जातिवाद पे सब बलिहारी   

0
213

लीजिए साहब, राष्ट्रपति चुनाव फिर आ गये। शर्मा जी राष्ट्रपति को भारतीय लोकतंत्र की आन, बान और शान मानते हैं। यद्यपि उन्हें इस चुनाव में वोट का अधिकार नहीं है, फिर भी वे इसके प्रचार में पीछे नहीं रहते। उनका बस चले, तो वे अपनी पसंद के प्रत्याशी का नाम राष्ट्रपति भवन के दरवाजे पर ही लिख दें। एक बार उन्होंने ऐसा करना चाहा, तो पुलिस वालों ने उन्हें खदेड़ दिया। बेचारे शर्मा जी।

खैर, चुनाव चाहे गलीपति का हो या राष्ट्रपति का, उसकी चर्चा रोचक ही होती है। शर्मा जी के सामने चुनाव की चर्चा छेड़ो, तो वे कई सदियों का संचित ज्ञान परोसने लगते हैं। कभी-कभी मैं उनके घर जाकर चुनाव की बात छेड़ देता हूं। बस, वे शुरू हो जाते हैं। वातावरण गरम होने पर चाय और गरम पकौड़ी के आर्डर अंदर जाने लगते हैं। मेरा टाइम पास हो जाता है और कुछ पेट-पूजा भी। कल भी ऐसा ही हुआ।

– शर्मा जी, इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में मामला बिल्कुल एकतरफा सा हो गया है ?

– जी नहीं, टक्कर बराबर की है।

– लेकिन मीडिया वाले तो यही कह रहे हैं।

– वे तो बिकाऊ हैं। जिसे देखो वही मोदी राग गा रहा है।

– पर मोदी ने प्रत्याशी बहुत ढूंढकर उतारा है। किसी को पता भी नहीं लगा और हीरे जैसा खरा नाम सामने आ गया। रामनाथ कोविंद बहुत योग्य हैं और सौम्य भी।

– तो मीरा जी की योग्यता में कहां कमी है ?

– इसमें तो कोई संदेह नहीं है। वैसे कांग्रेस ने आज तक जिसे भी राष्ट्रपति बनाया है, उनकी सबसे बड़ी योग्यता नेहरू परिवार के प्रति निष्ठा ही रही है।

– ये बेकार की बात है।

– हो सकता है; पर ये मत भूलिए कि 1969 में इंदिरा गांधी ने अपने एक चंपू वी.वी.गिरि को राष्ट्रपति बनवाया था। कहते हैं कि उनके दर्जनों नाती-पोतों के लिए ताजा डोसा लाने सैन्य विमान प्रायः दिल्ली से बंगलौर आते-जाते रहते थे। और फिर फखरुद्दीन अली अहमद; जिसे रात में जगाकर आपातकाल के काले कानूनों पर हस्ताक्षर करवा लिये थे।

– पर यदि आपातकाल न लगता, तो संविधान खतरे में पड़ जाता।

– संविधान तो उनकी करतूत से खतरे में पड़ा शर्मा जी। भारत में ये पहली और आखिरी बार हुआ कि मंत्रियों की सहमति के बिना प्रधानमंत्री ने कोई अध्यादेश राष्ट्रपति भवन भेज दिया और उसने भी आंख मंूद कर हस्ताक्षर कर दिये। और ज्ञानी जैलसिंह को क्यों भूलते हैं, जिन्हें सिखों का गुस्सा कम करने के लिए राष्ट्रपति बनाया था। वे तो कहते थे कि इंदिरा जी के कहने पर मुझे झाड़ू लगाने में भी संकोच नहीं होगा; पर अपनी मां के इसी अंधभक्त को राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते कितना अपमानित किया, ये भी इतिहास में दर्ज है।

– तुम्हारा इतिहास का ज्ञान काफी अच्छा है.. ?

– जी हां। और प्रतिभा पाटिल के बारे में तो एक कांग्रेसी नेता ने ही कहा था कि उनके हाथ की बनी चाय इंदिरा जी को बहुत पसंद थी। इसलिए वे प्रायः प्रधानमंत्री भवन पहुंच जाती थीं। इसके पुरस्कारस्वरूप ही उन्हें राष्ट्रपति बनाया गया। ये बात दूसरी है कि इतना कहने पर ही उसे कांग्रेस से बर्खास्त कर दिया गया। सुना तो ये भी गया है कि अवकाश प्राप्ति के बाद वे राष्ट्रपति भवन से काफी कुछ बटोर कर ले गयीं, जिसे फिर उंगली टेढ़ी करने पर ही वापस भेजा।

– तुम बकते रहो वर्मा। इस पर जी.एस.टी. नहीं लगता।

– शर्मा जी, आपको भले ही बकवास लगे; पर कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद को मजाक बनाकर रख दिया। जबकि दूसरी ओर वाजपेयी जी की सरकार डा. कलाम को सामने लेकर आयी, जिन्हें आज भी पूरा देश श्रद्धा से याद करता है।

– लेकिन तुम ये क्यों भूलते हो कि इस बार उधर भी दलित है और इधर भी दलित। मोदी जी सोचते थे कि वे दलित प्रत्याशी लाकर बढ़त बना लेंगे; पर उन्हें पता नहीं था कि सोनिया जी के पल्लू में भी ऐसे कई लोग बंधे रहते हैं।

मैं शुरू से ही समझ रहा था कि चाहे जो हो; पर शर्मा जी दलित और महादलित की बात जरूर करेंगे। क्योंकि ‘चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए।’ मैं बोला, ‘‘शर्मा जी, कैसा आश्चर्य है कि जिस जातिभेद के विरुद्ध गांधी जी जीवन भर लड़ते रहे। जिस अछूतोद्धार को वे आजादी जैसा ही महत्वपूर्ण मानते थे। जिनके आश्रम में लोग अपने शौचालय खुद साफ करते थे। उनके नाम की माला जपने वाली कांग्रेस साठ साल सत्ता में रहने के बाद भी जातिवाद को मरे सांप की तरह अपने गले में लटकाये घूम रही है ?‘‘

शर्मा जी काफी देर तक चुप बैठे रहे। फिर बोले, ‘‘बात तो तुम ठीक ही कह रहे हो वर्मा; पर जरा अपने गिरेबान में भी तो झांको। मोदी और भा.ज.पा. वालों ने भी तो इसीलिए रामनाथ कोविंद को प्रत्याशी बनाया है ? देश का सर्वोच्च और सम्मानित पद भी जातिवाद की तराजू पर तुल गया। क्या यह हमारे लिए शर्म की बात नहीं है ?’’

इसके बाद मुझसे बैठा नहीं गया। घर वापस लौटते समय रास्ते में कहीं श्रीरामचरितमानस का पाठ हो रहा था। कानफोड़ भोंपू पर बार-बार आवाज आ रही थी –

मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी।

पर मुझे लगा कि कोई बार-बार कह रहा है –

भारत माता हुई दुखारी, जातिवाद पे सब बलिहारी।

समय का यह कटु सत्य मुझसे सहा नहीं गया। मैंने अपने कानों पर हाथ रख लिये।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here