विविधतापूर्ण खेती से कम हो सकती है मंहगाई

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-सतीश सिंह

सुशासन बाबू के नाम से विख्यात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के हिलसा प्रखंड के गांवों में आजकल पारंपरिक पद्धति की जगह अधतन एवं विविधतापूर्ण तरीके से खेती करने का चलन जोर पकड़ता चला जा रहा है। आय में वृध्दि के लिए इस प्रखंड के किसान पारंपरिक फसलों धान व गेंहूं की जगह नगदी फसलों मसलन सूरजमुखी, सब्जी और मसालों की खेती करने लगे हैं। गौरतलब है कि सूरजमुखी के फूलों से तेल निकाला जाता है और वह पारंपरिक अनाजों से महंगा बिकता है। मौसमी सब्जियों और मसालों से भी इस प्रखंड के किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है। पखनपुर, बलवापुर, कावा, धर्मपुर, मजीतपुर इत्यादि गांवों के किसानों जोकि ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं ने बिना किसी सरकारी मदद के अपने बलबूते पर सभी लोगों के सामने एक नई मिसाल पेष की है। हिम्मत और कुछ नया करने की जिजीविषा की वजह से धीरे-धीरे इस प्रखंड के किसानों की जिंदगी बदल रही है।

पखनपुर गांव के अरविंद महत्तो बताते हैं कि उन्हें अपने पिताजी के इंतकाल के बाद एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। पिताजी तीन भाई थे। दादा के पास लगभग 15 बीघा जमीन थी। बंटवारा के बाद पिताजी के हिस्से 5 बीघा जमीन आई। श्री महत्तो 4 भाई और 2 बहन हैं। पिताजी के देहांत के समय श्री महत्तो बहुत छोटे थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कम जमीन होने के कारण श्री महत्तो बटाई पर खेती करने लगे। दोनों चाचा नौकरी करते थे। इस कारण उनकी जमीन भी श्री महत्तो को मिल गई। बावजूद इसके श्री महत्तो का बमुकल गुजर-बसर हो पाता था। फिर श्री महत्तो ने घर और गांववालों के विरोध के बावजूद सूरजमुखी की खेती करना शुरु किया। थोड़ी-बहुत शुरुआती दिक्कतों के बाद श्री महत्तो की जिंदगी सूरजमुखी के कारण बदल गई। सूरजमुखी के साथ-साथ श्री महत्तो छिट-पुट तरीके से सब्जियों तथा मसालों की भी खेती कर रहे हैं। श्री महत्तो से प्रेरित होकर हिलसा प्रखंड के दूसरे गांवों में भी आज सूरजमुखी की खेती की जा रही है।

श्री महत्तो की सफलता के पीछे गांवों का सड़क मार्ग से जुड़ा रहना भी रहा है। इस प्रखंड में स्टोरेज की व्यवस्था भी ठीक-ठाक है। साथ ही जिला मुख्यालय बिहारषरीफ में सब्जियों की बहुत बड़ी मंडी भी है। वहां से झारखंड और दूसरे आस-पास के राज्यों में सब्जियों का निर्यात किया जाता है।

ज्ञातव्य है कि बिहार के नालंदा जिले में मसालों की बहुतायात मात्रा में खेती किया जाना संभव नहीं है, क्योंकि यहाँ की जलवायु प्रतिकूल है। फिर भी पारंपरिक खेती की तुलना में कम उत्पादन होने के बाद भी मसालों से इस प्रखंड के किसानों को अच्छी-खासी आमदनी हो रही है।

इस प्रखंड में अरविंद महत्तो सरीखे कई किसान हैं जो रोज एक नये मुकाम की ओर अग्रसर हैं। जागरुकता की नई हवा ने प्रखंड के गांवों की फिजा ही बदल दी है। यहाँ के किसानों ने कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में सफलता की नई इबारत लिखना सीख लिया है। श्री अरविंद महत्तो की सफलता आज के प्ररिप्रेक्ष्य में इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि महंगाई डायन के वाणों से आज भारत की 40 फीसदी गरीब जनता आहत है।

खाद्य पदार्थों की लगातार बढ़ती कीमत महंगाई डायन को और भी खतरनाक बना रही है। सरकार इसे काबू करने में नाकाम हो चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो और रिवर्स रेपो दरों में बारम्बार बढ़ोतरी के बाद भी मंहगाई की दर कम नहीं हो पा रही है। अगस्त के महीने में हालांकि थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट आई है, फिर भी महंगाई की दर अभी भी 11.50 फीसदी पर बनी हुई है।

अब जानकारों का मानना है कि किसान ही इस महंगाई को कम कर सकते हैं, क्योंकि महंगाई के बेकाबू होने में मुख्य भूमिका खाद्य पदार्थों की लगातार बढ़ती कीमत की रही है।

योजना आयोग के मुख्य सलाहकार श्री प्रणव सेन भी कहते हैं कि भारत के किसानों को फसलों के उत्पादन के बरक्स में अपने रुझान को बदलना चाहिए। दरअसल अभी तक किसानों की सोच पारंपरिक फसलों के उत्पादन तक ही सीमित है। हो सकता है किसानों की इसतरह की सोच के पीछे सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की नीति रही हो या फिर यह भी हो सकता है कि देष के दूसरे हिस्से के किसानों में अरविंद महत्ताो के समान नई चुनौतियों का सामना करने का माद्दा न हो।

इसमें दो मत नहीं है कि यदि फसलों के उत्पादन में विविधता लाई जाती है तो मंहगाई पर काबू पाना आसान हो जाएगा। इससे जुड़ा दूसरा पहलू यह है भी है कि विविधतापूर्ण कृषि से किसानों की आर्थिक स्थिति में भी जबर्दस्त सुधार आएगा।

मुख्य फसलों की तरफ किसानों द्वारा सिर्फ ध्यान देने के कारण ही आज हमारे देश में सब्जी, मीट, मछली, फल, दूध इत्यादि का कम उत्पादन हो रहा है। इन विकल्पों के अभाव में किसान आत्महत्या करने के लिए भी विवश हो रहे हैं।

महंगाई को बढ़ाने में दूसरी महत्वपूर्ण कमी स्टोरेज और ट्रांसर्पोटेशन की समस्या का होना भी है। आज भी भारत में पंचायत, तहसील और जिला स्तर पर स्टोरेज का भारी अभाव है। पूरे देश में सड़क मार्ग जर्जर अवस्था में है, जबकि सड़क मार्ग को देश की धमनी माना जाता है। इसके कारण अनाज आम आदमी तक पहुँचने से पहले ही सड़ जा रहा है।

कृषि के तकनीक में आते निरंतर बदलाव और आधारभूत संरचना में लगातार आते सुधार के माहौल में किसानों को बिहार के नालंदा जिले के हिलसा प्रखंड के किसानों से प्रेरणा लेकर अपनी पारंपरिक खेती करने की शैली में जरुर बदलाव लाना चाहिए। इससे महंगाई पर भी काबू पाया जा सकेगा तथा किसानों की आर्थिक स्थिति में भी उल्लेखनीय सुधार आयेगा।

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