और दक्षिणी कोरिया को गैर ई.पी.आर प्लांट लगाने का ठेका दे दिया है. संसार की अनेक परमाणु सुरक्षा एजेंसियों ने इस तकनीक में अनेकों सुरक्षा और गुणवत्ता की कमियाँ बतलाई है. ई.पी.आर में इंधन अधिक जलता है और इसीलिये विकीर्ण भी अधिक होता है. सामान्य रिएक्टरों की तुलना में इसमें ७ गुणा अधिक  रादियोधर्मी आयोडीन-१२९ निकलता है जो कि बड़ी खतरनाक स्थिति है. यह दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु रिएक्टर है .
चिंता की एक बात यह भी है कि भारत के परमाणु बिजलीघरों के रख-रखाव का इतिहास काफी खराब रहा है. परमाणु ऊर्जा विभाग की कार्यप्रणाली और क्षमता काफी निचले दर्जे की आंकी गई  है. दुर्घटनाएं होती ही रहती हैं. करेला और नीम चढ़े वाली बात यह है कि इसके पास ई.पी.आर को चलाने का अनुभव है ही नहीं. अभीतक जिन रिएक्टरों को ये चला रहे हैं उनमें से अधिकाँश ई.पी.आर के मुकाबले लगभग ८ गुना कम क्षमता के हैं.
नाभिकीय ऊर्जा बनाते समय अनेक स्तरों पर रेडियोधर्मी कचरा निकलता है. युरेनियम की खुदाई से परिष्करण, संवर्धन, निर्माण, परिवहन व दहन तक हर समय  रेडियोधर्मी विकीर्ण निकलता रहता है. एक औसत संयंत्र से एक वर्ष में २० से ३० टन विकीर्ण युक्त अपशिष्ट निकला है. इसकी आयु हज़ारों वर्ष से लेकर करोड़ों वर्ष तक है. प्लूटोनियम-२३६ नामक परमाणु इंधन की आधी आयु २४००० वर्ष है. एक और इंधन युरेनियम-२३५ की अर्ध आयु ७१ करोड़ वर्ष है. इसके अतिरिक्त इन परमाणु अपशिष्टों में युरेनियम-२३४, प्लूटोनियम-२३८, अमेरिसियम-२४१, स्टांन्शियम-९०, सीजियम-१३७, नेप्टुनियम-237  अदि होते हैं.
चेर्नोबिल के बाद जापान की भयावह दुर्घटना ने संसार के सभी परमाणु ऊर्जा संयंत्र चलाने वाले देशों की नीद हराम कर दी है. जापान की इस त्रासदी को हिरोशिमा व नागासाकी के विनाश के बराबर माना जा रहा है. जापान ने स्तर-७ की विकीर्ण खतरे की घोषणा कर दी है. आसपास के देश बाद में होने वाले विकीर्ण के खतरों से थर्राए हुए है. चल रहे परमाणु संयंत्रों को बंद कर देने पर सभी देश विचार करने पर बाध्य हो गए हैं. पर एक भारत है जो सभी खतरों की अनदेखी कर के विदेशी व्यापारियों के हित में देश के हितों को दाव पर लगा रहा है और परमाणु रिएक्टरों को स्थापित करने में लगा हुआ है. इसका विरोध न हो इसके लिए जनता को विदेशी शक्तियों द्वारा संचालित मीडिया की सहायता से मूर्ख बनाया जा रहा है, नहीं समझे ?
ज़रायाद करिए कि जब जापान इस शताब्दी की भयावह विपदा को भुगत रहा था तो हम भारतीय क्या कर रहे थे ? क्रिकेट में पाकिस्तान पर भारत की जीत की प्रबल इच्छा के साथ, बड़े उत्तेजित होकर टी.वी. से चिपके बैठे थे. उसके बाद जीत की खुशियों में सारे संसार को भुला बैठे थे, मानों पकिस्तान को समाप्त कर के लौटे हों.  कौन जाने कि जापान की त्रासदी से हम भारतीयों का ध्यान हटाने के लिए क्रिकेट को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया हो. अपने अरबों रुपये के परमाणु जंक की बिक्री में कोई रुकावट पैदा न हो , इसके लिए कुछ करोड़ खर्च करके मैच फिक्स किया हो, भारत पाक की टाई को सुनिश्चित किया हो. बहुत बार हुआ है भारत पाक का क्रिकेट मैच पर इस बार की दीवानगी कुछ अलग, कुछ अधिक नहीं थी ? कहीं मीडिया ने हम सबकी भावनाओं को  भडकाकर , हमें बहकाकर कोई खेल तो नहीं खेला ? कहीं हमारी संवेदनाये, हमारी सोच, हमारी बुद्धी अब मीडिया की गुलाम तो नहीं बन चुकी  ? क्या वही हमारी समझ और जीवन को अपनी पसंद और ज़रूरत के अनुसार संचालित करता है ? वरना कोई कारण नहीं था कि जब जापान के लोग भयावह त्रासदी काशिकार बन कर बेमौत मर रहे थे तो हम संवेदनशील भारतीय क्रिकेट के पागलपन, दीवानगी में उन्हें भूल जाते ?
मीडिया के चलाये नहीं हमें अपने विवेक से चलना , देखना और समझना होगा जिसे कि हम भूलते जा रहे हैं. तभी बच पायेंगे इन अंतर्राष्ट्रीय लुटेरों के उस जाल से जो कि हर स्तर पर फैलाया जा रहा है. परमाणु समझौता भी उसी जाल का एक हिस्सा है. इसे स्वीकार करना ”आ मौत मुझे मार” कहने जैसा है.

17 COMMENTS

  1. डा. मीना जी आपके निर्दिष्ट लेख को मैंने पढ़ा है और समयाभाव के कारण एक संक्षिप्त टिपण्णी भी की है, कृपया उसे देख लें.
    – महोदय सादर, विनम्र निवेदन इतना है कि पुवाग्रहों का शिकार हम न चाहते हुए भी बन जाते हैं. अतः निष्कपट भाव से संवाद करते रहना सत्य तक पहुँचने का एक स्वस्थ और सही मार्ग है. आप हिन्दू धर्म के प्रति जितनी असहिष्णुता और घृणा प्रदर्शित करते हैं, उसके चलते संवाद कैसे हो सकेगा ? आप चुन-चुन कर केवल हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म के विरुद्ध अतिरजित, विकृत प्रमाण प्रस्तुत करते रहेंगे तो आपकी नीयत पर कौन विश्वास करेगा ?
    – आदरणीय मित्रवर संवाद का तो एक ही सही तरीका हो सकता है कि ”मैं ठीक हूँ पर आप भी ठीक हो सकते हैं” आप तो हमारे एक भी तर्क को सुनाने को तैयात नहीं, केवल अपनी बात को ही सही मानते है. मित्रवर ऐसा कैसे हो सकता है कि संसात के प्राचीनतम धर्म , सनातन धर्म में केवल कमियाँ ही कमियाँ हैं, गुण कोई भी नहीं ? ऐसा तो तभी होगा जब कोई निहित स्वार्थ से काम कर रहा हो या फिर बुधि हीन पूर्वाग्रही, अल्पग्य हो.
    – आप अछे-खासे पढ़े-लिखे, साधनसम्पन्न है. फिर आपको केवल वही साहित्य क्यों नज़र आता है जो भारत को कमज़ोर बनाने वाले षड्यंत्रकारियों ने लिखा ? वह साहित्य भी तो है जो भारतीय संस्कृति, साहित्य, समाज, परम्पराओं की प्रशंसा में दुनियाभर के विद्वानों ने लिखा है.
    – मित्रवर भारत के विरुद्ध लिखा गया जो भी अतिवादी साहित्य मिला, उसे प्राप्त करके पढ़ने का यत्न मैंने किया. जो साहित्य भारत की प्रशंसा में विश्व के अनेक विद्वानों ने लिखा, वह भी प्राप्त करके अध्ययन करने का यत्न किया. तब जाकर मेरी आज की समझ व दृष्टिकोण विकसित हुआ है.
    – आपके लेखन से लगता है कि आपने केवल और केवल सनातन भारतीय संस्कृति, हिन्दू धर्म व भारत के विरुद्ध लिखा वह साहित्य पढ़ा है जो भारत के छद्म,गुप्त शत्रुओं द्वारा भारत को तोड़ने, बदनाम करने, दुर्बल बनाने के लिए लिखा गया है.
    – आप स्वयं सोचिये कि आपकी इस अतिवादी सोच का कारण आपका असंतुलित, एकांगी अध्ययन है कि नहीं? पक्ष, विपक्ष, दोनों को पढ़ कर अपना मत बनाए; यही सही ढंग है अध्ययन का और इसी से संतुलित दृष्टिकोण विकसित हो सकता है.
    – सादर आग्रह है कि यदि आप अपनी सोच व नीयत के बारे में पूरी तरह इमानदार हैं तो दोनों तरह के साहित्य का अध्ययन करके अपना मत बनाएं. दुनिया के मत, मतान्तरों, संस्कृतियों का एकांगी नहीं, संतुलित और तुलनात्मक अध्ययन करें. तब पता चलता है कि हम भारत की प्राचीन संस्कृति को संसार में सबसे उत्तम क्यूँ समझते हैं. अभी तो आप स्वयं कहते हैं कि आपको स्वयं पता नहीं कि आप हिन्दू क्यूँ हैं. अतः पहले ठीक से जानिए कि हिन्दू धर्म और संस्कृति का जीवन दर्शन क्या है, उसका सार क्या है.
    – ज़रा इमानदारी से सोच कर बतलाईये कि हमारे पास वह क्या है जिसके पीछे पश्चिम दीवाना है. क्या कारण है कि इस्लामी आक्रमण में अरब, अफ्रिका, आधे यूरोप की संस्कृतिया पूरी तरह से लुप्त, नस्ट-भ्रष्ट हो गयीं पर भारत की प्राचीन संस्कृति इस्लाम से ९०० वर्ष ( सन ७०० से १६०० ) तक संघर्ष करने के बाद आज भी जीवित है. ४०० साल ( सन १६०० से २०११ तक ) के ईसाई आक्रमणों व षड्यंत्रों का सामना करते हुए आज भी अधिक ओजस्विता, तेजस्विता से जागृत हो रही है. मेरे मित्र संसार में ऐसा कोई एक भी उदाहरण ढूंढ़ कर दिखाओ.
    – भारत भूमि पर जन्म लेने के सौभाग्य को अपमान व कलंक में बदलने की नासमझी तो कहीं हमसे नहीं हो रही, इस पर भी हमें ध्यान देना चाहिए. कहीं अपने प्रयासों से हम देश के दुश्मनों के हाथ तो मजबूत नहीं कर रहे, देश को तोड़ने वली ताकतों के हस्तक तो नहीं बन रहे, इसका ध्यान भी हम सब को रखना चाहिए.
    – यदि पठनीय पुस्तकों के बारे में मुझ से सुझाव चाहें तो बतलाने में मुझे प्रसन्नता होगी. कोई साहित्य आप सुझाना उचित समझें तो स्वागत है.
    – आपको आहत या अपमानित करने की दृष्टि से नहीं, आपके कल्याण की दृष्टि से यह सब लिखा है. पर फिर भी किसी बात से कष्ट पहुंचे तो क्षमा चाहूंगा

  2. आदरणीय डॉ. कपूर जी ने बिलकुल सही लेख लिखा है.
    * आधुनिक मोटर साइकिल के युग में हम BMW की कीमत पर लेम्ब्रेता (LEMBRATA ) स्कूटर खरीद रहे है.
    * हमारी सर्कार की सोच उस अंधे की तरह है जो बीच सड़क पर हरकत करता है और कहता है मुझे कोई नहीं देखता है.
    * अमेरिका में भी बिजली की किल्लत है. वोह क्यों नहीं अपना पुराने परमाणु संयंत्रो से अपनी बिजली बनाते है. दुनिया में सबसे बड़े सौर बिजली संयंत्र (नेवाडा) अमेरिका में ही है.
    * ३-४ साल पहले आई खाद्यान की कमी में अमेरिका और यूरोप देश का हाथ था जिन्होंने सस्ती कीमत पर अनाज खरीद कर एथेनॉल के जरिये उर्जा उत्पन्न कर रहे थे.
    * परमाणु संयंत्रो से उत्पन्न बिजली बहुत बहुत महंगी होगी. क्या वोह गरीब किसानो को सस्ती दरो पर मिल पायेगी, क्या गावो का अँधेरा दूर हो पायेगा. परमाणु बिजली औद्योगिक कारखानों को मिलेगी.

  3. “हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दूवादी सरकार?” जिस पर मेरे अनेकों बार किये गए अनुरोध के उपरांत भी आज तक डॉ. कपूर जी ने टिप्पणी कोई टिप्पणी नहीं की है| उसका लिंक प्रवक्ता की तरफ से दिया गया है वो कम नहीं कर रहा है| एक फिर से आपकी जानकारी के लिए लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ “हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दूवादी सरकार?” कृपया पढने का कष्ट करें|

    https://www.pravakta.com/story/12527

  4. दिनेश गौड़ जी आपकी प्रोत्साहक टिप्पणियों हेतु आभार. आपका दिया लिंक https://hindurashtraa.blogspot.com/2011/03/28.
    अत्यंत उपयोगी है. बड़े काम के समाचार इस लिंक पर मिले, इस हेतु भी धन्यवाद.

  5. अजित भोंसले जी आपकी और प्रो. मधुसुदन जी की बात सही है. पर इन मीना महोदय के बहाने हमें इस वर्ग के समाज तोड़क, संस्कृति व राष्ट्रीयता विरोधी लोगों को उत्त देने का एक सुअवसर नहीं मिल रहा है क्या. इन्हें कहीं तो घेरना होगा. इसी दृष्टि से मै ये लेखन कर रहा हूँ. आप सब सज्जन जो निश्चित करें, मैं उसमें साथ हूँ. उपेक्षा के शस्त्र से हम सब ने जगदीश्वर चतुर्वेदी जी के हिंदू विरोधी व अतिवादी लेखन का समाधान किया था न.

  6. किश्त-३
    ”हिंदुत्व के नाम पर आप लोगों ने जो जहरीला और खतरनाक अपशिष्ट फैला रखा है तथा जिसे लगातार फैलाते जा रहे हो, उससे यह कम घातक, कम खतरनाक और कम जहरीला है|”
    उपरोक्त कथन है श्री मीना जी का. मैं उनसे पूछता हूँ की ——
    – अगर हिंदुत्व परमाणु अपशिष्ट से भी अधिक खतरनाक है तो बतलाइये की कितने करोड़ लोग मरे हैं अभीतक हिंदुत्व के कारण ? किश्त २ के अनुसार ईसाई आक्रामकों ने ही करोड़ों मूल निवासियों व वनवासियों को संसार भर के देशों में निर्ममता पूर्वक मारा है.
    – इतिहास नाम के विषय से तो आप कुछ परिचित होंगे? मैं इतिहास के उन तथ्यों को उधृत कर रहा हूँ जिन्हें उन यूरोपीय ईसाईयों ने संकलित किया जो भारत को टुकड़ों में बांटने का षड्यंत्र बड़ी चालाकी से करते रहे और आज भी कर रहे हैं. भारत के समाज में घृणा के बीज बोने का काम बड़ी कुटिलता से उन लोगों ने किया व कर रहे हैं. मीना जी आप भी ठीक उसी भाषा, शैली व तर्कों का सहारा लेते हैं जिनका प्रयोग भारत के गुप्त शत्रु करते आये है.
    ### एडम और मैकाले द्वारा १८२० से १८३५ तक किये गए सर्वेक्षणों के अनुसार मद्रास प्रेजीडैन्सी में हिन्दू विद्यालयों में पढ़ाने वाले लगभग 20% शिक्षक द्विज ( उच्च जातियां ) थे और ८०% शिक्षक अन्त्यज (शुद्र ) थे. छात्रों में भी जातियों का यही अनुपात था. इतना ही नहीं ८ शिक्षक तो अन्त्यज अर्थात शूद्रों से भी नीचे के वर्ण चांडाल जाती के थे. सभी शिक्षक और छात्र बिना किसी भेद-भाव के साथ रहते, खाते-पीते, पढ़ते-पढ़ाते थे. इसके प्रमाण देखने हों तो गांधीवादी विद्वान श्री धर्मपाल जी की पुस्तक ” दी ब्यूटीफुल ट्री” में देखिये. ###
    अर्थात भारत के हिन्दू समाज में तब जातियां तो थीं पर जातियों के प्रति कोई विद्वेष, घृणा या अस्पृश्यता की भावना या व्यवहार नाम को भी नहीं था. अगर ऐसा होता तो ईसाई अंग्रेजों ने उसका वर्णन किया होता. वर्णन ही नहीं, उसका खूब बढ़ा- चढ़ा कर ढिढोरा पीटा होता. पर ऐसा कुछ होता तब न. भारत में छुआ-छुत नहीं थी, इस बात के दर्जनों प्रमाण अंग्रेजों द्वारा किये सर्वेक्षणों में प्राप्त हैं. किसी को चाहिए हों तो दिए जा सकते हैं.
    पर आप लोगों को सच से कुछ लेना देना तो है नहीं. येन-केन प्रकारेण हिन्दू समाज को तोड़ने के उद्देश्य को पूरा करना है.
    यह जानकारी मैं पहले भी दे चुका हूँ. पर आपकी समस्या या चतुराई यह है की आप अपने गुप्त अभियान में बाधक बनने वाले बड़े से बड़े प्रमाण की उपेक्षा कर देते हैं. विषय को भटकाने का चतुर प्रयास करते हैं. आप और आपके पूर्व वर्ती सभी कुटिल हिन्दू शत्रु यही करते आये है. अतः आप लोगों की यह शैली कोई नई बात नहीं.
    – खोज व विचार का मुद्दा एक यह है की अँगरेज़ ईसाईयों ने किन-किन उपायों से भारत में विद्वेष, अस्पृश्यता, अराष्ट्रीयता के बीज बोए.

  7. इस आदमी (मीना) के पूर्वाग्रह इसे कुछ भी अच्छा नहीं सोचने देंगे, चन्द्रशेखर आज़ाद सवर्ण थे क्या उन्होंने यह सोचा था की देश के केवल सवर्ण ही आज़ाद हो, इसी तरह छत्रपती शिवाजी, महाराणा प्राताप,गुरु गोविन्द सिंह आदि ने क्या यही सोच राखी होगी, बेहतर यही होगा प्रो.मधूसूसदन की तरह इस व्यक्ति को नज़र अंदाज़ किया जाए इसकी आलोचना भी इसको प्रसिद्ध्ही ही देगी इसको महत्त्व देने की बजाय सभी लोग सकारात्मक टिप्पणी करे.

  8. आदरणीय डॉ. कपूर जी आपको सर्वप्रथम सार्थक लेख लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई! लेख के बारे में कोई विशेष टिप्पणी नहीं क्यूंकि जो लिखा गया है स्थिति उससे भी खतरनाक है! हिरोशिमा और नागासाकी को कौन भूल सकता है और भोपाल गैस त्रासदी भी तो इससे मिलती जुलती ही है! कहीं न कहीं मुझे ऐसा लगता है की मीना जी को स्वयम को सर्वोत्तम साबित करने की व्याधि है तभी वो कहाँ कहाँ से उलजुलूल तथ्य निकाल कर ले आते हैं आपने उनकी कोई दुखती राग छेड़ रखी है और स्वामी रामदेव जी केवल और केवल मीना जी का दिया अनाज ही खाते हैं (हालाँकि उन्होंने कई वर्षों से अन्न त्याग कर रखा है ) तभी वो उसको अपने नौकर की तरह पानी पी पी कर कोसते हैं इस तरह की विषाक्त मानसिकता के लोगों का होना पृथ्वी पर बोझ के सामान है! भगवन इनको सद्बुधी दे और इनके मन में व्याप्त व्याकुलता को शांत करे ….. हरी ॐ

  9. किश्त-२
    डा. मीना जी क्या आप जानते हैं की——
    – यूरोपियनों के आगमन से पूर्व अमेरिका में ९ से ११ करोड़ आदिवासी रहते थे जिन्हें क्रूरता पूर्वक आक्रामक गोरे ईसाइयों द्वारा मार डाला गया और आज वहाँ मुट्ठी भर आदिवासी (रेडइन्डियन) बचे हैं.
    – इसीप्रकार ऑस्ट्रेलिया के करोड़ों आदिवासियों को भी निर्ममतापूर्वक समाप्त कर दिया गया
    – अफ्रिका में भी अनेक दशकों से इन तथाकथित सभ्य गोरे ईसाई यूरोपियों का यही तांडव चल रहा है.
    – गोआ और केरल में अनगिनत हिन्दुओं को ईसाई इन्क्युज़िशंज़ में यातनाएं दे-दे कर मारा गया. वास्कोदेगामा तीन बार में लगभग २२ सोने के जहाज़ लूट कर ले गया. तलवार के बल पर लूटने-मारने व हमारी संस्कृति को समाप्त करने का काम अनेक दशकों तक चलता रहा.
    – नागालैंड, मिजोरम आदि उत्तर-पुपूर्वांचल के प्रान्तों में वहाँ की वनवासी संस्कृति को किसने समाप्त किया ? किसने वहाँ देशद्रोह के ज़हरीले बीज बोए ? वहाँ के हर विघटन और वनवासी संस्कृति के विनाश के पीछे चर्च नज़र आता है.
    भारत के हिदुओं ने कितने वनवासियों को मारा, कितने अन्त्यजों को समाप्त किया ? लाखों साल से सब साथ रह रहे हैं एक साथ हिलमिल कर. आर्यों के आक्रमण का झूठा सिधांत कब का धूल में मिल चुका. एक किश्त उसकी भी आपके बहाने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करूँगा.
    – तो महोदय संसार की आदिवासी संस्कृतियों को समाप्त करने का श्रेय केवल गोरे ईसाई व्यापारियों व अपराधियों को है जिनके अनेकों प्रमाण ऊपर दिए जा चुके हैं. हिन्दू धर्मग्रंथों के उलटे-पुल्टे अर्थ करके आप जो साबित करना चाहते हैं, उसके व्यावहारिक प्रमाण हैं कहीं ? जिस मनु स्मृति को आप लोग बार-बार उद्धृत करते रहते हैं, भारत के किस प्रांत, प्रदेश, राज्य में थी वह प्रचलित ? एक दो उदाहरण तो दें ज़रा. और ऊपर लिखे मेरे उद्धरणों का कोई उत्तर हो तो दें. शेष अगली बार.
    शुभाकांक्षी,

  10. परमाणु मुद्दे पर एक वरिष्ठ जल सेना अधिकारी का मत दृष्टव्य है. कृपया इसे पढ़ कर संभव सहयोग करें.
    Dear rajesh,
    I am taking the unusual step of sending this direct request because I believe that the announcement by the Prime Minister’s Office (PMO) on the 25th anniversary of the Chernobyl nuclear disaster, to continue with the proposed French-built nuclear power park at Jaitapur is a serious mistake with long term implications for our people.[1]
    Fax Manmohan Singh with one click
    The fax says “Mr. Prime Minister, respect public opinion and stop the Jaitapur nuclear reactor project.”
    Name *
    Email *
    Phone
    (Note: You may get a message in your browser saying that you are going to an external site. Click ok/yes.)
    Along with several others I participated in the “Tarapur to Jaitapur” yatra (march) in Maharashtra, to protest against the proposed nuclear plant in Jaitapur.[2] We did not reach Jaitapur because many of us were detained/arrested for participating in this peaceful protest.[3]

    It is well known that the Jaitapur nuclear plant is on an earthquake-prone zone [4] and the French EPR reactors have not yet been tested anywhere in the world.[5] Surprisingly the government has rejected the demands to cancel the project, which will result in the loss of land and livelihoods for many. Further, the government has shown disregard for the views of the many scientists, academicians, military experts and citizens from the rest of the country calling for a review of its earlier decisions on nuclear power plants.
    Apart from announcing the creation of an independent regulatory board to ensure safety standards, the government has taken no action on the widespread demand for a fresh review of nuclear energy policy in the country. We need to tell Prime Minister Manmohan Singh and Maharashtra Chief Minister Prithviraj Chavan that they cannot ignore serious concerns raised by the people of this country.
    You should send a fax to the PM and CM Chavan asking them to stop the Jaitapur nuclear plant. Add your signature to the message and we will fax to the PM and copy CM Chavan for you. 73,000 petition signatures opposing this plant have already been delivered to the PM.[6] Now a large number of faxes asking him to stop the plant will make it difficult for him ignore the demand.
    Safe and clean renewable energy options and energy efficiency can help meet our energy demands, all of which are available and at a much lower cost than nuclear[7]. The government needs to invest in these instead of dangerous nuclear energy. Tell the PM and CM Chavan to stop this dangerous plant now!
    Thank you for taking action!
    Admiral L. Ramdas,
    Former Chief of Naval Staff,
    Indian Navy.

  11. श्री कपूर जी,

    मुझे आश्चर्य हो रहा है कि आपने न जाने कहाँ से निम्न पंक्ति मेरे नाम से उद्धृत की है :-

    “एक और तो ये रामायण, महाभारत व राम, कृष्ण को काल्पनिक कहते हैं और दूसरी और कह रहे हैं की पामाणु ऊर्जा तो सदियों से भारतीयों को ज्ञात थी. अरे भाई कहीं पर तो टिको. चित भी मेरी पट भी मेरी. अगर हमारे ऋषियों, पूर्वजों को परमाणु उर्जा ज्ञात थी तो फिर हम और हमारी संस्कृति संसार में सबसे प्राचीन और श्रेष्ठ हुई की नहीं ?”

    मुझे जहाँ तक याद है मैंने उक्त भाषा या भाव का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कभी भी प्रयोग नहीं किया| यदि कहीं पर मेरी ओर से ऐसा लिखा गया है तो कृपा करके मुझे अवगत करने का कष्ट करें, मैं आपका आभारी रहूँगा, जिससे कि ऐसी किसी भी बात का समय रहते खंडन या शुद्धीकरण या स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया जा सके| मुझे आशा है कि आप अपने लेखकीय धर्म का परिचय देकर इस बारे में स्थिति को जरूर स्पष्ट करेंगे| वैसे साफ कर दूं कि मैं ऐसा लिख भी नहीं सकता, क्योंकि आखिर मैं स्वयं हिन्दू हूँ| आस्तिक हूँ और सबसे बड़ी बात ये कि मैं राम तथा कृष्ण में आस्था रखता हूँ| मुझे नहीं पता आप कभी गए या नहीं, लेकिन मैं वृन्दावन, कृष्ण जन्म भूमि के आलावा “गोवर्धन पर्वत” की अनेकों बार नंगे पैर परिक्रमा करने जाता रहा हूँ, जहाँ पर और तो सब ठीक है, केवल आप लोगों (मनुवादियों) की ओर से फैलाया जा रहा अपशिष्ट ही भक्तों की तकलीफ का सबसे बड़ा कारण है| जिसे हिन्दू धर्म, हिंदुत्व और राष्ट्र की एकता के लिए ठीक करने की प्रथम और अंतिम जिम्मेदारी आप जैसे धर्म, हिंदुत्व और संस्कृति के ठेकेदारों की है| इसीलिये मैंने आप जैसों के विचारण हेतु एक लेख भी लिख था| जिसका शीर्षक है – “हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दूवादी सरकार?” जिस पर मेरे अनेकों बार किये गए अनुरोध के उपरांत भी आज तक आपने कोई टिप्पणी नहीं की है| एक फिर से आपकी जानकारी के लिए लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ :-

    https://www.pravakta.com/story/१२५२७

    आशा है कि इस बार आप उक्त लेख को पढ़कर बिन्दुबार टिप्पणी करके हिन्दू धर्मं के अनुयाईयों को अनुग्रहित करेंगे|

    इसके आलावा आपको तो खुश होना चाहिए मैंने आपकी ओर से उठाये गए मूल मुद्दे का भी समर्थन किया है| देखें मेरी टिप्पणी के अंतिम पर की प्रथम पंक्ति-

    “डॉ. कपूर जी आप जिस जहरीले अपशिष्ट की बात कर रहे हैं, वह निश्चय ही विचारणीय मुद्दा है,…”

    एक बार फिर से दोहरा दूँ कि आपकी ओर से उठाया गया मुद्दा राष्ट्र हित का है| जिसपर बिना किसी संदेह के सभी को सभी मत मतान्तरों को भुलाकर गंभीरता पूर्वक विचार करने और यदि जाँच पड़ताल के बाद जरूरी हो तो इस मुद्दे के विरोध के लिए अराजनैतिक रूप से, विशेषकर भाजपा, संघ, बाबा रामदेव को शामिल किये बिना, सभी देशवासियों को एकजुट होकर सामने आना चाहिए| अच्छा मुद्दा उठाने के लिए डॉ. कपूर जी का आभार, लेकिन मैं अपने इस बात पर कायम हूँ कि हिंदुत्व के नाम पर आप लोगों ने जो जहरीला और खतरनाक अपशिष्ट फैला रखा है तथा जिसे लगातार फैलाते जा रहे हो, उससे यह कम घातक, कम खतरनाक और कम जहरीला है|

  12. आ गया कांग्रेस का चमचा…………….हिन्दुत्व के नाम पर धब्बा……………

  13. डा. मीणा जी की इतनी लम्बी टिपण्णी संभवतः पहली बार देख रहा हूँ. क्या कारण है ? मेरा लेख कुछ अधिक गहराई से मार कर गया लगता है. तभी तो बौखलाहट में अंट-संट लिखे जा रहे हैं. कहाँ परमाणु के भयावह खतरे और कहाँ किन्दुवाद के ( झूठे, काल्पनिक ) आतंक का प्रलाप. कोई सर-पैर है इनकी किसी बात का ? लगता है की खूब खार खाए बैठे हैं हिन्दू धर्म व संस्कृति के विरुद्ध. अछा ही है की इन साहब की वास्तविक मानसिकता किसी बहाने सामने आई.
    – अब इसे प्रलाप नहीं तो और क्या कहा जाए की एक और तो ये रामायण, महाभारत व राम, कृष्ण को काल्पनिक कहते हैं और दूसरी और कह रहे हैं की पामाणु ऊर्जा तो सदियों से भारतीयों को ज्ञात थी. अरे भाई कहीं पर तो टिको. चित भी मेरी पट भी मेरी. अगर हमारे ऋषियों, पूर्वजों को परमाणु उर्जा ज्ञात थी तो फिर हम और हमारी संस्कृति संसार में सबसे प्राचीन और श्रेष्ठ हुई की नहीं ? संसार में सबसे पहले हम ही सभ्य बने और हम ही ने सबको सभ्य बनाने के प्रयास किये. पर इन लोगों को यह बात किसी हालत में स्वीकार नहीं. ऐसी दोगली बातें कोई असंतुलित मस्तिष्क का व्यक्ति करेगा या फिर कोई षड्यंत्रकारी.
    मुझे मीणा जी ने बड़ी सभ्य (?) भाषा व शालीनता (?) का प्रयोग करते हुए दिमाग का इलाज करवाने की सलाह दी थी. महोदय आपके बारे में कई पाठक ऐसा ही कुछ सोच रहे हों तो बुरा न मानियेगा. ”ध्यायते विषयान पुंसः संगस्तेषुपजायते…………….संगात बुधिनाशो, बुधीनाशत प्रणश्यति.”
    – यह सवाल फिर भी अनुत्तरित रह गया की ये आखिर किस बात से इतना अधिक बौखलाए हुए हैं ? मेरे इस लेख में आखिर ऐसा है क्या की ये आपे से बाहर हुए जा रहे हैं ? कुल मिला कर मेरे इस लेख का सार यही है की सारा विश्व आज परमाणु ऊर्जा से तौबा कर रहा है, इसके खतरे कितने भयावह हैं ; जापान की त्रासदी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. अतः परमाणु ऊर्जा के सौदों को निरस्त करना चाहिए. इसी में हम सब का हित है. हित है तो केवल उन कंपनियों का जो मनमांगे मूल्य पर मौत का सामन भारत को बेच कर अपनी कंपनियों की डूबती नाव को बचाना चाहती हैं, अपनी कंगाली मिटाना चाहती हैं भारत के अस्तित्व की कीमत पर. समझने की बात है की आखिर हमारे मीणा जी किस के हित में काम कर रहे हैं ? उन्हें भारत के हित प्रिय हैं या परमाणु संयंत्र बेचने वाली विदेशी कंपनियों के ? किसके लिए काम कर रहे हैं ये साहब ?
    – कहीं डा. मीणा जी एक सोचा-समझा कुटिल प्रयास तो नहीं कर रहे हमें मुद्दे से भटकाने का ? हमारी हिन्दू भावनाओं को चोट पहुंचाकर वे परमाणु मुद्दे को चर्चा से बहार करने का एक चतुर प्रयास तो नहीं कर रहे ? ईश्वर करे की मेरी सारी आशंकाए डा. मीणा जी के बारे मैं गलत साबित हों पर डा. मीणा भी तो इस दिशा में कुछ करेंगे की नहीं ? अभीतक का उनका व्यवहार तो शंकाओं को निरंतर बढाने वाला ही है.
    – पाठक बंधुओं से मेरा विनम्र आग्रह है की लेख के विषय से न भटकते हुए इसी पर परिचर्चा करें. हिन्दू धर्म, संस्कृति के बारे में कहने को इतना कुछ है की डा. मीणा जी जैसे अनेकों चूक जायंगे. इकबाल यूँही तो नहीं कह गए की ” कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा ” पर ये सब फिर कभी.
    अभी तो बिना भटके केवल परमाणु मुद्दा, जो हमारे ही नहीं विश्व भर की अस्तित्व का मुद्दा है. काश ये परमाणु विकीर्ण के खतरों में लिपटी मौत बेचने वाली कम्पनियां समझ पातीं की इसमें उनका अपना अस्तित्व भी एक दिन मिट जाने का खतरा है.

  14. मीणा जी, डॉ. कपूर साहब की चर्चा का रुख आपने कहाँ से कहाँ मोड़ दिया? वो कौनसे अपशिष्ट की बात कर रहे थे और आप अपने उसी पुराने अपशिष्ट पर टिके हैं…आपको एक पंक्ति में ही इसका उत्तर देना चाहूँगा…क्षमा करें इस उत्तर के लिए…
    “आप जैसे लोग मैकॉले द्वारा फैलाए अपशिष्ट की पैदावार हैं…”

  15. देखा कपूर साहब आपने, मैंने भविष्यवाणी कर दी थी पहले ही…मै अभी टिप्पणी लिख ही रहा था की एक महाशय का आगमन हो ही गया…जैसे ही टिप्पणी पोस्ट हुई इनकी टिप्पणी मुझसे पहले यहाँ दिख गयी…

  16. आदरणीय डॉ. कपूर साहब…सच में इन सब के भयंकर परिणामों का सामना हमें करना पड़ सकता है| हम भारतीयों की जान बहुत सस्ती है, जो कुछ लाख करोड़ के विदेशी प्रोजेक्ट के सामने कुछ भी नहीं| उन्नत तकनीक की हमारे पास कभी कमी नहीं रही है, फिर भी विदेशियों के तलवे चाटना क्यों हमारे स्वभाव में शामिल हो रहा है| अभी कुछ दिन पहले मैंने एक ब्लॉग पर कानपुर की एक गौशाला का गज़ब का कारनामा देखा था| गौशाला के लोगों ने एक सीऍफ़एल बनाई है जो बैटरी से चलती है और इस बैटरी को गौमूत्र से चार्ज किया जाता है| आधा लीटर गौमूत्र अगले २८ घंटों तक सीऍफ़एल को जलाता है| अर्थात गौमूत्र से ऊर्जा का उत्पादन भी किया जा सकता है| ब्लॉग का लिंक https://hindurashtraa.blogspot.com/2011/03/28.html
    क्या नहीं है हमारे पास, फिर क्यों ये भ्रष्ट राजनेता हमें मौत के मूंह में धकेल रहे हैं?
    आपने लेख को गहरे शाध के साथ प्रस्तुत किया है, किन्तु फिर भी मई जानता हूँ कि अभी कुछ लोग यहाँ भटकते हुए आएँगे और आपसे प्रमाण मांगेंगे|
    प्रस्तुत लेख के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद…
    सादर…
    दिवस…

  17. इस लेख में बार-बार जापान के परमाणु हादसों के बहाने भारत सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कौशिश करने में डॉ. कपूर सफल होते दिख रहे हैं| डॉ. कपूर संवेदनशीलता की बात भी इस लेख में लिख गए और अपशिष्ट के सैकड़ों हजारों सालों तक जिन्दा रहने का भय या सच्चाई जो भी है, उसे लिखने में भी कामयाब होते दिख रहे हैं| लेकिन डॉ. कपूर जी ये तो केवल भय या सम्भावना मात्र है, जो वेदों, ब्रह्मण ग्रंथों, मनु स्मृति आदि में अपशिष्ट हजारों सालों से भारत में लगातार फैलाया जाता रहा है और जिसके कारण लोग जिन्दा रहकर भी पल प्रतिपल मर-मर कर जीने को विवश हो रहे हैं, उस कचरे को साफ करने के बजाय आप लोग आर एस एस, बाबा राम देव, भाजपा आदि को सत्ता में लाकर फिर से भारत में मनुवादी हिंदुत्व को लागू करके राम नाम, राम राज्य और आध्यात्मवाद के नाम पर इस देश को फिर से हजारों सालों तक आर्य मानसिकता का गुलाम बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं| उसके बार में और उसके भायवह परिणामों के बारे में सोचने की शायद आपको फुर्सत या जरूरत नहीं हैं? आप उस मनु स्मृति को लागू करने पर आमादा हैं जो केवल भारत के दो फीसदी लोगों को इन्सान मानती है| आप उस कथित भारतीय संस्कृति के जहरीले अपशिष्टों को भारत में फिर से फैलाना ही नहीं चाहते, बल्कि उनका फिर से आधुनिक तरीके से चासनी में लपेटकर बीजारोपण करना चाहते हैं, जिसमें भारत की आधी आबादी स्त्री और गैर ब्राह्मणों को तो इन्सान ही नहीं माना जाता| जो कुछ है सब कुछ केवल भूदेवों का ही है|

    देखिये कुछ उदहारण :

    ‘‘आर्यों के भगवान मनु’’ ने मनुस्मृति के अध्याय एक में निम्न मनमानी व्यवस्था लागू की है-

    श्‍लोक (९५ व ९६ )-ब्राह्मण के मुख से देवता और पितर अपना हिस्सा (हव्य) खाते हैं|

    इस श्‍लोक में मनु ने ब्राह्मणों के लिये जन्म-जन्मान्तर के लिये इस बात की स्थायी व्यवस्था कर दी है कि यदि ब्राह्मणों (भू-देवों अर्थात् पृथ्वी के साक्षात देवता) को शुद्ध घी, दूध, मलाई आदि से बने उत्तम पकवान खिलाओगे तो सभी पकवान सभी देवताओं और सभी पितरों (पूर्वजों) के पेट में पहुँच जायेगें| इसका अर्थ तो यही हुआ कि ब्राह्मण का पेट लैटर-बॉक्स है, जिसमें पकवान डालो और देवताओं तथा पूर्वजों को तृप्त कर दो|

    श्‍लोक (९७)-संसार के सभी पांच माहभूतों और संसार में पाये जाने वाले सभी प्राणियों में ब्राह्मण ही सर्वश्रेृष्ठ है|

    श्‍लोक (९९)-धर्म की पूर्ति के लिये जन्म लेने वाले प्राणी को ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है और केवल ब्राह्मण का जन्म ही धर्म की पूर्ति के लिये हुआ है| अत: मोक्ष की प्राप्ति पर ब्राह्मण का ही जन्मसिद्ध एकाधिकार है|

    श्‍लोक (१०० व १०१)-चूंकि ब्राह्मण धर्म की पूर्ति के लिये ब्रह्मा के मुख से पैदा हुआ है| अत: इस पृथ्वी पर जो कुछ भी धन, धान्य और खजाना (राजा का कोश) है, उस सब पर केवल ब्राह्मणों का ही (जन्मसिद्ध) अधिकार है| जबकि दूसरे सभी व्यक्ति केवल ब्राह्मण की दया पर निर्भर हैं| ब्राह्मण की इच्छा (अनुमति) से ही अन्य लोग अन्न, वस्त्र आदि प्राप्त कर सकते हैं|

    श्‍लोक (१०२)-चूँकि ब्राह्मण साक्षात देवता है| अत: ब्राह्मण का सभी धन, धान्य और खजाने पर पूर्ण अधिकार है| इस प्रकार वह किसी का दिया हुआ नहीं, बल्कि सबकुछ अपना ही खाता और भोगता है, जबकि दूसरे लोग ब्राह्मण की आज्ञा से ही अन्न, वस्त्र आदि वस्तुओं को ग्रहण कर सकते हैं|

    मनुस्मृति के अध्याय ९ के श्‍लोक ३१८ में तो ब्राह्मणों की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिये यहॉं तक लिख दिया है कि-

    ‘‘ब्राह्मण चाहे कितने ही त्याज्य और निन्दनीय कुकर्म करता हो, कुकर्मों में लीन ही क्यों न रहता हो, लेकिन फिर भी ब्राह्मण पूज्यनीय ही है, क्योंकि वह ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के कारण परमदेव अर्थात् सर्वोत्तम देवता है|’’

    ब्राह्मणों का हर कदम पर साथ देने वाली, उनकी अपनी पत्नी, माता, पुत्री अर्थात अपनी ‘‘मातृशक्ति’’ अर्थात् स्त्री का कितना सम्मान है? ये भी जान लें:-

    १. ‘‘स्त्री मन को शिक्षित नहीं किया जा सकता| उसकी बुद्धि तुच्छ होती है|’’ देखें-ॠगवेद मंत्र (८/३३/१७)

    २. ‘‘स्त्रियों के साथ मैत्री नहीं हो सकती| इनके दिल लक्कड़बग्घों से भी क्रूर होते हैं|’’ देखें-ॠगवेद मंत्र (१०/९५/१५)

    ३. ‘‘कृपणं ह दुहिता’’ अर्थात्-‘‘पुत्री कष्टप्रदा, दुखदायिनी होती है|’’ देखें-ब्राह्मण ग्रंथ, ऐतरेय ब्राह्मण मंत्र (७/३/१)

    ४. ‘‘पुरुषों को दूषित करना स्त्रियों का स्वभाव ही है| अत: बुद्धिमामनों को स्त्रियों से बचना चाहिये|’’ देखें-मनुस्मृति, अध्याय-२ (श्‍लोक-२१७)

    ५. ‘‘शास्त्र की यह मर्यादा है कि स्त्रियो के संस्कार वेदमन्त्रों से नहीं करने चाहिये, क्योंकि स्त्रियॉं मूर्ख और अशुभ होती हैं| (एक स्थान पर लिखा है कि क्योंकि निरेन्द्रिय व अमन्त्रा होने के कारण स्त्रियों की स्थिति ही असत्य रूप होती है)’’ देखें-मनुस्मृति, अध्याय-९ (श्‍लोक-१८)

    ६. ‘‘विधवा स्त्री को दुबारा विवाह नहीं करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से धर्म का नाश होता है|’’ देखें-मनुस्मृति, अध्याय-९ (श्‍लोक-६४)

    ७. ‘‘स्त्रियॉं कौनसा दुष्कर्म नहीं कर सकती|’’ देखें-चाणक्यनीतिदर्पण, अध्याय-१० (श्‍लोक-४)

    डॉ. कपूर जी आप जिस जहरीले अपशिष्ट की बात कर रहे हैं, वह निश्चय ही विचारणीय मुद्दा है, लेकिन आप लोगों ने जो जहरीला और खतरनाक अपशिष्ट फैला रखा है तथा जिसे लगातार फैलाते जा रहे हो, उससे कम घातक, कम खतरनाक और कम जहरीला है| भारत में सतीप्रथा, दहेज़, छुआछूत, नुक्ताप्रथा, बहुपत्नी प्रथा, दहेज़ हत्या, भ्रूण हत्या, दलित-आदिवासी उत्पीडन, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और स्त्रियों का शोषण, उत्पीडन, बलात्कार, भ्रष्टाचार, अत्याचार, मिलावट, कालाबाजारी, घूसखोरी आदि जितने भी इन्सान इन्सान में विभेद करने वाले और निचले तबके का शोषण करने वाले अमानवीय कुकृत्य हैं, उन सबके लिए भारतीयों पर थोपी गयी आर्य कुनिती, जो कालांतर में मनु नीति और ब्राह्मणशाही के रूप में जानी गयी और जो आज भी बदस्तूर लागू है, उसी के जहरीले अपशिष्ट हैं| ये जहरीले अपशिष्ट जो करोड़ों लोगों को जीवित ही पल-पल मार रहे हैं| ये जहरीले अपशिष्ट जो देश की आधी आबादी स्त्री को मानव ही नहीं मानते| ये जहरीले अपशिष्ट जो दलित, आदिवासी, पिछड़ों को समानता का हक़ नहीं देते और आर्यों द्वारा थोपी कुव्यवस्था को हर हाल में इस देश में जिन्दा रखना चाहते हैं| इसीलिये भारत-पाक मैच को भी आपने फिक्स करा दिया| भारतीयता, भारत, राष्ट्र, धर्म और संसकृति का नाम लेकर आप जैसे लोग अपने जहरीले अपशिष्ट को फिर से बोने, पोषित करने और फलित करने के लिए कुछ भी अफवाह फ़ैलाने, लोगों को भ्रमित करने और भड़काने से नहीं चूकते| कभी गणेश को दूध पिला देते हो कभी, मस्जिद को दहा देते हो, कभी मुसलमानों का गुजरात में तो उडीसा में ईसाईयों का कत्लेआम करवा देते हो| हम दलित आदिवासियों का तो हर दिन मानमर्दन करते रहते हो, आप लोगों को अपनी ओर से फैलाये जा रहे जहरीले अपशिष्ट से मर रहे करोड़ों भारतीयों की तो तनिक चिंता नहीं और जापानियों के लिए संवेदना जगाने के नाम पर और पाकिस्तान के खिलाफ देश के लोगों को भड़कने के लिए आपने मैच को ही फिक्स कर दिया और हमारे भारतीय लड़कों की मेहनत पर पानी फिर दिया! कितनी घटिया और शर्मनाक शोच है| वास्तव में आप लोग जहर फैलाते ही नहीं हो, बल्कि आप जैसे लोग सम्पूर्ण रूप से जहरीले हो| जिसे भी कटते वह जिन्दा नहीं रह सकता|

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