करो दया हे मातु भवानी

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दुर्गा दुर्गति नाशिनी माता , भक्तों के तुम कष्ट हरो |
करो दया हे मातु भवानी , दुर्गति जन की दूर करो || 1 ||
शुम्भ निशुम्भ विनाशिनी माता , भक्तों पर तुम कृपा करो |
करो क्षमा अपराध हमारे , दया दृष्टि तुम हम पे धरो || 2 ||
विन्ध्याचल में विंध्यवासिनी , मैहर में माँ शारदा तुम |
कलकत्ता में माई कालका , जम्मू में माँ वैष्णो तुम || 3 ||
प्रयागराज में अलोपशंकरी , ललिता रूप धरे हो तुम |
मुम्बई में तुम मुम्बा देवी , हिंगलाज में विराजो तुम || 4 ||
नवरूपों में तुम्हें पूजते , भक्त तुम्हारे धरते ध्यान |
तन मन कसते , साधना करते , करने को अपना कल्याण || 5 ||
प्रथम रूप शैलपुत्री तुम्हारा, दूजे में ब्रह्मचारिणी हो |
तृतीय रूप में मां चंद्रघंटा, चतुर्थ में कुष्मांडा हो || 5 ||
पंचम रूप स्कंदमाता तुम्हारा , षष्ठम में कात्यायनी तुम |
सप्तम रूप में माँ कालरात्रि , अष्टम में महागौरी तुम || 6 ||
नवम रूप में बन सिद्धिदात्री , भक्तों को देती वरदान |
साधना करतीं सफल सुजन की , देती सिद्धि का तुम दान || 9 ||
तुम्ही सरवस्ती , तुम ही लक्ष्मी , तुम ही माँ महाकाली हो |
जिस रूप जो तुम्हें ध्याता , इच्छित फल देने वाली हो || 10 ||
तुम ही तारा , तुम ही दुर्गा , तुम ही माँ छिन्नमस्ता हो |
अगणित रूप नाम तुम्हारे माता , दुखों की तुम हरता हो || 11 ||
नाम रूप की गिनती तुम्हारे , क्या कोई कर पायेगा |
जिस पर हो जाए कृपा तुम्हारी , जान तुम्हे वह पायेगा || 12 ||
दुर्गा दुर्गति नाशिनी माता ,जन दुर्गति की दूर करो |
दया सदा रखो भक्तों पर , दुर्मति जन की आन हरो || 13 ||
दुखियों के दुःखहरिणी माता , सद्बुद्धि को अब दो वरदान |
शरणागत को शरण में लेकर , कष्ट हरो जगजननी आन || 14 ||
दुर्गा दुर्गतिनाशिनी माता , दुर्ग विनाशिनी तुम्हें प्रणाम |
मेरे कष्ट हरो महामाया , तुमको ध्याऊं आठों याम || 15 ||

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