दुश्मनों के छक्के छुड़ाएगी खंडेरी

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साइलेंट किलर आईएनएस खंडेरी बनेगी नौसेना की ताकत

योगेश कुमार गोयल

            पिछले दिनों गश्ती पोत ‘वराह’ के तटरक्षक बल में शामिल होने और गत 28 सितम्बर को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा नौसेना को अत्याधुनिक पनडुब्बी ‘आईएनएस खंडेरी’ सौंपे जाने के बाद भारत की समुद्री ताकत और बढ़ गई है। मुम्बई के समुद्र तटों की रक्षा के लिए नौसेना में शामिल हुई पनडुब्बी आईएनएस खंडेरी नौसेना की दूसरी सबसे अत्याधुनिक पनडुब्बी है। प्रोजेक्ट-75 के तहत देश के भीतर बनी स्कॉर्पियन श्रेणी की पहली पनडुब्बी आईएनएस कलवरी थी और आईएनएस खंडेरी इसी श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी है। पिछले दो वर्षों से नौसेना आईएनएस कलवरी का इस्तेमाल कर रही है और उससे मिले अनुभवों के आधार पर खंडेरी को उससे भी बेहतर और अत्याधुनिक बनाया गया है। मुम्बई के मझगांव डॉक में बनी खंडेरी का वर्ष 2017 में जलावतरण हुआ था, जिसे सागर की गहराईयों में दो साल तक परीक्षण करने के बाद देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है। खंडेरी पनडुब्बी का निर्माण मझगांव डॉक शिप बिल्डर्स लिमिटेड द्वारा 7 अप्रैल 2009 को शुरू किया गया था, जिसे 12 जनवरी 2017 को लॉन्च करते हुए इसका नामकरण किया गया था। एक जून 2017 से इसका समुद्री परीक्षण शुरू हुआ और तब से लेकर दो वर्ष से भी अधिक समय तक के कड़े समुद्री परीक्षण तथा सभी प्रकार के हथियारों के परीक्षणों के बाद इसे 28 सितम्बर 2019 को विधिवत नौसेना में शामिल किया गया।

            यह पानी से पानी में और पानी से किसी भी युद्धपोत को ध्वस्त करने की अद्भुत क्षमता रखती हैं। अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित स्वदेशी पनडुब्बी खंडेरी को भारतीय समुद्री सीमा की सुरक्षा करने में पूरी तरह से सक्षम इसीलिए माना जा रहा है क्योंकि यह मुम्बई के तट पर रहकर ही तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित दुश्मन के जहाज को नष्ट करने की क्षमता रखती है और इसीलिए इस पनडुब्बी के नौसेना के शामिल होने से समुद्र में नौसेना की ताकत पहले के मुकाबले काफी बढ़ गई है। जंग के दौरान पानी में दुश्मन पर सबसे पहले प्रहार करने वाली कलवरी श्रेणी की यह दूसरी डीजल-विद्युतीय पनडुब्बी है। बैटरी पर चलने वाली इस पनडुब्बी में 360 बैटरी सेल्स लगाए गए हैं, जिनमें प्रत्येक सेल का वजन करीब 750 किलोग्राम है। इन बैटरियों को चार्ज करने के लिए इसमें 1250 वॉट के दो डीजल जनरेटर लगाए गए हैं। इन्हीं भारी-भरकम बैटरियों के दम पर यह 45 दिनों तक 12 हजार किलोमीटर का लंबा रास्ता तय कर सकती है। 67 मीटर लंबी, 6.2 मीटर चौड़ी, 12.3 मीटर ऊंची और करीब 1550 टन वजनी खंडेरी 35 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से एक बार में 12 हजार किलोमीटर का सफर तय करने और समुद्र में करीब 350 मीटर की गहराई में जाकर गोता लगाने में सक्षम है। यह समुद्र के अंदर पानी में करीब 20 समुद्री मील और पानी के ऊपर 11 समुद्री मील की रफ्तार से चलने में सक्षम है। विशेष प्रकार के स्टील से बनी इस पनडुब्बी में उच्च तन्यता शक्ति है, जो अधिक गहराई में जाकर काम करने की क्षमता रखती है। इसमें करीब 11 किलोमीटर लंबी पाइप फिटिंग और 60 किलोमीटर की केबल फिटिंग की गई है। खंडेरी का आदर्श वाक्य है ‘अखंड, अभेद्य और अदृश्य’, जिस पर यह पूरी तरह खरी भी उतरती है।

            इसके पीछे के हिस्से में लगे स्थायी चुम्बकीय प्रणोदन मोटर इसकी कई विशेषेताओं में से एक हैं, जिसकी तकनीक फ्रांस से ली गई थी और इसी विशेषता के कारण इसके अंदर से आने वाली आवाज बाहर नहीं आती, जिस कारण यह पनडुब्बी समुद्र में एकदम शांत रहती है और दुश्मन देश को पता ही नहीं चलता कि उसके समुद्री क्षेत्र में कोई पनडुब्बी है। यही कारण है कि खंडेरी को ‘साइलंट किलर’ कहा जाता है क्योंकि यह विश्व की सबसे शांत पनडुब्बी है। इसमें रडार, सोनार, इंजन सहित छोटे-बड़े एक हजार से भी अधिक उपकरण लगे हैं लेकिन फिर भी यह इतनी शांत है कि बिना आवाज किए यह पानी में चलने वाली दुनिया की सबसे शांत पनडुब्बियों में से एक है और इसी कारण रडार आसानी से इसका पता नहीं लगा सकते। स्टील्थ तकनीक के कारण यह रडार की पकड़ में नहीं आती और हर प्रकार के मौसम और युद्धक्षेत्र में कार्य करने में सक्षम है। रडार से बच निकलने की यह विशेष क्षमता इसे अन्य कई पनडुब्बियों की तुलना में अभेद्य बनाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह टारपीडो अथवा ट्यूब-लॉन्च पोत विरोधी मिसाइलों से बेहद सधा हुआ वार कर दुश्मन पर जोरदार हमला करने की योग्यता रखती है और विभिन्न प्रकार के अभियानों जैसे सतह-रोधी युद्धक क्षमता, पनडुब्बी-रोधी युद्धक क्षमता, खुफिया जानकारी जुटाना, क्षेत्र की निगरानी करना इत्यादि में पूरी तरह सक्षम है।

            खंडेरी के अंदर इतने अत्याधुनिक हथियार लगे हैं, जो युद्ध जैसे समय में बड़ी आसानी से दुश्मनों के छक्के छुड़ा सकते हैं। इसमें 6 टॉरपीडो ट्यूब लगे हैं, जिनमें से दो ट्यूब से मिसाइलें भी दागी जा सकती हैं। इस पनडुब्बी के भीतर कुल 12 टॉरपीडो रखने की व्यवस्था है। पनडुब्बी में लगे हथियार, एंटी शिप मिसाइलें और सेंसर उच्च तकनीक वाली कॉम्बैट मैनेजमेंट प्रणाली से जुड़े हैं और इसमें अन्य नौसेना के युद्धपोत से संचार करने की सभी सुविधाएं भी मौजूद हैं। यह हर प्रकार के वॉरफेयर, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर तथा इंटेलीजेंस को एकत्रित करने जैसे कार्यों को बखूबी अंजाम देने में भी सक्षम है। दो पेरिस्कोप से लैस खंडेरी जरूरत पड़ने पर समुद्र में माइंस भी बिछा सकती है। इस पनडुब्बी में प्रत्येक कार्य के अलग-अलग विभाग बनाए गए हैं और हर विभाग की जिम्मेदारी कुछ खास व्यक्तियों पर होती है। मसलन, यदि टारपीडो को फायर करना है तो उसके लिए खासतौर पर एक व्यक्ति तैनात होता है। इसी प्रकार टारपीडो को फायर करने से पहले उसके लिए कम्युनिकेशन हेतु एक अन्य व्यक्ति जिम्मेदार होता है। कॉम्बैट के लिए एक अलग टीम होती है और मोटर तथा अन्य तकनीकी चीजों के लिए भी अलग-अलग व्यक्ति जिम्मेदार होते हैं। पनडुब्बी के भीतर 8-9 नौसेना अधिकारियों सहित लगभग चालीस लोगों का क्रू एक साथ काम कर सकता है।

            महान् मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के दुर्ग का नाम था ‘खंडेरी’, जिसकी विशेषता यह थी कि वह एक जल दुर्ग था अर्थात् चारों ओर पानी से घिरा हुआ था, जिस कारण वह दुश्मनों के लिए अभेद्य माना जाता था। कहा जाता है कि ऐसी ही विशेषताओं से लैस होने के कारण इस पनडुब्बी को ‘खंडेरी’ नाम दिया गया। इसका नाम इसकी पूर्ववर्ती आईएनएस खंडेरी (एस-22) के नाम पर ही रखा गया है। दरअसल आईएनएस खंडेरी इससे पहले भी देश को अपनी सेवाएं दे चुकी है। इसे सबसे पहले वर्ष 1968 में कमीशंड कराया गया था, जिसे वर्ष 1971 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में देश के पूर्वी सी-बोर्ड पर तैनात किया गया था और अक्तूबर 1989 में खंडेरी को डी-कमीशंड कर दिया गया था। भारतीय नौसेना की परम्परा रही है कि जिन युद्धपोतों और पनडुब्बियों को सेवानिवृत्त कर दिया जाता है, उनके नाम नौसेना के नए युद्धपोतों और पनडुब्बियों को दे दिए जाते हैं। इसी वजह से कलवरी श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी को यही नाम दे दिया गया। अरब सागर में पाई जाने वाली मछली की एक खतरनाक प्रजाति है ‘सॉ टूथफिश’, जिसे ‘कन्नेरी’ नाम से भी जाना जाता है। यह मछली समुद्र की तलहटी में रहते हुए काफी दूरी के शिकार को तलाश कर उसे मारने के लिए जानी जाती है। रक्षामंत्री का कहना है कि इस पनडुब्बी की प्रेरणा गहरे समुद्र में तैरकर शिकार करने वाली खतरनाक मछली की इसी प्रजाति से ली गई है। दरअसल पनडुब्बी खंडेरी की ऐसी ही विशेषताओं के चलते इसे ‘कन्नेरी’ मछली के नाम पर ‘खंडेरी’ नाम दिया गया।

            खंडेरी के बाद जल्द ही आईएनएस करंज भी नौसेना के बेड़े में शामिल हो जाएगी। इसके अलावा तीन और पनडुब्बियां बन रही हैं, जो नौसेना को 2022-23 तक मिलने की संभावना है। नौसेना में इस प्रकार के अत्याधुनिक पोत और पनडुब्बियां शामिल होने से नौसेना की परिचालन क्षमता में जो वृद्धि हो रही है, उससे विविध समुद्री कार्यों का निर्वहन सुगमता से किया जा सकेगा और हमारी विशाल तटरेखा के समुद्री संरक्षण में भी मदद मिलेगी।

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