आर्थिक विकास में बाधक है भ्रष्टाचार

-सतीश मिश्रा- corruption

भारत के महाशक्ति बनने की सम्भावना का आकलन अमरीका एवं चीन की तुलना से किया जा सकता है। महाशक्ति बनने की पहली कसौटी तकनीकी नेतृत्व है। अठारहवीं सदी में इंग्लैण्ड ने भाप इंजन से चलने वाले जहाज बनाये और विश्व के हर कोने में अपना आधिपत्य स्थापित किया। बीसवीं सदी में अमरीका ने परमाणु बम से जापान को और पैट्रियट मिसाइल से इराक को परास्त किया। यद्यपि अमरीका का तकनीकी नेतृत्व जारी है परन्तु अब धीरे-धीरे यह कमजोर पड़ने लगा है। वहां नई तकनीकी का आविष्कार अब कम ही हो रहा है। भारत से अनुसंधान का काम भारी मात्रा में ‘आउटसोर्स’ हो रहा है जिसके कारण तकनीकी क्षेत्र में भारत का पलड़ा भारी हुआ है। तकनीक के मुद्दे पर चीन पीछे है। वह देश मुख्यत: दूसरों के द्वारा ईजाद की गयी तकनीकी पर आश्रित है।

दूसरी कसौटी श्रम के मूल्य की है। महाशक्ति बनने के लिये श्रम का मूल्य कम रहना चाहिये। तब ही देश उपभोक्ता वस्तुओंका सस्ता उत्पादन कर पाता है और दूसरे देशों में उसका उत्पाद प्रवेश पाता है। चीन और भारत इस कसौटी पर अव्वल बैठते हैं जबकि अमरीका पिछड़ रहा है। विनिर्माण उद्योग लगभग पूर्णतया अमरीका से गायब हो चुका है। सेवा उद्योग भी भारत की ओर तेजी से रुख कर रहा है। अमरीका के वर्तमान आर्थिक संकट का मुख्य कारण अमरीका में श्रम के मूल्य का ऊंचा होना है।

तीसरी कसौटी शासन के खुलेपन की है। वह देश आगे बढ़ता है जिसके नागरिक खुले वातावरण में उद्यम से जुड़े नये उपाय क्रियान्वित करने के लिए आजाद होते हैं। बेड़ियों में जकड़े हुये अथवा पुलिस की तीखी नजर के साये में शोध, व्यापार अथवा अध्ययन कम ही पनपते हैं। भारत और अमरीका में यह खुलापन उपलब्ध है। चीन इस कसौटी पर पीछे पड़ जाता है। वहां नागरिक की रचनात्मक ऊर्जा पर कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण है।

चौथी कसौटी भ्रष्टाचार की है। सरकार भ्रष्ट हो तो जनता की ऊर्जा भटक जाती है। देश की पूंजी का रिसाव हो जाता है। भ्रष्ट अधिकारी और नेता धन को स्विट्जरलैण्ड भेज देते हैं। इस कसौटी पर अमरीका आगे है। ‘ट्रान्सपेरेन्सी इंटरनेशनल’ द्वारा बनाई गयी रैंकिंग में अमरीका को १९वें स्थान पर रखा गया है जबकि चीन को ७९वें तथा भारत का ८४वां स्थान दिया गया है।

पांचवीं कसौटी असमानता की है। गरीब और अमीर के अन्तर के बढ़ने से समाज में वैमनस्य पैदा होता है। गरीब की ऊर्जा अमीर के साथ मिलकर देश के निर्माण में लगने के स्थान पर अमीर के विरोध में लगती है। इस कसौटी पर अमरीका आगे और भारत व चीन पीछे हैं। चीन में असमानता उतनी ही व्याप्त है जितनी भारत में, परन्तु वह दृष्टिगोचर नहीं होती है क्योंकि पुलिस का अंकुश है। फलस्वरूप वह रोग अन्दर ही अन्दर बढ़ेगा जैसे कैन्सर बढ़ता है। भारत की स्थिति तुलना में अच्छी है क्योंकि यहां कम से कम समस्या को प्रकट होने का तो अवसर उपलब्ध है।

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  1. (१) शीघ्रता से भी देश की उन्नति का विशेष संबंध है। अमरिका में, एक कौटुम्बिक भवन ४५ दिनमें निर्माण किया जा सकता है। (वास्तव में धीरे धीरे भी ९० दिन लगते हैं।)
    (२) वर्षभर में एक निर्माण अभियंता ८ ऐसे भवन निर्माण करने की क्षमता रखता है।(३) तब आठ परिवार ऐसे घरों को खरिद सकते हैं। तो घरों का मूल्य भी घट कर सस्ता हो जाता है। (४) यहाँ ऐसे छोटे कामों में खुला भ्रष्टाचार नहीं है। बडे बडे भ्रष्टाचार भी कानून अंतर्गत चलाने की युक्तियाँ है, जिसपर वकीलों का, और परामर्षकों का, व्यवसाय चलता है।
    (५) पर सामान्य परिश्रमी नागरिक को कठिनाई नहीं होती।
    (६) सोशियल सिक्युरीटी के कारण, कुछ प्रजा आलसी हो गयी है।ऐसा, किसी भी प्रकार का आरक्षण अंततोगत्वा हानिकारक ही होता है।(७) अक्षमता को आरक्षण बढा देता है, अंत में सारी प्रगति ऐसा आरक्षण स्वाहा कर जाता है।
    (८)सावधान रहे। आरक्षण हमें भी खा जा सकता है।
    (९) जापान एक कार ९ मनुष्य-दिन में निर्माण करता है। बाकी देश ४५ दिनमें। जापान में श्रम का मूल्य है, आरक्षण नहीं।(१०)इस लिए जापान अपनी कारसे विश्वके बाजार में स्पर्धा कर सकता है। (११)चेते भारत आरक्षण से आगे बढ नहीं सकता। (१२) पिछडों को परीक्षा की तैय्यारी करने में सहायता अवश्य दी जाए। पर अक्षमता को आरक्षित ना करे।(१३) उनका भी हितैषी हूँ। शत्रु नहीं। —-वंदे मातरम।
    पी. एच. डी.—-अनुभवी निर्माण अभियंता।

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