कैसे सुधरेंगे ‘धरती के भगवान’

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-रमेश पाण्डेय-
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चिकित्सक को धरती पर दूसरे भगवान का दर्जा दिया गया है। चिकित्सक से यह उम्मीद पूरे समाज को रहती है कि वह अपनी मानवतावादी दृष्टिकोण से हर अमीर और गरीब के साथ न्याय करेगा। इसके इतर इन दिनों पैसा कमाने के अंधाधुंध की होड़ में धरती के भगवान ने अपना फर्ज निभाना बंद कर दिया है। सप्ताह भर में देश के भीतर दूसरा वाकिया देखने को मिला जिसमें चिकित्सक की संवेदनहीनता से लोगों में उनके प्रति गुस्सा व्याप्त होना स्वाभाविक है। 4 जुलाई 2014 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के खानपुर क्षेत्र के ढकरौली गांव की रहने वाले राजेन्द्र की पत्नी बब्ली प्रसव से पीडित होने पर एक नर्सिंग होम में सुरक्षित प्रसव के लिए गई थी। वहां पैसे की मांग पूरी न कर पाने पर उसे नर्सिंग होम से निकाल दिया गया। घर लौटते समय रास्तें रेलवे लाइन पार करते समय उसने बच्चे को जन्म दिया।

दूसरा वाकया कुछ इसी तरह का 8 जुलाई 2014 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के व्यस्ततम चौराहे घड़ी चौक पर देखने को मिला। नगरघड़ी चौक पर सुबह लगभग आधे घंटे तक प्रसव पीड़ा से एक महिला छटपटाती रही। महिला की हालत देख उसका पति बिलखता रहा। यह नजारा देखकर लोगों के पैर ठिठक गए। अस्पताल ले जाने से पहले ही महिला ने सड़क पर बच्ची को जन्म दे दिया। तब, कुछ लोगों के कॉल करने पर अंबेडकर अस्पताल से नगरघड़ी चौक आने में महतारी एक्सप्रेस ने एक घंटा लगा दिया। इस तरह महिला और नवजात बच्ची सड़क पर ही लगभग पौने दो घंटे पड़ी रही। बाद में यह पता चला कि महिला को सोमवार रात को अंबेडकर अस्पताल से ही भगाया गया था। नगरघड़ी चौक और शहीद वीर नारायण सिंह व्यावसायिक परिसर के बीच में एक मैली सी चादर पर कोलकाता की मंजू छटपटा रही थी। यह सुबह साढ़े आठ बजे की बात है। तब, कॉम्प्लेक्स की कुछ दुकानें और होटल खुल चुके थे। अमृतसरी होटल में काम करने वाली रूपा पटेल महिला की मदद करने पहुंची। वह ब्लेड, टॉवेल और गरम पानी तो ले आई लेकिन, डिलिवरी कराने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। तब, उसने आसपास खड़े ऑटो चालकों को महिला को अस्पताल ले जाने के लिए कहा। ऑटो चालक भी तैयार हो गए लेकिन, मंजू के पति पीर मोहम्मद ने मना कर दिया। वह रोते हुए बताने लगा कि उन्हें कल (सोमवार) रात को अस्पताल से ही भगाया गया है। इसके बाद प्रसव पीड़ा से बैचेन पत्नी को जैसे-तैसे पैदल लेकर नगरघड़ी चौक पहुंचा। नौ बजे मंजू ने स्वतरू ही बच्ची को जन्म दिया। मां के साथ नवजात बच्ची एक घंटा सड़क पर पड़ी रही। दस बजे छत्तीसगढ़ मध्यस्थता अभिकरण के कर्मचारियों ने यह देखा तो उन्होंने संजीवनी एम्बुलेंस के 108 नम्बर पर कॉल किया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पौने ग्यारह बजे महतारी एक्सप्रेस मौके पर पहुंची। उसके स्टॉफ ने बच्ची और उसकी मां को वाहन में डाला। इसके बाद उन्हें अंबेडकर अस्पताल ले गए। गेट पर वाहन आधा घंटा खड़ा रहा। इसके बाद अस्पताल के वार्ड बॉय स्ट्रेचर लेकर मंजू और नवजात बच्ची को लेने बाहर आए। पीर मोहम्मद ने बताया कि वह और उसकी पत्नी कोलकाता से सोमवार को काम की तलाश में यहां आए थे। मंजू को प्रसव पीड़ा उठी तो वह उसे अंबेडकर अस्पताल ले गया था लेकिन, उन्हें अस्पताल स्टाफ ने भगा दिया। हमारी सरकार सुरक्षित प्रसव पर जोर दे रही है। सरकारी अस्पतालों में इसके लिए मंहगे उपकरण लगाए जाने के साथ ही मोटी तनख्वाह पर स्टाफ रखे गए हैं। इसके बाद भी नागरिकों से चिकित्सकों द्वारा अतिरिक्त पैसे की मांग किया जाना कितना दुखद है।

1 COMMENT

  1. भौतिकता वादी सोच के आगे मानवीय सम्वेदना शुन्य हो गयी है.
    इसीलिए आज समाज में चिकित्सक और अध्यापक के प्रति दिनोदिन श्रद्धा का ह्रास होता जा रहा है.

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