प्रतिभाओ को मत काटो आरक्षण की तलवार से

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नम्र निवेदन है मेरा भारत की इस सरकार से
प्रतिभाओ को मत काटो,आरक्षण की तलवार से

इन रेल पटरियों पर फैला,आज क्यों तमाशा है
जाट-आन्दोलन से फैली,चारो ओर निराशा है 

अगला कदम पंजाबी बैठेंगेr,महाविकट हडताल पर
महाराष्ट में प्रबल मराठा, चढ़ जायेगे भाल पर

राजपूत भी मचल उठेंगे,भुजबल के हथियारों से
प्रतिभाओ को मत काटो आरक्षण की तलवारो से

निर्धन ब्राह्मण वंश,एक दिन परशुराम बन जायेगा
अपने घर के दीपक से,अपना घर ही जल जायेगा

भडक उठा अगर गृह युद्ध,भूकम्प भयानक आयेगा
आरक्षण वादी नेताओ का,सर्वस्व मिटाके जायेगा

अभी सभंल जाओ मित्रो,इस स्वार्थ भरे प्यार से
प्रतिभाओ को मत काटो,आरक्षण की तलवार से

जातिवाद की नहीं समस्या,मात्र गरीबी वाद है
जो सर्वण है पर गरीब है उनका क्या अपराध है

कुचले दबे लोग जिनके,घर में न चूल्हा जलता हो
भूखा बच्चा जिस झोपडी में,लोरी सुनकर पलता हो

समय आ गया है,उनका उत्थान करो अब प्यार से
प्रतिभाओ को मत काटो,आरक्षण की तलवार से

जाति गरीबी की,कही भी, नहीं  मित्रवर होती है
अधिकारी है इसका जिसके घर भूखी बच्ची सोती है

भूखे माता पिता,जहा दवाई बिना तड़फते रहते है
जातिवाद के कारण ही कितने लोग वेदना सहते है

उन्हें न वंचित करो मित्र,सरक्षण के अधिकारों से
प्रतिभाओ को मत काटो आरक्षण की तलवारों से

आर के रस्तोगी  

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

2 COMMENTS

  1. (१)
    अंततो गत्वा आप का विचार सही है. पर शासन में टिकने के लिए जोड तोड करनी पडती है. और उचित अवसर की राह भी देखनी पडती है.जब सामने पहाड होता है; तो नदी भी उसके पार्श्व से होकर निकल जाती है.
    (२)
    राजनीति में दो बिन्दुओं मे न्यूनतम अंतर सरल रेखा जोडकर नहीं होता. कभी कभी उसे सर्पाकार पथ पर चलना पडता है. (१) शासन में टिकने के लिए यह जोड तोड होगी.
    (३)
    शासन में टिककर ही सुधार का प्रयास किया जा सकता है.
    (४)
    राजनीति का विषय विज्ञान जैसा नहीं होता. वो ऋतुओं के अनुमान जैसे अनुमान से चलता है.
    और कुछ शासक के अनुमान पर. यह मेरा वैयक्तिक मत है. आप का मत अलग होना भी मुझे स्वीकार है.
    पर कविता प्रभावी है…तर्क शुद्ध भी है. अच्छी कविता के लिए धन्यवाद. .

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