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ऊर्जा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
कुछ दिन के लिये, लेखनी कभी रुक सी जाती है। कोई कविता या कहानी, जब नहीं भीतर कसमसाती है, तब कोई बन्दिश पुरानी, याद आती है, कोई सुरीली तान मन में, गुनगुनाती है। कहीं से शब्द जुड़ते हैं, कहीं पर भाव मुड़ते हैं, कोई रचना तभी, काग़ज पर उतरके आती…