मनमोहन युग का अवसान…

-राजकुमार व्यास-
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अगले कुछ दिनों बाद नरेंद्र मोदी भारत के चौदहवें प्रधानमंत्री पद पर आसीन हो जायेंगे और साथ ही साथ गत दस वर्षों से प्रधानमंत्री पद का दायित्व निभा रहे डॉ. मनमोहन सिंह सत्ता की राजनीति से पूरी तरह से विदा ले लेंगे। सच कहे लगता है एक युग के अंत के हम दर्शक हो रहे हैं।
भारतीय राजनीति मे स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू के बाद लगातार एक दशक तक प्रधानमंत्री के रूप इस देश का नेतृत्व करने वाले शख्स के इस दस बरस के कार्यकाल का मूल्यांकन अपने आप मे एक कठिन यो कहे दुश्कर कार्य है। २६ सितम्बर १९३२ को पंजाब (पाकिस्तान) में जन्मे डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपने जीवन का बहुतायत समय इस देश की प्रशासनिक सेवाओं में अपना योगदान देते हुए बिताया है। इस देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवायें देने के पश्चात जब देश नब्बे के दौर मे कठिन आर्थिक परिस्थिति से झुंझ रहा था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने साहसिक निर्णय लेते हुए सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को इस देश का वित्तमंत्री बनाया और मिश्रित अर्थव्यवस्था की हमारी जंग खाते और दिवालियेपन की ओर जाते देश को संभालते हुए आर्थिक सुधारो को मजबूती के साथ लागू किया और उसी का सुखद परिणाम हुआ कि देश के आर्थिक हालत शनेः शनेः मजबूत होते गए।

मनमोहन सिंह के वित्तमंत्रीय कार्यकाल के दौरान आरम्भ हुए आर्थिक सुधारों एवं खुलेपन के दौर को स्वर्गीय नरसिम्हा राव के बाद प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स ने भी जारी रखा। अति आत्मविश्वास के कारण सत्ता से बाहर होने के बाद जब कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन २००४ मे चुनावों के बाद सत्ता में आया और सोनिया गांधी को अपना नेता चुना लेकिन तत्कालीन दिलचस्प घटनाक्रम के बाद सोनिया गांधी ने उस समय राज्य सभा में विपक्ष के नेता मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर कांग्रेस संसदीय दल के नेता के रूप मे मनोनीत किया। वो भी एक ऐतिहासिक घटना के रूप में इतिहास में लिखा जायेगा।

२००४ से लेकर २०१४ तक लगातार दो कार्यकालों में देश का नेतृत्व करने वाले डॉक्टर मनमोहन सिंह अगली २६ तारीख को देश की बागडोर कांग्रेस की बुरी तरह हार एवं भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी को सौप देंगे। डॉक्टर मनमोहन सिंह के राजनैतिक जीवन की अगर गंभीरता से विवेचन किया जाय तो अनेक पहलुओं से मिश्रित व्यक्तित्व के रूप में सामने आयेगा। नौकरशाह से प्रधानमंत्री तक के सफर, आर्थिक सुधारों के जनक से लेकर रोबोट प्रधानमंत्री, विदेशों मे अपने अर्थशास्त्र के हथियार से एक दशक पहले मंदी बचाने वाले मजबूत इच्छाशक्ति वाले नेता से लेकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अकर्मण्यता वाले नेता की छवि के रूप में जायेगी।

सामान्य बहुमत से आर्थिक सुधारों के कट्टर विरोधी वामपंथियों के समर्थन से मजबूती के साथ जहां पहले कार्यकाल मे सरकार का नेतृत्व किया, वरन् जब परमाणु संधि के मुद्दे पर जिस प्रकार वामपंथियों के समर्थन वापसी की धमकियों को भी नजरअंदाज किया और सफलतापूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया, पूरे विश्व मे फैली मंदी का देश में न्यूनतम प्रभाव आने दिया, संगठन और सरकार के बीच शानदार सामंजस्य बनाये रखा, आरटीआई और मनरेगा जैसे कानून लागू किये जाने, मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान से कड़ाई से पेश आना… आदि अनेक कारण जहां डॉक्टर मनमोहन सिंह को एक ढृढ़़ मजबूत इच्छाशक्ति वाले नेता की छवि बनाता है, वहीं लगता है कि दूसरे कार्यकाल में उनकी छवि ठीक इसके विपरीत बनती है।

तीस्ता समझौता के वक्त सुश्री ममता बनर्जी के सामने झुकना, भ्रष्टाचार के अनगिनत घोटालो से निपटने मे ढिलाई चाहे कोल घोटाला हो, या थ्रीजी टेलीकॉम घोटाला, कॉमनवेल्थ खेलों मे हुए घोटालों की लम्बी लिस्ट, महंगाई पर किसी भी तरह का नियंत्रण ना होना, मंदी की कड़ी चोट से देश को न बचा पाना, महंगाई के मुद्दे पर सत्ताधारी दल के नेताओं अनियंत्रित बदजुबानी, लोकपाल के मुद्दे पर ढिलाई, देश के किसी भी मुद्दे पर अपनी बात ना रखना, पड़ोसी देशों भड़काने वाली कार्यवाही का मजबूती से जबाब न देना, कांग्रेस संगठन विशेष तौर उपाध्यक्ष राहुल गांधी का बेलगाम होना न सिर्फ डॉक्टर मनमोहन सिंह की बल्कि देश के प्रधानमंत्री की गरिमा को भी चोट पहुंचाता गया। कार्यकाल के अंत आते आते आते डॉक्टर मनमोहन सिंह जनता के बीच एक मजाक का केंद्र बन गये थे। इन प्रशासनिक असफलताओं के बीच इस दूसरे कार्यकाल मे हुए अच्छे कार्य नगण्य लगने लगे।

खैर, जो भी हो बकौल खुद डॉक्टर मनमोहन सिंह के शब्दों में कि इतिहास उनके साथ न्याय करेगा। भविष्य में मेरी धारणा है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह बेहद ईमानदार, विद्वान अर्थशास्त्री, वफादार, मृदुभाषी और साथ ही इस देश की आर्थिक प्रगति को नयी दिशा देने वाले नेता के रूप में याद रखेगी। इस मनमोहन युग को वफादार युग की अंतिम कड़ी के रूप में भी याद किया जायेगा।

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