रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन की अदभुत कूटनीति

वेदप्रताप वैदिक

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन हैं तो रक्षा मंत्री लेकिन उन्होंने काम कर दिखाया है, विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री का ! उन्हें जब रक्षा मंत्री का पद दिया गया तो कुछ लोगों ने कहा कि यह बहुत ज्यादा है लेकिन पदारुढ़ होते ही उनका भारत-चीन सीमांत पर पहुंच जाना इस बात का सबूत है कि वे अपना दायित्व पूरी लगन से निभाना चाहती हैं। निर्मलाजी सिक्किम में गंगटोक गईं और वहां से 54 किमी दूर दोकलाम क्षेत्र के पास तक पहुंचीं। इसी क्षेत्र को लेकर भारत और चीन के बीच लगभग 70 दिन तक सैन्य मुठभेड़ की स्थिति बनी रही और एक-दूसरे पर कूटनीतिक तीर बरसते रहे। यदि चीन में हुई ब्रिक्स की बैठक में नरेंद्र मोदी को न जाना होता तो कोई आश्चर्य नहीं कि दोकलाम में दोनों सेनाओं में भिडंत हो जाती। भारत सरकार झुकी। वह अपनी घोषणा से पीछे हटी। उसने दोकलाम से अपनी फौजें चीन से पहले हटाईं तो चीन ने भी हटा लीं। लेकिन अब फिर दोकलाम पर चीनी हरकतें बढ़ गई हैं। उन्होंने भारत को नसीहतें देना भी शुरु कर दिया है। यह मामला फिर भड़केगा या नहीं, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन निर्मलाजी का वहां जाना और चीनी सैनिकों से सीधा संवाद करना गजब की कूटनीति सिद्ध हुई है। रक्षा मंत्री ने सीमांत पर खड़े चीनी सैनिकों को नमस्ते किया और चीन की जनता के लिए शुभकामनाएं दीं। वे अंग्रेजी में बोलीं, जिसे एक चीनी अनुवादक ने चीनी सिपाही को चीनी में समझाया। वह गदगद हो गया। उसे नमस्ते का अर्थ भी समझाया। निर्मलाजी अगर थोड़ी भी संस्कृत जानती होतीं और नमस्ते का सही-सही अर्थ उसे बदला देतीं तो आज पूरा चीन उनके कदमों में झुक जाता। मुझे आश्चर्य है कि वे अपने साथ चीनी भाषा जाननेवाला दुभाषिया क्यों नहीं ले गईं। यों भी चीनी विद्वानों, विशेषज्ञों और अखबारों ने हमारे रक्षा मंत्री के सदभावना-संकेत पर बड़ी भावभीनी प्रतिक्रियाएं की हैं। मैं चीन कई बार गया हूं और लगभग सारा चीन मैंने देख डाला है। चीनी जनता भारत को अपने ‘गुरुओं का देश’ समझती है और भारत को ‘पश्चिमी स्वर्ग’ कहती है। नेताओं की बात जाने दें, चीनी जनता के मर्म को हमारी रक्षा मंत्री ने छू लिया है। यह ठीक है कि राजनीति तो शक्ति का खेल है लेकिन इस तरह की अकस्मात घटनाएं भी कभी-कभी चमत्कारी सिद्ध होती हैं।

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