पंडित सुरेश नीरव
क्या करोड़पति होना भी हमारे देश में कोई गुनाह है। और अगर करोड़पति होना
गुनाह है तो फिर कौन बनेगा करोड़पति की पवित्र भावना से ओत-प्रोत होकर हर
क्षण-हर पल अपने अमिताभ भैया काहे को थोक में लोगों को करोड़पति बनाने पर
आमादा रहते हैं। ऐसा इम्मोशनल अत्याचार कतई नहीं चलेगा। पहले तो
बहला-फुसलाकर किसी शरीफ को करोड़पति बना दो और जब वो बेचारा निरीह प्राणी
करोड़पति बन जाए तो छापा मारकर उसे धर दबोचो। अब आप ही बताइए कि जो एक
बार करोड़पति बन गया वो घर से बाहर क्या जेब में अठन्नी डालकर निकलेगा।
हद हो गई शराफत की। अपने राजकुमार अग्रवाल भैया भी बतौर निर्दल प्रत्याशी
झारखंड से राज्यसभा का चुनाव लड़ने जा रहे थे। चुनाव राज्यसभा का लड़ने
जा रहे थे। किसी अनाथालय का नहीं। अंटी में मात्र सवा दो करोड़ भी लेकर
नहीं चलेंगे। फिर तो लड़ लिया चुनाव। इसमें ऐसा क्या खास है जो मीडिया
में इतनी बकवास है। चुनाव आयोग को तो जैसे फटे में पैर फंसाने का जानलेवा
चस्का ही लग गया है। मौका मिला नहीं कि फट्ट से टांग अड़ा दी। लगता है वह
तो दोनों हाथों से अपनी टांग ही पकड़े बैठा रहता है। उसे मध्यप्रदेश के
सरकारी चपरासियों से कोई शिकायत नहीं है जिनकी खाट के नीचे सौ-दोसौ करोड़
रुपये तो यूं ही पड़े रहते हैं। लग गया बेचारे अग्रवाल की खाट खड़ी करने
में। राज्यसभा का चुनाव लड़ने जा रहे आदमी की हैसियत सरकारी चपरासियों से
भी गई-बीती होनी चाहिए क्या। आखिर चुनाव आयोग चाहता क्या है। कोई शरीफ
आदमी अपना पैसा लेकर भी नहीं चले। फालतू का बबाल काटा हुआ है। हंगामा
क्यूं बरपा है। छोटी-सी नोट की गड्डी पर। लोग कह रहे हैं कि धन के बूते
पर राज्यसभा में घुसना चाहता है-अग्रवाल। अरे घुस रहा है तो घुसने दो।
बिना पैसे के तो आदमी सुलभ शौचालय में भी नहीं घुस सकता। फिर ये तो राज्य
सभा है। समझ नहीं आ रहा लोग धन के खिलाफ हैं या अग्रवाल के। धन के खिलाफ
तो बाबा रामदेव तक नहीं है। वो तो कालेधन के खिलाफ हैं। अग्रवालजी बाबा
रामदेव के भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के झारखंड प्रभारी हैं। खुद अपने पांव
चलकर झारखंड से दिल्ली के रामलीला मैदान में आगंतुकों को अखंड
चाय-बिस्किट बांटे। चुनाव आयोग भलाई का यह सिला दे रहा है। विधानसभा में
विधायक हंगामा कर रहे हैं। उस विधान सभा में जहां मधु कौंड़ा और शीबू
सौरेन-जैसे महातपस्वी और धर्मनिष्ठ जनसेवक विराजते हैं। उस पवित्र
तीर्थस्थल में घुसपैठ करने की इत्ती बड़ी ओछी हरकत। अरे भैया शरीफ लोगों
की चरित्र हत्या करने की अन्ना टीम पहले ही सुपारी उठा चुकी है। उस पर
ऐसी गैरजिम्मेदाराना हरकत। कतई नाकाबिले बर्दाश्त है। अग्रवाल को इत्ता
भी नहीं मालुम कि राजनीति से तो धन कमाया जा सकता है मगर धन से राजनीति
नहीं कमाई जा सकती। चल पड़े सांसद बनने। जनसेवा के इस पवित्र मंदिर के
महंत-पंडे टिकाऊ जरूर हैं मगर बिकाऊ नहीं हैं। सरकार बचाने के लिए या फिर
प्रश्न पूछने-जैसे दिलेरी के काम के लिए रुपयों का लेन-देन हो जाए वो
दीगर बात है। लेकिन एक टुटरूंटू सांसद बनने के लिए भी रुपयों का खेल चल
पड़े फिर तो गंभीर संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। इसे सख्ती से रोकना ही
होगा। हमें गर्व है कि पैसे के बल पर सांसद बनकर आजतक कोई संसद नहीं
पहुंचा है। और न ही आपराधिक छवि के किसी व्यक्ति को किसी भी राजनैतिक
पार्टी ने आजतक टिकिट ही दिया है। ये राजनीतिक शुचिता ही तो हमारे
लोकतंत्र की ताकत है। बेलगाम धनपशुओं पर महा अर्जेंटली हमें नकेल कसनी ही
चाहिए।