एक अपराजित योद्धा  : शिवराजसिंह चौहान

0
149

-मनोज कुमार

कैलेण्डर के पन्नों पर 29 नवम्बर की तारीख हर साल आती है लेकिन 2017 में यह तारीख मध्यप्रदेश के इतिहास की तारीख के रूप में दर्ज हो गई है. यह तारीख उस अपरोजय योद्धा के नाम दर्ज हो गई है जिसे हम शिवराजसिंह चौहान के नाम से जानते हैं. 61 साल के मध्यप्रदेश में लगातार 12 वर्षों तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह चौहान ने कीर्तिमान कायम किया है. यह सच है कि इन 61 सालों में ज्यादतर समय कांग्रेस सत्ता में रही लेकिन सिवाय दिग्विजयसिंह के कोई दूसरा कांग्रेसी मुख्यमंत्री नहीं हुआ जिसने लगातार 10 साल तक मध्यप्रदेश की सत्ता सम्हाली हो. दिग्विजयसिंह के रिकार्ड को ध्वस्त कर शिवराजसिंह ने मध्यप्रदेश के इतिहास में अपना नाम लिख दिया है. इसमें सबसे अहम बात यह है कि 12 सालों में शिवराजसिंह चौहान, शिवराजसिंह बने रहे, मुख्यमंत्री के रूप में उनकी पहचान बहुत कम रही. यही कारण है कि वे प्रदेश के बच्चों के मामा कहलाए और देशभर में मध्यप्रदेश का नाम रोशन हुआ.
शिवराजसिंह चौहान की पहचान एक मुख्यमंत्री के रूप में है और इतिहास के पन्नों में भी उन्हें इसी पहचान के साथ दर्ज किया जाएगा लेकिन सच तो यह है कि अपना सा लगने वाला यह मुख्यमंत्री हमारे बीच का, आज भी अपना सा ही है. शिवराजसिंह के चेहरे पर तेज है तो कामयाबी का लेकिन मुख्यमंत्री होने का गरूर नहीं, चेहरे पर राजनेता की छाप नहीं. सत्ता के शीर्ष पर बैठने की उनकी कभी शर्त नहीं रही बल्कि उनका संकल्प था प्रदेश की बेहतरी का. वे राजनीति में आने से पहले भी आम आदमी की आवाज उठाने में कभी पीछे नहीं रहे. वे किसी विचारधारा के प्रवर्तक हो सकते हैं लेकिन वे संवेदनशील इंसान है. एक ऐसा इंसान जो अन्याय को लेकर तड़प उठता है और यह सोचे बिना कि परिणाम क्या होगा, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने निकल पड़ता है. बहुतेरों को यह ज्ञात नहीं होगा कि शिवराजसिंह चौहान मजदूरों को कम मजदूरी मिलने के मुद्दे पर अपने ही परिवार के खिलाफ खड़े हो गए थे. शिवराजसिंह चौहान का यह तेवर परिवार को अंचभा में डालने वाला था. मामूली सजा भी मिली लेकिन उन्होंने आगाज कर दिया था कि वे आम आदमी के हक के लिए आवाज उठाते रहेंगे.
शिवराजसिंह चौहान उन बिरले मुख्यमंत्रियों में से एक होंगे जिनके कांधे पर हाथ रखकर सैकड़ों लोग मिल जाएंगे यह कहते हुए कि शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं. च्शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं, इसमें अपनापन तो है लेकिन एक भाव यह भी कि देखो हमारे साथ पढ़ा विद्यार्थी, हमारा दोस्त शिवराजसिंह आज मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री है. थोड़े से लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि च्हम शिवराजसिंह के साथ पढ़े हैंं और थोड़े से लोग होंगे जो कहते मिल जाएंगे-शिवराजसिंह और हम साथ पढ़े हैं. शिवराजसिंह के साथ सहपाठी होने की यह गर्वानुभूति सालों गुजर जाने के बाद हो रही है तो इसलिए कि शिवराजसिंह चौहान जब भोपाल के अपने स्कूल च्मॉडल स्कूलज् में जाते हैं तो मुख्यमंत्री बनकर नहीं, स्कूल के एक पुराने विद्यार्थी की तरह. शिक्षकों का चरण स्पर्श करना नहीं भूले. सहपाठियों को नाम से याद रखना और उन्हें संबोधित करना उनकी सादगी की एक झलक है.
1956 में जब नए मध्यप्रदेश का गठन हुआ और समय-समय पर मुख्यमंत्री बदलते रहे. हर मुख्यमंत्री की अपनी शैली थी. काम करने से लेकर जीवन जीने तक. लगभग सभी मुख्यमंत्री कुछ अलग दिखना चाहते थे या लोगों ने उन्हें वैसा प्रस्तुत करने की कोशिश की लेकिन 2005 में मुख्यमंत्री के इस परम्परागत चेहरे के विपरीत सादगी भरा एक चेहरा नुमाया हुआ शिवराजसिंह चौहान का. संसद से विधानसभा और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद भी उन्होंने अपने लिए कोई बनावट नहीं की. उनकी बुनावट इतनी मोहक थी कि कभी पांव पांव वाले भइया के नाम से मशहूर शिवराजसिंह मामा के नाम से मशहूर हो गए. ऐसा नहीं है कि शिवराजसिंह चौहान पहले मुख्यमंत्री हों जिन्हें विशेषण दिया गया बल्कि लगभग हर मुख्यमंत्री को उनकी कार्यशैली और उनके तेवर के अनुरूप विशेषण मिलता रहा है. कोई राजा-महाराजा कहलाए तो किसी को संवेदनशील होने का विशेषण दिया गया. संत और साध्वी के रूप में मध्यप्रदेश की सत्ता सम्हालने वाले भी थे लेकिन लगातार 12 वर्षांे से सत्ता के शिखर पर बैठे शिवराजसिंह चौहान की सादगी चर्चा में रही.
शिवराजसिंह चौहान की सादगी भारतीय राजनीति में उन्हें अलग तरह से रखती है. आमतौर पर मुख्यमंत्री बनते ही सलाहकारों की भीड़ उमड़-घुमड़ पड़ती है. ये सलाहकार उन्हें आम से खास बनाने में जुट जाते हैं और उनके इर्द-गिर्द एक ऐसा घेरा बना दिया जाता है कि आम आदमी के लिए वे सत्ता पुरुष बनकर रह जाते हैं. शिवराजसिंह चौहान ने ऐसे सलाहकारों से खुद को दूर रखा.  आम से खास बनने में उनकी कोई रूचि नहीं रही सो वे जैसा थे, वैसा ही बना रहना चाहते हैं. लगभग हर जगह वे अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ पायजामा-कुरता में मिलेंगे. तामझाम और शोशेबाजी के इस आधुनिक दौर में शिवराजसिंह की यह सादगी उन्हें औरों से अलग, बिलकुल अलग बनाती है.
शिवराजसिंह की सादगी का आलम यह है कि वे गांव-देहात के दौरे के समय धूल भरी सडक़ में अपने लोगों के साथ बैठने में कोई हिचक नहीं करते हैं. आलम तो यह है कि जब वे सडक़ निर्माण का औचक निरीक्षण के लिए पहुंचते हैं और बताते हैं कि वे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हैं तो मजदूर उन्हें पहचानने से इंकार कर देते हैंं. इस वाकये से शिवराजसिंह के चेहरे पर गुस्से का भाव नहीं आता है बल्कि वे हंसी में लेते हैं. साथ चल रहे अफसरों को कहते हैं चलो, भई यहां शिवराज को कोई पहचानता नहीं. क्या यह संभव है कि एक मुख्यमंत्री को उसकी जनता पहचानने से इंकार करे और वह निर्विकार भाव से लौट आए? यह सादगी शिवराजसिंह में मिल सकती है. उनके इन्हीं अनुभवों ने उन्हें आम आदमी से जोडऩे के लिए कई तरह के जतन करने का उपाय भी बताया. इन्हीं में से एक मुख्यमंत्री आवास पर होने वाली विभिन्न वर्गों की पंचायत रही है. कभी मुख्यमंत्री आवास आम आदमी के लिए तिलस्म सा था. बाहर से लोग अंदाज लगाया करते थे कि अंदर क्या क्या होगा लेकिन जब आम आदमी को मुख्यमंत्री आवास से बुलावा आया तो यह तिलस्म टूट गया. मध्यप्रदेश की राजनीति में यह शायद पहला अवसर होगा जब कोई मुख्यमंत्री अपने आवास में हर पर्व और हर उत्सव सेलिब्रेट कर रहा है.
शिवराजसिंह की सादगी के यह उद्धरण वह हैं जिसकी गवाही पूरा मध्यप्रदेश दे रहा है. हां, यह बात भी तय है कि जब आप शिवराजसिंह चौहान को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जांचते हैं, परखते हैं तो एक राजनेता के रूप में कुछ कमियां आप को दिख सकती हैं. कुछ फैसले सबके मन के नहीं होते हैं और इस बिना पर आप उन्हें घेरे में ले सकते हैं लेकिन एक आदमी से जब आप सवाल करेंगे तो उनका जवाब होगा कि अपना अपना सा लगने वाला यह शिवराज हमारा मुख्यमंत्री है और हमें ऐसा ही मुख्यमंत्री चाहिए. एक मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह चौहान ने 12 वर्षों का इतिहास बना दिया है लेकिन शिवराजसिंह चौहान ने जो जगह लोगों के दिलों में अपनेपन से बनायी है, वह तो मिसाल है. यह मिसाल शायद स्वयं शिवराजसिंह चौहान भी नहीं तोड़ पाएंगे.

Previous articleइतिहास का पुनर्लेखन और योगी सरकार
Next articleबीमार स्वास्थ्य तंत्र का कौन करेगा इलाज
मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here