भारत को सीरिया न बनने दें …

धार्मिक आस्थाओं की रक्षार्थ प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी ने चेतावनी दी है कि अगर राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण अयोध्या में नही होता है तो भारत की स्थिति सीरिया जैसी हो सकती है। उनका यह कथन भविष्य में विभिन्न धार्मिक आस्थाओं में होने वाले टकराव की ओर संकेत दे रहा है। निसंदेह अफगानिस्तान,सीरिया व ईराक़ आदि मुस्लिम बहुल देश जिहादी जनून में जल रहें हैं। पिछले 4-5 वर्षों में वहां से हज़ारों निर्दोषों की हत्या व लाखों लोगों के पलायन के समाचार अब तक लिखें जा चुके हैं। अतः श्री श्री जी का इन मुस्लिम कट्टरपंथियों की मानसिकता के कारण चिंतित होना स्वाभाविक है। आखिर हमारी आस्थाओं से जुड़ा वर्षों पुराना राम जन्मभूमि मंदिर का विवाद जो अभी उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन है हमें कब तक बार बार धिक्कारता रहेगा ? इस कारण आज राष्ट्रवादी समाज का स्वाभिमान भी तार-तार हो रहा हैं । इसलिए विपरीत परिस्थितियों में सीरिया-इराक़-अफगानिस्तान के समान भारत की भूमि भी जिहादियों के विस्फोटक व विंध्वसकारी अमानवीय अत्याचारों द्वारा निर्दोषों और मासूमों के बहते रक्त से लाल न हो जाय तो कोई आश्चर्य नही होगा ?
ध्यान रहें…..हिन्दू समाज की दुर्दशा का मुख्य कारण यह है कि वे शतकों से शुद्ध राष्ट्र्वादी , दूरदर्शी , जुझारु व प्रभावशाली नेतृत्व के अभाव से जूझ रहें हैं। परिणामस्वरुप आज भी मुख्य धारा की राजनीति लोकतंन्त्रिक व्यवस्था व छदम धर्मनिरपेक्षता के बंधन में विवश होकर कुंठित हो रही हैं। हमारी ऐसी क्या विवशता हैं कि जो हम अपने से घृणा व शत्रु भाव रखने वाली मानसिकता का मानवता की रक्षार्थ आवश्यक विरोध करने में भी संकोच करते हैं ? क्या अपमानित होते रहने का हमारा स्वभाव बन चुका हैं ? जब हमको अपने शत्रुओं का ज्ञान नही होगा तो क्या ऐसे में हमारे सहिष्णु, उदार व अहिंसक आदि सदगुण हमकों आत्मघात की ओर नही ढकेलते रहेंगे ? महान आचार्य चाणक्य ने ठीक ही कहा था कि  “नीच व्यक्ति कभी अपनी प्रवृतियां नही त्यागता अतः सदा सतर्क रहो”।
यह उचित है कि राजनैतिक शिष्टाचार , शालीनता व वैचारिक आधार पर शत्रुओं को पराजित करके आगे बढ़ते रहना निरंतर चलने वाली एक अथक प्रक्रिया हैं । फिर भी अगर हमें आगे बढ़ना है तो अपनी ऐतिहासिक भूलों और त्रुटियों से तो सबक लेना ही चाहिये। हमें भारतीयता के उच्च आदर्शो को स्थापित करने व आत्मरक्षार्थ “जैसे को तैसा” के मूल मंत्र को अपनाना होगा। हम अपने पतन काल से पूर्व का गौरवान्वित करने वाले इतिहास से प्रेरणा क्यों नही लेना चाहते ? क्या भगवान श्री राम ने ऋषियों व मुनियों की दुष्ट राक्षसों से रक्षा करके अपने धर्म को नही निभाया ? महा ज्ञानी रावण का वध करके जो श्रीराम का संदेश हमें प्रेरणा देता है क्या उसे भी हम भुलादें और विरोधी पर कोई प्रहार न करें ? इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण के धर्म रक्षार्थ एक एक करके किये गए दुष्टों के सर्वनाश को समझने से हम कब तक बचते रहेंगे और अज्ञानता की स्थिति में शत्रुओं के षड्यंत्रों के शिकार बनते रहेंगे ? ऐसी आस्थाओं का क्या मूल्य रहेगा जिसको आचरण में ही न उतारा जा सका ?
आज  कुछ ऐतिहासिक पुरुषों की मूर्तियों को तोड़ने व उन्हें अपमानित करने पर राजनैतिक व सामाजिक विवाद भड़क रहा हैं। मुगल काल में तोड़ी गई  हज़ारो-लाखों मूर्तियां व मंदिर व लाखों-करोड़ों मासूम और निर्दोष हिंदुओं के भयानक नरसंहार व धर्मांतरण हमारी अकर्मण्यता व नपुंसकता का ही परिणाम था। काश मुगल काल में हिंदुओं के मान बिन्दुओं और उनके अस्तित्व की रक्षार्थ खड़े होने वाले राणा सांगा, महाराणा प्रताप, गुरु समर्थ रामदास, जीजाबाई , वीर शिवाजी, गुरु गोविंदसिंह, बंदा वैरागी व छत्रसाल आदि अपने अभियान में सफल हो जाते तो हमारा इतिहास इतना कष्टकारी न होता ? इसी कड़ी में भारत के महान सपूत स्वामी दयानंद सरस्वती, लाला लाजपत राय, लोकमान्य तिलक ,वीर सावरकर व डॉ हेडगेवार आदि की राष्ट्र्वादी नीतियों को समझ लिया जाता तो आज पाकिस्तान नही होता। आज भी हम देश के टुकड़े करके बर्बादी तक जंग लड़ने वालों को कारागारों में डालने के स्थान पर राजनैतिक मंचों पर सम्मानित होते देखते हैं। क्या राजनैतिक प्रतिद्वंदिता व्यक्तिगत स्वार्थो और सत्तालोलुपता के कारण राष्ट्रीयता का गला घोटती रहें ? यह ठीक है कि हम विध्वंसक व विस्फोटक अमानवीय संस्कृति के वाहक नही हैं बल्कि निर्माण, सृजन व रचनात्मक कार्यों की संस्कृति वाले समाज के अंग हैं । परंतु यह क्यों उचित माना जाना चाहिये कि हम अपने विरोधी व शत्रु से सहिष्णुता बनायें और उनसे कोई वैमनस्य न रखें ? हमारे अस्तित्व व आस्थाओं की रक्षार्थ होने वाले लाखों-करोड़ों बलिदानियों से प्रेरित होकर आतताइयों के विरुद्ध सतर्क व सजग होकर आक्रामक न होना क्या हमें कभी संतोष देगा ? राष्ट्र व धर्म पर न्यौछावर होनी वाली  हज़ारों-लाखों वीर हिन्दू  हुतात्मायें अभी भी हमको धिक्कार रही होगी।
हिन्दू अपने अहिंसक, सहिष्णु व उदार गुणों के लिए कट्टर हो सकता हैं परंतु उसे अपने अस्तित्व व आस्थाओं की रक्षार्थ संघर्षशील होने से कौन रोकता हैं ? क्या उसे धर्मांधों के षड़यंत्रों के प्रति मौन रहने का कोई अभिशाप मिला हुआ हैं जो वह नित्यप्रतिदिन अपने धर्म व देश में होने वाले अनेक अत्याचारों के प्रति आक्रोशित नहीं होता ? हम क्यों कश्मीर में मुस्लिम आतंकवादियों को व उनको बचाने वाले पत्थरबाजों एवं अन्य अलगाववादियों को निशाना बना कर राष्ट्र रक्षा का धर्म निभाने वाले समर्पित सैनिकों को पुरस्कृत करने के स्थान पर उल्टा उनको बार बार न्यायायिक जॉच के घेरे में फंसाये जाने के षड़यंत्रो पर मौन रहने को क्यों विवश हैं ? क्या कोई सभ्य देश यह स्वीकार करेगा कि देशद्रोही आतंकवादियों  को बचाने के लिए पत्थरबाज सैनिकों पर पत्थरबाज़ी करते रहें और हमारे वीर सैनिक राजनेताओं के चक्रव्यूह में फंस कर पिटते रहें और आतंकवादी बच कर भागते रहें ?  क्या इससे उनका मनोबल नही टूटेगा और ऐसे में अन्य सामान्य नागरिकों की मनोदशा कैसे स्वस्थ रह सकेगी ? क्या सत्ता के लालचियों की राष्ट्रीयता संदेहात्मक हो तो यह उचित होगा ? अगर भारत को सीरिया बनाने से रोकना है तो हमें हर ऐसे अपमान व अत्याचार का प्रभावशाली प्रतिकार करना ही होगा।
‎आज देश में राम मंदिर बने यह सभी राष्ट्रवादियों की आस्था का प्रश्न हैं परंतु वर्तमान परिस्थितियों में सर्वोच्च आवश्यकता यह है कि बिगड़ते हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या के अनुपात को संतुलित किया जाय , जिससे भविष्य में और पाकिस्तान बनाये जाने की देशद्रोही धारणा न पनपने पायें । इतिहास साक्षी है कि जहां जहां हिंदुओं की संख्या घटी वहां वहां घनी मुस्लिम बस्तियां विकसित होती गई और परिणाम स्वरुप देश का विभाजन हुआ और पाकिस्तान बना। यह भी समझों कि जिन स्थानों व क्षेत्रों में अगर हिन्दू नही होंगें तो वहां मंदिर भी कैसे सुरक्षित रह पायेंगे । पाकिस्तान , बांग्ला देश व कश्मीर आदि इसके प्रमाण हैं। इसलिए आज यह भी सोचना आवश्यक होगा कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुदृढ़ रखने व देश को सीरिया/ पाकिस्तान/ मुगलिस्तान आदि बनाने से बचाना है तो सबसे उत्तम समाधान सभी देशवासियों के लिए एक समान जनसंख्या नीति बनायी जांनी चाहिए। इसी संदर्भ में अनेक राष्ट्रवादियों के प्रयासों के अतिरिक्त  मुख्य रुप से सुदर्शन समाचार टी वी चैनल के स्वामी सुरेशके चौहान ने अपने साथियों सहित देशव्यापी “भारत बचाओं यात्रा” द्वारा नगर नगर जाकर विभिन्न लोगों को जागरुक करके सरकार द्वारा “जनसंख्या नियंत्रण कानून” बनाये जाने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक विराट अभियान चलाया हुआ हैं और यह शुभसंकेत है कि कुछ बाधाओं के उपरांत भी इस अभियान को करोड़ों भारतवासियों का सहयोग व समर्थन मिल रहा हैं। अतः इस प्रकार दृढ़ संकल्प के साथ सामूहिक चेतना जगाने के राष्ट्रव्यापी अभियान चला कर भारतवासियों को देशद्रोहियों व धर्मांधों के प्रति सतर्क करते रहने वाले राष्ट्रवादी सज्जन सक्रिय होते रहेंगे तो भारत को कभी भी सीरिया नही बनाया जा सकेगा ?
ऐसे में राष्ट्र कवि स्व.रामधारीसिंह दिनकर के शब्द भी स्मरण आ रहें है कि …
“छीनता हो स्वत्व तेरा और तू त्याग तप से काम लें यह पाप है,
पूण्य है विछिन्न कर देना उसे बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है “॥

विनोद कुमार सर्वोदय

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here