वंशवाद की विष-बेल

जयपुर में हाल ही में संपन्न कांग्रेस के चिन्तन शिविर में राष्ट्र की समस्याओं पर क्या चिन्तन हुआ, यह तो समझ के परे रहा; हां, एक चीज समझ में अवश्य आई कि प्रचार माध्यमों द्वारा प्रचारित इस चिन्तन शिविर में बस एक ही चिन्तन हुआ – राहुल गांधी की ताजपोशी कैसे हो। उन्हें कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाकर कंग्रेसियों ने अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली। समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी जब कांग्रेस के महासचिव थे, तब भी अध्यक्ष से कम थे क्या? अगर उन्हें बनाना ही था तो अध्यक्ष बनाया जाता, लेकिन वहां तो उनकी मां बैठी थीं जिन्हें अपने पुत्र पर भी विश्वास नहीं है। कांग्रेसियों ने जिस ताम-झाम और भावुकता से युवराज की ताजपोशी की, उससे यह तो साबित हो ही गया कि कांग्रेस में एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसके अंदर स्वाभिमान और राष्ट्र के प्रति प्रेम हो। आखिर राहुल गांधी के पास राजीव-सोनिया का पुत्र होने के अतिरिक्त कौन सा गुण है, जिससे प्रभावित होकर कांग्रेसियों ने उन्हें युवराज के पद पर अभिषिक्त किया? चाटुकारिता और वंशवाद की बढ़ती हुई यह विष-बेल कही हमारे लोकतंत्र को ही न चाट जाए।

जिस दिन कांग्रेस ने राहुल गांधी को अधिकृत रूप से अपना युवराज घोषित किया उसके दूसरे ही दिन शिवसेना ने उद्धव ठाकरे को अपना अध्यक्ष बनाया, तीसरे दिन इंडियन लोक दल के अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटला जी अपने पुत्र अजय चौटाला जी के साथ तिहाड़ जेल की शोभा बढ़ाने पहुंच गए। वंशवाद के पोषक चौटाला जी भारत के (अ)भूतपूर्व उप प्रधान मंत्री देवी लाल के (कु)पुत्र हैं। उधर पटना में भी राजद के अध्यक्ष पद पर आठवीं बार लालू यादव की ताजपोशी हुई। अभी उनका पुत्र युवराज के पद के लिये अनुभवहीन है। अतः उसे राबड़ी देवी के साथ अनुभव बटोरने के लिए छोड़ा गया है। जिन लोगों ने अपना राजनैतिक जीवन ही वंशवाद के विरुद्ध घोषित संघर्ष के माध्यम से शुरु किया था, वे ही कालान्तर में वंशवाद के पोषक बन गए। कोई भी राजनेता अपने पुत्र या पुत्री के अतिरिक्त किसी योग्य नेता के लिए अपनी कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं। चाहे वह मुलायम सिंह हों या प्रकाश सिंह बादल, नवीन पटनायक हों या अजीत सिंह, फ़ारुख अब्दुल्ला हों या करुणानिधि – वंशवाद के इन पुरोधाओं को दूसरा कोई उत्तराधिकारी मिलता ही नहीं। भारतीय जनमानस के मानस से अभी भी राजशाही मिटी नहीं है। कही न कही गुलामी की मानसिकता से हम सभी ग्रस्त हैं । यह लोकतंत्र के लिए कही से भी शुभ संकेत नहीं है।

राहुल गांधी को भारत के अगले प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जा रहा है। बहुत ढूंढ़ने पर भी उनमें किसी प्रतिभा के दर्शन नहीं होते। अपनी दादी, पिता और माता की परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्होंने भी कभी किसी विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त नहीं की। अपनी प्रतिभा के बल पर वे एक क्लर्क की भी नौकरी नहीं पा सकते, लेकिन कांग्रेस के अध्यक्ष और देश के प्रधान मंत्री अवश्य बन सकते हैं। देश की विदेश नीति, अर्थनीति, गृह नीति-जैसे आतंकवाद और नक्सलवाद पर उनके स्पष्ट विचारों के लिए नौ साल से लोकसभा तरस रही है। भ्रष्टाचार और कुशासन पर उनके द्वारा सार्थक प्रयास के लिए भारत की जनता टकटकी लगाए हुए है। दिल्ली में गैंग रेप हुआ, युवराज खामोश रहे, सीमा पर पाकिस्तानी हमारे दो सैनिकों के सिर काट ले गए, युवराज ताजपोशी की तैयारी में मगन रहे। आमिर खान से कम नौटंकी नहीं करते हैं हमारे युवराज। कभी क्लीन शेव्ड नज़र आते हैं, तो कभी दाढ़ी बढ़ाए हुए; कभी बुन्देलखण्ड में आदिवासियों के साथ बाजरे की रोटी खाते हुए दीखते हैं, तो कभी कैलिफ़ोर्निया की गर्ल फ़्रेन्ड के साथ पार्टी का मज़ा लेते हुए। वाह रे कांग्रेसी। उन्हें एक विदेशी का नेतृत्व स्वीकार करने में भी कोई परहेज़ नहीं और एक गुड्डे को युवराज मानने से भी कोई एतराज़ नहीं।

विपिन किशोर सिन्हा

 

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

2 COMMENTS

  1. वंशवाद के लिए वे जिम्मेदार नहीं जो वंशानुगत सत्ता में टिके हुए हैं, इसके लिए जिम्मेदार हैं – भारतीय समाज के बिखराव-जातीय, धार्मिक, क्षेत्रीय, भाषाई ताने-बाने इतने उलझे हुए हैं की भौतिक आज़ादी के ६६ साल बाद भी मानसिक गुलामी से देश की अधिकांश जनता मुक्त नहीं हुई। लोकतंत्रात्मक प्रणाली में योग्यता वंश, जाति, धर्म, उम्र, लिंग, भाषा और पेशा अर्थात वित्तीय संसाधन जितने महत्वपूर्ण तत्व हैं उससे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं किसी व्यक्ति विशेष की चुनाव गत लोकप्रियता। एक ऐंसा व्यक्ति जो किसी खास वंश या संगठन परम्परा का उतराधिकारी होकर यदि जन-सामान्य के द्वारा बहुमत से नवाज़ा जाता है तो वह अपनी नेतृत्व कारी भूमिका के लिए लोकतंत्र में अवांछनीय नहीं माना जा सकता।
    यदि किसी वंश विशेष का व्यक्ति अपने आचरण या विचारधारा से राष्ट्र के हितों को क्षति पहुँचाता है तो यह देश की ‘बहुमत’ जनता की जिम्मेदारी है की पहले तो उस व्यक्ति को उसी के ‘दल’ में परिहार्य बना दे। बाद में देश की राजनीतिक इबारत से हासिये पर धकेल दे. भारत में वंशानुगत परम्परा के जितने उदाहरण हें उनमे दो ही परिवार उल्लेखनीय है। एक गाँधी-नेहरु परिवार दूसरा संघ परिवार। गाँधी नेहरु परिवार ने देश के लिए निरंतर कुर्वानिया दी है, संघ परिवार के बारे में कुछ नहीं कहना चाहूँगा। लेकिन कांग्रेस के ओर से यदि राहुल गाँधी है तो संघ परिवार के मानस पुत्र गडकरी, राजनाथ सिंह हैं।
    इन खानदानो के सामने लालू,मुलायम,करूणानिधि,बादल,पटनायक,एन टी आर या चौटाला -चौधरी कहीं नहीं टिकते। ये सभी तो उक्त दो बड़े खानदानों के बाराती भर हैं।
    बिना खानदान, बिना वंशानुगत परम्परा के सच्चे लोकतंत्रवादी तो केवल “वामपंथी” मार्क्सवादी हैं, जिनके पास व्यक्ति नहीं विचारधारा बड़ी है। सच्ची लोकतान्त्रिक शैली से तमाम गतिविधियों को केवल ‘वामपंथी’ पार्टियों में ही संचालित किया जाता है। बाकि सभी पार्टियों के अपने-अपने सुप्रीमो, गॉडफादर हैं, अपने-अपने वंश हैं।

  2. राहुल को पी ऍम बनाने की जो कवायद चल रही है उसको अंजाम देने के लिए उनकी माँ सोनिया नही वो चापलूस कांग्रेसी ज्यादा ज़िम्मेदार है जो नरसिम्हा या प्रणव की जगेह नेहरु परिवार को इस लिए सपोर्ट करते है कि किसी काबिल कांग्रेसी के बजाये वंशवाद का समर्थन करने से उनका अपना भला होगा.

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