अभिनय के रास्ते राजनीति तक पहुंचनेवाले धर्मेन्द्र सिंह देओल अब समाजसेवा में सिक्का जमायेंगे

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-अनिल अनूप
धर्मेन्द्र फगवाड़ा में पंजाब राज्य के कपूरथला जिले में पैदा हुए थॆ। उन्होंनॆ दो बार शादी की और अपनी दोनों पत्नियों को बनाए रखा है।हेमा मालिनी से शादी करने के लिए धर्मेन्द्र ने इस्लाम धर्म अपना लिया। उनकी पहली शादी प्रकाश कौर से 19 वर्ष की उम्र में 1954 में हुई। उनकी दूसरी शादी बॉलीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी के साथ हुई। असल में धर्मेन्द्र का गाँव जिला लुधिआना के अंतर्गत साहनेवाल है। जो अब कसबे का रूप ले चुका है। धर्मेन्द्र की पढाई फगवाडा के आर्य हाई स्कूल एवं रामगढ़िया स्कूल में हुई. ये उनकी बुआ का शहर है। जिनका बेटा वीरेंदर पंजाबी फिल्मों का सुपर स्टार तथा प्रोड्यूसर डायरेक्टर था। आतंक के दौर में लुधिआना में ही फिल्म जट ते ज़मीन की शूटिंग के दौरान आतंकियों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी।
रोल चाहे फिल्म सत्यकाम के सीधे सादे ईमानदार हीरो का हो, फिल्म शोले के एक्शन हीरो का हो या फिर फिल्म चुपके चुपके के कॉमेडियन हीरो का, सभी को सफलता पूर्वक निभा कर दिखा देने वाले धर्मेंद्र सिंह देओल अभिनय प्रतिभा के धनी कलाकार हैं।
सन् 1960 में फिल्म’ दिल भी तेरा हम भी तेरे ‘से अभिनय की शुरुआत करने के बाद पूरे तीन दशकों तक धर्मेंद्र चलचित्र जगत में छाये रहे। केवल मैट्रिक तक ही शिक्षा प्राप्त की थी उन्होंने। स्कूल के समय से ही फिल्मों का इतना चाव था कि दिल्लगी (1949) फिल्म को 40 से भी अधिक बार देखा था उन्होंने। अक्सर क्लास में पहुँचने के बजाय सिनेमा हॉल में पहुँच जाया करते थे। फिल्मों में प्रवेश के पहले रेलवे में क्लर्क थे, लगभग सवा सौ रुपये तनख्वाह थी। 19 साल की उम्र में ही प्रकाश कौर के साथ उनकी शादी भी हो चुकी थी और अभिलाषा थी बड़ा अफसर बनने की।
फिल्मफेयर के एक प्रतियोगिता के दौरान अर्जुन हिंगोरानी को धर्मेंद्र पसंद आ गये और हिंगोरानी जी ने अपनी फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे के लिये 51 रुपये साइनिंग एमाउंट देकर उन्हें हीरो की भूमिका के लिये अनुबंधित कर लिया। पहली फिल्म में नायिका कुमकुम थीं। पहली फिल्म से कुछ विशेष पहचान नहीं बन पाई थी इसलिये अगले कुछ साल संघर्ष के बीते। संघर्ष के दिनों में जुहू में एक छोटे से कमरे में रहते थे। फिल्म अनपढ़ (1962), बंदिनी (1963) तथा सूरत और सीरत (1963) से लोगों ने उन्हें जाना, पर स्टार बने ओ.पी. रल्हन की फिल्म फूल और पत्थर (1966) से।
धर्मेंद्र ने200 से भी अधिक फिल्मों में काम किया है, कुछ अविस्मरणीय फिल्में हैं अनुपमा, मँझली दीदी, सत्यकाम, शोले, चुपके चुपके आदि।
धर्मेन्द्र अपने स्टंट दृश्य बिना डुप्लीकेट की सहायता के स्वयं ही करते थे। धर्मेंद्र ने चिनप्पा देवर की फिल्म मां में एक चीते के साथ सही में फाइट किया थाl
ये बीकानेर से भारतीय जनता पार्टी के 14वींलोकसभा में सांसद रहे। धर्मेन्द्र, हिंदी फ़िल्मों में अपनी मज़बूत कद काठी और एक्शन के लिए ‘हीमैन’ के नाम से भी जाने जाते हैं। हिन्दी सिनेमा में अगर अमिताभ बच्चन सदी के महानायक हैं तो धर्मेन्द्र उसी सदी के महा सितारे हैं। धर्मेन्द्र को अपने जमाने का सलमान खान माना जाता था जो अपनी अदाओं से ना सिर्फ दर्शकों की पसंद बने थे बल्कि उनकी दमदार शख्सियत का लोहा विदेशों में भी माना गया था।
धर्मेन्द्र ने शुरू से ही अभिनेता बनने का ख्वाब देखा था। पंजाबी जाट परिवार से संबंधित धर्मेंद्र का पूरा नाम धर्मेंद्र सिंह देओल है। धर्मेंद्र ने अपना शुरूआती बचपन फगवाड़ा, कपूरथला में व्यतीत किया। इनके पिता केवल किशन सिंह देओल लुधियाना के गांव लालटन के एक स्कूल में हेडमास्टर थे। कुछ समय बाद धर्मेंद्र अपने परिवार के साथ कपूरथला रहने चले गए। बॉलिवुड की डगर पर चलने के लिए 1958 में उन्होंने फ़िल्म फेयर टैलेन्ट कॉन्टेस्ट में हिस्सा लिया और चल पड़े एक ऐसे सफर पर जहां उन्हें कामयाबी, शोहरत और पैसा सब मिला। धर्मेद्र ने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत अर्जुन हिंगोरानी की 1960 में आई फ़िल्म फ़िल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ से की थी। उन्होंने 1960 के दशक के शुरू में कई रोमाटिक फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म, फूल और पत्थर (1966) के साथ उन्होंने फ़िल्मों में अकेले हीरो के रूप में कदम रखा। इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ हीरो के फ़िल्म फेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया। 1974 के बाद दर्शकों ने उन्हें एक्शन हीरो के रूप में देखा।
70 के दशक में धर्मेन्द्र को दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत मर्दों में से एक चुना गया था। यह सम्मान पाने वाले वह भारत के पहले शख्स थे। उनके अलावा यह सम्मान सिर्फ सलमान खान के पास है। इसके साथ ही उन्हें विश्व स्तर पर “वर्ल्ड आयरन मैन अवार्ड” भी हासिल है
धर्मेंद्र अभिनेता ही नहीं बल्कि निर्माता भी हैं। वर्ष 1983 में धर्मेंद्र ने अपने बड़े बेटे सन्नी देओल को फ़िल्म ‘बेताब’ और 1995 में छोटे बेटे बॉबी देओल को ‘बरसात’ फ़िल्म का निर्माण कर उन्हें बॉलिवुड में पर्दापण कराया। वर्ष 2007 में ‘अपने’ फ़िल्म में सन्नी, बॉबी और धर्मेंद्र पहली बार एक साथ पर्दे पर आए।
फिल्मफेयर के एक प्रतियोगिता के दौरान अर्जुन हिंगोरानी को धर्मेंद्र पसंद आ गये और हिंगोरानी जी ने अपनी फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे के लिये 51 रुपये साइनिंग एमाउंट देकर उन्हें हीरो की भूमिका के लिये अनुबंधित कर लिया। पहली फिल्म में नायिका कुमकुम थीं। पहली फिल्म से कुछ विशेष पहचान नहीं बन पाई थी इसलिये अगले कुछ साल संघर्ष के बीते। संघर्ष के दिनों में जुहू में एक छोटे से कमरे में रहते थे।
बॉलीवुड में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को अपना दीवाना बनाने वाले अभिनेता धर्मेन्द्र आज 79 साल के हो चुके हैं। धर्मेन्द्र को अपने सिने करियर के शुरूआती दौर में वह दिन भी देखना पड़ा था जब निर्माता-निर्देशक उनसे यह कहते आप बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री के लिए उपयुक्त नही है और आपको अपने गांव वापस लौट जाना चाहिए।
धर्मेन्द्र के परिवार के ज्यादातर सदस्य तो फिल्म इंडस्ट्री से सीधे जुड़े रहे लेकिन उनकी पहली पत्नी और 3 बेटियां के बारे में लोग कम ही जानते हैं। आज हम उनके परिवार के बारे में बात करेंगे।
धर्मेंद्र ने दो शादियां की। दो अलग-अलग परिवार हैं। दिलचस्प बात यह है कि वह दोनों के ही करीब हैं। हालांकि, आज भी जब धर्मेन्द्र की पहली वाइफ का नाम प्रकाश कौर है। इस शादी से धर्मेन्द्र के चार बच्चे हुए, जिनके नाम सनी, बॉबी, विजेता और लल्ली (अजेता) है।
जब धर्मेन्द्र की हेमा-मालिनी से दूसरी शादी हुई, उस समय हेमा मालिनी हिंदी फिल्मों की नंबर वन हीरोइन थीं। धर्मेन्द्र पहले से ही विवाहित थे, लेकिन वह ड्रीम गर्ल के लिए सारे बंधन तोड़कर आगे बढ़ गए।
धर्मेन्द्र चूंकि विवाहित थे अत: कुछ निर्माता उनसे यह कहते कि यहां तुम्हें काम नहीं मिलेगा। कुछ लोग उनसे यहां तक कहते कि तुम्हें अपने गांव लौट जाना चाहिए और वहां जाकर फुटबॉल खेलना चाहिए लेकिन धर्मेन्द्र ने उनकी बात को अनसुना कर अपना संघर्ष जारी रखा।
इसी दौरान धर्मेन्द्र की मुलाकात निर्माता-निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी से हुई जिन्होंने धर्मेन्द्र की प्रतिभा को पहचानकर अपनी फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ में बतौर अभिनेता काम करने का मौका दिया लेकिन फिल्म की असफलता से धर्मेन्द्र को गहरा धक्का लगा और उन्होंने यहां तक सोच लिया कि मुंबई में रहने से अच्छा है कि गांव लौट जाया जाए। बहरहाल, धर्मेन्द्र ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष जारी रखा।
फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ की असफलता के बाद धर्मेन्द्र ने चोटी की कई अभिनेत्रियों के साथ सुपरहिट फिल्में दीं। उन्होंने माला सिन्हा के साथ ‘अनपढ़’, ‘पूजा के फूल’, नूतन के साथ ‘बंदिनी’, मीना कुमारी के साथ ‘काजल’ जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया।
इन फिल्मों को दर्शकों ने पसंद तो किया लेकिन कामयाबी का श्रेय बजाय धर्मेन्द्र के फिल्म अभिनेत्रियों को दिया गया।
वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘फूल और पत्थर’ की सफलता के बाद सही मायनों में बतौर अभिनेता धर्मेन्द्र अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। फिल्म में धर्मेन्द्र ने एक ऐसे मवाली गुंडे का अभिनय किया, जो समाज की परवाह किए बिना अभिनेत्री मीना कुमारी से प्यार करने लगता है।
दिलचस्प बात यह है कि आज के दौर में शर्ट उतारने की अभिनेताओं की परंपरा की नींव धर्मेन्द्र ने ही इस फिल्म के जरिए रखी। फिल्म में दमदार अभिनय के कारण वे फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार के लिए नामांकित भी किए गए।
धर्मेन्द्र को प्रारंभिक सफलता दिलाने में निर्माता-निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों का अहम योगदान रहा है। इनमें ‘अनुपमा’, ‘मंझली दीदी’ और ‘सत्यकाम’ जैसी फिल्में शामिल हैं। ‘फूल और पत्थर’ की सफलता के बाद धर्मेन्द्र की छवि ‘ही मैन’ के रूप में बन गई। इस फिल्म के बाद निर्माता-निर्देशकों ने अधिकतर फिल्मों में धर्मेन्द्र की ‘ही मैन’ वाली छवि को भुनाया।
70 के दशक में धर्मेन्द्र पर ये आरोप लगने लगे कि वे केवल मारधाड़ और एक्शन से भरपूर फिल्में ही कर सकते हैं। धर्मेन्द्र को इस छवि से बाहर निकालने में एक बार फिर से निर्माता-निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने मदद की। धर्मेन्द्र को लेकर उन्होंने ‘चुपके-चुपके’ जैसी हास्य से भरपूर फिल्म का निर्माण किया और धर्मेन्द्र ने हास्य अभिनय करके सबको आश्चर्यचकित कर दिया।
रूपहले पर्दे पर धर्मेन्द्र की जोड़ी हेमा मालिनी के साथ खूब जमी। यह फिल्मी जोड़ी सबसे पहले फिल्म ‘शराफत’ से चर्चा में आई। वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म ‘शोले’ में धर्मेन्द्र ने ‘वीरू’ और हेमा मालिनी ने ‘बसंती’ की भूमिका में दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
हेमा और धर्मेन्द्र की यह जोड़ी इतनी अधिक पसंद की गई कि फिल्म इंडस्ट्री में ‘ड्रीम गर्ल’ के नाम से मशहूर हेमा मालिनी उनके रीयल लाइफ की ड्रीमगर्ल बन गईं। बाद में इस जोड़ी ने ड्रीमगर्ल, चरस, आसपास, प्रतिज्ञा, राजा जानी, रजिया सुल्तान, अली बाबा चालीस चोर, बगावत, आतंक, द बर्निंग ट्रेन, दोस्त आदि फिल्मों में एकसाथ काम किया।
वर्ष 1975 धर्मेन्द्र के सिने करियर का अहम पड़ाव साबित हुआ और उन्हें निर्देशक रमेश सिप्पी की फिल्म ‘शोले’ में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में अपने अल्हड़ अंदाज से धर्मेन्द्र ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। फिल्म में धर्मेन्द्र के संवाद दर्शकों की जुबान पर चढ़ गए, खासतौर पर शराब के नशे में धुत धर्मेन्द्र की पानी की टंकी पर चढ़कर- ‘कूद जाऊंगा, फांद जाऊंगा…’ की संवाद अदायगी काफी चर्चित हुई।
70 के दशक में हुए एक सर्वेक्षण के दौरान धर्मेन्द्र को विश्व के सबसे हैंडसम व्यक्तित्व में शामिल किया गया। धर्मेन्द्र के प्रभावी व्यक्तित्व के कायल अभिनय सम्राट दिलीप कुमार भी हैं।
दिलीप कुमार ने धर्मेन्द्र की तारीफ करते हुए कहा था कि जब कभी मैं खुदा के दर पर जाऊंगा मैं बस यही कहूंगा- ‘मुझे आपसे केवल एक शिकायत है कि आपने मुझे धर्मेन्द्र जैसा हैंडसम क्यों नहीं बनाया?’
धर्मेन्द्र को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 1997 में फिल्मफेयर के लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया तो उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा कि मैंने अपने करियर में सैकड़ों हिट फिल्में दी हैं लेकिन मुझे अधिकतर अवॉर्ड के लायक नहीं समझा गया, आखिरकार मुझे अब अवॉर्ड दिया जा रहा है। मैं खुश हूं।
अपने पुत्र सन्नी देओल को लांच करने के लिए धर्मेन्द्र ने 1983 में ‘बेताब’ जबकि वर्ष 1995 में दूसरे पुत्र बॉबी देओल को लांच करने के लिए वर्ष 1995 में ‘बरसात’ का निर्माण किया। फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद धर्मेन्द्र ने समाजसेवा के लिए राजनीति में प्रवेश किया और वर्ष 2004 में राजस्थान के बीकानेर से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर वे लोकसभा सदस्य बने।
धर्मेन्द्र अपने 5 दशक के लंबे सिने करियर में लगभग पौने तीन सौ फिल्मों में अभिनय कर चुके हैंl

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