ईजराइल और फिलिस्तीन टकराव का इतिहास

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-फखरे आलम-

israel gaza

बैतुल मुक्कदस; पवित्र धर्मिक स्थान, जिस पर मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का समान रूप से दावा हैद्ध यह स्थान लगभग सौ वर्षों से भी अधिक समय तक कुछ छीटपुट कब्जाओं को छोड़ कर मुसलमानों के कब्जे में रहा। मुसलमानों ने मुसलमानों के विरूद्ध 12 से भी अधिक युद्ध लड़ी। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध को छोड़कर 60 लाख से अधिक इराई मारे गऐ। इतनी बड़ी संख्या में ईसाई को मारे जाने पर मुसलमानों को मुसलमानों के विरूद्ध लड़ाया जाने लगा, और यह अंतरर्राष्ट्रीय कुटनीति का एक अंग है।
शरीपफ-ए-मक्का और कुछ धर्मिक फतवा बेचने वालों के फैसलों के आधर पर 8-9 दिसम्बर के मध्य 1917 में तुर्की सेना ने बेतुलमुकदस खाली कर दियार और विजय सेनापतियों और सेनाओं ने 10 दिसम्बर 1917 को जेनरल शिया और जेनरल ऐलिनबाई जो पिफलिस्तीन और मिस्र का संयुक्त नेतृत्व कर रहा था। विजय सेना के रूप में प्रवेश किया था। इसके पश्चात् ब्रिटेन की सरकार ने अपनी नीतियों का खुलासा कर दिया। इन्साइकलोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका के अनुसार इस अभूतपूर्व घटना से पहले येरूशलम में कोई भी विजय यहूदी अथवा ईसाई का इस प्रकार से प्रवेश पिछले साढ़े सात सौ वर्षों में नहीं हुआ था। अन्ततः चार सो वर्ष पुरानी असमानी काल का दुखद अंत हो गया।
इतिहासकार ने इसे तेरहवीं अरब युद्ध का नाम दिया था। चर्चीली अपनी पुस्तक-‘‘दी ग्रेट वार’’ में लिखता 8 दिसम्बर 1917 को तुर्कों के हाथ से बेतुलमोकद्दस (पवित्र स्थान) निकल गया। उसके तुरन्त पश्चात् ब्रिटिश सेना अधिकारी अपने सैन्य बलों के साथ शहर में प्रवेश कर गऐ। जॉर्ज टाउनसन्ड ने अपनी पुस्तक ‘‘ग्रान्ड वर्कस ऑफ ब्रिटिश हिस्ट्री’’ में लिखा है कि अरब में एक विजेता के रूप में मैं कैप्टन लारन्स को धन्यवाद देता हूं जो इस विजय का असी नायक था। जिन्होंने अपनी कूटनीति और योजना के अन्तर्गत मुसलमानों के विरूद्ध मुसलमानों का प्रयोग करते हुऐ विजय श्री को प्राप्त कर लिया।’’ कैप्टन लारन्स ने अरब और अन्य इस्लामी नेताओं और बुद्धिजीवियों का प्रयोग धन के प्रलोभन के साथ किया और वह सफल रहा।

अरब ध्रती पर इस्लाम को छतविछत इसी धरती पर जन्मे अरब मूल्यों के मुसलमानों के हाथ ब्रिटिश सरकार और उनके अगवा कैप्टन लारन्स के हाथों हुआ और जो आग उन्होंने लगाई थी वह आज भी लौ के साथ जल रही है। पिछले 12 युद्ध में भी यहूदियों ने इस स्थान को नहीं जीत पाऐ मगर जब अंग्रेजों के साथ अपने घर को आग लगाने वाले मिल गऐ तो उन्होंने इस स्थान को सहजतापूर्वक जीत लिया! इसी रणभूमि से इस्लाम के नाम पर और इस्लाम के लिऐ ‘‘जहाद’’ शब्द का प्रयोग शुरू करवाया गया। जहाद जैसे पवित्रा और धर्मिक शब्दों को आज तक अचुक वाण के रूप में इस्लाम के विरोध् में प्रयोग किया जा रहा है। इस्लामी दुनिया में अनेकों ऐसे हिरो थे और आज भी हैं जो इस्लाम और इसकी अस्मिता से खिलवाड़ कर रहे हैं। जैसे जैसे इस्लाम के अनुयायी अपने रास्तों से भटकने लगे पिफलिस्तिन जैसा अन्य देश बनता गया। प्रख्यात नाटककार जर्ज वरर्नाड शाह ने 1822 में लिखा था कि इस्लाम विश्व के सबसे अच्छे धर्मों में से है। मगर इसके अनुयायी सबसे घटिया स्तर के है।
जिस जमीन पर भी खिला मेरे लहू का परचम!
लहलहाता है, वहाँ अरज पिफलिस्तीन का परचम!!
तेरे ऐसा ने किया एक पिफलिस्तीन बरबाद!
मेरे जख्मों ने किऐ कितने फिलिस्तीन आबाद!!
जमाना अब नहीं जिसके सौज से फारिग!
मैं जानता हूं वह आतिश तेरे वजूद में है!!
तेरी दवा न जनेवा में है न लंदन में।
फरन की रगे जान पंजा-ए-यहूद में है!!
सुना है! मैंने गुलामी से उमतों की निजात!
मैजी की परवरिश व लजत ऐ नमुद में है!!

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