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पता नहीं क्यों - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
हाथी घोड़े बंदर भालू, की कवितायें मुझे सुहातीं। पता नहीं क्यों अम्मा मुझको , परियों वाली कथा सुनाती। मुझको य‌ह मालूम पड़ा है, परियां कहीं नहीं होतीं हैं। जब‌ सपने आते हैं तो वे, पलकों की महमां होती हैं। पर हाथी भालू बंदर तो, सच में ही कविता…