ज्योतिष के नाम पर भ्रमित न करें

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सीधी और सटीक भविष्यवाणी करें

डॉ. दीपक आचार्य

ज्योतिष यों तो हमेशा लोकप्रिय रहा है लेकिन इन दिनों इसके प्रति कुछ ज्यादा ही लगाव देखा जा रहा है। जब से टीवी पर ज्योतिष और चमत्कारों की चर्चाएं बढ़ी हैं तब से तो ज्योतिष का ग्लैमर ही कुछ विचित्र होता जा रहा है।

लेकिन जिस अनुपात में ज्योतिष का वर्चस्व बढ़ा है उस अनुपात में ज्योतिषीय सच्चापन नहीं बढ़ पाया है। ज्योतिष ने सेवा से कहीं आगे बढ़कर धंधे का स्वरूप इख़्तियार कर लिया है। जब से ज्योतिष ने ध्ंाधे की चकाचौंध भरी गलियों में प्रवेश कर लिया है तभी से ज्योतिषी और इससे जुड़े सभी क्षेत्रों के लोगों से दैवत्व और दिव्यत्व ने पलायन किया है और इसके स्थान पर बिजनैस टेक्ट और मनी अर्निंग स्टंट फल-फूल रहा है।

जब मन में मलीनता आ जाए और ईश्वरीय विद्याओं के जरिये कमाई का भाव जग जाए तभी से प्राच्यविद्याएं अपना प्रभाव दिखाना छोड़ देती हैं। यही वजह है कि आज ज्योतिषियों की भारी भीड़ और चमक-दमक भरी दुकानों की बेतहाशा बढ़ती संख्या और बाजारों के बीच ज्योतिष से सच्चाई गायब है। भविष्यवाणियां खोटी निकलने लगी हैं और ज्योतिषियों में मत भिन्नता चरम पर है।

आस्था और अनास्था के इसी भंवर के बीच वह आम आदमी है जिसकी ज्योतिष शास्त्र के प्रति श्रद्धा है और उसे अज्ञात और भावी के संकेत प्राप्त करने की आतुरता है। इसी श्रद्धा का दोहन ही तो आजकल के ज्योतिषी कर रहे हैं।

अधिकतर ज्योतिषी या तो सच्चाई जान सकते नहीं अथवा सच्चाई कहने का अधिकार नहीं है। इन्हें लगता है कि जातक को अच्छी-अच्छी बातें नहीं कही जाएं तो पैसा कैसे निकलेगा। जबकि सच्चा ज्योतिषी वही है जो साफ-साफ बात कहे और उसकी प्रत्येक बात स्पष्ट विचारों से भरी हुई होनी चाहिए न कि अपने स्वार्थ के लिए चिकनी चुपड़ी या गोलमाल।

ज्योतिषियों का दायित्व है कि ज्योतिष की साख को बढ़ाने के लिए पूरी प्रामाणिकता के साथ गणित और फलित बताएं और जीवन में शुचिता के साथ ही स्पष्टवादिता कायम रखें।

ज्योतिष वैज्ञानिक रहस्यों से भरा गणना पर आधारित विज्ञान है जिसका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं। विश्व ब्रह्माण्ड का संविधान वेद है और चारों ज्योतिष चारों वेदों का नेत्र है। ज्योतिष समष्टि और व्यष्टि के लिए कदम-कदम पर उपयोगी है। सकाम हित श्रेष्ठ रश्मियों और श्रेष्ठ समय में करने का ज्ञान यही ज्योतिष ही देता है। ज्योतिष पर निरन्तर शोध और अनुसंधान का नियमित क्रम बने रहना चाहिए। ज्योतिष की मान्यता तभी है जब फलित सटीक और स्पष्ट हो।

आज अधिकतर ज्योतिषी जातक का कोई रिकार्ड अपने पास नहीं रखते। जबकि होना यह चाहिए कि वे जिस किसी की जन्मपत्री देखें, उसे कही गई बात को अंकित कर रखें और इसके निष्कर्षों पर चिन्तन करते रहें। इसी से अनुभवों का भण्डार समृद्ध होता है जिसका लाभ समाज को प्राप्त होता है।

ज्योतिषियों को चाहिए कि वे आधे अधूरे ज्ञान और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर ज्योतिष का कोई काम न करें बल्कि जो कुछ कहें-लिखें, वह ज्योतिषीय ज्ञान और गणना के आधार पर सही और सटीक होना चाहिए।

आज एक कुण्डली चार ज्योतिषी देखते हैं और चारों के कथन में भिन्नता होती है और यहीं से शुरू होता है ज्योतिष विज्ञान के प्रति अविश्वास का दौर। इस स्थिति को समाप्त करने की जरूरत है और इसके लिए यह जरूरी है कि ज्योतिष का पूरा पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण विधिपूर्वक लिया जाए ताकि जन विश्वास में कमी न आए।

इसके साथ ही ज्योतिषियों को अपनी किसी भी प्रकार की गलती को भी स्वीकार करना होगा। इसी प्रकार पंचांगों में भी विभिन्नताओं को दूर करने की जरूरत है। ऐसे में ज्योतिषियों को चाहिए कि वे मिल-बैठ कर चिन्तन करें और ज्योतिष के आधारों को मजबूती दें। ज्योतिष को चमत्कार मानना भूल है क्योंकि यह गणनाओं पर आधारित विज्ञान है।

ज्योतिषियों को यह भी चाहिए कि वे ज्योतिष कार्य संपादन में कम्प्यूटर और आधुनिक संचार सुविधाओं का इस्तेमाल करें और ज्योतिषीय अनुसंधानों पर विशेष ध्यान दें।

ज्योतिष का विकास तभी संभव है जब इस क्षेत्र से जुड़े विद्वान उदारतापूर्वक आगे आएं और ज्योतिष की सेवा को सर्वोपरि रखकर राजनीति और दुराग्रहों तथा पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर सार्वभौम और व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए ज्योतिष के विकास पर ध्यान दें।

आज देश में समाज-जीवन और सत्ता से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में रोजाना उतार-चढ़ावों और परिवर्तनों के साथ ही कई अप्रत्याशिक घटनाक्रम अचानक सामने आ जाते हैं। इन सारे हालातों में भावी के बारे में भविष्यवाणी करने में बहुसंख्य ज्योतिषी कतराते रहते हैं और चुप्पी साधे रहते हैं।

कुछ दैवीय ऊर्जाओं से सम्पन्न ज्योतिषी जरूर हैं लेकिन वे ज्योतिष की सारी मर्यादाओं और विधाता के विधान में विश्वास रखते हैं। जबकि बहुसंख्य ज्योतिषी अपनी साख बचाने या अपने ज्ञान की अनभिज्ञता को छिपाने के लिए सम सामयिक हालातों पर भविष्यवाणी करने से घबराते हैं।

आज देश में कितने ज्योतिषी हैं जो भौगोलिक, सामाजिक, राजनैतिक परिवर्तनों की सम सामयिक और समय पूर्व सटीक भविष्यवाणी कर सकने में समर्थ हैं। इसका जवाब देने का सामर्थ्य किसी में है नहीं। ज्योतिष के नाम पर अधिकांश लोग अधकचरा ज्ञान रखते हैं और अपना धंधा चलाने भर के लिए झूठी-सच्ची मनगढ़ंत बातों और गप्पों का सहारा लेकर जैसे-तैसे अपनी दुकानदारी चला रहे हैं।

अगर देश के स्वनामधन्य ज्योतिषियों में इतना दम है तो वे उलुलजुलूल बातों और अपने बेतुके भ्रामक तर्कों की बजाय एकदम स्पष्ट, सटीक और भविष्यवाणी क्यों नहीं कर पा रहे हैं अथवा क्यों नहीं करना चाहते।

अधिकांश ज्योतिषियों का धर्म, सदाचार और ईष्टबल से कोई मतलब नहीं रह गया है। सिर्फ प्रोफेशनल की तरह अपने आपको स्थापित कर देने मात्र से ज्योतिष का भला नहीं हो सकता। ‘लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का’ वाली बातें अब लोगों को हजम नहीं हो पा रही हैं।

जो लोग ज्योतिष क्षेत्र में अपने फन आजमा रहे हैं या जिनकी आजीविका का आधार ही ज्योतिष है उन सभी लोगों को चाहिए कि जनता का विश्वास अर्जित करें और इस बात के लिए अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करें कि इनकी वाणी से निकला अथवा इनके ज्योतिषीय ज्ञान से उपजी भविष्यवाणी निश्चय ही खरी निकलती है। अन्यथा इनके पास जमा ज्योतिषीय डिग्रियों और वैध-अवैध ढंग से हड़पे गए प्रमाण पत्रों, सम्मानों और पुरस्कारों का कोई अर्थ नहीं है।

1 COMMENT

  1. लेखक सही कह रहें हैं।

    “जो लोग ज्योतिष क्षेत्र में अपने फन आजमा रहे हैं या जिनकी आजीविका का आधार ही ज्योतिष है उन सभी लोगों को चाहिए कि जनता का विश्वास अर्जित करें और इस बात के लिए अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करें कि इनकी वाणी से निकला अथवा इनके ज्योतिषीय ज्ञान से उपजी भविष्यवाणी निश्चय ही खरी निकलती है।”—–लेखक डॉ. दीपक आचार्य.

    मेरा अनुभव कहता है। ज्योतिष शास्त्र की भविष्य वाणी वैसी ही होती है; जैसे अर्थ शास्त्र की भविष्य वाणी होती है।

    पर भगवद्गीता के १८ वे अध्याय का १४ वा श्लोक दैव के विषय में क्या कहता है? जानना उचित होगा।
    अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्‌।
    विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पन्ञमम्‌ ॥ (१४)
    शब्दार्थः===> पृथग्विधम्‌ =पृथक विधं, —विविधाश्च=विविधा च,—-पृथक्चेष्टा=पृथक चेष्टा,
    चैवात्र= च एव अत्र

    अथातः कर्मों की सिद्धिमें (१) अधिष्ठान =नियंत्रण शक्ति, जिसके आश्रय से कर्म किए जाएँ,
    (२) कर्ता
    (३) करण= जिन जिन इंद्रियों एवं/या साधनों द्वारा कर्म किये जाते हैं.
    (४) पृथक चेष्टा= नाना प्रकार की चेष्टाएँ,
    (५) दैव= वह जो देवों के अधीन है। पहली चार क्रियाएं आपके हाथ में है, उन्हें आप व्यवस्थित रीति से करते रहिए, पाँचवी के भरोसे पहली चार उपेक्षित नहीं करनी चाहिए।
    यह गीता में भगवान कह रहे हैं। इसी अर्थ में आप ज्योतिष का आश्रय करें।

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