अंतहीन होता आज भ्रष्टाचार का मुद्दा

आर.एस.शर्मा ‘नागेश’

आज समूचे भारत में ही नहीं पूरे विश्व में भारतवर्ष में चल रहे काला धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चल रही गर्माहट की चर्चा जोर-शोर से चल रही है। बच्चा, बूढ़ा, जवान, स्त्री, पुरुष और हर वर्ग से जुड़ा समाज इसी को लेकर बड़ा ही गंभीर है। ऐसा नहीं कि भ्रष्टाचार का अस्तित्व अभी कुछ ही घंटों या कुछ ही दिन पहले सामने आया हो। यह तो एक ऐसा कोढ़ है जो हर युग में किसी न किसी रुप में पनपता रहा है। ऐसे में वर्तमान में ऐसा क्या हो गया जो बवाल बन गया। अन्ना हजारे ने अपने आमरण अनशन के द्वारा देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ क्रांति सी ला दी। सोने में सुहागा  हुआ बाबा रामदेव का देश-विदेश में सड़ रहे काले धन के प्रति विरोध। देशवासियों को बताए गए अंचभित करने वाले देश-विदेश में पड़े सड़ रहे काले धन के आंकड़े अत्याधिक उत्सुकता के साथ-साथ जागरुकता भी पैदा कर गए। सरकार का घबराना लाजमी था।

हमने अंग्रेजों की बाखूबी बड़े लम्बे समय तक गुलामी की है और उनसे बहुत कुछ सीखा भी है। ऐसे में उस सीख का सही समय पर सदुपयोग न करना मूर्खता मानी जा सकती है। सरकार ने भी वैसा ही किया। जो गुड़ से मर सकता था उसे गुड़ से मारने का प्रयास किया और जो जहर से उसे जहर से मारा। प्रसिद्ध सर्वोदयी नेता अन्ना हजारे एंड बटालियन नरम दल का चूंकि प्रतिनिधित्व कर रही थी इसलिए उसे गुड़ रुपी टालू मिक्सचर की डोज देकर पहले चुप कराया गया और बाद में दरकिनार सा कर दिया गया परन्तु बाबा रामदेव गरम दल की अगुवाई सी कर रहे थे इसलिए उन्हें पुलिसिया डंडों और भांति भांति  की जांच रुपी जहर देकर शांत करने की कोशिश की गई। यह तो कहना मुश्किल है कि सरकार द्वारा दिए गए गुड़ और जहर का इन दोनों प्रमुख आंदोलनकारियों पर क्या असर हुआ है परन्तु एक बात दीगर है कि सरकार की नीयत दुनिया के सामने खुलकर आ गई है। सरका र भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर या तो पूर्ण रुपेण चुप्पी साधना चाहती है या इसे लम्बे समय तक टालने में विश्वास रखती है। टालने में ज्यादा फायदा है क्योंकि काले धन के कारोबारियों को पूर्ण समय मिल सकता है कि वे अपना देश और विदेश में रखा हुआ काला धन संभाल लें।

एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी उठता है कि आखिर भ्रष्टाचार की परिभाषा क्या है। इसका प्रारंभ और अंत कहां है। सभी जानते हैं फिर भी जान-बूझकर अंजान बने रहते हैं। आज का आम आदमी जब घर से निकलता है तो भ्रष्टाचार प्रांरभ करते हुए निकलता है और जब वापिस घर पहुंचता है तो चम्मच-लोटे और बोरियां भरकर वापिस आता है। बड़ा ही बदकिस्मत तो वह माना जा सकता है जो आज के इस भ्रष्टाचार के युग में ईमानदारी से चलना चाहता है। आज का आम आदमी किसी भी काम को पूर्ण करना चाहता है और यदि उसके सामने लम्बी लाईन लगी हो तो उसका पहला प्रयास यह होगा कि वह सबसे पहले अपना काम करवा ले। किसी जान-पहचान वाले के द्वारा या कुछ खिला-पिलाकर। रेलगाड़ी में टिकट लेनी है तो टीटी को कुछ खिला-पिलाकर काम निकलवाना चाहता है। बाढ़ पीड़ितों के लिए सहायता हो या सूखे के लिए या किसी भी अन्य प्राकृतिक आपदा की राहत के लिए उपयोग मे लिया जाने वाला धन जरुरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता, आखिर क्यों? सच्चाई यह है कि सिविक सोसायटी हो या राजनीतिक पार्टियां सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं मगर सोच अलग-अलग। आज भ्रष्टाचार का मुद्दा अंतहीन हो चुका है। पहले भी सैकड़ों-हजारों कानून बनने के बाद सड़ रहे हैं। ऐसे में लोकपाल बिल हो या जनलोकपाल बिल यदि वह बन जाता है या दबाव में बना भी दिया जाता है तो उनकी अनुपालना तो सरकार को ही करनी है जो होने से रही। इससे तो बेहतर यही है कि जितने कानून पहले से बन चुके हैं उन पर सख्ती से अमल होना शुरू हो जाए तो किसी अन्य कानून या बिल के बनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।

2 COMMENTS

  1. ऐसे भ्रष्टाचार एक ऐसा विषय बन गया है की कोई भीइसके बारे में लिख कर या बोल कर बहती गंगा में हाथ धो ले रहा है,जबकि सत्य है की हम सब इसमें लिपटे हुए हैं.मैंने बार बार लिखा है की हमाम में सब नंगे हैं,फिर भी जब आप यह कहते हैं की.
    “इससे तो बेहतर यही है कि जितने कानून पहले से बन चुके हैं उन पर सख्ती से अमल होना शुरू हो जाए तो किसी अन्य कानून या बिल के बनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।’.
    तो आप एकबात भूल जाते हैं की जन लोकपाल बिल क़ानून के छिद्र को बंद करने के लिए एक प्रयास मात्र है.यह सही दिशा में उठाया गया एक ऐसा कदम है ,जो भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने में शायद कुछ सहायक होसके.बाबा रामदेव के आन्दोलन और अन्ना हजारे में मेरे विचार से यहीं अंतर हैं.बाबा रामदेव जागरूकता ला रहें हैं ,पर उचित क़ानून के अभाव में उनके आन्दोलन का भी,अगर प्रारम्भिक सफलता मिल भी गयी ,तो मेरे विचार से,उससे भी खराब अंत होने की अधिक सम्भावना है ,जो जेपी के सम्पूर्ण क्रान्ति वाले आन्दोलन का हुआ था. अत: अगर हम सचमुच भ्रष्टाचार के समाप्ति के लिए गम्भीर हैं,तो पहले एकजूट होकर जन लोकपाल बिल को एक्ट बनवाने लिए और उसको लागू कराने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए..

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