‘हरित धरा’ से किसान आंदोलन को धार देने का प्रभावी प्रयास

सुशील कुमार ‘नवीन’

किसान आंदोलन के वर्तमान में प्रमुख कर्णधार राकेश टिकैत आज हरियाणा के कंडेला(जींद) में खूब गरजे। कंडेला में उनकी गर्जना के बड़े मायने हैं। आंसुओं की संजीवनी से दोबारा जी उठे किसान आंदोलन को यदि बिजली की सी गति कहीं से मिली है तो हरियाणा है। अब इसी गति को बरकरार रखते हुए उसे और धार देना टिकैत का प्रमुख उद्देश्य हैं। कंडेला में आज उन्हें सुनने उमड़ी भीड़ ने उनके विश्वास को बरकरार भी रखा है। यही वजह है कि भीड़ में उमड़ता जोश मंच टूटने से हुई पीड़ा को भी चुपके से दबा गया। 

   दिल्ली देश का दिल है तो जींद हरियाणा का। इतिहास गवाह है कि हर उठापटक की शुरुआत का श्रीगणेश यहीं से ही होता रहा है। इसी जींद का एक प्रमुख गांव है कंडेला जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यह हरियाणा की वो धरती है जो किसानों के हितों के लिए खून बहाने में पीछे नहीं रही। एक बार यदि किसी के पीछे लग जाये तो उसका पीछा नहीं छोड़ते। यह गांव जहां सामाजिक रूप से अपना बड़ा महत्व रखता है वहीं प्रदेश की राजनीति में भी इसकी अपनी अहम भूमिका है। 

  सब जानते है कि हरियाणा खापों के प्रभाव वाला राज्य है।कंडेला खाप की प्रदेश की सबसे बड़ी खापों में गिनती होती है।। 2002 का इतिहास उठाकर देखें कंडेला खाप की मजबूती अपने आप ही दिख जाएगी। वर्ष 2002 में बिजली बिलों को लेकर आंदोलन चला था और उसका केंद्र बिंदु कंडेला ही था। लंबे समय तक चला यह आंदोलन उस समय काफी चर्चित भी रहा था। किसानों ने अफसरों तक को बंधक बना लिया था। दो माह तक जींद-चंडीगढ़ मार्ग जाम किए रखना कोई छोटी बात नहीं थी। किसानों की अनेक बार पुलिस से झड़प भी हुईं। बाद में इस आंदोलन में हुई गोलीबारी में नौ किसानों की मौत भी हो गई थी और काफी किसान घायल हो गए थे। 

   ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इनेलो सरकार के कार्यकाल में भारतीय किसान यूनियन ने कंडेला को उस समय आंदोलन का केंद्र बनाया था. किसान आंदोलन को खत्म कराने के लिए सरकार ने बहुत प्रयास किए। स्थिति ये पैदा हो गई कि पुलिस को आंदोलनकारियों पर फायरिंग तक करनी पड़ी।इसमें नौ किसानों को जान गंवानी पड़ी। काफी संख्या में भी घायल भी हुए। इतने बड़े बलिदान के बाद भी यहां के लोगों का हौसला टूटा नहीं है। 

   कंडेला महापंचायत में भीड़ से गदगद टिकैत आज जोश से लबरेज दिखे। यह कहना छोटी बात नही है कि अभी तो कानून वापस करने की ही बात की है, गद्दी वापसी की कह दी तब सरकार क्या करेगी। इस दौरान उन्होंने यह भी स्प्ष्ट किया है कि अभी कमेटी भी वही रहेगी। इसमें कोई फेरबदल नहीं होगा।

कंडेला महापंचायत किसान आंदोलन में आने वाले दिनों में क्या प्रभाव दिखाएगी यह तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल टिकैत हरियाणा से हौसलों की पूरी गठरी भरकर ले गए हैं। साथ में हरित धरा (हरियाणा) से किसान आंदोलन को और धार देने का प्रभावी प्रयास भी कर गए हैं। 

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