विकास ही बन रहा है विनाश : राजकुमार भारद्वाज

किसानों को न तो सरकार समझती है न मीडिया 

भोपाल, 15 सितंबर। वरिष्ठ पत्रकार एवं कृषि मामलों के जानकार राजकुमार भारद्वाज का कहना है कि किसानों की समस्याओं को न तो सरकार समझती है न मीडिया। इसके चलते कृषि को विकास से जितना फायदा होना चाहिए था, भारतीय परिवेश में वह उतना सफल नहीं हुआ है, नहीं तो ऐसा क्यों है कि जो क्षेत्र उत्पादन में अग्रणी थे, वहीं के किसान आत्महत्या में अब सबसे आगे हैं। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग में आयोजित कार्यक्रम में‘किसानों के मुद्दे और मीडिया ‘विषय पर बोल रहे थे। श्री राजकुमार लंबे समय से कृषि मुद्दों पर काम कर रहे हैं और संप्रति दिल्ली से प्रकाशित नई दुनिया अखबार से जुड़े हैं।

श्री राजकुमार ने बताया कि भारत में जोतों का आकार काफी छोटा है, जिसके चलते कृषि कार्यों को सुगम बनाने के लिए जो तकनीक विकसित की गई है वह भारतीय खेती को बहुत फायदा नहीं पहुंचा पा रही हैं। उदाहरण के लिए हमारे यहाँ अधिकतर किसानों के पास उपलब्ध जोत पांच एकड़ से कम है, जबकि ट्रैक्टर इतनी छोटी जोत के लिए उपयुक्त नहीं रहता है। अन्य जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि भले ही ‘कांट्रेक्ट खेती’ ने किसानों को तेजी से आर्थिक लाभ पहुंचाया हो, पर लंबे समय में इसके नुकसान ज्यादा हैं। कांट्रैक्ट खेती करने वाली कंपनियाँ अपने बीज, अपनी खाद आदि इस्तेमाल करवाती हैं, जो जमीन की उर्वरा शक्ति दो-तीन फसलों के बाद कम कर देते हैं। फिर किसान खुद को ठगा महसूस करता है।

जमीन अधिग्रहण पर किसानों का पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा कि, भारत का किसान समझदार निवेशक नहीं है, पहले हुए जमीन अधिग्रहणों से मिले पैसों का वह उचित निवेश नहीं कर पाया, फलस्वरूप पहले तो खूब शानो-शौकत की इकट्ठी की, पर अब उसकी आर्थिक हालत काफी खराब है। किसानों का ये हश्र देखकर अब नए किसान अपनी जमीन देने में ज्यादा संकोच कर रहे हैं। किसानों के प्रति बैंकों के तौर-तरीकों पर भी उन्होंने नाराजगी प्रकट की, उन्होंने कहा कि जो किसान पहले साहूकार के चंगुल से छूटकर बैंकों की तरफ मुड़ा था, वह अब वापस साहूकारों की तरफ लौट रहा है। कारण बैंक रकम वापस न होने पर जिस तरह से वसूली करते हैं उससे किसान की सामाजिक प्रतिष्ठा खराब होती है। एक अन्य संकट की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय किसान अभी अपनी फसलों के पेटेंट के प्रति सजग नहीं है। उनकी इस कमी का फायदा विदेशी कंपनियाँ उठाना चाहती हैं वह लंबे समय से देश में उत्पादित अच्छी फसलों की किस्मों का पेटेंट कराने की फिराक में है। बासमाती चावल उनमें से एक है। बीटी बीजों के बारे में तल्ख टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि मल्टीनेशनल कंपनियां बीटी बीजों के सहारे भारतीय कृषि को गुलाम बनाना चाह रही हैं। बीटी बीज से पैदा होनी फसलें जमीन की उर्वरा शक्ति को तो कम करती ही है, साथ ही हर बार नए बीज के लिए कंपनियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

किसान और मीडिया के बारे में उन्होंने कहा कि मीडिया में कृषि आन्दोलनों के लिए जगह ही नहीं है, अगर किसी मुद्दे को स्थान मिलता भी है तो वह कृषि आन्दोलन के कारण नहीं, बल्कि अन्य कारणों से मिलता है, इस संदर्भ में उन्होंने भट्टा पारसौल का जिक्र किया। समस्याओं को कम करने के सुझाव में उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि किसान शिक्षित और जागरूक बने। कृषि से जुड़ी संस्थाओं को चाहिए कि वह शोध पर ज्यादा ध्यान दें। साथ ही साथ वह किसान को कृषि से जुड़े आर्थिक, सामाजिक सहित सभी मुद्दों पर जागरूक भी करें , ताकि किसान को उचित निर्णय लेने में आसानी हो। उन्होंने कोआपरेटिव संस्थाएं, संघ, अनाज बैंक आदि को बढ़ाने पर जोर दिया।

इस व्याख्यान के दौरान डा. राखी तिवारी, डा. संजीव गुप्ता एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here