समय रहते पर्यावरण संरक्षण जरूरी!

दीपक कुमार त्यागी

ज़िंदगी में साँस लेने के लिए स्वच्छ प्राण वायु यानी ऑक्सीजन की क्या अहमियत होती है, यह बात अधिकांश देशवासियों को कोरोना की बेहद भयावह दूसरी लहर ने अपना प्रचंड प्रकोप दिखाकर बहुत ही कम समय में समझा दी है। जिस तरह से इस बेहद भयंकर कोरोना आपदाकाल में लोग अपनों के जीवन को बचाने के लिए रात-दिन एक करके अस्पतालों के धक्के खाकर संघर्ष करते हुए नज़र आये, शायद उस हाल को किसी भी पारिवारिक व मित्रता के रिश्ते नातों को मानने वाले व्यक्ति को कई दशकों तक भूलना संभव नहीं है। इस भयावह दौर में बहुत सारे लोग अपने प्रियजनों के लिए साँस यानी ऑक्सीजन का बंदोबस्त करने में नाकाम रहे, जिसकी वजह से देश में ना जाने कितने लोगों को असमय काल का ग्रास बन पड़ा। लेकिन अब वह समय आ गया है जब जीवन को बेहतर रखने के लिए स्वच्छ आबोहवा व साँस लेने के लिए स्वच्छ ऑक्सीजन के प्रति हम लोगों को जागरूक होना ही होगा है, वरना फिर बहुत देर हो जायेगी। जिसके लिए देश में पर्यावरण की सुरक्षा करते हुए वृक्षों को लगाने व बचाने के लिए दिलोदिमाग से युद्धस्तर पर रणनीति बनाकर निरंतर जगह-जगह बड़ा अभियान चलाना होगा। क्योंकि जिस तरह से देश में बहुत सारी जगहों पर वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, उसको जल्द से जल्द नियंत्रित करना हर हाल में बेहद आवश्यक है, वरना वह दिन दूर नहीं है जब वायु प्रदूषण की वजह से विभिन्न तरह की घातक बीमारी आयेदिन लोगों को अपना शिकार बनाया करेगी। इसके लिए समय रहते सरकार को दीर्घकालीन रणनीति बनाकर धरातल पर आम-जनमानस को जोड़कर कार्य करना होगा, ध्यान रखना होगा कि बिना आम-जनमानस के जुड़े इस लक्ष्य को हासिल करना बेहद कठिन है। इसी उद्देश्य के लिए विश्व में पांच जून को हर वर्ष एक विशेष थीम के साथ “विश्व पर्यावरण दिवस” के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2021 के “विश्व पर्यावरण दिवस” की थीम “पारिस्थितिकी तंत्र बहाली” है।

हालांकि “विश्व पर्यावरण दिवस” का उद्देश्य आम-जनमानस को समय रहते पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक और सचेत करना है। हम लोगों को समय रहते यह समझना होगा कि प्रकृति की सुरक्षा किये बिना मानव का जीवन इस धरा पर किसी भी हाल में लंबे समय तक संभव नहीं है। हमारे स्वस्थ्य जीवन के लिए स्वच्छ व अनेकानेक विविधताओं से परिपूर्ण पर्यावरणीय संतुलन वाला माहौल बेहद आवश्यक है। जीव-जंतु, पेड़-पौधे, जंगल, नदियां, झीलें, सागर, जमीन, स्वच्छ वायु, वन्यक्षेत्र, पहाड़ आदि बहुत जरूरी हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही “विश्व पर्यावरण दिवस” मनाने का फैसला वर्ष 1972 में “संयुक्त राष्ट्र महासभा” द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद लिया गया था। इसके बाद ही पांच जून 1974 को पहला “विश्व पर्यावरण दिवस” मनाया गया था। पिछले वर्ष की भांति कोरोना काल में मजबूरी के चलते पांच जून को हम लोग एकबार फिर से “विश्व पर्यावरण दिवस” मनाने की ओपचारिकता का निर्वहन करेंगे। लेकिन अब वह समय आ गया है जब हमें हर हाल में ज़िंदगी में पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े प्रत्येक पहलू की अहमियत को समझना ही होगा और केवल एकदिवसीय कार्यक्रम करने की जगह हम सभी लोगों को अपने रोजमर्रा के व्यवहार को बदल कर हर हाल में पर्यावरणीय फ्रेंडली बनाना होगा। आज देश में हर तरह के बढ़ते प्रदूषण की भयावहता को देखते हुए उसको नियंत्रित करने के लिए प्रकृति के हितों की रक्षा करते हुए हम लोगों को जीवन जीना जल्द से जल्द सीखना होगा। हमें समय रहते यह समझना होगा कि स्वस्थ जीवन रखने के लिए, दवाई-गोली व संसाधनों की भारीभरकम फौज से अधिक स्वच्छ पर्यावरण एक बेहद कारगर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि अगर देश में पर्यावरण बेहतर होगा तो हमें साँस लेने के लिए स्वच्छ प्राण वायु यानी ऑक्सीजन मिलेगी, सर्वगुण संपन्न पोष्टिक भोजन मिलेगा, मन को आनंदित करने वाली प्राकृतिक जैव विविधता मिलेगी, जीवन जीने के लिए हर पल एक बेहद सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी।

“पर्यावरण की सुरक्षा करने के लिए हमकों अपने आसपास रहने वाले विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु जानवरों से सीखना होगा। क्योंकि जीव-जंतु जानवरों और मनुष्यों के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि जीव-जंतु जानवर पर्यावरण के माहौल के अनुसार खुद को बदलते हैं, जबकि मनुष्य प्रकृति के कार्यों में जबरन हस्तक्षेप करके विज्ञान का अत्याधिक उपयोग करके पर्यावरण को जबरन अपने अनुकूल बदलने का दुस्साहस करते हैं, जिस गलत आदत को पर्यावरण की सुरक्षा की खातिर अब बदलना होगा। हमें जल्द समझना होगा की पर्यावरण हमारे जीवन का सच्चा साथी है, वह एक उस पड़ोसी की तरह है जो अच्छा होगा तो आसपास रहने वालों की ज़िंदगी बेहद सरल हो जाती है और बुरा होता है तो ज़िंदगी लड़ाई-झगड़े में लगे रहने के कारण नरक बन जाती है। जीवन में पल-पल पर्यावरण की विभिन्न प्रकार की उत्पन्न परिस्थितियां हमारी कार्यशैली व व्यवहार को प्रभावित करती हैं, अच्छा पर्यावरण सकारात्मक व बढ़़ता प्रदूषण नकारात्मक स्थिति उत्पन्न करता है।”

वैसे भी दुनिया भर के वैज्ञानिक तरह-तरह के बढ़ते प्रदूषण की वजह से लंबे समय से लगातार पर्यावरणीय परिवर्तन को लेकर सावधान करते आ रहे हैं, लेकिन विश्व में अधिकांश देशों के लोग इन वैज्ञानिकों की चेतावनियों को लगातार जाने-आनजाने में नजरअंदाज करते आ रहे हैं। ऐसे में आज बहुत सारी जगहों पर यह स्थिति हो गयी है कि साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा तक मौजूद नहीं है, पीने के लिए स्वच्छ पेयजल नहीं है व मिट्टी के प्रदूषित होने के चलते पेट भरने के लिए केमिकल फ्री अनाज नहीं है, ध्वनि प्रदूषण चैन से नींद तक नहीं लेने देता है, जो स्थिति स्वस्थ्य शरीर के लिए ठीक नहीं है। पर्यावरण परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज की वजह से विभिन्न जीव-जंतु, वनस्पति व वृक्षों की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर हैं, ऐसे में प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की चैन टूटने की वजह से विभिन्न जीव-जंतु, वैक्टीरिया व वायरस आदि अप्रत्याशित ढंग से बढ़ या घट जाते है, जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता हो और जो हालात कोरोना वायरस के प्रकोप की तरह मानव जीवन के अस्तित्व के लिए कभी भी बड़ा खतरा बन सकती हैं। एक रिर्सच के मुताबिक पर्यावरण में परिवर्तन की वजह से समुद्र का तल गर्म होने चलते भविष्य में मानव जीवन पर बड़े खतरे के संकेत मिले हैं, “यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा” के इंफेक्शस डिजीज एक्सपर्ट सांद्रा गॉम्प्फ ने दावा किया है कि इंसानी दिमाग को खा जाने वाला अमीबा नाएग्लीरिया फॉलेरी और इंसानी शरीर को गला देने वाला बैक्टीरिया विब्रिओ वल्नीफिकस इंसानों पर कहर बनकर टूट सकते हैं। पर्यावरण में तेजी से बढ़ रही गर्मी की वजह से यह पैथोजन्स अब इंसानों के बीच पहुंचने लगे हैं, जो नाएग्लीरिया फॉलेरी उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप में अभी तक कम ही मिलते थे, अब अमेरिका के फ्लोरिडा, टेक्सास जैसे राज्यों में समुद्र किनारे भी यह अमीबा मिले हैं। मेरीलैंड जैसे राज्यों में इनके मिलने का मतलब है कि भविष्य में गंभीर खतरा और यह सब क्लाइमेट चेंज की वजह से कुछ ही समय में इंसानों के लिए कभी भी बड़ा खतरा बनकर उठ खड़े हो सकते हैं, जो हमारी आने वाली पीढियों के लिए चिंताजनक संकेत हैं।

आज हमारे देश के सामने विभिन्न तरह के प्रदूषण की चुनौती सुरसा राक्षसी की तरह मुंह खोलकर खड़ी हुई हैं, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से जल, वायु, धरती को हमने बहुत ज्यादा प्रदूषित करके रख दिया है, जो स्थिति स्वस्थ जीवन के हित में ठीक नहीं है। हालांकि कोरोना की वजह से लंबे समय से चले लॉकडाउन ने प्रकृति की स्थिति को कुछ बेहतर बनने का मौका दिया है, देश के कुछ भागों में प्रदूषण के कुछ हालात में आश्चर्यजनक रूप से सुधार हुआ है, लेकिन अभी पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत कार्य करने की आवश्यकता है। वही देश में “पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय” के अधीन एक संगठन “भारतीय वन सर्वेक्षण” के द्वारा “भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2019” जारी की गई थी, यह रिपोर्ट प्रत्येक दो वर्ष के अतंराल पर तैयार की जाती है, पहली रिपोर्ट वर्ष 1987 में और अब यह 16वीं रिपोर्ट 30 दिसंबर 2019 को तैयार की गयी थी। जिसके अनुसार देश में वनों एवं वृक्षों से आच्छादित कुल क्षेत्रफल – 8,07,276 वर्ग किमी. (यानी कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56%) है, कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वनावरण क्षेत्र – 7,12,249 वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.67%) है, कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वृक्षावरण क्षेत्र – 95,027 वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.89%) है। अच्छी बात यह है कि इस रिपोर्ट की तुलना वर्ष 2017 की रिपोर्ट से की जाए तो ज्ञात होता है कि देश में वनाच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि – 3,976 वर्ग किमी. (0.56%) हुई है, वृक्षों से आच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि – 1,212 वर्ग किमी. (1.29%) हुई है, वनावरण और वृक्षावरण क्षेत्रफल में कुल वृद्धि – 5,188 वर्ग किमी. (0.65%) हुई है। लेकिन दुनियाभर में बढ़ते प्रदूषण के स्तर को जानने के लिए IQAir ने वर्ष 2020 की “विश्व वायु गुणवत्ता” पर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें भारत का नाम तीसरे नंबर पर आया है, जो देशवासियों के स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से बिल्कुल भी उचित नहीं है, इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर में दिल्ली को चुना गया है, जो बेहद चिंताजनक बात है।
इसलिए देश में हमें वायु प्रदूषण कम करने के लिए अभी धरातल पर बहुत कार्य करने आवश्यकता है।

आज देश में तेजी से प्रदूषित होते हुए पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए सरकार व आम-जनमानस के सहयोग से कुछ उपायों पर तत्काल समय रहते कार्य करना आवश्यक है, यह उपाय इस प्रकार हैं-
1- प्राकृतिक के अनियमित दोहन पर रोक – देश में भूमि, जल, वन, वायु, खनिज संपदा आदि के अंधाधुंध दोहन पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए।

2- पर्यावरण का विनाश करके होने वाले अव्यवस्थित विकास पर रोक लगनी चाहिए – आज हमारे देश में विकास की जो अंधी दौड़ चल रही है, जहां देखों पेड़ों को काट दो, धरती की सीना चीर दो, कल-कल बहती अविरल नदी के प्रवाह को रोक दो, उस सबको पर्यावरण की रक्षा की खातिर बंद होना चाहिए, इन कार्यों के लिए विशेष परिस्थितियों में अनुमति मिलनी चाहिए, विकास की नींव भविष्य के विनाश के ऊपर या पर्यावरण के विनाश के ऊपर नहीं रखी जानी चाहिए।

3- वृक्षों व जंगलो की कटाई पर रोक-
आयेदिन विभिन्न राज्यों की सरकार की वृक्षों व वनों को काटने हेतु किसी ना किसी ढंग से अनुमति दे देती हैं। उसके बाद ठेकेदार जंगलों को बेरहमी से काटते हैं और सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते अनुमति के लिए आवश्यक शर्तों का पालन नहीं करते हैं। जबकि वृक्षों व वनों के काटने से भूमि का तेजी से क्षरण, वायु प्रदूषण में वृद्धि, समय पर सही मात्रा में वर्षा ना होने जैसी गंभीर स्थिति उत्पन्न होती है। इसलिए जब तक बेहद आवश्यक ना हो तब तक वृक्षों व जंगलों की कटाई पर रोक लगानी चाहिए।

4- हर शहर व गांव में सरकारी भूमि पर वन्यक्षेत्र विकसित हो- जिस तेजी के साथ वृक्षों व वनों का कटाव हो रहा है, उसकी भरपाई करने के लिए शहरों व गांवों में सरकारी भूमि पर वन्यक्षेत्र विकसित करने की राष्ट्रीय नीति बने, जिससे जैवविविधता जीवत रहे और प्रदूषण नियंत्रण में सहयोग मिले, साथ ही सरकारी जमीन अतिक्रमण मुक्त रहें।

5- अंधाधुंध औधोगीकरण पर नियंत्रण –
देश में आधुनिक तकनीक विकास के साथ-साथ उद्योगों की भी संख्या मे तीव्र वृद्धि हुई है, हर शहर में छोटे-बड़े उधोग लग रहे हैं, आवासीय व कृषि भूमि पर बड़े पैमाने पर उधोग लग गये हैं, इसके लिए अकृषि भूमि के उपयोग की नीति पर अमल हो व क्षेत्र में उपलब्ध कच्चे माल के अनुसार उधोग को लगाने की अनुमति मिले, उद्योगों के द्वारा फैलाए जाने वाले हर तरह के प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले कानूनों का सख्ती से पालन हो, जबरदस्त ढंग से प्रदूषण करने वाले उधोगों के लिए प्रदूषण को नियंत्रित करने की कार्य योजना बनाकर प्रदूषण को रोकना चाहिए।

6- जनसंख्या वृद्धि पर रोक- हमारे देश में हर समस्या की जड़ 139 करोड़ की भारीभरकम जनसंख्या है, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रदूषक तत्वों पर तभी नियंत्रण हो सकता है, जब हमारी सरकार सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाए।

7- शहरीकरण के नाम पर अव्यवस्थित ढंग से बनी कालोनियों पर रोक लगें – देश में प्राधिकरणों के द्वारा विकसित कालोनी में जमीन का मूल्य अधिक होने के चलते सस्ती अवैध कलोनी विकसित हो जाती हैं, सरकार को गरीबों को खुद सुविधा संपन्न सस्ती आवासीय भूमि उपलब्ध कराके, गंदी अवैध बस्तियों पर रोक लगानी चाहिए, प्रत्येक व्यक्ति को उचित आवास की व्यवस्था होनी चाहिए।

8- वाहनों के द्वारा फैलाए जाने वाले वायु व ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहिए- मालवाहक के रूप में बड़े पैमाने पर रेल नेटवर्क तैयार करके मालवाहक वाहनों की सड़कों पर संख्या कम करनी चाहिए। देश में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बेहतर करके सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या में कमी लानी चाहिए। वैकल्पिक ऊर्जा के विकल्पों का प्रयोग करते हुए वायु व ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहिए।

9- वृक्षारोपण व वृक्षों की सुरक्षा से आमजन को जोड़कर – देश में हर वर्ष सरकार के द्वारा करोडों वृक्षों का रोपण किया जाता है, लेकिन उनमें से अधिकांश देखरेख के अभाव में सूख जाते है, इसलिए सरकार को वृक्षारोपण से पहले उनको बचाकर रखने की ठोस योजना बनी चाहिए, वृक्षारोपण व वृक्षों की सुरक्षा के लिए आम-जनमानस में जागरूकता उत्पन्न करके उनको इस अभियान से दिल से जोड़ने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए।

10- जीवनदायिनी नदियों को प्रदुषित मुक्त करके उन्हें प्रदुषित करना अपराध घोषित हो- हमारे देश में नदियों के प्रदूषण के हाल किसी से छुपे नहीं हैं, सरकार व निजी स्तर पर लापरवाही के चलते नदियां नालों में तब्दील हो गयी हैं, उनको स्वच्छ बनाने के लिए धरातल पर बड़े पैमाने पर अभियान चले और नदियों को प्रदूषित करना अपराध घोषित हो।

11- भारतीय वृक्षों को वृक्षारोपण में तरजीह मिले- देश में समय-समय पर चलने वाले वृक्षारोपण अभियानों में भारतीय वृक्षों नीम, पीपल, बरगद, आम, पिलखन, शीशम आदि वृक्ष व विलुप्त होती वनस्पति के पौधों को संरक्षित करने के लिए लगाने का संकल्प लिया जाये।

वैसे देश में जिस तरह से प्रदूषण का प्रकोप है उसके मद्देनजर हम लोगों को “विश्व पर्यावरण दिवस” पर पर्यावरण को बेहतर करने व उसकी सुरक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए। हम लोगों को समय रहते यह समझ जाना चाहिए कि संपूर्ण मानवता का अस्तित्व प्रकृति पर निर्भर है, जिस तरह से प्रकृति के कार्यों में मानव बेवजह का हस्तक्षेप करके उसको प्रदुषित करके विभिन्न प्रकार से उसके संतुलन को बिगाड़ रहा है, वह मानव हित में बिल्कुल भी ठीक नहीं है। सभी को समझना होगा कि स्वस्थ एवं सुरक्षित पर्यावरण के बिना बेहतर स्वास्थ्य व सुरक्षित मानव जीवन की कल्पना अधूरी है। इसलिए प्रकृति को प्रदूषण के प्रकोप से बचाने के लिए हम सभी लोगों को मिलकर संकल्प लेना होगा कि हम उसकी रक्षा करेंगे और उसके कार्यों में जब तक जीवन बचाने के लिए बहुत जरूरी नहीं होगा तबतक हस्तक्षेप नहीं करेगें।

।। जय हिन्द जय भारत ।।
।। मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।

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