नम्र निवेदन है मेरा भारत की इस सरकार से
प्रतिभाओ को मत काटो,आरक्षण की तलवार से
इन रेल पटरियों पर फैला,आज क्यों तमाशा है
जाट-आन्दोलन से फैली,चारो ओर निराशा है
अगला कदम पंजाबी बैठेंगेr,महाविकट हडताल पर
महाराष्ट में प्रबल मराठा, चढ़ जायेगे भाल पर
राजपूत भी मचल उठेंगे,भुजबल के हथियारों से
प्रतिभाओ को मत काटो आरक्षण की तलवारो से
निर्धन ब्राह्मण वंश,एक दिन परशुराम बन जायेगा
अपने घर के दीपक से,अपना घर ही जल जायेगा
भडक उठा अगर गृह युद्ध,भूकम्प भयानक आयेगा
आरक्षण वादी नेताओ का,सर्वस्व मिटाके जायेगा
अभी सभंल जाओ मित्रो,इस स्वार्थ भरे प्यार से
प्रतिभाओ को मत काटो,आरक्षण की तलवार से
जातिवाद की नहीं समस्या,मात्र गरीबी वाद है
जो सर्वण है पर गरीब है उनका क्या अपराध है
कुचले दबे लोग जिनके,घर में न चूल्हा जलता हो
भूखा बच्चा जिस झोपडी में,लोरी सुनकर पलता हो
समय आ गया है,उनका उत्थान करो अब प्यार से
प्रतिभाओ को मत काटो,आरक्षण की तलवार से
जाति गरीबी की,कही भी, नहीं मित्रवर होती है
अधिकारी है इसका जिसके घर भूखी बच्ची सोती है
भूखे माता पिता,जहा दवाई बिना तड़फते रहते है
जातिवाद के कारण ही कितने लोग वेदना सहते है
उन्हें न वंचित करो मित्र,सरक्षण के अधिकारों से
प्रतिभाओ को मत काटो आरक्षण की तलवारों से
आर के रस्तोगी
Thanks for comments
(१)
अंततो गत्वा आप का विचार सही है. पर शासन में टिकने के लिए जोड तोड करनी पडती है. और उचित अवसर की राह भी देखनी पडती है.जब सामने पहाड होता है; तो नदी भी उसके पार्श्व से होकर निकल जाती है.
(२)
राजनीति में दो बिन्दुओं मे न्यूनतम अंतर सरल रेखा जोडकर नहीं होता. कभी कभी उसे सर्पाकार पथ पर चलना पडता है. (१) शासन में टिकने के लिए यह जोड तोड होगी.
(३)
शासन में टिककर ही सुधार का प्रयास किया जा सकता है.
(४)
राजनीति का विषय विज्ञान जैसा नहीं होता. वो ऋतुओं के अनुमान जैसे अनुमान से चलता है.
और कुछ शासक के अनुमान पर. यह मेरा वैयक्तिक मत है. आप का मत अलग होना भी मुझे स्वीकार है.
पर कविता प्रभावी है…तर्क शुद्ध भी है. अच्छी कविता के लिए धन्यवाद. .