मौत का वे-ंउचययमुना एक्सपे्रस-ंउचयवे रोडवेज के लापरवाह अधिकारियों को 29 ‘हत्याओं’ के जुर्म में गिरफ्तार करना चाहिए

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संजय सक्सेना,लखनऊ


उत्तर प्रदेश का यमुना एक्सपे्रस-ंउचयवे फिर कलंकित हो गया। एक
बार फिर यह 29 लोगों के लिए मौत का एक्सप्रेस-ंउचयवे बन गया।
मौत का एक यह सिलसिला वर्ष 2012 में 33 मौंतों के साथ
शुरू हुआ था जो साल दर साल ब-सजय़ता ही जा रहा है। अभी
जुलाई का महीना चल रहा है,लेकिन इन सा-सजय़े छह-ंउचयसात महीने
में 140 लोग यमुना एक्सपे्रस-ंउचयवे पर हादसे का शिकार होकर
अपनी जान गंवा चुके है। 08 जुलाई की सुबह उत्तर प्रदेश
रोडवेज की जनरथ बस सेवा यमुना एक्सपे्रस-ंउचयवे पर हादसे का शिकार
हुई तो एक बार फिर कोहराम मच गया,लेकिन यह हमेशा की तरह
जल्दी थम जायेगा। यह भी तय है।हादसा जितना दुखद था
उतना ही निंदनीय यह है कि हादसे के लिए जिम्मेदार अधिकारी इस
दर्दनाक हादसे की जिम्मेदारी लेने या तय करने की बजाए इस पर
लीपापोती करने में लगे है।हालांकि सीएम योगी ने जांच के
आदेश दे दिए हैं,लेकिन हादसे को लेकर जिस तरह से बयानबाजी
हो रही है। उससे तो यही लगता है कि जांच को प्रभावित
किया जा सकता है। इतने दर्दनाक हादसे को ‘ड्राइवर को -हजयपकी
आ गई’ यह कहकर अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इस हादसे के
लिए जिम्मेदार अधिकारी अपना दामन बचाने की कोशिश में
अभी से जुट गए हैं। अब देखना यह है कि योगी जी ‘दूध का
दूध और पानी का पानी’ कर पाते हैं या नहीं।

यूपी रोडवेज की जनरथ बस लखनऊ से दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे
जा रही थी, ड्राइवर को -हजयपकी आने की वजह से बस बेकाबू हुई और
यमुना एक्सप्रेस वे पर रेलिंग तोड़ते हुए नाले में जा गिरी। बस में कुल
52 यात्री थे। 29 ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। कई की हालात
अभी भी गंभीर है।
-रु39याुरुआती जांच में सामने आया है कि बस में स्पीड गवर्नर (गति की
निगरानी करने वाली डिवाइस) नहीं लगा हुआ था. जब जनरथ बस सेवा
-रु39याुरु की गई थी तो सभी जनरथ बसों में स्पीड गवर्नर लगाए गए
थे, लेकिन जनरथ सेवा की जो बस हादसे का -िरु39याकार हुई है, उसमें
स्पीड गर्वनर नहीं लगा हुआ था। बस में ड्राइवर भी एक ही
था,जबकि नियमानुसार 250 किलोमीटर से अधिक दूरी वाली बसों में
दो ड्राइवर होना जरूरी हैं।
जनरथ बसें सबसे ज्यादा दुर्घटनाग्रस्त हो रही हैं। इनकी हालात
जर्जर है। मंत्री से लेकर अधिकारी तक खामियों पर ध्यान नहीं देते
हैं। अधिकारियों के कामकाम की कमी समीक्षा ही नहीं होती है।
जब कोई हादसा होता है तब यह लोग लीपापोती करने लगते हैं।
दे-रु39या का पहला यमुना एक्सप्रेस वे हादसे दर हादसे के कारण मौत का
एक्सप्रेस वे बन गया है। इस पर आठ साल में नौ सौ लोगों की जान जा
चुकी है, जबकि छह हजार से ज्यादा घायल हुए हैं। साल दर साल हादसों
की संख्या कम होने के बजाय ब-सजय़ रही है।
इस साल अब तक 140 से ज्यादा की जान एक्सप्रेसवे पर जा चुकी है। औसत
देखें तो 72 घंटे भी ऐसे नहीं गुजर रहे जब कोई हादसा न हो
रहा है। रात में स्थिति और खराब है। सूरज निकलने से ठीक पहले जब
नींद का जोर सबसे ज्यादा होता है, उसी समय हादसे भी ज्यादा हो
रहे हैं।
आगरा डेवलपमेंट फाउंडे-रु39यान के अध्यक्ष केसी जैन ने 2015 में
हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर हादसों को रोकने के लिए
उपाय करने के लिए कहा था। तब हाईकोर्ट के आदे-रु39या पर उच्च स्तरीय
समिति गठित की गई। डेथ ऑडिट कराया गया। इसमें हादसों के कारण
सामने आए। लेकिन हादसों की संख्या कम नहीं हुई।

पिछले दो साल में यह बात भी सामने आई है कि सबसे ज्यादा हादसे
तड़के तीन से पांच बजे के बीच हो रहे हैं। इस समय नींद का जोर
सबसे ज्यादा होता है।
आगरा क्षेत्र में -हजयरना नाला, खंदौली टोल प्लाजा से पहले ज्यादा
हादसे हो रहे हैं। मथुरा क्षेत्र में बलदेव, मांट, नौह-हजयील और
सुरीर में हादसों की संख्या ज्यादा है। नोएडा की तरफ आने पर जेवर
में हादसे ज्यादा हो रहे हैं।
165 किमी. लंबा यह एक्सप्रेसवे अगस्त, 2012 में चालू किया गया था।
इसका फायदा यह हुआ कि आगरा और दिल्ली के बीच की दूरी कम हो
गई। समय कम लगने लगा है लेकिन हादसे भी उतने ही अधिक हो रहे
हैं।
यमुना एक्सप्रेस-ंउचयवे पर रफ्तार की सीमा तय है। छोटे-ंउचयबड़े वाहनों
के लिए अलग-ंउचयअलग सीमा है लेकिन लोग रफ्तार की सुई पर ध्यान नहीं
देते। रात के समय तो रफ्तार और ज्यादा रहती है। अभी कहा गया था
कि तीन घंटे से कम में कोई यमुना एक्सपे्रस वे क्रास करेगा तो उस पर
जुर्माना लगेगा,लेकिन यह काम भी अभी शुरू नहीं हो पाया है।
यमुना एक्सप्रेस-ंउचयवे पर 08 जुलाई की भोर में हुए भी-ुनवजयाण
बस हादसे में 29 लोगों की मौत अत्यंत दुखदायी है। हर
दुर्घटना को राज्य सरकार दुर्भाग्यपूर्ण बताती है, उस पर
दुख व्यक्त करती है, मुआवजे का ऐलान भी करती है लेकिन
एक्सीडेंट रोकने के गंभीर उपाय अब तक नहीं किए जा सके
हैं। इस हादसे पर केंद्र सरकार ने साफ किया है कि इसके लिए वह
जिम्मेवार नहीं है। केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन
गडकरी का कहना है कि इस हाईवे का निर्माण यूपी सरकार ने
करवाया है और इसका नियंत्रण नोएडा प्राधिकरण के पास है।
जो भी हो, सवाल यह है कि इस तेज रफ्तार सड़क पर लोगों की
जिंदगी कब तक इतनी सस्ती बनी रहेगी।
सचाई यह है कि उत्तर प्रदे-रु39या में ही नहीं, पूरे दे-रु39या में
सड़क परिवहन भारी अराजकता का -िरु39याकार है। कुछ राज्यों में

तो स्थिति बेहद खराब है। वहां नियम-ंउचयकानूनों की
खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यमुना एक्सप्रेस-ंउचयवे
पर हादसा इसलिए हुआ क्योंकि बस को रवाना करते समय जरूरी कदम
नहीं उठाए गए थे।नियम है कि दिन हो या रात, एक ड्राइवर
400 किमी ही बस चलाएगा। इतनी दूरी पूरी होते ही बस दूसरे
ड्राइवर को सौंप दी जाएगी। लेकिन लखनऊ से आनंद विहार
(दिल्ली) की दूरी 500 किमी से ज्यादा है, फिर भी
दुर्घटनाग्रस्त बस में एक ही ड्राइवर बताया जा रहा है।
दरअसल, रोडवेज के पास ड्राइवरों की कमी है। मांग के
अनुपात में बसें भी कम हैं। इसलिए अनुबंधित बसें चलाई
गई हैं। इनके ड्राइवर खराब -रु39यार्तों पर काम करने को तैयार
रहते हैं। असली समस्या राज्य सड़क परिवहन निगम के दायरे से बाहर
चलने वाली बसों की है, जिनमें तय संख्या से ज्यादा सवारियां
बिठाई जाती हैं और इनके ड्राइवर भी प्र-िरु39याक्षित नहीं
होते। इन्हें रोडवेज की बसों के रंग में रंगवा दिया जाता
है लेकिन न तो इनके रूट का कोई ठिकाना है, न ही ये
कोई नियम-ंउचयकायदा मानती हैं। दे-रु39या में 30 प्रति-रु39यात
ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी हैं। परिवहन क्षेत्र में भारी
भ्र-ुनवजयटाचार है लिहाजा बसों का -सजयंग से मेनटेनेंस भी
नहीं होता। इनमें बैठने वालों की जिंदगी दांव पर लगी
होती है। दे-रु39या भर में बसों के रख-ंउचयरखाव, उनके परिचालन,
ड्राइवरों की योग्यता और अन्य मामलों में एक-ंउचयसमान
मानक लागू करने की जरूरत है, तभी दे-रु39या के नागरिक एक राज्य से
दूसरे राज्य में नि-िरु39यचंत होकर यात्रा कर सकेंगे। जरूरी है कि
केन्द्र सरकार पूरे देश के लिए सड़क सुरक्षा के मानक न केवल तय
करें बल्कि इसका पालन भी सुनिश्चित करें। रोडवेज के
अधिकारियों की लापरवाही से रोडवेज की बस दुर्घटनाग्रस्त
हो तो इसके लिए जिम्मेदार और लापरवाह अधिकारियों पर हत्या
का मुकदमा दर्ज करके उन्हें जेल भेज देना चाहिए। क्योंकि यह अधिकारी जितनी मोटी तनख्वाह लेते हैं,उतनी ही बड़ी
इनकी जिम्मेदारी भी बनती है।
यमुना एक्सपे्रस वे पर हादसे
व-ुनवजर्या दुर्घटनाएं मृतक
2012 294 33
2013 898 118
2014 772 124
2015 919 143
2016 1193 128
2017 763 111
2018 800 110
2019 (8 जुलाई तक) 347 140

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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