सुरेश हिन्दुस्थानी
पाँच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी तैयारियां प्रारम्भ कर दी हैं। हालांकि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें चार बड़े राज्यों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस अपना प्रभाव रखतीं हैं, पर अबकी बार कुछ अन्य दल भी चुनाव मैदान में होंगे जो चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं और दोनों प्रमुख दलों के समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
जहां तक दिल्ली की बात की जाये तो यह साफ है कि कभी भाजपा का प्रभाव क्षेत्र होने के बाद आज दिल्ली राज्य में कांग्रेस की सरकार काबिज है। कांग्रेस की निरंतरता में अवरोध बनने के भाजपा पूरे दम खम के साथ मैदान में है, लेकिन इस बार अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी ताल ठोंककर मैदान में है, कई राजनीतिक विश्लेषकों का चिंतन यह है कि केजरीवाल की पार्टी अगर ऐसे ही आगे बढ़ती रही तो भविष्य में भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत बड़ा खतरा हो सकती है, तमाम संस्थाओं द्वारा कराये गए सर्वे भी इस बात का संकेत कर चुके हैं कि अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन करेगी, आप पार्टी जितना लाभ प्राप्त करेगी भाजपा को उतना ही नुकसान होगा, क्योंकि आप पार्टी केवल कांग्रेस के विरोधी वोट ही काटेगी, इन सभी बातों से लगता है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का चौथी बार सत्ता में आने का सपना सार्थक ही हो जाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों का तो यह भी मानना है कि दिल्ली में इस बार कांग्रेस के विरोध में जनता है, लेकिन तर्क यह है कि कांग्रेस के पक्ष में केवल 28 प्रतिशत जनता है, यानी 72 प्रतिशत जनता कांग्रेस के विरोध में है लेकिन अब गणित के हिसाब से देखा जाये यह 72 प्रतिशत वोट चार जगह विभाजित हो रहे हैं, जिसमें केजरीवाल की पार्टी बहुत बड़ा कारण है। अगर केजरीवाल की पार्टी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तब कांग्रेस को कोई बचा नहीं सकता।
मध्यप्रदेश के राजनीतिक वातावरण की तस्वीर एकदम साफ है यहाँ भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है, हालांकि कुछ जगह पर अन्य दल मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का सामथ्र्य रखते हैं, इनमें जिस दल का नाम लिया जा सकता है वे हैं बहुजन समाज पार्टी, जीजीपी, नव गठित बहुजन संघर्ष दल। इन दलों को भले ही कोई सीट प्राप्त न हो लेकिन मुकाबले को रोचक बना सकते हैं। इस सबके बाबजूद सरकार भाजपा या कांग्रेस की ही बनेगी। प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता चरम पर है, किसी भी दल के पास शिवराज की काट नहीं है, अगर प्रदेश में भाजपा पुन: सत्ता प्राप्त करती है तो इसमें शिवराज का बहुत बड़ा योगदान होगा। उनकी कार्यशैली को देखकर लगता है वे शासक नहीं बल्कि जनता के बीच के ही हैं, इसलिए शिवराज को मध्यप्रदेश में जनता का मुख्यमंत्री कहा जाने लगा है। प्रदेश को लेकर किए गए कई सर्वे इस बात का दावा करते दिखाई देते हैं कि प्रदेश में शिवराज की सरकार तीसरी बार सत्ता प्राप्त कर रही है, और भाजपा की सीटें भी बहुमत के आसपास आएंगी।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की भूमिका को भी कोई नजर अंदाज नहीं कर सकता, कांग्रेस में जबसे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की सक्रियता बढ़ी है तब से कांग्रेस में जान आ गई है, इससे कांग्रेस की सीट तो बढ़ सकती हैं लेकिन यह संख्या कांग्रेस को सत्ता दिला पाने में असमर्थ ही होगी, क्योंकि सर्वे संस्था ने दावा किया है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अपने विधायकों की संख्या तो बढ़ा सकती है परन्तु उतनी सीट प्राप्त नहीं कर सकती जितनी सरकार बनाने के लिए आवश्यक जरूरी है। वैसे तो बहुजन समाज पार्टी का भी प्रदेश में वोट प्रतिशत है, कुछ जगह पर प्रभावी प्रदर्शन की भूमिका में हैं। इसी प्रकार इस बार बसपा से अलग हुए फूल सिंह बरैया ने बहुजन संघर्ष दल का गठन करके राजनीतिक क्षेत्र में हलचल पैदा करने की कोशिश प्रारम्भ कर दी है।
राजस्थान के चुनावी परिदृश्य में भी भाजपा और कांगे्रस ही प्रभावी भूमिका में है। वर्तमान में अशोक गहलौत के नेतृत्व में कांगे्रस की सरकार है, लेकिन जिस प्रकार से गहलौत सरकार के मंत्री विवादों में रहे हैं, उससे सरकार की साख में गिरावट आई है। इस गिरावट की भरपाई करने के लिए कांगे्रस की मेहनत भी नाकाफी साबित हो रही है। इसके विपरीत भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने राजनीतिक रैलियों के माध्यम से जिस प्रकार से प्रचार किया है, उससे साफ दिखाई देने लगा है कि प्रदेश में भाजपा के प्रति रुझान हुआ है। इस बार राजस्थान में भाजपा की सरकार बन जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। अन्य दलों का राजस्थान में इतना जोर नहीं है कि वह प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा सके।
छत्तीसगढ़ की राजनीतिक तस्वीर भी मध्यप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान से अलग नहीं कही जा सकती। यहां भी भाजपा और कांगे्रस के बीच सीधा मुकाबला होना है। यहां भी सर्वे संस्थाएं रमन सिंह के कार्यकाल को अच्छा बता चुकी हैं और उनके सत्ता में आने की बात कह चुके हैं। हालांकि एक बार तो ऐसा लगने लगा था कि कांगे्रस छत्तीसगढ़ में सत्ता प्राप्त कर लेगी। लेकिन जैसे जैसे समय निकला कांगे्रस की स्थिति बदलती गई।
इसी प्रकार ईसाई बाहुल्य मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट इस बार कांगे्रस को टक्कर देने की स्थिति में कही जा सकती है। कांगे्रस के सत्ता विरोधी फैक्टर को मिजो नेशनल फ्रंट खूब भुना रहा है। पर यहां पर कांगे्रस एक प्रभावी भूमिका में है, इसलिए अभी से यह कह पाना मुश्किल है कि मिजोरम में किसकी सरकार बनेगी। यहां भाजपा का प्रभाव पहले तो नहीं था, लेकिन जबसे नरेन्द्र मोदी भाजपा में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बने हैं तब से कुछ उम्मीदें जागी हैं और मिजोरम के भाजपा नेता इस चुनाव को चुनौती मान रहे हैं।