हादसों के उत्सव

पंडित सुरेश नीरव

 कौन चाहता है कि वो कभी-कभी हादसे की चपेट में आए। मगर हादसे भी आदमी के मन की परवाह कब करते हैं। उनका जब मन होता है,जहां मन होता है,जिस पदार्थ,वस्तु या शख्स पर मन होता है उसे अपनी चपेट में लेकर उसे अनुग्रहीत कर देते हैं। वैसे भी हादसों के लिए तो आदमी महज़ पदार्थ ही होता है। इसलिए हादसे ही आदमी का शिकार करते हैं। आदमी कभी हादसे का शिकार नहीं कर पाता। आदमी हादसा-चपेटधर्मी है। वो कितनी भी लकड़घोघो कर ले उसे एक-न-एक दिन हादसे की चपेट में आना ही होता है। इसलिए समझदार लोग हादसे से रिक्वेस्ट करते हैं कि प्लीज आना मेरे घर आना मगर चुनाव के आसपास के मौसम में आना। क्योंकि तब हादसे उत्सव हो जाते हैं। सरकार और प्रतिपक्ष दोनों की आंखों का तारा होते हैं- हादसे। समझदार हादसे प्रकट भी इलेक्शन के आसपास के मौसम में ही होते हैं। आचार संहिता लागू होने के बाद हादसे एक फ्लॉप फिल्म से ज्यादा कुछ नहीं होते। कब आए कब गए किसी को कोई खबर नहीं। कहीं कोई हलचल नहीं। चुनाव है तो एक पलड़े में भट्टा पारसौल है। और दूसरे पलड़े में सारे नेता हैं। नेता झकाझक कपड़े पहने तैयार बैठे हैं कि कहीं कोई हादसा हो तो वो अपनी नौटंकी शुरू करें। कितने खुशनसीब होते हैं वे लोग जो इस मौसम में हादसे का शिकार होते हैं। अपने आप हादसाग्रस्त आदमी का कद बढ़ जाता है। वह बैठेबिठाए सेलेब्रिटी हो जाता है। नेता उसके घर चैनलों के कैमरे लेकर खुद पहुंच जाते हैं। वो बदनसीब जो नेताजी की एक झलक पाने को कभी नेताजी के बंगले में घुस नहीं सकता था नेताजी खुद पैयां-पैयां चलके उसके घर आते हैं। उस बदनसीब के जैसे दिन फिरे भगवान करे आपके भी फिरें। हम तो आपके भूमिगत शुभचिंतक हैं। शुभकामनाओं की बारूदी सुरंग ऐसे ही बिछाते रहते हैं। भगवान आपकी झोली में भी पचास ग्राम हादसा टपकाए। ताकि आप भी सेलेब्रिटी बन जाएं। ईश्वर अगर है तो आपकी भी सुनेगा। निराश न हों। ऐन चुनाव के आसपास आपको हादसे का गिफ्ट-हेंपर प्रभु जरूर देंगे। खुदा के यहां देर है पर अंधेर नहीं। हादसों की तो महासेल लगती है चुनाव के आसपास। कुछ हादसे अपने आप प्रकट होते हैं। कुछ हादसे राजनीति द्वारा प्रायोजित किए जाते हैं। हादसे- हादसे का शिकार व्यक्ति और संवेदनशील नेता तीनों की सामूहिक पब्लिसिटी। पब्लिसिटी का पावन प्रयाग बन जाता है चुनावी शुभ मौसम। हर हादसा हाहाकारी-कल्याणकारी। हादसों के भी कई गोत्र हैं। सर्वाधिक सम्मानित हादसा मीडिया और राजनीति की नज़र में रेप है। जो भारत में नित्य है और नूतन है। निशाभंगुर होते हुए भी सनातन है। जो व्यक्तिगत भी है और सामूहिक भी। हमारे देश में सामूहिक भावना आजकल ऐसे खास मौकों पर ही तो लोगों के दिल में उमड़ती है। दफ्तर, अस्पताल,होटल की तो बात क्या करना सबसे ज्यादा रेप तो आजकल पत्नी के साथ उसका खासमखास खसम यानी कि पति ही घर में कर डालता है। कहां जाए बेचारी स्त्री। घर में भी सुरक्षित नहीं है। दूसरा सम्मानित हादसा आजकल है-ऑनरकिलिंग। मीडिया के सक्रिय योगदान से ऑनरकिलिंग का कुटीर उद्योग अब भारी उद्योग बनता जा रहा है। कित्ती पब्लिसिटी मिलती है ऑनरकिलिंग के खेल में। ऑनरकिलिंग यानी कि मूंछ की लड़ाई। जिनके मूंछ है उनके लिए ऑनरकिलिंग बहुत जरूरी है। जो ऑनरकिलिंग नहीं कर पाते हैं वे आत्महत्यात्मक निराशा में अपनी मूंछे खुद मुंड़ लेते हैं। और अगर गलती से उस वक्त कोई मूंछवाला सामने आ गया तो उसकी भी मूंड देते है। हम होंगे कामयाब..हम होंगे कामयाब एक दिन गाते-गुनगुनाते जो सूरमा ऑनरकिलिंग चुनाव के आसपास करने में कामयाब हो जाते हैं उनके तेजस्वी चेहरे से इतनी वोल्टेज की रेडियोएक्टिव किरणें निकलती हैं कि नाना प्रकार की सामाजिक संस्थाएं उनके चेहरे को तौलिए से ढक कर समाज को भस्म होने से बचाती हैं। इन ऑनर किलरों की बदौलत ही देश का सम्मान है। हादसों की वेरायटी में दहेज हत्या भी हमारे समाज में काफी लोकप्रिय और परंपरा प्रधान गतिविधि है। इस गतिविधि के कारण ही देश में वैवाहिक संस्था में मजबूती आती है। और हादसा भी एक मांगलिक पर्व बन जाता है। हादसे की बदौलत तमाम लोग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बन जाते हैं। जिन पर हादसे कृपा नहीं करते वे गुमनामी के अंधेरे में ही दफ्न हो जाते हैं। और उन्हें इस बात का मलाल आजीवन ही नहीं मरणोपरांत भी रहता है। हे कृपानिधान भगवान पब्लिसिटी कारक पचास ग्राम हादसा अपुन की झोली में भी टपकाना। एक अदद हादसे का वरदान सेंक्शन कर के अपने घर भी उत्सव करा ही दो भगवान।

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