धरती का मोक्ष द्वार गंगासागर

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गंगा सागर तीर्थयात्रा पर विशेष 

जगदीश यादव 

सागरद्वीप यानी गंगासागर में स्थित कपिलमुनि मंदिर के बारे में कहा जाता है कि आज से पांच हजार वर्ष पहले ही आमलोगों को उक्त धर्म स्थली की जानकारी मिल गयी थी। विभिन्न दस्तावेज पुस्तकों व लोगों से मिली जानकारी में पता चलता है कि कभी यह क्षेत्र जल डकैतों के लिये उत्तम क्षेत्र था और यहां उनका दबदबा था। वैसे इस बात की पुष्टी 95 वर्ष के वयो वृद्ध सामजसेवी हीरा प्रसाद दुबे भी करते हैं। उन्होंने पुराने दिनों की याद करते हुए बताया कि वह लोग गंगासागर एक सौ वर्ष प्राचीन सेवा संस्था बजरंग परिषद की ओर से वहां जाते थें। तब वह लोग हाथों में भला, डंडा व अन्य हथियार लेकर चलते थें। दुर्गम रास्ते पर वह लोग हारकिन की रौशनी में चलते थें और यही हारकिन वहां प्रकाश की व्यवस्था करती थी। तब कई लोग यहां आने से पहले अपना श्राद्ध करके आते थें कि पता नहीं वह घर वापस जा सकेगें की नहीं। बजरंग परिषद के सेवामंत्री प्रेमनाथ दुबे की माने तो बजरंग परिषद हर वर्ष तीन से चार हजार पुण्यार्थी यहां अपने स्वजनों से अलग होकर बिछड़ जाते हैं और संस्था उनकी देखभाल कर उन्हें उनके घर भेजती है। विभिन्न दस्तावेज पुस्तकों व लोगों से मिली जानकारी में पता चलता है कि कभी यहां स्वामी विवेकानंद भी आ चुके गंगासागर मेला की ख्याती यहां वर्ष में एक बार लगने वाले मेले के तौर पर कम बल्कि मोक्षनगरी के तौर पर ही है जहां दुनिया भर से श्रद्धालु एक डुबकी में मोक्ष की कामना लेकर आते हैं। भगवान विष्णु के अवतारों में एक कपिल मुनि का यहां आश्रम है जो अब भव्यता के साथ संस्कार-निर्माण की ओर है। यह मेला विक्रम संवत के अनुसार प्रतिवर्ष पौष माह के अन्तिम दिन लगता है। जिसे हम मकर संक्रांति का दिन कहते हैं।हिमालय से सुंदरवन तक की अपनी यात्रा में पतित पावनी गंगा मुख्यता पांच राज्यों उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल से होकर गुजरती है। सागरद्वीप यानी गंगा सागर पश्चिम बंगाल के वही क्षेत्र है जहां गंगा स्वर्ग से आकर सागर में मिल गई है। देश दुनिया में गंगा सागर ही एक मात्र स्थल है जहां सागर से गंगा मिलती है यानी इसी गंगा व सागर के स्थल को गंगा सागर कहते है। 

कवि गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता में गंगासागर

तमाम दस्तावेजों की माने तो गंगासागर क्षेत्र सागर, सुपरीडांगा, अंगूनबाड़ी, घोड़ामारा, लोहाचड़ा जैसे कथित द्वीपों से बना है। ऋंगवेद, भागवद, रामायण, महाभारत व पुराणों में गंगासागर स्थित कपिलमुनि ऋषि का उल्लेख मिलता है। यह यही जगह है जहां धर्ममराज युधिष्ठिर भी यहां स्नान के लिये आये थें। एक ऐसा भी दौर था जब धार्मिक कारणों से लोग यहां सागर व गंगा की संगम स्थली में अपने संतान का विसर्जन भी कर देते थें । लेकिन मार्कस वायलेसी ने वर्ष 1802 में उक्त परम्परा पर सख्ती से रोक लगा दिया। संतान का विसर्जन की बात का उल्लेख कवि गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता ‘विसर्जन’ में है। स्थानीय लोगों व दस्तावेजों से पता चलता है कि पाल, गुप्त व सेन राजाों ने यहां राज किया था। महाकवि कालीदास से लेकर कवि गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचनाओं में गंगासागर का उल्लेख मिलता है। 

मकार संक्रांति का पुण्य स्नान काल

प्रतिवर्ष इस मेले में लगभग लाखों श्रद्धालु पुण्यस्नान के लिये आते हैं।वैसे जिले के अधिकारियों और अखिल भारतीय श्री पंचरामानंदी निर्माण अखाड़ा कपिलमुनि मंदिर के के मंहत ज्ञानदास के उत्तराधिकारी संजय दास ने बताया कि उन्हें उम्मीद है कि इस साल संगम में मकर संक्रांती के अवसर पर कम से कम 19 से 22 लाख पुण्यार्थी पुण्य स्नान करेंगे। उन्होंने गंगा सागर मेला पर सरकार की पीठ थपथपाते हुए कहा कि हर तरह की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि उनके अनुमान के अनुसार लाखो की संख्या में लोग सागरद्वीप में आकर भीड़ से बचने के लिये पुण्य स्नान कर चुके है और स्नान जारी भी है। उन्होंने कहा कि 14 जनवरी की शाम 06.09 बजे लेकर 15 जनवरी की शाम 06.05 बजे तक मकारसंक्रांति का पुण्य स्नान काल है। संजय दास ने कहा कि फिलहाल अगर यहां सेतू बन जाये तो यह तीर्थयात्रा और सुगम होगी। यह स्थान हिन्दुओं के एक विशेष पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि कि, गंगासागर की पवित्र तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थ यात्राओं के समान है। शायद इसलिये ही कहा जाता है कि “हर तीर्थ बार–बार, गंगासागर एक बार।” लेकिन अब सागर तीर्ययात्रा काफी सुगम हो गई जिससे कहा जा सकता है कि, गंगा सागर तीर्थ यात्रा अब बार-बार। मान्यता है कि गंगासागर का पुण्य स्नान अगर विशेष रूप से मकर संक्राति के दिन किया जाए तो उसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है और पुण्यार्थी को इस स्नान का विशेष पुण्य मिलता है। कारण मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। जिसका वैज्ञानिक आधर भी है। गंगासागर में हर देश के तामम जगहों से तीर्य यात्रियों के साथ ही साधु-सन्न्यासी आते हैं और संगम में स्नान कर ये लोग सूर्य देव को अर्ध्य देते हैं।

कपिल क्रोध से भष्म हो गये साठ हजार राजपुत्र

श्री हरि के अवतार कपिल मुनि के साथ ही विशेष रुप ये यहां सूर्य देव की पूजा की जाती है। तिल और चावल सह यहां तेल का इस त्यौहार पर विशेष महत्व है जिसका दान किया जाता है। यहां साधु समाज की एक अलग दुनिया ही बस जाती है और नगा से लेकर बाल व महिला सन्यसियों के संसार व माहौल को देख कुंभ मेले का भान होता है। गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु जहां समुन्द्र देवता को नारियल अर्पित करते हैं वहीं गउदान भी करते हैं। कहते हैं कि भवसागर को पार करने के लिये गउ की पूंछ का ही सहारा आत्मा को लेना पड़ता है तभी मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि यहां पंडे भाड़े की गाय लेकर उसे श्रद्धालु को बेचते है और फिर उसी गउ को वापस दान में लेते हैं। इसके उपरांत ही बाबा कपिल मुनि के दर्शन व पूजा- अर्चना की जाती है। गंगासागर में स्नान–दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है।इसे जनश्रुति कहे या फिर मान्यता। कहते है कि जो युवतियाँ यहाँ पर स्नान करती हैं, उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को इच्छित वधु प्राप्त होती है। अनुष्ठान आदि के पश्चात् सभी लोग कपिल मुनि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं तथा श्रद्धा से उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मन्दिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भागीरथी की मूर्तियाँ स्थापित हैं।अभी से ही वहां सुरक्षा व्यवस्था के तहत सेना के जवान तैनात हैं। साथ ही तीर्थ यात्रियों का रेला लगने लगा है। तमाम ग्रंथों सह पुराणों में मां गंगा के धरती पर अवतरण की जानकारी मिलती है। भगवान श्री राम के कुल के राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ कर घोड़ा छोड़ा। अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा का जिम्मा उन्होंने अपने 60 हज़ार पुत्रों को दिया। देवराज इंद्र ने वह घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। घोड़े को खोजते हुए जब राजकुमार वहाँ पर पहुँचे तो कपिल मुनि को भला–बुरा कहने लगे और घोड़ा चोर समझा। मुनि को राजपुत्रों के इस क्रिया कलाप पर क्रोध आ गया और सभी 60 हज़ार सगर पुत्र मुनि की क्रोधाग्नि में जलकर भस्म हो गये। ऐसे में सगर के पुत्र अंशुमान ने मुनि से क्षमा–याचना की तथा राजकुमारों की मुक्ति का उपाय पूछा। मुनि ने कहा-स्वर्ग से मां गंगा को धरती पर लाना होगा और गंगा की जलधारा के स्पर्श भष्मिभूत 60 हज़ार सगर पुत्रो का उद्धार होगा। राजपुत्र अंशुमान को तप में सफलता नही मिली। फिर उन्हीं के कुल के भगीरथ ने तप करके स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर उतारा। भगीरथ जैसे-जैसे जिस रास्ते से होकर गुजरे मां गंगा की अविरल धारा भी गुजरी। चुकि राजपुत्रों को ऋषि के श्राप से मुक्त करना था अतएवं भगीरथ के साथ गंगा सागरद्वीप में आई। कपिल आश्रम श्रेत्र में आयीं गंगा का स्पर्श जैसे ही सागर के साठ हजार मृत मृत पुत्रों की राख से हुआ सभी राजकुमार मोक्ष को प्राप्त हुए। कहते हैं कि राजपुत्रों को मकर संक्राति के दिन ही मुक्ति मिली थी।

भगवान विष्णु के छठे अवतार कपिल मुनि

भागवत पुराण में वर्णन है कि कपिलमुनि भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। कपिलमुनि की माता का नाम देवहूति व पिता का नाम कर्दम ऋषि था। देवहूति को ब्रह्म जी की पुत्री बताया जाता है।कपिलमुनि ने अपनी मां देवहूति को बाल्यावस्था में सांख्य-शास्त्र का ज्ञान दिया था। उनकी मां मनु व शतरूपा की पुत्री भी कहा जाता है। शास्त्र ग्रंथ बताते हैं कि जब प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो उन्होंने अपने शरीर के आधे हिस्से से नारी का निर्माण किया। इन्हें मनु तथा शतरूपा कहा गया। देवहूति के पति थे ऋषि कर्दम। कपिल मुनि अपने माता-पिता की दसवीं संतान थे। उनसे पहले उनकी नौ बहनें थीं। कपिल मुनि महाराज ने जब सांख्य शास्त्र की रचना की थी तब बाल्यावस्था में ही कपिल मुनि महाराज ने अपनी माता को सृष्टि व प्रकृति के चौबीस तत्वों का ज्ञान प्रदान किया था।कहते हैं कि सांख्य दर्शन के माध्यम से जो तत्व ज्ञान मुनि महाराज ने अपनी माता देवहूति के सामने रखा था वही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश के रूप में सुनाया था। कपिलमुनि का श्रीमद्भगवत गीता में वर्णन इस प्रकार से है
अक्षत्थ: अश्रृत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:। गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि:॥
अर्थात् भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं कि हे अर्जुन जितने भी वृक्ष हैं उनमें सबसे उत्तम वृक्ष पीपल का है और वो मैं हूं, देवों में नारद मैं हूं, सिद्धों में कपिल मैं हूं,ये मेरे ही अवतार हैं।मुनि महाराज ने माता को बताया था कि मनुष्य का शरीर देवताओं की भांति ही होता है।

कैसे जाये सागरद्वीप

महानगर कोलकाता के हावड़ा, सियालदा, आउटराम घाट और इस्पालानेड से 98 किलो मिटरी की दूरी बस द्वारा लाट न. 6 तक तय की जा सकती है।वैसे आप सियालदा से ट्रेन द्वारा काकद्वीप स्टेशन जा सकते हैं। लेकिन बाकी का सफर मुड़़ीगंगा नदी को पार करना होगा। नदी पार करने के बाद भी बसे से सागरद्वीप की ओर रवाना होना पड़ेगा।

यात्रा में रहें सावधान

खुले में शौंच या लघुशंका नहीं करें। कारण लगभग 10 हजार से ज्यादा शौचालय बनाये गये हैं। मेले को स्वच्छ रखना ही सरकार की प्राथमिकता है इसलिये खुद गंदगी नहीं फैलाए और ना ही दुसरों को मेला परिसर गंदा करने दें। सागर तट पर कपड़े नहीं धोएं और पूजन सामग्री संगम में नहीं फेंके। किसी भी रुप में प्लास्टीक को निषेध किया गया है अतएवं इसका ध्यान रखें। हुगला सह अन्य अस्थायी यात्री निवास में आग नहीं जलाएं। किसी अंजान का खाना नहीं खायें और अपने सामानों के प्रति सतर्क रहे। पीले रंग के शौचालय का इस्तेमाल करें। कूड़े के लिये कूड़ेदान का उपयोग करें। प्लास्टीक को निषेध किया गया है इसलिये प्लास्टीक के कप और कैरी बैग का इस्तेमाल आपके परेशानी का कराण बन सकता है। परेशानी पर स्वंयसेवकों की मदद लें और किसी के गुम होने पर बजरंग परिषद की मदद लें।

महत्वपूर्ण अस्पतालों के सम्पर्क नम्बर

गंगा सागर तीर्थयात्रा के दौरान कई तरह की बीमारी से पाला पड़ सकता है। भगवान न करे कि कोई समस्या हो लेकिन बीमार होने पर इस अस्पतालों की मदद ली जा सकती है। सागर मेला ग्राउण्ड अस्थायी अस्पताल (03210-140818), चेमागुड़ी अस्थायी अस्पताल( 03210-222411), कचुबेरिया अस्थायी अस्पताल ( 03210-247108), लाट न.8 अस्थायी अस्पताल (03210-257984), नामखाना अस्थायी अस्पताल( 03210-244985), रुद्रनगर ब्लाक अस्पताल( 03210-242301) को फोन किया जा सकता है या फिर खुद जाएं।

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