अमीरों का लोकतंत्र – हिमांशु शेखर

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sonia-and-rahul-wave1इस बार के आम चुनाव में कई करोड़पति लोग जनता की नुमाइंदगी करने के मकसद से मैदान में उतर रहे हैं। करोड़पति उम्मीदवारों के मामले कोई भी दल और कोई भी राज्य पीछे नहीं है। हालांकि, इस बार कई उम्मीदवार तो अरबपति भी हैं। बहरहाल, इसके अलावा इस चुनाव में एक रोचक और चिंताजनक बात यह दिख रही है कि कई नेताओं की संपत्ति 2004 के मुकाबले 2009 में काफी बढ़ गई है। संपत्ति में इस बढ़ोतरी से कई सवाल उभरकर सामने आते हैं। वैसे इस मामले में भी कोई दल पीछे नहीं है। एक नेता की संपत्ति में तो तीन हजार फीसद की बढ़ोतरी हो गई है।

विजयवाड़ा से कांग्रेसी उम्मीदवार लगदापति राजगोपाल ने जब 2004 में पर्चा भरा था तो उस वक्त उन्होंने चुनाव आयोग को ये जानकारी दी थी कि उनके पास कुल 9.6 करोड़ रुपए की संपत्ति है। पर इस दफा उन्होंने अपने हलफनामे में बताया है कि उनकी संपत्ति बढ़कर 299 करोड़ रुपए हो गई है। यानी इन पांच साल के दौरान उनकी संपत्ति में तीन हजार फीसद की बढ़ोतरी हुई।
इस बाबत राहुल गांधी का भी उदाहरण लिया जा सकता है। 2004 में चुनाव आयोग के समक्ष राहुल ने जो हलफनामा दायर किया था, उसमें उन्होंने अपने पास पचीस लाख रुपए की संपत्ति होने की बात स्वीकारी थी। पर इस मर्तबा जो हलफनामा इस कांग्रेसी युवराज ने दाखिल किया है उसमें उनकी संपत्ति बढ़कर तकरीबन दो करोड़ बत्तीस लाख रुपए की हो गई है। कुछ ऐसा ही उनकी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ भी हुआ है। उनके पास 2004 में 85 लाख रुपए की संपत्ति थी। जो 2009 में 53 लाख रुपए बढ़कर 1.38 करोड़ रुपए हो गई। दिल्ली के चांदनी चौक से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के ही कपिल सिब्बल की संपत्ति इनन पांच सालों में बढ़कर 23.91 करोड़ रुपये हो गई। जबकि मौजूदा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सिब्बल ने 2004 में उन्होंने निर्वाचन आयोग को बताया था कि उनके पास 16.13 करोड़ रुपए की संपत्ति है। जबकि इसी दरम्यान प्रिया दत्त की संपत्ति सवा चार करोड़ रुपए से बढ़कर 34.74 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। वहीं मिलिंद देवड़ा की संपत्ति इस दौरान साढे चार करोड़ से बढ़कर 17.7 करोड़ रुपए पर पहुंच गई।

संपत्ति बढ़ने के मामले में भाजपा के नेता भी पीछे नहीं है। एनडीए सरकार में वित्त मंत्री और विदेश मंत्री रहने वाले यशवंत सिन्हा झारखंड के हजारीबाग से चुनाव लड़ते हैं। उनके पास 2004 में कुल संपत्ति एक करोड़ से भी कम की थी। जबकि इस बार जो हलफनामा उन्होंने दाखिल किया है उसके मुताबिक उनकी संपत्ति सवा छह करोड़ की हो गई है। भाजपा के ही दूसरे नेता हैं किरीट सोमैया। 2004 में उनके पास कुल संपत्ति एक करोड़ की थी। जबकि 2009 में यह बढ़कर 5.36 करोड़ हो गई। दलितों की नुमाइंदगी के नाम पर अपनी सियासत चमकाने वाले रामविलास पासवान की संपत्ति भी इस दौरान बढ़ी है लेकिन इजाफा अपेक्षाकृत कम हुआ है। 2004 में जहां उनकी कुल संपत्ति 83 लाख की थी। वहीं इस साल यह बढ़कर 1.15 करोड़ हो गई है। ये तो महज कुछ उदाहरण हैं। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है। अभी तो देश के कई बड़े नेताओं ने नामांकन दाखिल भी नहीं किया है। जैसे-जैसे यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, नेताओं की बढ़ती अमीरी को प्रदर्षित करने वाले आंकड़े सामने आते जाएंगे और राजनीति के चरित्र में आ रहे बदलाव को समझने में मदद करेंगे।

नेताओं की संपत्ति में हुए बढ़ोतरी से कई सवाल स्वाभाविक तौर पर उभरकर सामने आते हैं। पहली बात तो यह कि आखिर ऐसा हुआ कैसे? इस बाबत कुछ नेता तर्क दे रहे हैं कि इस दौरान रियल स्टेट और सोना की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है इसलिए उनकी सपत्ति में भी इजाफा हो गया। पर यह तर्क बहुत सतही मालूम पड़ता है। दरअसल, यहां चर्चा सिर्फ घोशित संपत्ति की हो रही है। इस बात से तो देश के लोग वाकिफ ही हैं कि घोशित और अघोशित के बीच की खाई कितनी चौड़ी होती है। अगर मसला नेताओं से जुड़ा हुआ हो तो उनकी ईमानदारी को लेकर पर्याप्त संदेह तो बना ही रहता है।

नेताओं की संपत्ति में हुई बढ़ोतरी को व्यवस्था में व्याप्त खामियों से जोड़कर देखा जाना चाहिए। इसे अर्थव्यवस्था की उस खामी से जोड़कर देखा जाना चाहिए जो काले धन को सफेद बनाने की सुविधा उपलब्ध कराती है। क्योंकि इन पांच सालों में तो विकास के मामले में आंकड़ों की बाजीगरी भी असफल हो चुकी है। जिस शेयर बाजार, विदेषी मुद्रा भंडार और जीडीपी के दम पर विकास और खुशहाली का कोरा ख्वाब दिखाया जाता था, वह भी आज बदहाल अवस्था में है। मंदी की मार ने उद्योगपतियों को भी बेहाल कर दिया है और उनकी संपत्ति काफी घट गई है। ये बात सही है कि उनकी संपत्ति काफी हद तक शेयर बाजार पर निर्भर करती है। इस तरह उनकी संपत्ति घटने के लिए वाजिब वजह तो समझ में आता है लेकिन नेताओं की संपत्ति में हुई इस वृध्दि की कोई वाजिब वजह नहीं दिखती।

इस बात से देश का हर नागरीक वाकिफ है कि कोई व्यक्ति अगर नेतागीरी करने लगता है तो उसकी अमीरी बढ़ते देर नहीं लगती। हालांकि, नेता भी जनहित और देशहित की दुहाई देते नहीं थकते हैं। पर नेताओं के इस खोखले दावे की पोल खोलने वाले आंकडे सामने आ रहे हैं। नेताओं के अमीर होने के लेकर आवाम में कोई संदेह तो नहीं होता लेकिन आम धारणा यह है कि जिस राज्य की आर्थिक हालत जैसी होगी उसी के मुताबिक उसके नुमाइंदे की आर्थिक हैसियत भी होगी। पर अध्ययन में यह बात कई जगह गलत साबित हुई है। देश में महाराश्ट्र की प्रति व्यक्ति आय सबसे ज्यादा है। यहां से चुने जाने वाले सांसदों के हलफनामे को खंगालने के बाद यह पता चला है कि इस राज्य के सांसदों ने चुनाव आयोग के समक्ष 2004 में औसतन 110 लाख रुपए संपत्ति होने की बात स्वीकारी थी। इसमें सबसे कम का आंकड़ा षिव सेना का है लेकिन यह भी 64 लाख रुपए है। वहीं कांग्रेसी सांसदों की औसत संपत्ति 191 लाख रुपए की थी। जबकि उसी साल हुए वहां विधान सभा चुनाव में दायर हलफनामे से यह बात सामने आई कि षिव सेना के विधायकों की औसत संपत्ति 65 लाख रुपए की है। जबकि कांग्रेसी विधायकों के मामले में यह आंकड़ा 133 लाख रुपए का है।

महाराश्ट्र के मुकाबले में आंध्र प्रदेश की औसत प्रति व्यक्ति आय तीस फीसदी कम है। पर आष्चर्यजनक बात यह है कि यहां के सांसदों की संपत्ति महाराश्ट्र के सांसदों के मुकाबले साढ़े चार सौ फीसदी ज्यादा है। आंध्र प्रदेश के सांसदों के पास औसतन 490 लाख रुपए की संपत्ति है। यानी आय के मामले में भले ही आंध्र प्रदेश महाराश्ट्र से पीछे हो लेकिन नेताओं की अमीरी के मामले में वह कई कदम आगे है। ऐसा ही मामला पंजाब का भी है। पंजाब के सांसद देश भर के सांसदों के दिल में जलन पैदा कर सकते हैं या फिर उन्हें ज्यादा से ज्यादा संपत्ति अर्जित करने की प्रेरणा दे सकते हैं। क्योंकि पंजाब के सांसद देश के सबसे अमीर सांसद हैं। वहां के एक सांसद के पास औसतन 672 लाख रुपए की संपत्ति है। महाराश्ट्र के मुकाबले यह छह गुनी है। जबकि यहां का औसत प्रति व्यक्ति आय महाराश्ट्र से दस फीसद कम है।

अगर बात गुजरात की हो तो वहां का औसत प्रति व्यक्ति आय महाराश्ट्र के मुकाबले आठ फीसद कम है। जबकि वहां के सांसदों की संपत्ति महाराश्ट्र की सांसदों की तुलना में 40 फीसद कम है। बिहार मं प्रति व्यक्ति आय महाराश्ट्र से 80 फीसद कम है। पर आष्चर्य की बात यह है कि यहां के सांसदों की संपत्ति महाराश्ट्र के सांसदों के बराबर ही है। बिहार के सांसदों के पास औसतन 110 लाख रुपए की संपत्ति है। यहां के विधायकों की संपत्ति जरूर राज्य की आर्थिक सेहत को प्रदर्षित करता है। बिहार के विधायकों के पास औसतन बीस लाख रुपए की संपत्ति है।
मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय महाराश्ट्र के मुकाबले चालीस फीसद कम है। पर आष्चर्यजनक यह है कि यहां के सांसदों की संपत्ति महाराश्ट्र के सांसदों के मुकाबले औसतन महज चौदह फीसद ही कम है। मध्य प्रदेश के बारे में रोचक बात यह है कि 2003 के विधान सभा चुनावों के वक्त यह बात सामने आई थी कि यहां के विधायकों की औसत संपत्ति महाराश्ट्र के विधायकों की औसत संपत्ति से कम है। पर 2008 के विधान सभा चुनाव के वक्त दायर हलफनामे से यह बात सामने आई कि यहां के विधायक महाराश्ट्र के विधायकों से अमीर हो गए हैं। 2003 में भाजपा के एक विधायक के पास औसतन 21 लाख रुपए की संपत्ति थी। 2008 में यह बढ़कर 104 लाख रुपए हो गई। जबकि इसी दौरान कांग्रेसी विधायकों की संपत्ति 28 लाख रुपए बढ़कर 207 लाख रुपए हो गई। भाजपा विधायकों की बाबत तो यह बात समझ में आती है कि राज्य में भाजपा सत्ता में थी और इसका फायदा पार्टी के विधायकों को मिला होगा। पर कांग्रेसी विधायकों की संपत्ति बढ़ने का गणित पकड़ना आसान नहीं मालूम पड़ रहा है।

कर्नाटक में भी विधायकों की अमीरी काफी तेजी से बढ़ी है। राज्य में 2004 में विधान सभा चुनाव हुए थे। राजनीतिक अस्थिरता की वजह से वहां 2008 में दुबारा चुनाव हुए। 2004 के चुनाव के वक्त दायर हलफनामे के अध्ययन से यह बात सामने आई कि वहां के भाजपा विधायकों के पास औसतन 133 लाख रुपए की संपत्ति थी। जबकि 2008 में भाजपा विधायकों की अमीरी तकरीबन साढे तीन सौ फीसद बढ़ गई और उनके पास औसतन 457 लाख रुपए की संपत्ति होने की बात सामने आई। इसी दौरान एचडी देवगौड़ा की जनता दल-एस के विधायकों की औसत संपत्ति 145 लाख रुपए से बढ़कर 425 लाख रुपए हो गई। इस मामले में सबसे तेज कांग्रेसी विधायकों को कहा जा सकता है। क्याेंकि इस पार्टी के विधायकों के पास 2004 में औसतन 196 लाख रुपए की संपति थी। जो 2008 में बढ़कर 1065 लाख रुपए यानी 10.65 करोड़ हो गई। वहीं राजस्थान की में 2003 के मुकाबले 2008 में वहां के भाजपा विधायकों की औसत संपत्ति में 5.6 गुना की बढ़ोतरी हुई। जबकि कांग्रेसी विधायक अपनी संपत्ति दुगनी ही कर पाए।

ये आंकड़े उस दौर के हैं जब देश के विकास दर में कमी आई। ये वही दौर है जब देश में किसानों की आत्महत्या थामे नहीं थम रही है। ये वही दौर है जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की मार झेल रही है। पर देश के नेताओं पर इन बातों का कोई असर नहीं होता है। अभी आंकड़े भले ही कुछ राज्यों के ही उपलब्ध हैं लेकिन पूरे देश की स्थिति में बहुत ज्यादा फर्क की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इस बात की पुश्टि लोकसभा में पहुंचने के लिए चुनावी मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार भी कर रहे हैं। इस पूरी बातचीत में इस बात को नहीं भूला जाना चाहिए कि ये उसी देश के नेता हैं जहां के 84 करोड़ लोग रोजाना बीस रुपए से कम पर भी जीवन बसर करने को अभिशप्त हैं। ये उसी देश के नेता हैं जहां की एक बड़ी आबादी को अभी भी दो वक्त की रोटी नहीं मिल पाती है। ये उसी देश के नेता हैं जहां पांच से कम उम्र के तकरीबन आधे बच्चे कुपोशण की मार झेल रहे हैं। इससे समझा जा सकता है कि नेताओं की संपत्ति में बढ़ोतरी आखिर किस कीमत पर हुई है।

हिमांशु शेखर
09891323387

1 COMMENT

  1. आलॆख बहुत् पसन्द आया निसन्दॆह् नॆताऒ की सम्पत्ति प्रत्यॆक 5 साल मॆ badh jati है.और् यॆ हाल सभी दलॊ का है ऐसॆ मॆ यदि आम् जनता राजनीति सॆ दूर् रह्ती है या vote कम padte hai to isme janta ko dosh dena galat bhi hai lekin iske liye jimmedaar bhi janta hi hai

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