स्वाध्याय करने से अज्ञान का नाश तथा ज्ञान की वृद्धि होती है

0
150

-मनमोहन कुमार आर्य
मनुष्य को परमात्मा ने बुद्धि दी है जो ज्ञान प्राप्ति में सहायक है व ज्ञान को प्राप्त होकर आत्मा को सत्यासत्य का विवेक कराने में भी सहायक होती है। ज्ञान प्राप्ति के अनेक साधन है जिसमें प्रमुख माता, पिता सहित आचार्यों के श्रीमुख से ज्ञान प्राप्त करना होता है। ज्ञान प्राप्ति में भाषा का मुख्य स्थान होता है। मनुष्य प्रथम भाषा के रूप में अपनी माता की भाषा को सीखता है। मातृ भाषा सभी माता के शब्दों को सुनकर ही सीखते हैं। इसके बाद वर्णोच्चारण शिक्षा पढ़कर भाषा को लिखना तथा व्याकरण का ज्ञान प्राप्त कर भाषा को शिष्ट रूप में प्रयोग में लाया जाता है। मातृभाषा और लिपि को सीखकर मनुष्य अन्य अनेक भाषाओं को भी सीख सकता है। संसार की प्रमुख भाषा संस्कृत को माना जा सकता है। संस्कृत में जो ज्ञान उपलब्ध है वह संसार की शायद किसी भाषा में उपलब्ध नहीं होता है। यदि संस्कृत में वेद, उपनिषद, दर्शन आदि से इतर कहीं कुछ ज्ञान है भी तो वह संस्कृत वा वेदों से ही उन सभी ग्रन्थों में गया है। वेद ईश्वरीय ज्ञान होने के साथ सभी सत्य विद्याओं के ग्रन्थ हैं। वेदाध्ययन करने पर मनुष्य ईश्वर, जीवात्मा सहित मनुष्य के कर्तव्य व कर्तव्य एवं सभी सांसारिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करने में सफल होता है। इस प्रकार भूमिका तैयार हो जाने पर मनुष्य आधुनिक ज्ञान विज्ञान विषयों को भी पढ़कर व विद्वानों की संगति से सभी विषयों का अपना ज्ञान बढ़ा सकता है।

मनुष्यों को सद्ज्ञान प्राप्त हो जाये तो वह अपने जीवन की सभी समस्याओं को हल कर सकता है व दूसरों का मार्गदर्शन भी कर सकता है। सभी समस्याओं का समाधान एवं सभी प्रकार की उन्नतियां ज्ञान के विकास व विस्तार से ही सम्भव होती है। ज्ञान व विज्ञान का जीवन में महत्व निर्विवाद है, परन्तु इसके साथ मनुष्य के लिये ईश्वर व आत्मा का यथोचित ज्ञान होना भी आवश्यक होता अन्यथा मनुष्य जीवन सार्थक एवं सफल नहीं होता। ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने पर हमें ज्ञात होता है कि हमारा यह समस्त संसार वा ब्रह्माण्ड एक सच्चिदानन्दस्वरूप सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, अनादि व नित्य सत्ता से बना हुआ है व उसी से संचालित है। ईश्वर ही संसार का उत्पत्तिकर्ता, पालक व संहारक है। वही सब अपौरुषेय रचनाओं का कर्ता तथा सभी वनस्पतियों एवं प्राणियों का उत्पत्तिकर्ता व पालक भी है। मनुष्य को जन्म देने वाला तथा हमें जो सुख व दुःख मिलता है, उसका आधार भी परमात्मा सहित हमारे जन्म-जन्मान्तर के कर्म हुआ करते हैं जिनका हमें फल भोग करना शेष रहता है। हम दुःखों से कैसे बच सकते हैं और सुखों में वृद्धि सहित दुःखों को सदा के लिये कैसे दूर कर सकते हैं, इसका ज्ञान भी हमें हमारी बुद्धि वैदिक साहित्य के अध्ययन से प्राप्त कराती है। अतः मनुष्य को ज्ञान व विज्ञान तथा अंग्रेजी व दूसरी भाषाओं को पढ़ने से पूर्व व साथ साथ हिन्दी व संस्कृत का ज्ञान भी अर्जित करना चाहिये। इसके साथ ही वेदों का अध्ययन भी करना चाहिये जिससे हमारी बुद्धि सभी विद्याओं के ज्ञान से युक्त होकर अपने जीवन को सृष्टिकर्ता की आज्ञाओं का पालन करते हुए दुःखों से दूर रहते हुए सुखों को प्राप्त होकर अपने अनादि देव परमात्मा का प्रत्यक्ष व साक्षात्कार कर सके और अन्त में आनन्दमय ईश्वर को प्राप्त होकर दुःख सुख रूपी आवागमन के चक्र से मुक्त हो सके। 

मनुष्य ज्ञान व विज्ञान तो स्कूलों व विद्यालयों में पढ़ सकता है परन्तु उसे अपने जीवन सहित अपनी आत्मा तथा सृष्टिकर्ता परमात्मा विषयक सत्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए स्वाध्याय का आश्रय लेना पड़ता है। स्वाध्याय वेदों के अध्ययन जिसमें सभी विद्यायें विद्यमान हैं, उनके अध्ययन सहित ‘स्व’ अर्थात् स्वयं को जानने के लिये अध्ययन व चिन्तन व मनन करने को भी कहते हैं। स्वाध्याय करके अध्ययन किये हुए विषय का चिन्तन व मनन कर उस ज्ञान को सत्य होने पर ग्रहण व धारण करना होता है। ज्ञान को धारण करने पर ही वह आचरण में आता है। हमें ईश्वर व आत्मा विषयक ज्ञान का महत्व ज्ञात होना चाहिये। हमें जब ईश्वर व आत्मा विषयक ज्ञान होगा तब हम राग द्वेष से रहित होकर विरक्त भावों से संसार का निर्लिप्त होकर त्याग पूर्वक भोग कर सकते हैं जिसके परिणाम से हम अन्य सामान्य मनुष्यों को होने वाले अनेक दुःखों से बच सकते हैं। सुख व दुःख का कारण मनुष्य के कर्म ही हुआ करते हैं। मनुष्य अज्ञान से युक्त जो कर्म करते हैं उनसे प्रायः दुःख हुआ करता है। अज्ञानी मनुष्य को भक्ष्याभक्ष्य का ज्ञान नहीं होता, अतः उससे भोजन करने में भूल होने की सम्भावना भी होती है। अतः हमारा आचार-विचार-व्यवहार व आहार युक्त व ज्ञानसम्मत होना चाहिये। ऐसा तभी होगा जब हम वेदों सहित समस्त धर्म एवं संस्कृति विषयक साहित्य का अध्ययन करने के साथ आयुर्वेद की शिक्षाओं का भी अध्ययन करेंगे और आवश्यक शिक्षाओं को धारण कर उनके अनुसार व्यवहार करेंगे। स्वाध्याय करने से हमें स्वस्थ जीवन बनाने व जीने की शिक्षा भी मिलती है। स्वास्थ्य के लिये हमें समय पर सोना व समय पर जागने के नियम का भी पालन करना होता है। भ्रमण, व्यायाम व योगासन आदि करने होते हैं। सात्विक भोजन का सेवन करना होता है। अभक्ष्य पदार्थों यथा मांसाहार आदि का त्याग भी करना होता है। भोजन समय पर करना चाहिये अन्यथा इसके भी कुछ दुष्परिणाम भविष्य में सामने आते हैं। जीवन को बाह्य व आन्तरिक रूप से शुद्ध व पवित्र बनाना भी सुखी जीवन के लिये आवश्यक होता है। ऐसे अनेक नियमों का ज्ञान हमें सत्साहित्य के स्वाध्याय व अध्ययन करने पर होता है। अतः सभी मनुष्यों को जीवन की उन्नति के लिये आवश्यक सभी प्रकार के उत्तम ग्रन्थों का स्वाध्याय करना चाहिये। 

जब हम वेदों व वैदिक साहित्य का स्वाध्याय करते हैं तो हमें ईश्वर व आत्मा विषयक सत्य ज्ञान प्राप्त होता है। स्वाध्याय व विद्वानों की संगति से हम सभी विषयों के सत्य ज्ञान को प्राप्त हो सकते हैं। ईश्वर को जानने पर हमें ईश्वर के जीवों पर उपकारों का ज्ञान होता है और हम उसके उपकारों को जानकर उसके प्रति कृतज्ञ होते हैं। हमें ईश्वर की उपासना का महत्व विदित होता है और सिद्ध होता है कि ईश्वर की उपासना मनुष्य का परम आवश्यक कर्तव्य है। इसी को पंचमहायज्ञों वा कर्तव्यों में प्रथम स्थान दिया गया है। उपासना करने, योगदर्शन आदि के अध्ययन करने तथा महान योगी ऋषि दयानन्द सरस्वती जी के जीवन व उनके सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों का अध्ययन कर भी हम उपासना विषय को विस्तार से जान सकते हैं व उसे करके अपनी आत्मा की उन्नति कर सकते हैं। उपासना करने से मनुष्य की आत्मा का बल बढ़ता है जिससे वह पहाड़ के समान दुःख प्राप्त होने पर भी घबराता नहीं है। यह लाभ व फल अन्यथा किसी प्रकार से नहीं होता। अतः उपासना का महत्व निर्विवाद है जिसे हमें सन्ध्या पद्धति के अनुसार करनी चाहिये। वेद निर्दिष्ट व अनुमोदित मनुष्य के पांच कर्तव्यों में इतर कर्तव्य देवयज्ञ अग्निहोत्र, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ तथा बलिवैश्वदेवयज्ञ होते हैं। इन सब कर्मों को करने का ज्ञान व प्रेरणा मनुष्य को स्वाध्याय से मिलती है। स्वाध्याय से मनुष्य का ज्ञान उत्तरोतर बढ़ता रहता है। वह उपासना को सिद्ध करके ईश्वर के साक्षात्कार तक पहुंच सकता है। ईश्वर का साक्षात्कार ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में जितना ज्ञान व विज्ञान सहायक हो सकता है, उसका आश्रय लिया जा सकता है। केवल ज्ञान व विज्ञान से युक्त जीवन जो ईश्वर भक्ति व उपासना से रहित है, प्रशस्त नहीं होता। यह बात सभी स्वाध्यायकर्ता जानते हैं। इसी से वेद व उपनिषद आदि ग्रन्थों के स्वाध्याय का महत्व ज्ञात होता है। ऋषि दयानन्द सहित पूर्व के सभी ऋषि व विद्वान वेदों का स्वाध्याय व अध्ययन न करते तो वह महान नहीं बन सकते थे। स्वाध्याय साधारण मनुष्य के जीवन को महान बनाने के कार्य में भी सहायक होता है। स्वाध्याय करने सहित स्वाध्याय से प्राप्त ज्ञान को क्रियात्मक रूप देना भी आवश्यक होता है। अतः सभी बन्धुओं को वेद व वैदिक साहित्य के स्वाध्याय सहित स्वाध्याय से प्राप्त शिक्षा को क्रियात्मक रूप देकर जीवन को सफल करना चाहिये और ऐसा करते हुए धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त होकर दुःखों से मुक्त होना चाहिये। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here