आर्मी चीफ के दावों पर डिफेंस स्टेंडिंग कमेटी की मुहर

 सिद्धार्थ शंकर गौतम

आर्मी चीफ द्वारा भारतीय सेना की कमजोर तैयारियों को लेकर १२ मार्च को प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र के मीडिया में लीक होते ही बवाल मच गया था| सरकार ने इस मुद्दे को जनरल वीके सिंह के पूर्वाग्रह से ग्रसित दिमाग की उपज बताया था| किन्तु सेना की तैयारियों का जायजा लेने के लिए गठित डिफेंस स्टेंडिंग कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में भारतीय सेना में हथियारों की कमी को चिंता का विषय बताया है। डिफेंस स्टेंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय वायुसेना के लिए सेंक्शन की गई मशीनरी और मौजूदा मशीनरी में भारी फर्क है। समिति ने रिपोर्ट में १८ चीता, १ चेतक, ७६ एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर और हथियारों से लैस ६० हेलीकॉप्टरों की कमी बताई है। समिति के अनुसार ९४६ मिग विमानों में से ४७६ विमान यानी पचास प्रतिशत से अधिक दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं और देश में प्रशिक्षण विमानों की अत्यधिक कमी है। वहीं ४३४ प्रशिक्षण विमानों में अभी २५५ उपलब्ध है जिसमें ३२ एचपीटी और हाक्स विमान शामिल हैं। हाक्स को छोड़कर शेष प्रशिक्षण विमान पुराने हैं। एचपीटी ३२ की उम्र २८ वर्ष है जबकि किरण ने पहले ही ३९ वर्ष पूरे कर लिये हैं। उपयुक्त स्थिति से प्रशिक्षक विमानों की अत्यधिक कमी का पता चलता है। समिति ने कहा है कि प्रशिक्षक विमान और सिमुलेटरों की अत्यधिक कमी के मद्देनजर पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं हो पा रहा है और इससे पायलटों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, ३१ जुलाई २००९ को एचपीटी ३२ की दुर्घटना के बाद इस लड़ाकू विमान को जमीन पर उतारने की काफी निंदा हुई क्योंकि भारतीय वायुसेना के बाद अब कोई मूलभूत प्रशिक्षण विमान नहीं बचा है। रिपोर्ट में टैंकों की संख्या और आयुध भंडारण में कमी को भी चिंता की बड़ी वजह बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बंदूकों की कमी भी गंभीर स्तर पर है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सुरक्षा बलों में अधिकारियों के लगभग बीस प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। ४७,७६२ स्वीकृत अधिकारी पदों में से १०,५२६ पद खाली हैं।

कुल मिलाकर डिफेंस स्टेंडिंग कमेटी की रिपोर्ट ने सरकार को आइना दिखाने का काम किया है| जनरल वीके सिंह की नीयत पर सवाल उठाने वाले अब स्वयं सवालों के घेरे में हैं| देखना दिलचस्प होगा कि देश की अस्मिता से जुड़े संवेदनशील मुद्दे पर सरकार का रुख क्या रहता है? वैसे इतना तय है कि डिफेंस स्टेंडिंग कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद किसी न किसी को तो कुर्बानी देनी होगी| आखिर सवाल सरकार की साख का जो है| किन्तु इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि सेना के साजो-सामान की खरीदारी में भ्रष्टाचार का जो घुन लग चुका है; उसी का परिणाम है कि आज डिफेंस स्टेंडिंग कमेटी की रिपोर्ट ने जनरल सिंह की कही बात को सच साबित कर दिया है| हाल ही में जनरल सिंह ने यह कहकर तहलका मचा दिया था कि ६०० घटिया गाड़ियों की आपूर्ति को मंजूरी देने के लिए डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह ने सीधे उन्हें १४ करोड़ रूपए की रिश्वत की पेशकश की थी| सिंह का यह भी कहना था कि उस वक़्त उन्होंने पूरे मामले से रक्षामंत्री को अवगत करवाया था किन्तु रक्षामंत्री की ओर से उन्हें किसी प्रकार की मदद नहीं मिली| उनके क्षेत्राधिकार में जो था उन्होंने वही किया| उनके इस खुलासे से समझा जा सकता है कि सेना की अंदरूनी स्थिति क्या होगी?

वैसे यह कोई पहला मामला नहीं था जिसमें सेना के साजो-सामान की खरीद फरोख्त में भ्रष्टाचार की कोशिश न हुई हो| १९४८ में जीप घोटाले के रूप में सेना में दलाली का पहला मामला सामने आया था| इस मामले में प्रतिरक्षा मंत्री बीके कृष्ण मेनन दोषी पाए गये थे| १९८८-८९ में बोफोर्स का मामला उछला| बोफोर्स मामले में स्वीडिश कंपनी से कम गुणवत्ता वाली तोपों की खरीद के आरोप लगे थे| उक्त कम्पनी ने इन तोपों कि सप्लाई के लिए ६४ करोड़ की दलाली चुकाई थी| उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे जिनका राजनीतिक जीवन ही बोफोर्स की भेंट चढ़ गया| बोफोर्स प्रकरण के बाद रक्षा सौदों को लेकर कई तरह के दलाली के आरोप लगते रहे हैं| ताबूत घोटाला १९९९ में सामने आया| कारगिल मे जब हमारे सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अपना खून बहा रहे थे, ठीक उसी वक्त हमारे रक्षा मंत्रालय के अधिकारी शहीदों के लिए ताबूत खरीदने तक में घोटाले करके अपनी तिजोरी भरने में लगे हुए थे| २००१ में इजरायल के साथ बराक मिसाइल की खरीद में गड़बड़ी का मामला सामने आया था| २००५ में १६ हजार करोड़ के पनडुब्बी घोटाले का मामला उजागर हुआ था| कहा जा सकता है कि ज्यादातर सैन्य घोटालों में लीपापोती की ही कोशिश होती रही है| कभी सेना की छवि बचाने के नाम पर तो कभी किसी अधिकारी या नेता को बचाने के नाम पर; सेना में घोटालों का पूरा सच सामने नहीं आ पाता| ऐसे में सरकार की नीयत पर भी शक क्यूँ न हो?

ज़ाहिर है रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद इस पर राजनीति भी होगी किन्तु यह किसी एक दल का मामला नहीं है| यह मामला है देश की अस्मिता का; उसके सम्मान का| यदि सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पर भी राजनीतिक दल गंदी राजनीति करने से बाज नहीं आते हैं तो यह सरासर लोकतंत्र का अपमान होगा| अतः सभी राजनीतिक दलों को देश की गद्बदाती सुरक्षा के प्रति गंभीरता से मनन करते हुए उसमें सुधार के उपाय खोजने होंगे तभी देश सामरिक दृष्टि से मजबूत होगा|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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