Home विविधा पढाई के खर्च और महंगे शौक पूरे हो रहे है जिस्मफरोशी से

पढाई के खर्च और महंगे शौक पूरे हो रहे है जिस्मफरोशी से

शादाब जफर ”शादाब”

आज पूरी दुनिया में जिस्मफरोशी का बाजार गर्म है। पहले मजबूरी के तहत औरतें और युवतियां इस धंधे में आती थी लेकिन अब मजबूरी की जगह शौक ने ले ली है। आज नये जमाने की आड़ लेकर राह से भटकी कुछ लडकियों को बहला फुसलाकर बडे़-बडे़ सब्जबाग दिखाकर बाकायदा कुछ लोगों ने जिस्मफरोशी को कारोबार बना लिया है। आज सेक्स का धंधा एक बडे कारोबार के रूप में दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी परिवर्तित हो चुका है। इस कारोबार को चलाने के लिये बाकायदा आफिस बनाने के साथ ही कुछ लोगों ने मसाज पार्लरो के नाम से अखबारो में विज्ञापन देकर बॉडी मसाज की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा चला रखा है। इस के अलावा टीवी सीरियल और फिल्मो में नई हीरोईन के लिये ओडीशन के नाम पर भी आज ये धंधा खूब फल फूल रहा है। वही कुछ सरकारी गेस्ट हाऊस और होटल आज जिस्मफरोशी की इस बेल को खाद और पानी दे रहे है। आज पूरे देश में जिस्मफरोशी करने वालों का एक बहुत बडा नेटवर्क फैला हुआ है। बडी बडी चमचमाती गाडियों के सहारे एक शहर से दूसरे शहर लडकियो को पहुंचाया जाता है। आज जिस्मफरोशी का धंधा खुलम खुल्ला पुलिस की जानकारी में हो रहा है पर क्या किया जाये कहीं थाने बिक जाते है तो कहीं राजनेताओ का दबाव पड़ जाता है। ये ही वजह है कि आज जिस्मफरोशी ने हमारे सामाजिक ताने बाने को पूरी तरह से पष्चिमी रंग में रंग दिया है। बेबीलोन के मंदिरो से लेकर भारत के मंदिरो में देवदासी प्रथा वेश्‍यावृत्ति का आदिम रूप है। गुलाम व्यवस्था में मालिक वेश्‍याएं पालते थे। तब वेश्‍याएं संपदा और शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी। मुगलकाल में मुगलों के हरम में सैकडों औरतें रहती थी अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार किया तो इस धंधे का स्वरूप ही बदल गया। पुराने जमाने में राजाओं को खुश करने के लिये तोहफे के तौर पर तवायफों को पेश किया जाता था। उस जमाने में भी जिस्म का कारोबार होता था। वक्त के थपेडों से घायल लडकिया अक्सर कोठो के दलालों का शिकार होकर ही कोठो पर पहुचॅती थी।

लेकिन आज अपनी बढी हुई इच्छाओं को पूरा करने के लिये महिलाएं और युवतियां इस पेशे को खुद अपनाने लगी है। महज भौतिक संसाधनों को पाने की खातिर कुछ लडकियां आज इस धंधे में उतर आई है। बंगला कार से लेकर घर में टीवी फ्रिज एसी के शौक को पुरा करने के लिये ये युवतिया जिस्मफरोशी को जल्द सफलता पाने के लिये शार्टकट तरीका भी मानती है। इसी लिये आज इस धंधे में सब से ज्यादा 16 से 20 व 22 साल की स्कूली छात्राओ की हिस्सेदारी है। इन में से केवल 20 प्रतिशत छात्राएं ही मजबूरी के तहत इस धंधे में है 80 प्रतिशत अपने मंहगे शौक को पूरा करने के लिये इस धंधे में आई हुई है। किंग्स्टन विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर रॉन रॉबट्स ने सेक्स उद्योग से छात्र छात्राओं के संबंधो को जानने के लिये किये गये एक सर्वेण के मुताबिक ब्रिटेन के स्कूल और विश्‍वविद्यालयों में पढने वाली कई छात्राए अपने स्कूल की फीस जुटाने व दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने, अच्छे और मंहगे कपडे पहनने के लिये देह व्यापार का धंधा करती है। ये ही कारण है। पिछले दस सालों में देह व्यापार का ये कारोबार शौक ही शौक में 3 प्रतिशत से बढकर 25 प्रतिशत तक पहुंच गया।

भारत में भी जिस्मफरोशी का ये धंधा आज महानगरों के साथ ही बडे बडे शहरो से निकलकर छोटे छोटे गांव और कस्बों में बहुत तेजी के साथ बढ और फल फूल रहा है। देश का युवा वर्ग आज इस बुरी लत में पूरी तरह से डूब चुका है। पुराने जमाने के कोठो से निकल कर अब ये धंधा इन्टरनेट के जरिये कुछ अश्‍लील बेबसाइटो से हो रहा है। जिन में सिर्फ अपनी जरूरत के हिसाब से लिखकर सर्च करने से ऐसी हजारो बेबसाइट्स के लिंक आप को मिल जायेंगे जिन में स्कूली छात्राओं, मॉडल्स, टीवी और फिल्मी स्टारो को आप के लिये उपलब्ध कराने के दावे किये जाते है। ये ही कराण है कि आज इस देह के कारोबार के जरिये बहुत जल्द ऊंची छलांग लगाने वाली मध्यवर्गीय लड़किया, माडल्स, कालेज की छात्राए,दलालो के जाल में आसानी से फंस जाती है। और आज नये जमाने के नाम पर बार पार्टिया, निर्बंध सेक्स संबंधो के लिये सोशल नेटवर्किग साइटस, मोबाइल फोन्स, इन्टरनेट पर चेटस के रूप में मौज मस्ती का खजाना हमारे युवाओ को असानी से मिल जाता है। रात रात भर होटलो में बार बालाओ ओर कॉलगर्ल्स के साथ राते रंगीन करने के बाद सुबह उठने पर समाजिक चिंता और अपराधबोध से कोसो दूर युवा वर्ग जर्बदस्त आनंद प्राप्त करने का दावा तो करते है पर ये नादान ये नही समझ पा रहे कि आज जिस शौक के लिये ये अपने सफेद लहू को बेपरवाह होकर बहा रहे है कल ये ही इन्हे खून के आंसू भी रूलायेगा।

अभी हाइफाई इंफॉरमेशन टेक्नेलॉजी होने के बावजूद हमारे देश की पुलिस के लिये इस पेशे से जुडे लोगो और दलालों की पहचान काफी मुश्किल हो रही है। क्यो कि इस पेषे से जुडे तमाम लोगो की वेशभूषा, रहन सहन, पहनावा व भाषा हाईफाई होने के साथ ही इन लोगो के काम करने का ढंग पूरी तरह सुरक्षित होता है। स्कूली छात्राओं, माडल्स, टीवी और फिल्मी नायिकाओं पर किसी को एकदम से शक भी नही होता। सौ में से एक दो जगह पर मुखबिरो के सहारे अंधेरे में तीर मारकर पुलिस देह व्यापार कर रहे लोगो को पकडती जरूर है पर ऊंची पहुंच के कारण इन्हे भी छोड़ दिया या छोटे मोटे केस में चालान कर दिया जाता है। कुछ लोग विदेशों से कॉलगर्ल्स मंगाने के साथ ही अपने देश से विदेशों में टूर के बहाने 16 से 18 साल की स्कली छात्राओ को बडे बडे उद्योगपतियो और राजनेताओ से मोटी मोटी रकम लेकर उन के बैडरूमो में पहुंचा देते है। इस प्रकार मौजमस्ती करने के साथ ही इस घंधे से जुडी स्कूली छात्राओ का विदेश घूमने का का सपना भी पूरा हो जाता है।

यू तो जिस्मफरोशी दुनिया के पुराने धंधों में से एक है 1956 में पीटा कानून के तहत वेष्यावृतित्त को कानूनी वैधता दी गई, पर 1986 में इस में संशोधन कर के कई शर्ते जोड दी गई। जिस के तहत सार्वजनिक सेक्स को अपराध माना गया। पकडे जाने पर इस में सजा का प्रावधान भी है वूमेन एंड चाइल्ड डेवलेपमेंट मिनिस्ट्री ने 2007 में अपनी रिर्पोट दी जिस में कहा गया कि भारत में लगभग 30 लाख औरते जिस्मफरोशी का धंधा करती है। इन में से 36 प्रतिशत नाबालिक है। अकेले मुम्बई में 2 लाख सेक्स वर्कर का परिवार रहता है। जो पूरे मध्य एशिया में सब से बडा है। भारत में सब से बडा रेड लाइट ऐरिया कोलकत्ता में सोनागाछी, मुम्बई में कमाथीपुरा, दिल्ली में जीबी रोड, ग्वालियर में रेशमपुरा, वाराणसी में दालमंडी, सहारनपुर (यूपी) में नक्कासा बाजार, मुजफ्फरपुर (बिहार) में छतरभुज स्थान, मेरठ (यूपी) में कबाडी बाजार और नागपुर में गंगा जमना के इलाके जिस्मफरोशी के लिये प्रसिद्व है।

पिछले दिनो संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने ‘अपरच्युनिटी इन क्राइसिस प्रिवेटिव एचआईवी फ्रॉम अर्ली अडोलसेंस टु यंग एडल्टहुड’ नाम से एक रिर्पोट जारी कि है जिस के मुताबिक सहारा के रेगिस्तानी इलाके के आसपास बसे देशों में एचआईवी से ग्रस्त किशोरों की तादात सब से ज्यादा है। इन देशों की फेहरिस्त में भारत भी शामिल है। इस रिर्पोट में कई चौकाने वाली बाते सामने आई है। इस वायरस की चपेट में दक्षिण अफ्रीका में सब से अधिक 210000 लडकिया और 82000 किषोर एचआईवी वायरस से पीडित है। 180000 लडकिया नाईजीरिया में जिन में 10 से 19 साल की आयु वर्ग के किशोर इस में शामिल है। वही 95000 हजार किषोर पूरे देश में एचआईवी संक्रमण की चपेट में है। लगभग 2500 युवा पूरी दुनिया में रोजाना इस वायरस की गिरफ्त में आते हैं। जिन युवाओं को देश, कल का भविष्य मानता है वो ही युवा वर्ग अपनी मौजमस्ती, ऐशपरस्ती, नादानी के कारण आज अन्दर ही अन्दर पूरी तरह से खोखले होते जा रहे है। वैष्विक तरक्की और सूचना क्रांति के दौर में आज हमारे सामने हमारे युवा वर्ग की ये एक भयानक सच्चाई है। जिस नई पीढी के कंधे पर दुनिया का भविष्य टिकेगा उस का शरीर आज एक ऐसे रोग से घिर चुका है जिस का दुनिया में अब तक कोई इलाज ही नही है। आज एचआईवी (हृयूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) के जरिये दुनिया का युवा वर्ग बडी तेजी के साथ इस मौत के दलदल में सिर्फ मौजमस्ती पढाई का खर्च और महंगे शौक के कारण खामोशी से समाता चला जा रहा है।

 

7 COMMENTS

  1. न तो यह मजबूरी है ओरे न ही सोक बल्कि संस्कारों की कमी है पाश्चात्य ढकोसला है जिसे स्वतंत्रता की संज्ञा देते है ओरे सबसे बड़ी भागीदारी हमारे मीडिया की है जो एसा करने के लिए मोडलों को विवास करता है.

  2. बहुत ज्वलंत समस्या पर बेहतरीन आलेख. मुश्किल है की युवाओं को इस दलदल से निकालने का उपाय कौन करे?

  3. एक बेहतरीन लेख के लिए शादाब जी को बधाई, आप हम, मधुसूदन जी जैसे लोग इन नीचता पर उतरे हुए लोगों को कितना भी समझाने का प्रयास करें पर यह सब रुकने वाला नहीं है, इसके लिए आधुनिक संचार माध्यम पूरी तरह जिम्मेदार हैं, अगर आपका कोई रिश्तेदार दिल्ली, मुंबई या इस तरह के बड़े शहरों में रहता है, तो कई बार ऐसा होगा की उसके पड़ोस में रहने वाली घरेलू महिला को देख ऐसा प्रतीत होगा की वह किसी अच्छी खासी नौकरी के लिए जा रही है पर दूसरा सच यह हो सकता है की वह इन्टरनेट या मोबाइल के माध्यम से किसी निर्धारित स्थान पर मोटे (आर्थिक रूप से)ग्राहक के पास जा रही हो और आपका रिश्ते-दार उसकी शराफत के कसीदे पढ़ रहा हो.

  4. कुटिल भ्रष्ट राजनेतिक लोगो की हिसेदारी ही इसका प्रमुख कारन है ये विवशता नहीं बेबसी है

  5. शादाब जफर ”शादाब” सही सही लिखते हैं।
    जिस राह पर यह युवतियां आगे बढ रही हैं, उस राह पर खाइयां हैं। गिरने पर फिर उठा नहीं जाता।
    यहां अमरिका में, तो प्रमोशन लेने के लिए इसे कुकर्म भी समझा नहीं जाता। पाप-बोध ही नहीं है।विवाह संस्था समाप्ति की राह पर है। वर्ण संकर हो चुका है। कोई किसी से भी संबंध बना लेता है। मानसिक रोगियों की भी इसी लिए कमी भी नहीं है। मानसिक रोगी होना है, तो इसे अपनाओ। अकेले न्यूयोर्क राज्यमें १२८ मेन्टल अस्पतालें है।यह रोग, तन का ब्यौपार, मन-आत्मा(रूह) को ऐसा सडा देता है, लडकियां आत्म हत्त्याएं कर के ही चैन पाती है। भारत चेते।मां बाप चेते। नेतृत्व चेते। धर्म-मज़हब के पहरेदार चेते।

  6. सादा जीवन उच्च विचार हमारी सभ्यता और संस्कृति के आधार स्तम्भ थे | आज इन दोनों स्तंभों को तोड़ कर विकाश की दुहाई देते हुए हम पश्चिमी सभ्यता के जंग में रंगते जा रहे हैं | इसी का दुस्परिणाम वेश्या बृत्ति और लुट पात के रूप में आ रहा है | हमें पीर से संयम की ओर कदम बढ़ाना होगा |

  7. kya ye kishorion ki mazboori hai ya bhoutikta avam adhunikta ki prapti, vertman ki chakachondh bhare akarshan ke karan kishorian apne aapko is samaj me shamil karne se nahi rok pati aur is pap ke sagar mai vilin hote ja rahi hain.yadi samay per bhartiya sabhyata sanskriti ko dushit karne wale is mansikta ko niyantrit nahi kiya gaya to ye hamari vivashata ho jaegi.

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