एलीना सेन से आवेश तिवारी की बातचीत

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हम जीते न जीतें पर हम लड़ेंगे

“जनतंत्र में बहुत गलतियाँ होती हैं। सालों बाद पता लगता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हुई है। अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो ये मान लेना कि इसमें जनता का हित जुड़ा है।‘’ ये शब्द बिनायक सेन ने जेल जाने से पहले अपनी पत्नी एलीना को कहे थे। एलीना बिनायक के साथ, अराजकतावादी राज्य और साम्राज्यवादी अदालतों के निर्णयों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रही है वो हारी नहीं है ना आगे हारने वाली है, एलिना जब ये कहती हैं कि हम लड़ेंगे, हम जहाँ तक ले जा सकेंगे ले जायेंगे जीतेंगे या नहीं जीतेंगे हम नहीं जानते तो इन शब्दों में उनका अदम्य साहस नजर आता है, इस साहसी महिला के साथ आवेश तिवारी ने बातचीत की।

एलिना आप अदालत के फैसले को किस तरह से देखती हैं?

बिनायक ने पैसे और सारी चीजें छोड़कर गरीबों–आदिवासियों के लिए काम किया, उनके ऊपर ऐसा आरोप लगाना कि वो देशद्रोही है गलत हैं। उन्होंने हमेशा देश के लिए काम किया, मेरे और मेरे पति के लिए देश का मतलब देश की जनता हैं। आश्चर्य ये है कि चोर, लूटेरे ,गेंगेस्टर खुलेआम घूम रहे हैं, और बिनायक सलाखों के पीछे हैं ।

आपके पति को जिस कानून के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई गयी वो देश का ही कानून है, आप हिंदुस्तान में लोकतंत्र को कितना सफल मानती हैं?

विकास के दौर में गरीबी और अमीरी की खाई लगातार बढ़ी है, संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में साफ़ तौर पर कहा गया है कि इस खाई को ख़त्म करने की कोशिश की जायेगी, लेकिन आजादी के साथ सालों बाद भी ये खाई निरंतर गहरी होती जा रही है, आज देश में विशाल माध्यम वर्ग है जिसके हाँथ में पूरा बाजार हैं लेकिन जितना विशाल माध्यम वर्ग है उतना ही बड़ा वो वर्ग है जो बाजार तक नहीं पहुँच पाता ये लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा हैं। बिनायक सेन का मामले ने एक और नए खतरे को दिखाया वो खतरा देश में अदालतों और प्रशासन की मिलीभगत से पैदा हो रहा है, कई बार झूठे मामले बनाये जा रहे हैं और फिर अपनी नाक बचाने के लिए लगातार झूठ को सच बनाने का खेल खेलने में लग जाते हैं और फिर वो अपनी झूठी दलीलों से अदालतों को भी प्रभावित करने लगते हैं, जैसा बिनायक सेन के मामले में हुआ ।

छत्तीसगढ़ में बिनायक सेन की गिरफ्तारी हुई, उत्तर प्रदेश में सीमा आजाद की गिरफ्तारी होती हैं, वही दूसरी तरफ अरुंधती रॉय छतीसगढ़ के जंगलों में जाती हैं, नक्सली हिंसा का समर्थन करती हैं, उनका इंटरव्यू छपता है, क्या आपको लगता है राज्य माओवाद के सम्बंध में दोहरे मापदंड अपना रहा हैं?

सीमा आजाद को मैं अख़बारों के माध्यम से ही जानती हूँ, फिर भी कहूँगी चाहे बिनायक सेन हों या सीमा आजाद, साजिशन की जा रही कार्यवाहियां लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। जहाँ तक अरुंधती का सवाल है मैंने उन्हें पढ़ा हैं, कहीं कहीं अरुंधती और बिनायक सेन के विचारों से समानता हो सकती है, लेकिन विचारों में अंतर भी है, हर व्यक्ति के विचारों में ये विभिन्नता है हमें विचारों का समान करना चाहिए, हम काला सफ़ेद देखने लगते हैं कि क्या काला है क्या सफ़ेद है ,ऐसा नहीं होना चाहिए।

मैं देश के कई विश्वविद्यालयों में गया, युवा पीढ़ी विनायक को अपना आदर्श मानने लगी है। उनकी गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं आन्दोलन हो रहे हैं, आप बिनायक को कितना साहसी मानती हैं?

मेरे हिसाब से बिनायक साहसी जरुर है कई बार उन्होंने लोकप्रिय बातें न कहकर वो बातें कहीं जो कडवी लेकिन आम आदमी के हित की बात कही, जो उन्हें सही लगा उन्होंने बोला ये बात अलग है कि आप उनकी बात से सहमत और असहमत हों।

आपको क्या लगता है कि छत्तीसगढ़ में अघोषित आपातकाल की स्थिति हैं?

इसे हम घोषित आपातकाल कहेंगे।

आपको क्या लगता है कि बार–बार सरकार आपके पति को ही निशाना क्यूँ बना रही है, केंद्र सरकार की भी इस कार्यवाही में मूक सहमति है।

दो दिन पहले हमारे डीजीपी ने कहा कि सारे एनजीओ शक के दायरे में है उन्होंने कहा कि पीयूसीएल पर प्रतिबन्ध लगाएगी तो जनता लगाएगी, जनता के बारे में इस तरह के ब्यान देना बेहद खतरनाक है कुछ दिनो पहले संदीप पांडे और मेधा पाटेकर शान्ति का पैगाम लेकर दंतेवाड़ा गए थे वहां उन पर अंडे और टमाटर फेंके गए थे, जब वो गए थे तो राज्य के मंत्रियों ने कहा कि इनके लिए हम कुछ नहीं कहेंगे इनका फैसला जनता करेगी। ये बातें मुझे विचलित करती हैं कि वो कौन सी जनता है और उसे क्या इशारा किया जा रहा, ये साफ़ है कि वो पीयूसीएल के खिलाफ जनता को सन्देश दे रहे हैं ।

आपको क्या लगता है वो कौन सी जनता है?

वो उस जनता के बारे में बात कर रहे हैं जो उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो

जेल जाने से पहले बिनायक सेन ने आखिरी बात क्या कही?

मेरी मुलाक़ात उनसे २६ को हुई थी जब कोर्ट ने ये खेदपूर्ण निर्णय सुनाया, अब चुकी सजा हो चुकी है मुझे १५ दिन में सिर्फ एक बार मिलने दिया जायेगा, मैंने उने कहा कि हम लड़ेंगे, हम जहाँ तक ले जा सकेंगे ले जायेंगे जीतेंगे या नहीं जीतेंगे हम नहीं जानते। इस परबिनायक ने कहा कि जनतंत्र में बहुत गलतियाँ होती हैं सालों बाद पता लगता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हुई है अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो ये मान लेना कि इसमें जनता का हित जुड़ा है।

क्या आपको लगता है कि हिंदुस्तान में जनता और मीडिया आदालतों के फैसलों की आलोचना करने से डरती हैं, अदालतें साम्राज्यवाद का प्रतीक बन गयी है?

अदालती व्यस्था ने जो इस केस में भूमिका अदा की वो बेहद चिंताजनक है कानून की मौलिक समझ भी इस फासिले में नहीं दिखती, बिनायक के खिलाफ फैसला सुननाने वाले जस्टिस वर्मा पहले वकील थे जो एक परीक्षा पास करके जज बन गए मुझे भी लगता ये कि लोकतंत्र है कोई राजशाही नहीं कि हम फैसलों के खिलाफ आवाज न उठा सके, मुझे लगता है कि अदालतों के निर्णयों के मामले में भी अगर जनता सवाल कर रही है तो गलत नहीं कर रही है।

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आवेश तिवारी
पिछले एक दशक से उत्तर भारत के सोन-बिहार -झारखण्ड क्षेत्र में आदिवासी किसानों की बुनियादी समस्याओं, नक्सलवाद, विस्थापन,प्रदूषण और असंतुलित औद्योगीकरण की रिपोर्टिंग में सक्रिय आवेश का जन्म 29 दिसम्बर 1972 को वाराणसी में हुआ। कला में स्नातक तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय व तकनीकी शिक्षा बोर्ड उत्तर प्रदेश से विद्युत अभियांत्रिकी उपाधि ग्रहण कर चुके आवेश तिवारी क़रीब डेढ़ दशक से हिन्दी पत्रकारिता और लेखन में सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद से आदिवासी बच्चों के बेचे जाने, विश्व के सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्मों की तस्करी, प्रदेश की मायावती सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खुलासों के अलावा, देश के बड़े बांधों की जर्जरता पर लिखी गयी रिपोर्ट चर्चित रहीं| कई ख़बरों पर आईबीएन-७,एनडीटीवी द्वारा ख़बरों की प्रस्तुति| वर्तमान में नेटवर्क ६ के सम्पादक हैं।

3 COMMENTS

  1. lo ji ek or nyayadhish a gaye hai ,mujhe lagata hai bharat ke sabhi nyayadhisho ko hatha kar sare kamyunisto ko,jehadiyo ko,अलगावादियों को को न्यायाधीश बना देना चाहिए……..अगर भारत में कम पड़े तो हम पाकिस्तान से चीन से रूस से आयात कर सकते है ……….

  2. विचार भिन्नता के कारण विचारकों को शत्रु मानना किसी भी प्रजातान्त्रिक देश में असभ्यता का चरम सीमा ही कहा जाएगा देश के ही लोगों पर शासनतंत्र द्वारा जारी शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर देशद्रोही का आरोप – निष्पक्ष विचार कभी मान्य नहीं कर सकता ,विशेष करके डा.सेन पर लगाया गया आरोप तो मानने योग्य ही नहीं है । कानून करना और न्याय करना दोनों में बहुत अन्तर है।
    जनता को न्याय चाहिए ,अंग्रेजों के जमाने का कानून नहीं ,छत्तीसगढ में जो विशेष सुरक्षा कानुन लागु किया गया है वह जनता पर थौपा हुआ कानून है, जो असंवैधानिक और क्रूरता का प्रतिक है। मैं नक्षलि के नाम पर निर्दोष लोगों का हत्या करने को कभी माफ नहीं कर सकता,परन्तु नक्शली पनपने का जो कारण है उसे भी अनदेखा नहीं किया जा सकता हैं ।

    विचारों को नेस्तानाबुत करने का षड़यंत्र कभी सफल नहीं हुआ और आगे भी नहीं हो सकता ,लोग हथियार क्यों उठा रहे है ?क्या कोई ऐसी ही जान देने के लिए तैयार हो जाता है ? जान सबके लिए प्यारा है । चाहे जान आदिवासियों का हो ,एसपीओ का हो सैनिकों का जवानों का या देश के अन्य मनुष्य का जान हो , किसी का भी जान जाना प्रशासन -शासन का असफलता के कारण माना जाता है । शासन अपनी कमजोरी छिपाने के लिए दुसरों पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर जेल भेजने का अर्थ यह नहीं कि आरोपी पूर्ण रूप से दोषी हो ।

    इस देश में निर्दोशों पर अत्याचार का अनेक उदाहरण इतिहास और वर्तमान समय के पन्नों में भरा पड़ा है। कुछ वर्ष पूर्व आर एस एस को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था ,परन्तु आज क्या स्थिति है सभी लोग देख रहे है ।समय और परिस्थितियों का शिकार हो रहे लोगों को देशद्रोही कहना कदापी उचित नहीं है। समय और परिस्थिति ठीक करने के बजाय उसे बनाए रखने के लिए लोगों को दबाना किसी भी किंमत में मान्य नहीं हो सकता ।

  3. गद्दारों को महिमा मंडन band होना चाहिए ,चाहे उपरी कोर्ट कुछ भी फैसला दे लेकिन अभी तक वह गद्दारी का दोषी है इसे गद्दारों से इस राष्ट्र को कुछ भी सहानुभूति नहीं है चार और गद्दारों को इक्कट्ठा करके कोई ये सोचे बड़ा आन्दोलन कर दिया तो उसे मुर्ख कहेंगे सिर्फ ,जनता सब देख रही है इन मओवादियो ओउर उनके आकाओ को सबक सिखाएगी

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