मतलब ना हो तो अपने भी पहचानते नहीं….

love               -इक़बाल हिंदुस्तानी

जब ज़िंदगी हमारी परेशान हो गयी,

अपने पराये की हमें पहचान हो गयी।

सोने की चिड़िया उड़ गयी मुर्दार रह गये,

दंगों से बस्ती देश की शमशान हो गयी।

 

मतलब ना हो तो अपने भी पहचानते नहीं,

रिश्तों की जड़ भी फ़ायदा नुकसान हो गयी।

 

कुछ बन गये तो बच्चे मेरे दूर हो गये,

नगरी मेरी हयात की वीरान हो गयी।

अपने दुश्मन से हमंे प्यार ना हो जाये कहीं…..

ज़िंदगी और भी दुश्वार ना हो जाये कहीं,

अपने दुश्मन से हमें प्यार ना हो जाये कहीं।

 

जिसको आते हैं नज़र हम सभी ग़द्दारे वतन,

कल को साबित वही ग़द्दार ना हो जाये कहीं।

 

जिसको चाहा है दिलो जान से बरसों हमने,

वो मेरे सर का ख़रीदार ना हो जाये कहीं।

मैंने ये सोच के घर सौंप दिया भाई को,

बीच घर में खड़ी दीवार ना हो जाये कहीं।।

नोट-मुर्दार-मरा हुआ, हयात-ज़िंदगी, वीरान-सुनसान, दुश्वार-कठिन।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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