बाबा अमर नाथ की आग से मत खेलो

0
146

विनोद बंसल

भारत के मुकुट जम्मू-कश्मीर के श्री नगर शहर से 125 किमी दूर हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों के बीच 13,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव का अदभुत ज्योतिर्लिंग बाबा अमरनाथ के नाम से विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह सिर्फ़ करोडों हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र ही नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष को एक सूत्र में पिरो कर रखने का एक प्रमुख आधार स्तंभ भी है। भारत तो क्या विश्व का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा जहां से श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने न आते हों। इस यात्रा से जहां बाबा के भक्त अपनी मन मांगी मुराद पूरी कर ले जाते हैं वहीं कश्मीर क्षेत्र में रहने वाली जनता (अधिकांश कश्मीरी मुसलमान) इससे वर्ष भर की अपनी रोजी रोटी का जुगाड कर लेते हैं। सामरिक द्रष्टी से भी देखा जाए तो भी यह मानना होगा कि इस यात्रा के माध्यम से ही देश के कोने कोने में रह रहा भारतीय आत्मिक रूप से जम्मू कश्मीर से जुड कर इसके लिए जी जान तक देने को तत्पर है। अन्यथा यह क्षेत्र कभी का हमारे दुश्मनों के कब्जे में चला गया होता। इतना ही नहीं वहां की अर्थव्यवस्था का आधार पर्यटन है जिसको बढावा देने हेतु सरकार करोडों रुपये खर्च करती है किन्तु इस दो महीने की यात्रा से उसे बैठे बिठाये लाखों पर्यटक मिल जाते हैं जिससे करोडों की आय जम्मू कश्मीर के राज्य कोष में जमा होती है।

अत्यंत दुर्गम रास्ता, खराब मौसम और आतंकवादियों की धमकियों व हमलों के चलते यात्रा में अनेक बार व्यवधान पडता रहता है। अलगाववादियों के इशारों पर चलने वाले राजनेता तथा कुछ विघटनकारी तत्व इस पवित्र यात्रा को समाप्त करने के तरह-तरह के षडयंत्र रचते रहते हैं। कभी खराब मौसम का बहाना, कभी आतंकवादियों की धमकी, कभी व्यवस्था का प्रश्न तो कभी आस्था पर हमला। बस यूं ही चलता रहता है इसे सीमित दायरे में बांधने या इसे समाप्त करने का कुत्सित प्रयास्। गत अनेक वर्षों से इस यात्रा को ज्येष्ठ पूर्णिमा से प्रारंभ कर श्रावण पूर्णिमा (रक्षा बन्धन) के दिन को पूर्ण किया जाता रहा है। हर साल बाबा का प्रासाद पाने वालों की संख्या निरन्तर बढती ही जा रही हैं। इसी कारण गत वर्ष श्री अमरनाथ के दर्शनार्थियों का यह आंकडा पांच लाख को पार कर गया। यात्रा का समय चाहे पूरा हो गया हो किन्तु भक्तों की चाहत बढती ही चली गई।

बाबा के भक्तों का यह आंकडा इस बार भी किसी कीर्तिमान से कम नहीं दिख रहा है। यात्रा के आधिकारिक प्रारंभ तिथि के आने में अभी एक माह से अधिक समय शेष है फ़िर भी यात्रा हेतु पंजीयन कराने बालों की सरकारी संख्या जहां ढेड लाख को पार कर चुकी है वहीं गैर सरकारी संस्था बाबा अमरनाथ एवं बूढा अमरनाथ यात्री न्यास के माध्यम से भी अभी तक लगभग सवा लाख यात्रियों का पंजीयन हो चुका है। यानि, ढाई लाख से अधिक भक्त अभी तक अपना पंजीयन करा चुके हैं। यह तो तब है जब बैंकों में लम्बी कतारों व तमाम तरह की अन्य दिक्कतों के कारण भक्तों को पंजीयन फ़ार्म भी नहीं मिल पा रहे हैं। इस सबके बावजूद इस वर्ष की यात्रा की अवधि को मनमाने तरीके से घटाकर डेढ माह कर दिया गया है जिसे किसी भी तरह से तर्क संगत नहीं कहा जा सकता है।

वर्ष 1996 में इस यात्रा के दौरान हुए एक हादसे के बाद जस्टिस सैन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वर्तमान व्यवस्था के हिसाब से वहां एक दिन में 7-8 हजार से अधिक यात्रियों को दर्शन नहीं कराये जाने चाहिए। यदि प्रतिदिन दर्शनार्थियों की संख्या बढानी है तो रास्ता चौडा करना होगा। साथ ही उन्होंने यात्रियों की सुविधा हेतु समुचित प्रबन्ध भी आवश्यक बताए। इस हिसाब से यदि यह यात्रा डेढ माह तक चलती है तो अधिकाधिक तीन-साढे तीन लाख भक्त ही दर्शन कर पायेंगे। इससे न सिर्फ़ दो लाख से अधिक भक्त बाबा के दर्शनों से बंचित रह जाएंगे बल्कि राज्य सरकार के कोष व वहां की जनता के पेट (रोजी रोटी) पर भी लात लगेगी।

आश्चर्य की बात तो यह है कि जम्मू कश्मीर के मुख्य मंत्री यात्रा को पूरे दो महीने रखने को राजी होकर सुरक्षा देने पर सहमत हैं किन्तु, प्रदेश के राज्यपाल व श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष श्री एन एन वोहरा इसे डेढ माह तक सीमित करने पर आमादा हैं। इससे पहले भी इन्हीं बोहरा जी के कार्यकाल में बाबा अमरनाथ की जमीन हिन्दुओं से छीन ली गई थी जिसे हिन्दुओं द्वारा दो माह के ऐतिहासिक संघर्ष द्वारा वापस लिया गया। इस बार भी हिन्दुओं ने साफ़ ऐलान कर दिया है कि यह यात्रा पूर्व की तरह ज्येष्ठ पूर्णिमा (15/06/2011) से ही प्रारंभ होगी जिसे रोकने का यदि किसी ने प्रयास किया तो देश भर में लोकतांत्रिक तरीके से व्यापक आंदोलन चलाया जाएगा। पंद्रह जून से प्रारंभ होने वाली इस यात्रा का सारा प्रवन्ध बाबा अमरनाथ एवं बूढा अमरनाथ यात्री न्यास द्वारा किया जा रहा है जिसने अभी तक सवा लाख शिव भक्तों का पंजीयन पूरा कर लिया है।

देश की एकता, अखण्डता, धार्मिक आस्था, और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इस यात्रा को प्रोत्साहित करने में ही सबकी भलाई है। वैसे भी, जहां एक ओर हमारी केन्द्र व राज्य सरकारें हर राज्य में जगह जगह हज यात्रा हेतु हज हाउस बना कर करोडों रुपए की हज सब्सिडी दे रही हैं तो क्या हिन्दुओं को अपने ही देश में स्वयं के ही पैसे से (बिना किसी सरकारी सहायता के) यात्रा शुल्क देकर भी अपने आराध्य के दर्शनों की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए ? दूसरी बात यह भी है कि क्या ईद व क्रिसमस जैसे गैर हिन्दू त्योहारों की तिथि कोई राज्यपाल तय करता है जो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल हमारी इस पवित्र यात्रा की तिथि तय कर रहे हैं। हां! श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष के नाते यात्रा के सुचारू रूप से चलने हेतु जो प्रवन्ध आवश्यक है, वे उन्हें करने चाहिए। किन्तु यात्रा की अवधि तो संत समाज व हिन्दू संस्थाऐं ही तय कर सकती हैं।

यदि समय रहते इस टकराव को टाला नहीं गया तो मंहगाई, भ्रष्टाचार और आतंकवाद से पहले से ही त्रस्त हिन्दू जन-मानस के भडकने की प्रबल संभावना है। प्रदेश के राज्यपाल यदि किसी बाहरी इशारे पर खेल रहे हों तो केन्द्र सरकार को चाहिए कि इस मामले में अबिलम्ब हस्तक्षेप कर जम्मू जैसे आन्दोलन की पुनरावृति से बचे अन्यथा एक बार यह आग देश में भडक गई तो इसके दूरगामी गंभीर परिणाम होंगे। जो प्रदेश के साथ-साथ केन्द्र सरकार के लिए भी भारी पड सकते हैं। राम सेतु के आन्दोलन को शायद हमारे नेता भूल गये हैं जो पूरे विश्व के लिए एक मिसाल बन गया था। मात्र तीन घण्टे के देश व्यापी चक्का जाम ने हिन्दू जन शक्ति का जो पाठ पढाया उसे अब याद करना होगा। आस्था के साथ किसी भी प्रकार की खिलवाड करना इस समय उचित नहीं है। भगवान शिव के तीसरे नेत्र से बचने के लिए इस समय यही कहा जाएगा कि राजनेताओ ! बाबा अमर नाथ की आग से मत खेलो

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here