अभिषेक ज्ञानवानी
हमारे देश में भ्रष्टाचार के फलने-फूलने के पीछे सबसे बड़ा कारण आम आदमी का अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होना है। एक आम भारतीय को यह मालूम ही नहीं है कि उसके मौलिक अधिकार क्या हैं? उसे संविधान ने क्या और कितनी शक्ति प्रदान कर रखी है। उसे इस बात का अहसास ही नहीं है कि किस प्रकार उसका एक वोट सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों की किस्मत का फैसला करता है। आजादी के बाद से अबतक ऐसे कई मौके आए जब आम आदमी जागरूक हुआ तो राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकार एक झटके में सत्ता से बाहर हो गई। हमारे देश में नागरिकों को उसके अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के लिए समय समय पर सरकार और गैर सरकारी संगठनों की ओर से कई कार्यक्रम चलाए जाते रहे हैं।
बात चाहे सामाजिक जागरूकता की हो या कानूनी या फिर राजनीतिक जागरूकता की, दरअसल किसी योजना की सफलता न केवल सूचना और विभिन्न सेवाओं तक पहुंच व उपलब्धता पर निर्भर करती है बल्कि उस कार्यक्रम के संबंध में जागरूकता पर भी निर्भर करती है। यदि आम आदमी उन योजनाओं के प्रति जागरूक नहीं है तो उसकी सफलता की गारंटी बहुत कम ही रहती है। देश में आजादी के बाद ऐसी कई योजनाएं हमारे सामने उदाहरण हैं जो आम आदमी के हित में लागू की गईं जिसका क्रियान्वयन यदि जमीनी स्तर पर मजबूती से किया जाता तो काफी सकारात्मक परिणाम होते। लेकिन ऐसी योजनाएं केवल इसलिए शतप्रतिशत कामयाब नहीं हो पाईं क्योंकि लाभ उठाने वाले ही जागरूक नहीं थे।
ऐसा ही कुछ हाल योजनाओं का भी है। सरकार ने आम आदमी के लिए योजनाओं की झड़ी लगा रखी है। जिसका फायदा उठाया जाए तो समाज और देश का विकास संभव है। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इसका जमीनी स्तर पर कोई लाभ नजर नहीं आता है। ग्रामीण विकास में वैश्विक स्तर पर देश को एक अलग पहचान दिलाने वाली मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार ने किस कदर अपना जाल बिछा रखा है यह किसी से छुपा नहीं है। यह वही मनरेगा है जिसकी तारीफ हाल ही में भाजपा के वरिश्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी संयुक्त राष्ट्र संघ में भी कर चुके हैं। हालांकि देश के ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं और इसका प्रभाव जमीन पर भी नजर आता है। परंतु ऐसे क्षेत्र न तो हमारी नजर में आते हैं और न ही उसे मीडिया का कोई विषेश कवरेज मिल पाता है। ऐसा ही एक क्षेत्र है उत्तर बस्तर का एक छोटा सा गांव भैंसाकन्हार। जहां लोग अपने अधिकार और सरकारी योजनाओं के प्रति अन्य क्षेत्रों से न सिर्फ जागरूक हैं बल्कि उसका भरपूर लाभ भी उठा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग पर प्रकृति की विशेष कृपा रही है। हालांकि कश्मीसर की तरह यहां का वातावरण तो नहीं है लेकिन कुदरती खूबसूरती में यह कश्मीरर से किसी मुकाबले में कम नहीं है। यहां प्राप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधन इसकी महत्ता को और अधिक बढ़ा देते हैं। वहीं देश की सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को समेटे यहां की आदिवासी परंपरा इसे एक अलग पहचान देते हैं। लेकिन इसके बावजूद छत्तीसगढ़ को कुदरत के अनुपम उपहार से कम और नक्सल प्रभावित क्षेत्र से अधिक जाना जाता है। बात जब आदिवासियों की होती है तो एक ऐसे समुदाय की छवि उभरती है जो हमारी सभ्यता के विपरीत विकास की दौड़ में काफी पिछड़ा होगा, जहां देश के कानून की सीमा भी समाप्त हो जाती होगी। एक ऐसी सभ्यता जहां शिक्षा का कोई स्थान नहीं होगा। कुल मिलाकर हम आदिवासियों और आम इंसानों के बीच सभ्यता की एक लक्ष्मण रेखा खींच देते हैं। ऐसा करते वक्त हम यह भूल जाते हैं कि समय की दौड़ में पिछड़ने के बावजूद इनमें भी चेतना है। इनमें भी जागरूकता है जो सदियों से पृथ्वी पर जीने की कला में माहिर बनाता है।
छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांकेर जिला से करीब चालीस किमी दूर बसा एक शांत और निर्मल गांव भैंसाकन्हार इसका उचित उदाहरण है। करीब चैदह सौ की आबादी वाले इस गांव में गोंड और हल्बी जाति की संख्या अधिक है। यहां आज भी आदिवासी परंपरा का पालन किया जाता है परंतु अब उसका स्वरूप आधुनिक हो चुका है। इस गांव की विशेषता यह है कि इसे आयुर्वेद ग्राम का दर्जा प्राप्त है। ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। गांव के सरपंच जयराम उयके गर्व के साथ कहते हैं कि गांव के लोग अपने अधिकार और सरकारी योजनाओं के प्रति काफी जागरूक हैं। इसका मुख्य कारण ग्राम सभा का सशक्त होना है। जहां ग्रामीण अपने गांव के विकास का मिलकर फैसला लेते हैं। यही कारण है कि यहां मनरेगा के तहत सभी को काम मिलता है। शिक्षा के क्षेत्र में यह गांव विशेष रूप से जागरूक है। गांव वाले इस बात से परिचित हैं कि शिक्षा ही उनकी आने वाली पीढ़ी को जागरूक और क्षेत्र के विकास में सहायक साबित हो सकती है। (चरखा फीचर्स)