सत्ता का विकेंद्रीकरण और उत्तराखण्ड का हाल

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गाँव भी विकास की मुख्य धारा से ज़ुड़े, इसी मकसद से सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए पंचायती राज की कल्पना की गई।मगर सत्ता के विकेंद्रीकरण और उत्तराखंड का हाल पर नजर डाली जाए तो आंकड़े चौकाने वाले हें.

सत्ता का विकेन्द्रीकरण और उत्तराखंड का हाल

21वीं सदी में भारत चाँद पर पहुँच गया ,मगर उत्तराखण्ड के ऐसे भी गाँव हैं जहाँ साइकिल भी नहीं पहुंची है।

भारत जनसंख्या में भले ही विश्व में दूसरे पायदान पर है किंतु लोकतंत्र के रूप में भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है .और एक सबसे बड़े लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया को विश्व में महान बनाया है तो वह है विश्व का सबसे बड़ा लोकप्रिय और गणतंत्र प्रिय भारत का संविधान. 2019 के आम चुनावों को लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व की संज्ञा देकर जनता को अपने मत का प्रयोग करने के लिए जागरूक किया गया. आजादी के बाद भारत में पहला आम चुनाव 1952 में संपन्न हुआ था तथा 2019 में 17 वीं लोकसभा के चुनाव संपन्न हुए हैं .लोकतंत्र को अब्राहम लिंकन ने इस प्रकार परिभाषित किया है -“लोकतंत्र जनता का ,जनता के लिए, और जनता द्वारा शासन”.

     लोकतंत्र में जनता की प्रकृति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य माना जाता है. वर्तमान में राजनीति के बदलते स्वरूप तथा राजनीति के अपराधीकरण ने लोकतंत्र की मूल भावना को कुचलने का काम किया है .जिससे जनतंत्र में जन को दरकिनार कर सिर्फ तंत्र ही हावी होने लगा है. शासक वर्ग ने स्वयं को विभिन्न राजनीतिक दलों में विभाजित कर वास्तविक विषय जनता की जनता के द्वारा को चर्चा से हटा ही दिया है  .सत्ता के विकेंद्रीकरण अर्थात लोकसभा ,राज्यसभा ,और विधान सभाओं के इतर सत्ता और लोकतंत्र की पहुंच को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सन 1992 में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा पंचायती राज एक्ट को संवैधानिक मान्यता दी गई थी. त्रिस्तरीय पंचायती राज में ग्राम पंचायत ,क्षेत्र पंचायत ,तथा जिला पंचायतों को निर्वाचन द्वारा चुने जाने का प्रावधान है. पंचायती राज अर्थात” ग्राम स्वराज “जो महात्मा गांधी का सपना था. इससे पूरा हुआ.

  ग्राम स्वराज से गांधीजी का सपना तो पूर्ण हुआ मगर यह कहना बहुत मुश्किल है कि ग्राम वासियों के सपने पूरे हुए कि नहीं.हिंदुस्तान की सबसे बड़ी विडंबना है कि जिस पर यहां ज्यादा गर्व किया जाता है, और जो यहां की प्रमुख विशेषताएं होती हैं उसी चीज में भारत सबसे ज्यादा कमजोर भी रहा है.” दीपक तले अंधेरा” वाली  कहावत यहां फिट बैठती है. बात लोकतंत्र और जनता की है तो समस्याएं भी जनता की ही होंगी. विडंबना यह है कि –

विडम्बना 1–सबसे ज्यादा पवित्र नदियां भारत में है और सबसे ज्यादा प्यासे व्यक्ति भी हिंदुस्तान में ही  निवास करते हैं.

विडम्बना 2– भारत कृषि प्रधान देश है. सबसे ज्यादा किसान हिंदुस्तान में है. और सबसे गरीब और बुरे हाल में भारत का किसान ही है .आए दिन आत्महत्या करते रहते हैं  कर्ज और बदहाली से तंग आकर.

विडंबना 3 –कृषि प्रधान के साथ-साथ हिंदुस्तान जाति प्रधान देश भी है और जातियां ही आज सबसे बड़ी मुसीबत बनी हुई है समाज के लिए तथा देश की एकता के लिए.

विडंबना 4–  सबसे ज्यादा हिंदुस्तान में आस्था के रूप में नारी शक्ति को पूजा जाता है चाहे  दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा, पार्वती ,सीता आदि हों ,और सबसे ज्यादा पीड़ित और  शोषितत भारत में नारी ही है.

विडंबना 5– “अहिंसा परमो धर्मः” हिंदुस्तान ने कहा है ,और हिंसा ने आज भीड़ हिंसा का रूप भारत में ही  लिया है .

विडंबना 6–  यह विडंबना सब विडंबनाओं की बाप है, क्योंकि -यह वोट तंत्र ,लूट तंत्र और नोट तंत्र,दागी तन्त्रों से भरा हुआ है.

विकास के नारे और वादे सबसे ज्यादा भारतीय लोकतंत्र के आम चुनाव से लेकर पंचायत चुनाव तक लगाए जाते  हैं और किये जाते हैं, मगर विकास की मात्र झलक भी आज तक देश के कुछ राज्यों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद भी कोसों दूर हैं.

आज देश में राष्ट्रवाद और राष्ट्र भक्ति की लहर सी आई हुई है. एक राष्ट्र एक चुनाव ,एक राष्ट्र एक भाषा ,एक निशान एक संविधान, एक राष्ट्र एक टैक्स .आदि कई राष्ट्रभक्ति के अभियान चले हैं .इन सब में जो राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र में बांधता है वह है सब को एक समान मत देने का अधिकार. मगर मत का मूल्य समान होने पर भी यहां लंबी खाई बनी हुई है .एक मतदाता के लिए रेल गाड़ी ,मोटरसाइकिल, बस, कार,ऑटो, हवाई जहाज सब कुछ है. और अब उसके लिए बुलेट ट्रेन लाने की शुरुआत भी हो रही है .और दूसरी तरफ के मतदाता का हाल देखिए –उदाहरण के लिए उत्तराखंड राज्य को चुना है क्योंकि यह प्रदेश कई मायनों में अन्य प्रदेशों से भिन्न है.

यहां पलायन की समस्या सबसे ज्यादा है. चीन. नेपाल. तिब्बत की सीमा से लगा ये प्रदेश आजादी के बाद से ही अपने अस्तित्व को तलाशा रहा है. 9 नवंबर सन 2000 को यह पृथक राज्य बन गया और 9 नवंबर 2019 में यह राज्य 20वें वर्ष में प्रवेश करने वाला है. अन्य समस्याएं तो यहां की अनगिनत हैं ही, मगर 1952 से लेकर सन 2019 के आम चुनाव तक 67 साल हो चुके हैं और आजकल यहां पंचायती चुनाव भी चल रहे हैं पोलिंग बूथों के आधार पर यहां की विकास योजनाएं और पंचायती राज की प्रासंगिकता को परखा जा सकता है चुनाव आयोग के आंकड़े देखकर लगता नहीं कि यहां कोई तंत्र है।”सत्ता का  विकेंद्रीकरण और उत्तराखंड का हाल.” निम्न आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है।

चुनाव आयोग के आंकड़े

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विधान सभा क्षेत्र का नाम    बूथ का नाम   सड़क से दूरी km

बद्रीनाथ                            1-डुमक। 20

                                       2-कलगोठ।           20

गंगोत्री                              1-जौड़ाव। 18

                                      2-पिलंग।              19

घनसाली                              पिन स्वाड़          16

धनौल्टी                                1-रगड़गाँव। 19

                                      2-घुस्सालगाँव।      18

                                       3-सैरा                      15

धारचूला                                1-कनार    20

 कपकोट.                       बोरा बलड़ा    18

लोहाघाट.                           1-करौली.           20

                                    2-नौलि गॉंव.      18

                                     B3-कलिया धुरा    20

चंपावत                              1-बुंगा दुर्गापाल. 18

                                        2-कोट केन्द्री    20

सड़क से आज भी इतनी पैदल दूरी चलकर वोट कराए जाते हैं।आखिर किस लिए

 पूरे उत्तराखंड में लगभग अभी भी 50 बूथ ऐसे हैं जो सड़क से 10 से 25 किलोमीटर की पैदल दूरी पर स्थित है .कहने को तो भारत चंद्रमा तक पहुंच गया है. मगर एक साइकिल भी अभी तक इतने दुर्गम बूथों पर नहीं पहुंच पाई है ,जो लोकतंत्र में चुने हुए शासन के प्रतिनिधियों जनप्रतिनिधियों के लिए शर्म की बात होनी चाहिए .आखिर देश को आजाद हुए 73 साल और उत्तराखंड राज्य को बने 19 साल हो गए हैं और हम इन बूथों में 50 किलोमीटर सड़क अभी तक नहीं पहुंचा पाए हैं. जो लोकतंत्र में चुने हुए शासन के प्रतिनिधियों जनप्रतिनिधियों के लिए शर्म की बात होनी चाहिए .आखिर देश को आजाद हुए 7 दशक से ऊपर हो चुके हैं और उत्तराखंड राज्य बने दो दशक पूरे होने को हैं और हम इन वर्षों में वोट तो हमेशा कराते रहे  हैं,चाहे सांसद का हो, विधायक का, हो ग्राम पंचायत का हो ,क्षेत्र पंचायत का हो ,तथा जिला पंचायत का हो हर पाँच वर्ष में यहां भी चुनाव हुए और इन लोगों ने वोट भी किया .आखिर इनके वोट की कीमत क्या अभी तक कोई समझ पाया है?

  पलायन-जो आज इस राज्य की सबसे बड़ी समस्या है सायद ऐसी विषम परिस्थियों में लोग पलायन नहीं करंगे तो क्या करंगे?बेहतर शिक्षा,बेहतर स्वास्थ्य तथा बेहतर सुविधाएं पाने का हक इस देश में हर नागरिक का है।ऐसे में कैसे होगा पृथक उत्तराखंड राज्य का सपना,ये हुक्मरानों को गम्भीरता से मनन करने की जरूरत है।

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