ए ! जिंदगी तू भी कच्ची है

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ए ! जिंदगी तू भी कच्ची है,
पेंसिल की तरह छोटी होती जा रही।
रबड़ भी हर समय तुझको हमेशा,
पल पल घिसती है जा रही ।।

मत कर गुबान इस जिंदगी का,
ये मुस्टकिल नहीं अर्जी मिली तुझको।
कर इस्तेमाल इसका दूसरों के लिए,
यह पल पल कम होती हैं जा रही।।

चल रहा है दौर कोरोना का
जिंदगी कोरोना से लड़ रही।
लगे हैं मौत के अंबार हर जगह,
ये जिंदगी अब तेरी सड़ रही।।

नहीं भरोसा है इस जिंदगी का,
यह सिमटती है अब जा रही।
कर इस्तेमाल इंसानियत के लिए,
इंसानियत भी कम होती जा रही।

ये जिंदगी है पानी का बुलबुला,
बुलबुले की तरह है जी रही।
मौत अब है बहुत ही प्यासी,
पानी की तरह इसे पी रही।।

मौत अब है हर दरवाजे पर,
हर दरवाजे को खटखटा रही।
कब तक दरवाजा नहीं खोलोगे ,
वह तो खाने के लिए छटपटा रही।

बता रहा हैं रस्तोगी सभी से,
जिंदगी मौत से है बोल रही।
दो माह का बख्त दे दो मुझे
फिर दरवाजे मै हूं खोल रही।।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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