फ़िक्सिंग का शिकार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ?

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-तनवीर जाफ़री-
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भारतीय संविधान में हालांकि मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में कहीं कोई मान्यता नहीं दी गई है। उसके बावजूद मीडिया ने स्वयं को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में प्रचारित कर रखा है। और यह ‘भ्रांति’ समाज में धीरे-धीरे एक स्वीकार्य रूप भी धारण कर चुकी है। आज पूरा देश और दुनिया मीडिया के विभिन्न माध्यमों अखबार, पत्रिका, रेडियो, टीवी आदि के माध्यम से प्राप्त होने वाले समाचारों, घटनाओं तथा विशेषण आदि पर य$कीन करती है। परंतु जिस प्रकार राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को निष्पक्ष कहने वाला यही मीडिया पक्षपातपूर्ण होता दिखाई दे रहा है, या यूं कहें कि क्रिकेट मैच की तरह ‘फ़िक्सिंग का शिकार होता नज़र आ रहा है उसे देखकर यही संदेह होने लगा है कि मीडिया वास्तव में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने योग्य है भी या नहीं?

पिछले कुछ वर्षों से भारत में मीडिया के शीर्ष पदों पर बैठे तथा मीडिया जगत में अपनी अलग पहचान रखने वाले कुछ पत्रकारों के ऐसे फोन टेप उजागर हुए जिनसे यह पता चला कि मीडिया महारथी केवल खबरें ही जनता तक नहीं पहुंचाते, बल्कि केंद्र सरकार में वे अपनी ज़बरदस्त घुसपैठ रखने की क्षमता भी रखते हैं। कॉरपोरेट घरानों की पैरवी से लेकर केंद्रीय मंत्रीमंडल में किसी व्यक्ति को शामिल करने न करने जैसे देश के अतिमहत्वपूर्ण मामलों में भी इनका निर्णायक दखल है। कुछ खबरें ऐसी भी हैं कि मीडिया हाऊस पर अपनी मज़बूत पकड़ रखने वाले देश के कई जाने-माने पत्रकार बहुत ही कम समय में अकूत संपत्ति के मालिक बन चुके हैं। और तो और अब तो यह भी देखा जा रहा है कि यदि मीडिया ने किसी बाहुबली, धनाढ्य या उद्योगपति से संबंधित किसी नकारात्मक खबर को लेकर उसकी पगड़ी उछाली तो आनन-फ़ानन में वह व्यक्ति खुद ही अपना निजी मीडिया हाऊस खोल बैठता है। और मीडिया बिरादरी में शामिल होकर न केवल अपनी इज़्ज़त बचाने की कोशिश करने लग जाता है बल्कि इसके बहाने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भी मनमाने तरीके से निशाना साधने लग जाता है। कौन सा अखबार, पत्र-पत्रिका अथवा रेडिया या टीवी चैनल किसी व्यक्ति अथवा विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है, आम जनता इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ रहती है।

इन दिनों एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को लेकर कुछ ऐसा ही दृश्य देखा जा रहा है। जो नरेंद्र मोदी करण थापर तथा विजय त्रिवेदी जैसे पत्रकारों के सवालों के जवाब देने से कतराते नज़र आ चुके हैं, स्टूडियो में साक्षात्कार छोडक़र अपनी पीठ दिखाते नज़र आए थे और आज भी जो नरेंद्र मोदी संवाददाता सम्मेलनों से मुंह छिपाते फिर रहे हैं। बड़े ही रहस्यमयी तरीके से इंडिया टीवी जैसे चैनल के आप की अदालत नामक कार्यक्रम में रजत शर्मा के माध्यम से जनता से मुखातिब होते दिखाई दे रहे हैं। वैसे तो रजत शर्मा स्वयं को अपने ही मुंह से इतना बड़ा पत्रकार तथा बातों-बातों में पत्रकारिता के क्षेत्र का इतना बड़ा ज्ञानी बताते हैं, गोया उनके अतिरिक्त और उनसे महान देश में कोई दूसरा पत्रकार ही न हो। परंतु 2014 के लोकसभा चुनाव के परिपेक्ष्य में यह टीवी चैनल अपनी जो पक्षपातपूर्ण भूमिका निभा रहा है उसे देखकर मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहना तो दूर कोई इसे निष्पक्ष तक नहीं स्वीकार कर सकता। इंडिया टीवी ने तो गोया नरेंद्र मोदी का गुणगान करने तथा अरविंद केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी में खा़मियां निकालने का ठेका ले रखा है।
पिछले दिनों आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह ने एक प्रेस वार्ता के दौरान इंडिया टीवी न्यूज़ चैनल पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया। हालांकि उसके बाद वे अपनी बात से मुकर भी गए तथा यह कहा कि उन्होंने इंडिया टीवी का नाम गलती से ले लिया था। परंतु उस घटना के बाद तो रजत शर्मा व उनका टीवी चैनल मीडिया के निष्पक्ष दायित्व निभाने की बात को भूल कर हाथ धोकर न सिर्फ आम आदमी पार्टी के पीछे पड़ गया है बल्कि साथ-साथ नरेंद्र मोदी की छवि चमकाने का गोया ठेका भी ले लिया है। आप की अदालत में रजत शर्मा ने अरविंद केजरीवाल को भी आमंत्रित किया था। परंतु उनके समक्ष रजत शर्मा की एक ऐसी प्रश्रावली थी जैसे कोई पत्रकार नहीं बल्कि केजरीवाल का धुर विरोधी उनसे प्रश्न पूछ रहा हो। यहां तक कि केजरीवाल द्वारा सही व संतोषजनक उत्तर दिए जाने के बावजूद उन्हें उलझाने की पूरी कोशिश की जाती रही। उधर केजरीवाल की ही आप की अदालत में दर्शकों का भी ऐसा समूह बिठाया गया था जो केजरीवाल की बातों पर तालियां कम बजाता था उन्हें ‘हूट’ अधिक करता था। साफ़ नज़र आ रहा था कि अरविंद केजरीवाल आप की अदालत में किसी पूर्वाग्रही पत्रकार के जाल में फंस गए हों।

परंतु नरेंद्र मोदी की इसी आप की अदालत कार्यक्रम में मौजूदगी तथा उनका साक्षात्कार शत-प्रतिशत ऐसा प्रतीत हो रहा था गोया इस कार्यक्रम में मौजूद सभी दर्शक भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता अथवा समर्थक हैं। उधर रजत शर्मा की तरकश में सवालों के भी ऐसे तीर थे जिनमें केजरीवाल की प्रश्नावली की तरह, न तो नोक थी, न ही वैसी धार। अनेक ऐसे प्रश्न जो नरेंद्र मोदी से संबंधित हैं और देश की जनता नरेंद्र मोदी से ही इन विषयों पर कुछ सुनना चाहती है ऐसे कोई प्रश्न रजत शर्मा द्वारा नरेंद्र मोदी से नहीं पूछे गए। उदाहरण के तौर पर अरविंद केजरीवाल द्वारा सार्वजनिक रूप से नरेंद्र मोदी से पूछा जा रहा यह प्रश्न कि वे जिस हवाई जहाज़ का प्रयोग चुनाव में कर रहे हैं वह किस का है और किस शर्त पर वह उसे प्रयोग कर रहे हैं? यह सवाल नहीं किया गया। अरविंद केजरीवाल द्वारा उठाए जा रहे गैस की क़ीमतें बढ़ाने संबंधी प्रश्न नरेंद्र मोदी से नहीं पूछा गया। येदियुरप्पा, श्री रामलूलु जैसे नेताओं के भाजपा में रहते हुए भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने के दावे पर कोई सवाल नहीं? अमित शाह की आपराधिक कारगुज़ारियों तथा उस जैसे व्यक्ति को जिसे कि गृहमंत्री होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया हो उसे यूपी जैसे प्रमुख राज्य का प्रभारी बनाए जाने का कारण व रहस्य संबंधी कोई सवाल नहीं? स्वयं नरेंद्र मोदी का नाम एक महिला की जासूसी से जुड़ा था, इस विषय पर इंडिया टीवी अथवा रजत शर्मा की प्रश्रावली में कोई प्रश्न नहीं? आप की अदालत देश की जनता के मन में उठने वाला इतना बड़ा प्रश्न तक नहीं पूछ सकी कि श्रीमान जी तथाकथित रूप से अपनी सुनामी की लहर होने के बावजूद आख़िर आप दो सीटों से चुनाव क्यों लड़ रहे हैं? देश यह जानने का भी इच्छुक है कि देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाला व्यक्ति शादी के बाद अपनी पत्नी को क्यों छोड़ गया? पर रजत शर्मा के लिए यह कोई सवाल नहीं। धीरू भाई अंबानी के विदेशी खातों के विषय पर कोई प्रश्न नहीं। बाबू भाई बोखारिया जैसे व्यक्ति जिसे खदान घोटाले में सज़ा हो चुकी है वह मोदी के मंत्रिमंडल का सदस्य है इस विषय पर रजत शर्मा की प्रश्रावली में कोई जगह नहीं। 400 करोड़ रुपये के मछली घोटाले का आरोपी पुरुषोत्तम सोलंकी, मोदी मंत्रिमंडल सदस्य कैसे यह कोई सवाल नहीं? दीनू भाई सोलंकी जो कि आरटी आई कार्यकर्ता अमित जेठवा के क़त्ल का मुख्य आरोपी है तथा अवैध माईनिंग व्यापार का माफ़िया सरगना है एवं विठल रदाडिय़ा जैसे व्यक्ति जिसपर डकैती जैसे कई आपराधिक केस चल रहे हैं उनके भाजपा का सांसद व नेता रहते हुए भ्रष्टाचार व अपराधमुक्त राजनीति की कल्पना कैसे? इस विषय पर भी कोई सवाल नहीं? गुजरात दंगों तथा राजधर्म निभाने जैसी बातों को तो अलग ही छोड़ दीजिए परंतु उपरोक्त कई प्रश्न निश्चित रूप से ऐसे थे जिन्हें कि किसी भी निष्पक्ष पत्रकार को अपनी प्रश्रावली में शामिल करने चाहिए। परंतु रजत शर्मा ने इन सवालों को शामिल नहीं किया बल्कि ठीक इसके विपरीत वे ‘दुम हिलाने’ की मुद्रा में नरेंद्र मोदी से प्रश्न पूछते दिखाई दिए तथा पूरा स्टूडियो मोदी-मोदी का गुणगान करते नज़र आया। किसी फ़िक्स कार्यक्रम का इससे बड़ा दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिल सकता।

इंडिया टीवी पर प्रसारित हुए इस कार्यक्रम आप की अदालत के फौरन बाद इस मीडिया हाऊस के संपादकीय सलाहकार तथा देश की पत्रकारिता की एक जानी-मानी निष्पक्ष हस्ती कमर वाहिद नक़वी ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। देश के और भी कई ऐसे वरिष्ठ पत्रकार तथा संपादक स्तर के अनेक लोग हैं जो मीडिया घरानों की इस फ़िक्सिंग व पक्षपातपूर्ण रवैये से बेहद दु:खी है।

6 COMMENTS

  1. श्रीमान जी ,
    मुझे तो आपका लेख भी
    पक्षपाती लग रहा है….।

  2. tanvir jafriji ko or koi dukh nahi hai inko dukh itna hai ki modiji ka intervew huva or india tv ki trp badhi —–inko ye dukh nahi ki media ghotale karne valo ke talve chatata hai magar modiji ko pramote kiya iska duhk hai tanvir saheb aap jaiso ki vajah se hi aaj hindustan bata huva hai lagta hai ye lekh likhne me bhi fixing kiya hoga —–media or lehkak ek hi biradari ke log hai kahi aap apani bat to nahi kar gaye tanvirji !!!!!!!

  3. Dar asal ab Arvind Kejriwal ki jeb khali hochuki hai us ne apna sari bheekh Time magazine ko dedi hai duniyan me sabse chaheta kahlanw ke liye. Ab uske paas Chicken mutton whiskey nahi milti hai.

  4. तनवीर जाफ़री जी, अगर आप बुरा न माने तो मैं एक प्रश्न सेआप से पूछूँ,आप लोग ये सब प्रश्न उठा कर नमो या रजत शर्मा का क्या बिगाड़ लेंगे?उस दिन जब रजत शर्मा आपकी अदालत में एक टूट पूंजिया नेता को,जो डींग हांकता है कि वह मोहल्ला सभा का जनक है , सर आँखों पर बैठाये हुए थे,तो मुझसे रहा नहीं गया था और मैंने साढ़े दस बजे रात को रजत शर्मा को फोन करके उनके इस रवैये के प्रति विरोध जताई थी,मैं जानता था की यह प्रोग्राम लाइव नहीं हैऔर रजत शर्मा कहीं और होंगे.वे किसी पार्टी में थे.ऐसे भी उससे कुछ होना तो था नहीं,पर मैं तो अपने दिल का भड़ास निकाल रहा था. शायद इस अवस्था में हम सब इतना ही कुछ कर सकते हैं.

  5. जैसे ही अरविंद के प्रति मीडिया का मोह भंग हुआ, तुरंत आप के समर्थक ऐसे लेख लिखने बैठ गए l ये तब कहाँ सो रहे थे जब मीडिया व्यर्थ में अरविंद केजरीवाल को एक महानायक की तरह पेश कर रहा था l एन डी टी वी तो आज भी उन्ही के गुणगान में लगा है l तब इन लेखक को मीडिया का पक्षपात नज़र नहीं आ रहा था?

    • लग रहा है आजकल आप एन.डी टीवी देख नहीं रहे हैं.आज कोई भी टीवी चैनेल इसका अपवाद नहीं है. कारण साफ़ है. न्यूज चैनल या प्रिंट मीडिया तब तक कुछ हद तक वही दिखाता है,जो वास्तविक रूप में घट रहा है, जब तक उनके आकाओं पर आंच नहीं आती है या जब तक वे दखल नहीं देते,पर जहां उनके आक्कों की मनसा के विरुद्ध जाने की नौबत आती है वे दुम हिलाने लगते हैं.उन दिनों आआप वाले संसद मार्ग पर आर.सी.इस आफिस के सामने सदलबल दामिनी/निर्भया के बलात्कार के विरुद्ध धरने पर बैठे हुए थे. उनके करीब तीन से साढ़े तीन हजार लोग वहां थे.मैं भी उनमे एक था. दूसरे दिन अपने नियमित समाचार पत्र में उस घटना का विवरण पढ़ते समय पहले तो मुझे आआप की उपस्थिति ढूंढनी पडी,बाद में एक समाचार के बीच मैंने लिखा देखा कि अरविन्द भी अपने दल केडेढ़ सौ आदमियों के साथ वहां थे. मैंने उसी समय उस पत्र में अपने एक जानने वाले को फोन किया.उन्होंने साफ़ साफ कि आप समझ नहीं रहे हैं न कि हमलोगों पर कितना दबाव है.जब से अरविन्द जी ने मुकेश अम्बानी के खिलाफ मोर्चा खोला है,तब से बहुत समझ कर कुछ लिखना पड़ता है.मैंने भी कह दिया ,कि तब आपलोग समाचार ही मत दीजिये,पर इतनी बड़ी गलत बात तो न लिखिए.

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