धन्य हुआ महाकुम्भ

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शिवशरण त्रिपाठी

नियमित अंतराल पर देश के चार तीर्थ स्थलों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में आयोजित होने वाले महाकुम्भ की महत्ता जगजाहिर है। खासकर हर सनातनी हिन्दु मोक्ष की कामना से इन अवसरों पर अमृतपान करने की लालसा से खिंचा चला आता है। न लम्बी यात्रा की चिंता, न भारी भीड़ से किसी अनहोनी का भय और न ही रहने, खाने-पीने का कोई मलाल।प्रयागराज संगम तट पर चल रहे महाकुम्भ ने महाकुम्भ के इतिहास में एक ऐसा स्वर्णिम पन्ना जोड़ दिया है जिसकी किसी को कल्पना तक नहीं थी। रविवार तारीख 24 फ रवरी, फ ाल्गुन कृष्ण षष्ठी को संगम तट पर पूरी दुनिया ने ऐसा नजारा देखा कि सहसा देखने वालों को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। वे आंखें तो चुंधिया ही गई जिन पर करोड़ों आंखे टकटकी लगाये थीं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की १३० करोड़ की जनता के प्रतिनिधि सम्प्रति प्रधानमंत्री ने जब एक-एक करके पांच सफ ाई कर्मियों (दो महिला व तीन पुरूष) के मोक्षदायिनी गंगा जल से पांव पखारने शुरू किये कि तो लोगों को ऐसा लगा जैसे वे दिन में कोई सपना देख रहे हों। जिनके पांव पखारे जा रहे थे वे स्तब्ध एवं नि:शब्द थे। उन्हे लग रहा था जो कुछ  हो रहा है वो कोई दिवा स्वप्न ही है। पांव पखारने व उन्हे अंगवस्त्र देकर सम्मानित करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनका महिमागान कर मानो सदियों से चली आ रही है ऊँच-नीच की खंाई को एक झटके में पाट दिया। मानो देश को उस युग में ला खड़ा किया जहां जाति-पात, ऊँच-नीच के लिये कोई जगह नहीं थी। समाज के उन सभी वर्गो को आइना दिखाने का काम किया जो अपने समाज के अभिन्न व आवश्यक अंग सफ ाई कर्मियों को छूने तक से बचते हैं। इस अवधारणा पर भी मोहर लगाई कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। काम सिर्फ  काम होता है।  आज यदि समाज का कोई वर्ग सफ ाई का काम न करें तो कल्पना कीजिए क्या आलम होगा। प्रधानमंत्री ने उन राजनीतिक दलों को भी आइना दिखाने का काम किया जो सिर्फ  जाति की राजनीति करते हैं और जाति के बहाने समाज में ऊँच-नीच का बीज बोकर आपस में लड़ाने का काम करते हंै। देश में जाति-प्रथा के लिये मनु महाराज को गाली देने वाले अज्ञानियों को शायद यह पता नहीं कि इस देश में जाति प्रथा कभी रही ही नहीं। कर्म के आधार पर लोगों की पहचान थी। कालांतर में समाज के स्वार्थी तत्वों ने कर्म के आधार को जाति में बदलने का जो खेल खेला भविष्य में वही हमारे समाज के लिये अभिशाप बन गया। आज पूरा देश हजारों जातियों में बंटा हुआ है। इसके चलते न केवल समाज में भयावह विखंडन होता रहा है वरन् बैमनस्य की नई-नई तजबीजें/तदबीरें की जाती रही हैं। इतिहास गवाह है कि यदि विधर्मियों ने हमारे उस आवश्यक अंग का नाना प्रकार के प्रलोभनों से धर्म परिवर्तन कराने में सफ लता दर सफ लता प्राप्त की तो यह हमारे समाज के उस वर्ग की असफ लता ही थी, जिसकी समाज के ऊँच-नीच, छूत-अछूत, गरीब-अमीर सभी को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी थी। अब जब देश के प्रधानमंत्री हमारे अपने सफ ाई कर्मियों की पांव पखारे है तो हमें भी संकल्प लेना चाहिये कि हम सफ ाई कर्मियों को अपने परिवार का अभिन्न अंग मानकर उन्हे बराबरी का दर्जा व सम्मान दें। उनके सुख-दुख में हाथ बटायें।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सफ ाई कर्मियों के पांव पखारकर महाकुम्भ को धन्य बनाया ही गत मंगलवार १९ फ रवरी माघ शुक्ल १५ को देश के महान संत रविदास की जयंती पर देश के साधु संयासियों के साथ जब सैकड़ो सफाई कर्मियों ने माँ गंगा का आचमन कर डुबकी लगाई तो मानो माँ गंगा भी अभिभूत हो गई। महाकुम्भ तो मानो फ ूला नहीं समा रहा था। उसकी इन ऐतिहासिक उपलब्धियों से कदाचित अतीत के महाकुम्भों को ईष्र्र्या हो रही होगी। साधुसंतों के साथ गंगा में डुबकी लगाने वाले सफ ाई कर्मियों के चेहरों पर मानो विजेता की चमक थी। वे सभी अभिभूत थे। आखिर उनमें से एक ने कहा भी ‘पहली बार लगा हम हिन्दू है और हमारा भी कोई धर्म गुरू हैÓ। उक्त सफ ाई कर्मी के एक-एक शब्द हमारे उन धर्मध्वज वाहकों के लिये कम से कम आंखे खोलने को विवश करते है जिनके पास इनके बीच जाने व उन्हे गले लगाने का समय नहीं होता। समाज के उस सवर्ण वर्ग के मुंह पर करारा तमाचा है जो अपनी उच्च जाति के गुुमान में दलितों से दूरी बनाये रखने को ही अपनी शान व मर्यादा का मानदण्ड मान बैठे हंै। इन दो ऐतिहासिक घटनाओं के अलावा किन्नरों के अखाड़े को मान्यता व उनका जूना अखाड़े के साथ शाही स्नान किया जाना जहां महाकुम्भ के लिये ऐतिहासिक घटना रही है वहीं वृहद हिन्दू समाज के लिये आंखे खोलने वाली व चिंतन करने वाली भी।हम माँ गंगा से प्रार्थना/कामना करते हंै कि भविष्य का हर महाकुम्भ ऐसे ही समरसता, सद्भावना के नये-नये इतिहास रचे व भारत ही नहीं पूरी दुनिया के मानव मात्र के कल्याण का मार्ग सुगम व प्रशस्त करे।

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