दिन में तोड़ो, रात में जोड़ो

0
188

परसों शर्मा जी के घर गया, तो चाय के साथ बढ़िया मिठाई और नमकीन भी खाने को मिली। पता लगा कि उनका दूर का एक भतीजा राजुल विवाह के बाद यहां आया हुआ है। मैंने उसके कामधाम के बारे में पूछा, तो शर्मा जी ने उसे बुलवाकर मेरा परिचय करा दिया।

– क्यों बेटा राजुल, तुम आजकल काम क्या कर रहे हो ?

– काम तो कुछ खास नहीं है चाचा जी; पर दाल-रोटी निकल रही है।

– ये तो बड़ा अच्छा है। दाल-रोटी पर ही तो सारी दुनिया टिकी है। फिर भी कुछ तो बताओ।

– जी मैं नगर निगम वालों के लिए काम करता हूं।

– नगर निगम में काम तो अच्छी बात है। आजकल सरकारी नौकरी किसे मिलती है ?

– जी मैं नगर निगम में नहीं, नगर निगम के लिए काम की बात कर रहा हूं।

– ये कैसी पहेली है बेटा राजुल। क्या काम, वेतन और काम के घंटे निश्चित नहीं है ?

– काम तो बहुत पक्का है; पर वेतन और काम के घंटों का कुछ भरोसा नहीं है। कुछ काम दिन में होता है, तो कुछ रात में।

– तुम्हारी ये उलटबासी मेरी समझ से परे है बेटा। तुम जरूर कुछ छिपा रहे हो।

– ऐसा है चाचा जी कि नगर निगम वाले आजकल ‘अतिक्रमण हटाओ’ की मुहिम चला रहे हैं। मैं उस विध्वंसक दस्ते का मुखिया हूं। उसमें 20-25 लोग हैं। हर दिन कहीं न कहीं जाना पड़ता है। बाजार हो या मोहल्ला, लोगों ने इतने अवैध अतिक्रमण कर रखे हैं कि क्या बताऊं ? हम भारत वालों का स्वभाव ही ऐसा है। चीन और पाकिस्तान से तो अपनी धरती वापस ली नहीं जाती, सो अपनी गली में ही कुछ जगह कब्जा लेते हैं। बाजार में भी दुकान का बोर्ड, फर्नीचर और सामान रखकर जगह घेर लेते हैं।

– हमारे यहां भी यही हाल है। अतिक्रमण के कारण गलियों में चलना मुश्किल हो गया है। पिछले दिनों एक बाजार में आग लगी, तो फायर ब्रिगेड की गाड़ी वहां पहुंच ही नहीं सकी।

– जी हां, इसीलिए हमें दिन-रात काम करना पड़ता है। दिन में अतिक्रमण हटाना और रात में..।

– क्या रात में भी कुछ काम होता है ?

– जी बिल्कुल। रात में हम बांस-बल्ली गाड़कर बड़े-बड़े होर्डिंग लगाते हैं। बड़ा नगर है, इसलिए जिस क्षेत्र से आज अतिक्रमण हटाया है, वहां दोबारा जाने का नंबर छह महीने बाद ही आता है। इतने समय में लोग फिर कब्जा कर लेते हैं। कुछ लोग खुद ही ये काम कर लेते हैं, बाकी लोगों की सेवा के लिए हम चले जाते हैं। बस आप यों समझें कि सारा काम आपसी समझदारी का है। कभी हमें कम फायदा होता है तो कभी ज्यादा; पर हम घाटे में कभी नहीं रहते।

– यानि रात में अवैध कब्जा और दिन में उसे हटाना; इसे ही तुम पक्का काम बता रहे हो ?

– जी, चाचा जी। लोगों को तो एक समय का ही काम नहीं मिलता। हमारी ड्यूटी दिन में भी चलती है और रात में भी। तो ये पक्का काम नहीं हुआ ?

– अच्छा इसमें वेतन कितना मिलता है ?

– इसमें वेतन नहीं; आमदनी होती है। कब्जा कराने पर लोग पैसे देते हैं और उसे हटाने पर नगर निगम। इस तरह हमारा दोनों तरफ से भला हो जाता है।

– लेकिन नगर निगम वालों को ये पता लगा, तो वे पुलिस भेज कर तुम्हें बंद भी करवा सकते हैं ?

– आप भी कैसी बात कर रहे हैं चाचा जी। ये सब तो उनकी जानकारी और मिलीभगत से ही होता है। पुलिस हो या प्रशासन, नीचे से ऊपर तक सबका हिस्सा बंधा है। अगर हमें दस हजार मिलता है, तो ऊपर वाले 25 हजार पर हाथ साफ करते हैं। ऐसा पक्का काम और कहां मिलेगा ?

इस बातचीत के दौरान राजुल की नवविवाहिता पत्नी आ गयी। उसने मेरे पैर छुए, तो मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘दूधों नहाओ, पूतों फलो।’ चलते समय राजुल ने भी हाथ जोड़े। मैं उसे क्या कहता; बस ‘दिन में तोड़ो, रात में जोड़ो’ का आशीर्वाद देकर ही विदा ली।

– विजय कुमार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here