कल कहीं बहुत देर न हो जाये!


उत्तर प्रदेश के आतंकवाद निरोधक दस्ते द्वारा सोमवार को एक हजार से अधिक हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन कराने के दो आरोपित गिरफतार किये गये हैं, अन्य की तलाश जारी है। पकड़े गये आरोपितों में से एक मुफती काजी जहांगीर आजम कासमी दिल्ली का तो उमर गौतम फ तेहपुर का रहने वाला है। धर्मपरिवर्तन कराने के लिये इन्हे आईएसआई समेत अन्य विदेशी एजेन्सियों से फ ंडिग की जा रही थी।
भले ही मुठ्ठीभर हिन्दुओं ने इस खबर को गंभीरता से लिया हो। भले ही हालात पर चिंतन किया हो। भले ही उन्हे क्षोभ व रोष व्यक्त करते हुये भी देखा गया हो पर अधिसंख्य हिन्दुओं के लिये यह खबर महज एक सामन्य खबर से ज्यादा कुछ नहीं है।
हिन्दुस्तान में हिन्दुओं के धर्मपरिवर्तन की न तो यह पहली घटना है और न ही धर्मपरिवर्तन से हिन्दू सिफ र् मुसलमान ही बनाये जाते रहे हैं।
निश्चयेन कभी दुनिया का एक ही धर्म था और वो था वैदिक धर्म । उसके बाद वैदिक धर्म से ही जैन धर्म व फि र बौद्ध धर्म की उत्पत्ति मानी जाती है। वैसे तो जैन व बौद्ध धर्म को ‘सम्प्रदायÓ कहना ही उचित होगा कारण कि ये व्यक्ति विशेष द्वारा प्रवर्तित रहे हैं। इनके इतर दुनिया का पहला सम्प्रदाय यहूदी माना जाता है। इससे दो अन्य सम्प्रदाय बने जिन्हे ईसाई व इस्लाम कहा गया।
हिन्दुओं यानी वैदिक धर्मावलम्बियों का शुरूआती धर्मान्तरण जैन व बाद में बौद्ध सम्प्रदाय में होने के प्रमाण मिलते है। जैन सम्प्रदाय भले ही सीमित होता चला गया पर मूल बौद्ध सम्प्रदाय का प्रभाव हिन्दुस्तान से बाहर एशिया के कई देशों मसलन चीन, जापान, थाईलैण्ड, श्री लंका आदि देशों में गहरे तक जड़े जमाने में सफ ल रहा।
देश की आजादी के बाद बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के नव बौद्ध सम्प्रदाय की स्थापना व विस्तार ने तेजी से हिन्दुओं को नव बौद्ध में शामिल होने का सशक्त मार्ग खोल दिया। बाबा साहेब ने डंके की चोट पर कहा था  कि उनके द्वारा स्थापित नव बौद्ध सम्प्रदाय हिन्दुस्तान में सवर्ण जातियों के अत्याचार का परिणाम हैं। और उन्होने स्वयं बौद्ध सम्प्रदाय मेें दीक्षित होने के बाद पूरी ताकत से हिन्दू समाज के कमजोर वर्गो खासकर दलितों को नव बौद्ध सम्प्रदाय में शामिल किया था।
मूल बौद्ध सम्प्रदाय के बाद और फि र भारत में इस्लामिक शासकों के आगमन के बाद लगातार हिन्दुओं को इस्लाम सम्प्रदाय ग्रहण करने के लिये मजबूर किया गया। धर्मान्तरण का यही खेल ईसाई शासकों के आने के बाद भी जारी रहा। फर्क इतना था कि मुस्लिम शासकों ने मुख्य रूप से तलवार का सहारा लिया वहीं ईसाई शासकों ने लालच का।
आज की तारीख में भारत में जितने मुसलमान व ईसाई र्है सभी के सभी मूलरूप से हिन्दू ही हैं। वे या तो तलवार के बल पर या लालच के बल पर मुसलमान/ईसाई बनाये गये। आज भारत में मुसलमानों की संख्या लगभग१४.२ फ ीसदी (२०११ की जनगणना) तो ईसाईयों की संख्या लगभग २.०३ फ ीसदी तक पहुंच चुकी है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर देश की आजादी के बाद भी धर्मपरिवर्तन की घटनायें क्यों कर जारी रहीं/जारी हैं। यह और भी आश्चर्यजनक है कि जैन, बौद्ध सिख, सम्प्रदाय में शामिल होने से कहीं अधिक संख्या इस्लाम व ईसाई बनने वालों की है।
इसका उत्तर बेहद आसान व स्पष्ट हैं। आजादी के बाद बनने वाली कांग्रेस सरकार ने देश के लिये जो संविधान बनाया व जिसे २६ जनवरी १९५० को लागू किया गया। उसमें हर व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता तो दी गई पर धर्मान्तरण पर कोई ऐसा कानून नहीं बनाया गया जिससे आज तक जारी धर्मान्तरण पर रोक लगती व धर्मान्तरण कराने वालों में भय पैदा होता।
हालांकि संविधान लागू होने के बाद वर्ष १९५४ में धर्मान्तरण पर रोक लगाने हेतु संसद में ‘भारतीय धर्मातंरण विनियमन एवं पंजीकरण विधेयकÓ लाया गया पर उस पर सहमति न बन सकी और विधेयक कानून नहीं बन सका था। उसके बाद वर्ष १९६० और १९७९ में भी इसके               असफल प्रयास हुये थे। वर्ष २०१४ में मोदी सरकार बनने के बाद उम्मीद थी कि जल्द ही धर्म परिवर्तन रोकने हेतु सख्त कानून बनेगा पर आज तक ऐसा न हो सका। ज्ञात रहे वर्ष २०१५ में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह राष्ट्रीय स्तर पर धर्म परिवर्तन निरोधक कानून बनाने पर जोर दे चुके हैं।
यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि जिस धर्मान्तरण कानून को केन्द्र सरकार आज तक न लागू कर सकी उसी कानून को देश के सात राज्य अपने अपने यहां लागू कर चुके हैं। इन राज्यों में अरूणाचल प्रदेश, ओडिसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तराखण्ड शामिल हैं।
वर्ष २००८ में राजस्थान में भी इस तरह का विधेयक पारित किया गया था लेकिन किन्ही कारणोंं से यह कानून नहीं बन सका। अब इस दिशा में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सख्त कानून लागू करने की घोषणा कर चुकी है क्योंकि उत्तर प्रदेश में धर्म परिवर्तन की घटनायें लगातार सामने आती रही हैं।

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