परसों एक पाठक ने पोर्न की हिमायत में कहा कि पोर्न तो महज मनोरंजन है। मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूँ। पोर्न सिर्फ मनोरंजन नहीं है। पोर्न औरतों के खिलाफ नियोजित विचारधारात्मक कारपोरेट हमला है। पोर्न की विश्वव्यापी आंधी ऐसे समय में आयी है जब महिला आंदोलन नई ऊँचाईयों का स्पर्श कर रहा था। पोर्न के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि पोर्न को देखने वाले औरतों के प्रति संवेदनहीन होते हैं। खासकर औरतों के खिलाफ जब अपराध होते हैं तो संवेदनहीनता का प्रदर्शन करते हैं। पोर्न के भोक्ता औरतों के खिलाफ आपराधिक कर्मों को लेकर आक्रामक भाव में रहते हैं।
पोर्न के द्वारा औरत के प्रति प्रच्छन्नतः कामुक नजरिया निर्मित किया जाता है। औरत को पुरुष के बराबर राजनीतिक और सामाजिक दर्जा देने की भावना से दर्शक दूर होता चला जाता है। नेट पर पोर्न सामग्री के प्रदर्शन पर रोक लगायी जानी चाहिए। सेक्स और कामुकता के नग्न प्रदर्शन को हमें अभिव्यक्ति और व्यापार की आजादी ने नाम पर खुली छूट नहीं देनी चाहिए।
यह सच है कि इंटरनेट अभिव्यक्ति की आजादी का चरमोत्कर्ष है,लेकिन इंटरनेट के भी एथिक्स अथवा आचार-संहिता के बारे में गंभीरता के साथ सोचा जाना चाहिए।
कुछ पोर्न प्रेमी सोचते हैं कि पोर्न कामोत्तेजना का स्रोत है.कामाग्नि बढ़ाने का काम करता है,सच यह है कि पोर्न से कामाग्नि बढ़ती है लेकिन यथार्थ ऱुप में नहीं। पोर्न से उत्तेजित होने वाले स्त्री-पुरूष संबंधों के बाहर जाकर कामोत्तेजित होते हैं। ऐसे लोग अपनी कामाग्नि को अस्वाभाविक ढ़ंग से शांत करते हैं। अस्वाभाविक सेक्स में आनंद लेते हैं।
पोर्न कामाग्नि भोक्ता के वैवाहिक जीवन को भी नष्ट कर सकती है। पोर्न का भोक्ता ऐसे सेक्स में आनंद लेने लगता है जिसे परवर्टेट सेक्स भी कहते हैं। ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ( 20 मई 2001) के अनुसार पिछले साल 11,000 पोर्न वीडियो बाजार में आए,जबकि हॉलीवुड से मात्र 400 फिल्में रिलीज हुईं। पोर्न का चस्का जिसे लग जाता है वह बार-बार पोर्न बेवसाइट पर जाता है। ज्यादा से ज्यादा पोर्न देखता है।
पोर्न के द्वारा यह विभ्रम पैदा किया जाता है कि सेक्स.प्रेम और आत्मीयता सब एक ही चीज हैं। पोर्न यह भी सिखाता है कि किसी भी अंजान व्यक्ति से सेक्स किया जा सकता है। क्योंकि पोर्न में जिससे कामुक संबंध बनाते हैं वह अपरिचित ही होता है। पोर्न यह भी संदेश देता है कि सेक्स में संतुष्टि मिलना ही महत्वपूर्ण चाहे वह किसी के भी शरीर से मिले। पोर्न यह मिथ बनाता है कि सेक्स किसी से भी और कभी भी किया जा सकता है। सेक्स का कोई परिणाम नहीं होता।
पोर्न के द्वारा सेक्स की खोखली और कृत्रिम धारणा का निर्माण किया जा रहा है जिसके अनुसार संबंध का अर्थ है सेक्स, प्रेम का अर्थ है सेक्स। जबकि सच यह नहीं है स्त्री-पुरुष संबंधों का आधार है प्रतिबद्धता, आपसी विश्वास और आपसी केयरिंग। प्रत्येक स्तर पर केयरिंग ,शेयरिंग और विश्वास के आधार पर स्त्री-पुरुष संबंध बनता है। सिर्फ सेक्स के आधार पर संबंध नहीं बनता। इसका अर्थ यह नहीं है कि सेक्स बुरी बात है। सेक्स मनुष्य की सबसे सुंदर क्रिया है। आप जिसे प्यार करते हैं,और वह भी आपके प्यार को स्वीकार करे, उससे जब सेक्स करते हैं तो सेक्स का आनंद विलक्षण अनुभूति देता है। सेक्स के लिए समग्र समर्पण जरुरी है,समग्र समर्पण ही सेक्स को परमानंद की अनुभूति में बदलता है।
पोर्न के समर्थकों का तर्क है कि वे सेक्स के सत्य का ज्ञान कराने के लिए पोर्न बनाते है। यह बात एकदम गलत है। पोर्न से सेक्स के सत्य का ज्ञान नहीं होता। पोर्न का निर्माण शिक्षा के मकसद से नहीं किया जाता। पोर्न के प्रचारक औरत, विवाह, सेक्स,कामुकता आदि के बारे में सफेद झूठ बोलते हैं। उनका एकमात्र मकसद है किसी भी तरह नेट यूजरों की भीड़ को बांधे रखना और आकर्षित करना।
पोर्न के प्रचारक बार-बार कहते हैं कि औरत का दर्जा मानवी के दर्जे से नीचे है। वे औरत की तुलना पशुओं से करते हैं। शरीर के खास अंगों से करते हैं। वे औरत को हाड़-मांस के रुप में पेश करते हैं। यह ऐसी औरत है जिसकी संवेदना नहीं है,दिल नहीं है,संसार नहीं है, उसकी सामाजिकता नहीं है। उसके विचार नहीं हैं। उसके पास अगर कोई चीज है तो शरीर है, योनि है, स्तन हैं, गुदा है और वह संवेदनारहित सेक्स मशीन है।
पोर्न के प्रचारक यह भी बताते हैं कि औरत तो खिलौना है। औरत को खिलौना के रुप में पेश करने चक्कर में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना सिखाया जाता है जिसका औरत के खिलौना और सेक्सरुपी खेलभाव से संबंध है।
औरत के बारे में पोर्न प्रचारक यह भी कहते हैं कि औरत संपत्ति है, आप खरीद सकते हैं। आप जब किसी औरत पर पैसा खर्च करते हैं तो उससे सेक्स करना अपना अधिकार समझते हैं।
पोर्न के प्रचारक बताते है कि औरत का मूलाधार है उसका आकर्षक शरीर। आकर्षक औरत को परफेक्ट औरत के रुप में भोक्ता के मन में उतारा जा रहा है। वे औरत के दिमाग और व्यक्तित्व को नोटिस ही नहीं लेते। उनके लिए तो स्त्री का शरीर ही सर्वस्व है। वे यह भी मिथ बनाते हैं कि औरत बलात्कार पसंद करती है। औरत जब नहीं कहती है तो इसका अर्थ है हां। उसकी ना को हां समझो।
पोर्न में औरत के साथ बलात्कार, शारीरिक उत्पीड़न आदि को जिस तरह दिखाया जाता है उसका अर्थ यह है कि औरत का उत्पीड़न आनंद है। पोर्न में आमतौर पर औरत के बारे में घटिया और गंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है ऐसा करते हुए पोर्न प्रचारक औरत का सामाजिक दर्जा गिराते हैं। वे यह भी प्रचार करते हैं कि छोटे बच्चों को सेक्स करना चाहिए, छोटे बच्चों के साथ सेक्स करना चाहिए। पिता को बेटी के साथ, मां को बेटे के साथ, भाई को बहन के साथ, मनुष्य को पशु के साथ सेक्स करना चाहिए। अवैध सेक्स आनंद है। मजा है। अवैध सेक्स खतरनाक और नुकसानदेह नहीं होता। वेश्याएं ग्लैमरस होती हैं।
पोर्न वर्चुअल इमेजों का खेल है। इमेजों के माध्यम से भोक्ता को बहलाया-फुसलाया जाता है, उसे पोर्न प्रोडक्ट खरीदने के लिए मानसिक तौर पर तैयार किया जा रहा है, पोर्न के उत्पादों के प्रति आम जनता के अलगाव को कम किया जा रहा है। पोर्न से संघर्ष का अर्थ है इमेजों से संघर्ष। इमेजों के प्रति सतर्कता और सामाजिकता ही एकमात्र पोर्न से बचा सकती है।
-जगदीश्वर चतुर्वेदी
स्कूल में जहा योग प्रयानाम सिखाया जाना चाइये वहां सेक्स सिक्षा पर जोर दिया जा रहा है. सरकार इसे पूरा समर्थन दे रही है. समाज में जैसा वातावरण होगा बच्चा वैसा व्यव्हार करेगा. देश का भविष्य मैदान में पसीना नहीं बहायेगा, महनत नहीं करेगा, ठीक से नीदं नहीं आएगी तो जाहिर है पोर्नोग्राफी की तरफ उत्सुक होगा.
आज की पीढ़ी के लिए आपका लेख बहुत ही मार्ग दर्शक है
बहुत-बहुत साधुवाद
चतुर्वेदी जी ने एक गम्भीर, गोपनशील तथा कम चर्चित मुद्दा उठाया है।
उनके वर्णन से पूर्ण सहमत होते हुए मैं कुछ और विचार जो.डना चाहता हूं।
पोर्नोग्राफ़ी के मुद्दे को समझने के लिये हमें उसके आमदनी के ज़रिये या तरीके भी देखने होंगे ।
पो. फ़िल्म बनाना किसी भी फ़िल्म बनाने के समान मँहगा या खर्चीला काम है।
तब यह फ़िल्म बनाने वाले बिना किसी विज्ञापन को दिखलाए कहां से पैसे कमाते हैं ?
एक संभावना तो यह है कि वे उन सैक्स कार्मिकों (वेश्याएं नहीं, वे भी अन्य कार्मिकों की तरह काम करती हैं) का अप्रत्यक्ष विज्ञापन करते हैं।
दूसरा, सैक्स उपकरणों का विज्ञापन करते हैं।किन्तु यह आमदनी के लिये पर्याप्त नहीं लगता।
एक संभावना और बनती है कि पोo. फ़िल्में मनुष्य को उत्तेजित अवस्था में लाकर छो.ड देती हैं। तब उसके विवेकशील निर्णय की क्षमता दुर्बल हो जाती है।
तब उसके बाद, एक तो, वह भोली लड़कियों को धोखा देकर फ़ँसा सकता है, और् दूसरे बलात्कार आदि कर सकता है, यद्यपि इससे फ़िल्मकारों को कोई लाभ नहीं होता।किन्तु समाज में दुख बढ़ता है। भोला किशोर वर्ग भी इसमें फ़ँसता है। समाज के लिये यह हानिकारक ही है।
और अधिकांश उत्तेजित व्यक्ति, विवेक की दुर्बलता के कारण बाजार जाकर अनावश्यक किन्तु आकर्षक वस्तुएं खरीदने के लिये अवचेतन स्तर पर मानसिक रूप से तैयार रहते हैं। यह बाजारवाद तथा भोगवाद को बढ़ाने की एक प्रभावशाली प्रक्रिया हो सकती है, जिससे उद्योगपतियों को लाभ ही लाभ होता है, और माडल्स के दाम बाजार में बढ़ते हैं, और युवतियों के लिये ‘बाजार’ तैयार हो जाता है । बाजार को माडल्स मिल जाते हैं जो भोगवाद को बढ़ाते हैं। औरत बाजारू चीज़ है यह धारणा सशक्त होती जाती है और औरत भी यह स्वीकार करती है। अर्थात पोo. फ़िल्मों के निर्माण में उद्योगपतियों के शामिल होने की संभावना लग़ती है।