डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
रखता हूँ हर कदम ख़ुशी का ख़याल अपनी
डरता हूँ फिर ग़म लौट के न आ जाए
अब भुला दी हैं रंज से वाबस्ता यादें
यूँ आके ज़िंदगी में ज़हर न घोल जाएँ
इक बार जो गयी तो फिर न आएगी
यहाँ शौक महँगा है लबों पे हँसी रखने का
अपनी आबरू का ख़याल जो न रख सके तो
मरना भी है बेकार किसी को जिंदगी देकर
तूफ़ान में पहुंची है कश्ती साहिल तक मेरी
‘राहत’ बुज़ुर्गों की दुआ-ए-सलामती का असर है
You could say same in Hindi, why Urdu? We are supposed to promote use of Hindi, not Urdu.
किसको सराहूं, डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ की प्रस्तुति “दुआ-ए-सलामती” अथवा उस पर की गई श्री हरी बिंदल जी की प्रतिक्रिया? यह बुजुर्गों की दुआ-ए-सलामती ही थी जो सदियों से अतिक्रमियों, आक्रमणकारियों, फिरंगियों तथा विशेषकर तथाकथित स्वतंत्रता के पश्चात से ही दशकों कांग्रेस-राज स्वरूप तूफानों में से हो कर आज हिन्दू बहुसंख्यक भारत में युगपुरुष नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व के अंतर्गत राष्ट्रीय शासन स्थापित हुआ पड़ा है|
बहादुर शाह ज़फर के शब्द “दो गज जमीन भी न मिली कूए यार में” वतन की याद दिलाते दिल को दहला देते हैं| उर्दू को और अच्छी उर्दू और हिंदी को और अच्छी हिंदी और इस तरह किसी अन्य भारतीय मूल की भाषा को और अच्छी भाषा बनाने में ही हिंदुत्व झलकता है| बिंदल जी से मेरा निवेदन है कि भाषा में व्यक्त किये विचारों में परिपक्वता और भाषा की गुणवत्ता को देखें जो हमारे जीवन का आधार बन हमें सभ्य सुशील सशक्त व समृद्ध नागरिक बनाती है| विडंबना तो यह है कि कांग्रेस राज में एक बहुत घिनौने व भयंकर षड्यंत्र के अंतर्गत समस्त भारतीय जनसमूह को एक डोर से बांधने में समर्थ हिंदी भाषा को रुचिकर बनने ही नहीं दिया गया| मीडिया द्वारा रोमन लिपि में लिप्यंतरण हिंदी भाषा की आत्मा, देवनागरी, को ही नष्ट किये हुए है| यहीं प्रवक्ता.कॉम पर बहुत से लेखकों द्वारा शुद्ध साहित्यिक हिंदी का प्रयोग मुझ बूढ़े पंजाबी को विश्वास दिलाता रहेगा कि हिंदी भाषा को कभी आंच न आने पाएगी|
चिंता है, लिखने वाले लिखनेमें और प्रवक्ता उर्दु की शायरी छापने को इतना बढावा दे रही है। क्यों ? पहले ही हिंदी का इतना ह्रास हो रहा है,यदि ह्रास बचा नही सकते तो कम से कम उर्दू को इतना बढावा न दें ।देश स्वतंत्र होने तक इक्का दुक्का उर्दू के शव्द सुनने को मिलते थे,अब सारी हिंदी उर्दू शब्दो से भरी पडी है । क्रिपया ध्यानदें।