एकलव्य का अंगूठा

0
244

अब्दुल रशीद

सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक उत्कृष्ठ अध्यापक थे। अध्यापक से राष्ट्रपति बने।शिक्षकों का महत्व बढाने के लिये उनके जन्मदिन को ‘ शिक्षक दिवस ‘ के रूप मे मनाया जाता है।पारम्परिक त्यौहारों की तरह कुछ औपचारिक आयोजनो के साथ शिक्षक दिवस शासकीय व प्राइवेट शिक्षण संस्थानो मे इस वर्ष भी मना लिया गया।आर्दशों की खुब बातें हुई और शिक्षकों की महिमा मे वही रटी रटाई कसीदें दुहराई गयीं जो हर वर्ष कही जाती रही हैं।”गुरू महान हैं .गुरू गोविन्द हैं .गुरूओं के ही प्रताप से लोग सफलता की उंचाई छूते रहे हैं”।दु:खद है कि बावजूद इसके शिक्षा का स्तर सुधर नहीं पा रहा है।

शासकीय शिक्षालयों मे न तो पर्याप्त टीचर हैं और न ही प्राइवेट स्कुलों मे आकर्षक वेतनमान।एक जगह सरकारी उदासीनता है तो दुसरी जगह आवश्यक योज्ञताधारी शिक्षकों का अभाव।शिक्षालयों की आत्यधिक कमी .शिक्षा माफियाओं का बढता दबाव और मंहगी होती जा रही शिक्षा देश की आर्दश शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर चुका है।शिक्षा का मन्दिर बने रहने के बजाय अधिकांश शिक्षण संस्थान व्यापारिक केंद्र बन चुके हैं।पैसों का खेल चल रहा है और पैसे के बल पर ही वहां डिग्रीयां मिल रही हैं।पैसा है तो टेलेन्ट की जरूरत वहाँ नही है।

आजाद भारत के इन 65 वर्षो बाद भी देश के कर्णधारों को उनका वाजिब हक न्हीं मिल पा रहा है।स्थिति आज यहां तक आ पहुँची है कि सरकारी शिक्षण संस्थानो मे शिक्षामित्रों से काम चलाया जा रहा है।शिक्षकों की अत्यधिक कमी है परन्तु नई बहाली नही हो पा रही है।पर्याप्त भवनो के अभाव मे अधिकांश देहाती जगहों पर पेंड की छाया मे सरकारी स्कुल चल रहे हैं और अध्यापक पत्थर पर बैठ शिक्षा का अलख जगा रहे हैं।शिक्षा के अधिकार नियम की सार्थकता पर ही जब प्रश्नचिन्ह है तो मुफ्त शिक्षा के अधिकार की बात करना बेमानी है।इन विकट परिस्थिति मे भी पढ लेने को उत्सुक शिक्षार्थी भारी संख्या मे शिक्षालयों मे पहुँच रहे हैं।

शिक्षा मन्दिरों मे शिक्षार्थीयों की भारी भीड परन्तु पढने वाली इस जमात को पढाने के बजाय पढाने की औपचारिकता भर ही शिक्षक निभा रहे हैं। अधुरी पढाई ट्यूशन व कोचिंग की आवश्यकता को जन्म देती है। ट्यूशन और कोचिंग पर निर्भरता का मुख्य कारण है शिक्षालयों मे उचित व समुचित पढाइ का न हो पाना ।अधिकांश शिक्षक यही तो चाहते रहे हैं।परेशान क्षात्र अपने आर्थिक सामर्थ के अनुसार ट्यूशन कोचिंग के लिये अच्छे टीचर की जरूरत महशुस करते हैं परन्तु फेल कर दिये जाने के डर से लाचार अपने विषय अध्यापक से ही पढने को मजबुर रहते हैं। दौलत कमाने के होड मे अथिकांश अध्यापक अपने आवास पर ट्यूशन नही बल्कि क्लास चला रहे हैं।अधिकांश टीचर अभिभावकों से बच्चों की शिकायत करते रहते हें कि लडके अवारागर्दी करते हैं पढना ही नही चाहते।कुछ लडके निःसन्देह अवारागर्दी करते होंगे पर क्षात्रों की जमात तो ऐसा नही कर सकता।

यह वैज्ञानिक तत्थ है कि शिक्षार्थीयो मे .कुछ बन जाने की तमन्ना रखने वालों मे व कुछ अलग कर दिखाने का जजबा रखने वालों मे पढ लेने व कुछ सीख लेने की अद्भूत क्षमता होती है।क्षमता योज्ञता से आती है और योज्ञता शिक्षालयों मे मिलती है।इसके लिये शिक्षा का माहौल जरूरी है परन्तु उचित व समुचित पढाई ही इसके लिये जिम्मेदार होता है।शिक्षा का माहौल बनाने का गुरूतम भार केवल और केवल गुरूओं पर ही है।

इस देश के शिक्षार्थीयों मे टेलेन्ट की कमी नही है पर टेलेन्ट निखरता है विशेष पढाई यानि कि ट्यूशन से और ट्यूशन के लिये पैसा चाहिए होता है।धनसामर्थवान कुछएक क्षात्र टयूशन कोचिंग तो कर ले रहे हैं परन्तु वह अधिकांश क्षात्र अपनी प्रतिभा निखारने कहॉं जाँय जिनके पास पर्याप्त पैसा नही है। दु :खद है कि अधिकांश शिक्षक द्रोणाचार्य बन चुके हैं और प्रतिभा निखारने हित एकलव्यों से धनरूप अंगूठा मांग रहे है । शिक्षक दिवस की सार्थकता इसी मे है कि शिक्षक अपनी गुरूता को समझ बेहतर शिक्षा दें और सबको “अर्जुन” बनाने का प्रयत्न करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here