१० दिन और मुज़फ्फरनगर सहित पूरा उत्तर प्रदेश जल रहा है | यह अखिलेश सरकार की असफलता है ! वोट बैंक को बनाये रखने के कारण कोई कारवाई नहीं हो रही है अल्पसंख्यक गुटों पर ! इंटेलिजेन्स की रिपोर्ट के अनुसार यह बात 10 दिन पहले ही बताई गयी थी की तनाव बढ़ता जा रहा है !
दुर्गा शक्ति ने अच्छा काम किया तो दंगे होने के डर के नाम पर उन्हें सरकार ने सस्पेंड किया था, मगर मुजफ्फ़रपुर मे दंगा हुआ और 10 दिन से चल रहा है तो अफ़सरों के सिर्फ तबादले किये गए हैं ! इसका मतलब क्या है ? जहां पे कुछ नहीं हुआ था वहां पर सस्पेंड किया जाता है और जहां दंगा हुआ है, वहां पर सिर्फ तबादला किया जाता है ! तो भाई सरकार की दाढ़ी में तिनका है, उत्तर प्रदेश में सरकार सेक्युलर समाजवादी कहलाने वालों की है लेकिन वो जो दिखते है वैसे वो नही है हाथी के दिखाने के दांत अलग है और खाने के अलग इसका मतलब इनका सेक्युलर समाजवाद भी नकली है ! उत्तर प्रदेश में जब भी समाजवादी पार्टी की सरकार आती है, या तो गुंडा राज होता है या फिर दंगा राज. लेकिन इस बार तो समाजवादी पार्टी ने हद ही पार कर दी पूरे प्रांत मे 112 बार जातिगत हिंसा हुई और हर बार ये सरकार उसे रोकने मे नाकाम रही ! जो सरकार रेत माफिया को रोकने पर दुर्गा नागपाल को निलंबित कर सकती है, वो सरकार दंगा कैसे नहीं रोक पा रही है ? क्या ये दंगा राजनीति से प्रेरित है ?
आज जब विश्व विकास की ओर अग्रसर है मुज़फ़्फरनगर की घटना से दिल भर जाता है | 28 घरों के मातम के लिये सीधे-सीधे राज्य सरकार ज़िम्मेदार है | सार्वजनिक रूप दिखावे के लिये मुलायम जी अखिलेश को डांट कर अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं क्या ! महज़ सत्ता के लिए वोटों की खातिर इतनी वीभत्स राजनीति ! सरकार नैतिक रूप से रहने का अधिकार खो चुकी है |
समाचार सुनकर , जानकर बड़ा दुख हुआ | दिमाग में यह प्रश्न आया ऐसा क्यूं ? उत्तर मिला, अशिक्षा एवं आपसी सामंजस्य की कमी | यह पाषाण युग की याद दिलाता है, जननेता जान बूझकर सामाजिक प्रतिभा को आगे आने नहीं देते हैं, उन्हें कुंचित कर के बर्बाद कर देते हैं ! कारण एक है वोट, शिक्षा के बाद अपने अधिकार के बारे में सोचने का अवसर मिलता है जिसे यह जननेता दबा देना चाहते हैं, अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव के सपने के महान राजा हैं जिन्हें अपने जीवन काल में बिना सत्ता की लड़ाई के सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा कर जनता से हिंसा रूपी कर बसूल कर स्थापित करने के कोशिश की है | क्या इतने बड़े लोकतांत्रिक प्रदेश में कोई भी योग्य नहीं है की सत्ता की चाभी लेकर प्रदेश को सुख ओर समृधि की ओर ले जाये ? ऐसा देखने को मिलता है की दूसरे कुछ लोकतांत्रिक देशों में जहां पर मूलभूत सुविधाएं जनता को दी जाती है, जनप्रतिनिधि भी उसी सुविधाओं का भागी होता है, भारत ही एक सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां मुख्य सुविधाएं जनप्रतिनिधि को दी जाती है ओर जनता को नहीं |
अपना देश धार्मिक कहलाया जाता फिर भी बेकसूर मनुष्यों की हत्या करने मे कोई संकोच नही होता है! क्यों क़ानून को हाथ में लिया जाता है ? क्या 28 व्यक्तियों की मौत से कई सौ बच्चे व महिलाये बर्बाद नहीं हो गए ? ऐसा क्यों हुआ ? आज संसार नकली धर्म को मानने लगा है, अपने गुणो का विकास नही करता, “दूसरे के साथ वही व्यवहार करो जो अपने लिये भी पसंद आये” ! यही एक सूत्र है मानवता का, लेकिन आज इसी सूत्र को भुला दिया गया है | चाहे कितनी भी बार नमाज़ पढ़ लो, चाहे कितनी बार भी पूजा आराधना कर लो, यह सब बेकार है अगर मानवता नहीं है | क्यों किसी ने किसी नारी को छेड़ने का साहस किया ? कहा-सुनी होने पर क्यों उसके भाइयों की हत्या हुई ? फिर उसका बदला लेने की भावना क्यो आई ? पुलिस में रिपोर्ट क्यो नही की गयी ? पुलिस ने अपराधियो को गिरफ्तार क्यों नहीं किया ? पुलिस व्यवस्था मे राजनीति क्यों खेली गयी ? क्या मासूमों की जान लेने को पशुता नहीं कहा जायेगा ?
जब सिर्फ तीन आदमी मारे थे तब दोषियों पर कार्यवाही क्यों नहीं की अब विधायक का तो काम ही है, दुख सुख में जनता के साथ रहना बीजेपी विधायकों पर केस कर के सपा मामले की ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है, जहां एक तरफ सपा विधायकों को जनता के बीच जाने के लिये कह रही है, वहीं बीजेपी विधायकों को घर में रहने को कह रही है, यह दोहरी नीति कैसे चल सकती है |
दंगो का कारण: 1) वोट बैंक की राजनीति, 2) नेताओं का विशेष समुदाय का हौसला बढ़ाना, 3) नेताओं द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों को कमजोर करना, उनकी निर्णय-क्षमता प्रभावित करना, 4) अधिकारी केवल नौकरी कर रहें, फर्ज़ नहीं निभा रहे !, नेताओं से पंगा लेकर कोई भी “दुर्गा” नहीं बनना चाहता, 5) दंगाइयों की गिरफ्तारी में पक्षपात, 6) पिछले दंगों के दंगाइयों के केस वापस लेना, इत्यादि |… बाक़ी सरकार के लिये लिखने से क्या होगा |
क़ानून सबके लिये एक है ओर एक होना चाहिये …? आजकल यह बात हर चैनल पर हर पत्रकार के मुंह से सुनाई देता है कि क्या कभी इस कानून की दुहाई देते हुये पत्रकार मीडिया गण रोवर्ट वाड्रा के मामले में सुनाई दिये ? इससे भी गंभीर मामला है जहां सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना चुका है ओर देश की केंद्र सरकार को आदेश दे चुका है की एसआईटी बनकर कालाधन भारत लाने के लिये क़दम उठाया जाय और काला धन रखने वालों के नाम सार्वजनिक किये जाय, जिस पर केंद्र सरकार ने आज तक एक भी कदम नही उठाया क्या यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं हो रही है ?
हमें इस दोहरे मापदंड से बाहर निकलना होगा, वस्तुस्थिति पर राजनीतिक रोटियां सेंकने से और जाने ही जाएंगी, किसी का भला नहीं होगा! आज जब ज़रूरत देश को मज़बूत करने की है, तब हमारे अपने राजनेता ही असहाय नज़र आ रहे हैं !