अयोध्या उत्खनन में मंदिर के प्रमाण मिले

डा- राधेश्याम द्विवेदी

अयोध्या उत्खनन में मंदिर के प्रमाण मिले न्यायालयअवरोध नहीं हटा सका डा. राधेश्याम द्विवेदी वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग 144कि.मी) लम्बाई तीन योजन (लगभग 36 कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी। कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम ऐवम जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। उक्त क्षत्रियों में दाशरथी रामचंद्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्री राम चन्द्र जी के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट,सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओ से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण मे जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है। धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतो के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है ॥ भगवान के श्री राम के स्वर्ग गमन के पश्चात अयोध्या तो पहले जैसी नहीं रही मगर जन्मभूमि सुरक्षित रही। भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया और सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसकी अस्तित्व आखिरी राजा महाराजा वृहद्व्ल तक अपने चरम पर रहा। कौशालराज वृहद्वल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथो हुई । महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ सी गयी मगर श्री रामजन्मभूमि का अस्तित्व प्रभुकृपा से बना रहा। भारत में अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर की नींव पर1528 में बाबरी मस्जिद बनाया गया है, राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी।, हिंदुओं का मानना है कि यह भगवान राम का जन्मस्थान रहा। मुगल शासक बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था। इसके बाद से ही मंदिर-मस्जिद को लेकर दोनों समुदायों में समय-समय पर छिट-पुट तनाव का जिक्र मिलता है। इस विवाद का अदालती सफर आजादी से काफी पहले सन 1885 में ही शुरू हो गया था। निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवरदास ने उस वक्त स्थानीय सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने अपील दायर की थी कि बाबरी मस्जिद से लगे रामचबूतरा पर उन्हें मंदिर निर्माण की इजाजत दी जाए। आजादी के दो साल बाद ही शुरू हो गया तनाव:- अयोध्या विवाद के इस तनाव के नए अध्याय का सूत्रपात 22-23 दिसंबर 1949 की रात को हुआ, जब विवादित रामजन्मभूमि पर बनी मस्जिद में रामलला की स्थापना की गई। हिंदुओं का कहना था कि रामलला यहां स्वयं प्रकट हुए और रामलला के प्राकट्य के साथ उन्होंने मस्जिद में ही रामलला की पूजा-अर्चना शुरू कर दी। जबकि मुस्लिमों का कहना था कि मस्जिद में रामलला को साजिशन स्थापित किया गया और हाजी फेकू आदि कुछ स्थानीय मुस्लिमों ने प्रशासन से रामलला की मूर्ति को मस्जिद से हटाने की मांग की। गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी 1950 को फैजाबाद की अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी और वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक लगाए जाने की मांग की। पांच दिसंबर 1950 को रामचंद्रदास परमहंस भी आम हिंदुओं की ओर से रामलला के पूजन-दर्शन के अधिकार की मांग को लेकर सिविल कोर्ट पहु़ंचे। स्थानीय अदालत में करीब एक दशक तक यह विवाद रामलला की मूर्ति विवादित इमारत में बरकरार रखने और हटाने की मांग का सबब बना रहा। अयोध्या उत्खनन में मंदिर के प्रमाण मिले:- 1. सर्वप्रथम उत्खनन 1967-70 अयोध्या के सीमित क्षेत्रों में कइयों बार (5 बार) खुदाई हुई। सवाल एक था, मस्जिद के नीचे मंदिर है या नहीं, मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई या नहीं। जब पहली बार खुदाई हुई तो विवादित जमीन पर बाबरी मस्जिद खड़ी थी और 5वीं बार जब खुदाई हुई तब बाबरी मस्जिद का नामो निशान नहीं था। पुरातत्त्ववेत्ताओं ने उत्खनन कार्य किए। इस क्षेत्र का सर्वप्रथम उत्खनन प्रोफ़ेसर अवध किशोर नारायण के नेतृत्व में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एक दल ने 1967-1970 में किया। यह उत्खनन मुख्यत: जैन घाट के समीप के क्षेत्र, लक्ष्मण टेकरी एवं नल टीले के समीपवर्ती क्षेत्रों में हुआ। उत्खनन से प्राप्त सामग्री को तीन कालों में विभक्त किया गया है- प्रथम काल उत्खनन में प्रथम काल के उत्तरी काले चमकीले मृण्भांड परम्परा (एन. बी. पी., बेयर) के भूरे पात्र एवं लाल रंग के मृण्भांड मिले हैं। इस काल की अन्य वस्तुओं में मिट्टी के कटोरे, गोलियाँ, ख़िलौना, गाड़ी के चक्र, हड्डी के उपकरण, ताँबे के मनके, स्फटिक, शीशा आदि के मनके एवं मृण्मूर्तियाँ आदि मुख्य हैं। जमाव के ऊपरी स्तर से 6 मानव आकृति की मृण्मूर्तियाँ मिली हैं। परवर्ती स्तरों से अयोध्या के दो जपनदीय सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोहे की वस्तुएँ भी मिली हैं। सीमित क्षेत्र में उत्खनन होने के कारण कोई भी संरचनात्मक अवशेष नहीं मिल सके। द्वितीय काल इस काल के मृण्भांड मुख्यत: ईसा के प्रथम शताब्दी के हैं। उत्खनन से प्राप्त मुख्य वस्तुओं में मकरमुखाकृति टोटी, दावात के ढक्कन की आकृति के मृत्पात्र, चिपटे लाल रंग के आधारयुक्त लम्बवत् धारदार कटोरे, स्टैंप और मृत्पात्र खण्ड आदि हैं। अन्य प्रमुख वस्तुओं में हड्डी का एक कंघा, पक्की मिट्टी के लोढ़े, गोमेद के मनके और मिट्टी की मानव और पशु आकृतियाँ भी हैं। इस काल की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि एक आयताकार पक्की ईटों (35×25×5 सेमी.) की संरचना तथा एक मृतिकावलय कूप (रिंगवेल) है। इस सरंचना की आंतरिक माप पूर्व से पश्चिम 88 सेमी. है। तृतीय काल इस काल का आरम्भ एक लम्बी अवधि के बाद मिलता है। उत्खनन से प्राप्त मध्यकालीन चमकीले मृत्पात्र अपने सभी प्रकारों में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त काही एवं प्रोक्लेन मृण्भांड भी मिले हैं। अन्य प्रमुख वस्तुओं में मिट्टी के डैबर, लोढ़े, लोहे की विभिन्न वस्तुएँ, मनके, बहुमूल्य पत्थर, शीशे की एकरंगी और बहुरंगी चूड़ियाँ और मिट्टी की पशु आकृतियाँ (विशेषकर चिड़ियों की आकृति) हैं। इस काल से सात पक्की ईटों की संरचनाओं के अवशेष भी मिले हैं। उत्खनन से प्राप्त ये सभी संरचनाएँ, प्रारम्भिक संरचनाओं से निकाली गई ईटों से निर्मित हैं। 2. दूसरी बार उत्खनन 1975-77:- अयोध्या के कुछ क्षेत्रों का पुन: उत्खनन दो सत्रों 1975-1976 तथा 1976-1977 में ब्रजवासी लाल और के. वी. सुन्दराजन के नेतृत्व में हुआ। यह उत्खनन मुख्यत: दो क्षेत्रों- रामजन्मभूमि और हनुमानगढ़ी में किया गया। इस उत्खनन से संस्कृतियों का एक विश्वसनीय कालक्रम प्रकाश में आया है। साथ ही इस स्थान पर प्राचीनतम बस्ती के विषय में जानकारी भी मिली है। उत्खनन में सबसे निचले स्तर से उत्तरी काली चमकीले मृण्भांड एवं धूसर मृण्भांड परम्परा के मृत्पात्र मिले हैं। धूसर परम्परा के कुछ मृण्भांडों पर काले रंग में चित्रकारी भी मिलती है। यहाँ से प्राप्त मृण्भांड श्रावस्ती, पिपरहवा और कौशांबी से समानता ग्रहण किए हुए हैं। उत्खननकर्ताओं ने इस प्रथम काल को सातवीं शताब्दी ई. पू. में निर्धारित किया है। स्तरों के अनुक्रम से ज्ञात होता है कि इस टीले पर बस्तियों का क्रम तीसरी शताब्दी ई. तक अविच्छिन्न रूप से जारी था। उत्खनन से पता चलता है कि प्रारम्भिक चरण में मकानों का निर्माण बाँस, बल्ली, मिट्टी तथा कच्ची ईंटों से किया जाता था। जन्मभूमि क्षेत्र से ईंटों की एक मोटी दीवार मिली है। जिसे उत्खाता महोदय ने क़िले की दीवार से समीकृत किया है। इस दीवार के ठीक नीचे कच्ची ईंटों से निर्मित एक अन्य दीवार के भी अवशेष मिले हैं। इस तल के ऊपरी स्तर का विस्तार, जो रक्षा प्राचीरों के बाद का है, तीसरी शताब्दी ई. पू. से प्रथम शताब्दी ई. के मध्य माना गया है। खुदाई में यहाँ से कुछ मृतिका वलय कूप तथा क़िले की दीवार के बाहर की ओर परिखा (खाई) के अवशेष भी मिले हैं। हनुमानगढ़ी क्षेत्र में उत्खनन:- हनुमानगढ़ी क्षेत्र से भी उत्तरी काली चमकीली मृण्भांड संस्कृति के अवशेष प्रकाश में आए हैं। साथ ही यहाँ अनेक प्रकार के मृतिका वलय कूप तथा एक कुएँ में प्रयुक्त कुछ शंक्वाकार ईंटें भी मिली हैं। उत्खनन से बड़ी मात्रा में विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ मिली हैं, जिनमें मुख्यत: आधा दर्जन मुहरें, 70 सिक्के, एक सौ से अधिक लघु मृण्मूर्तियाँ आदि उल्लेखनीय हैं। इसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कुषाण शासक वासुदेव की एक मिट्टी की मुहर (दूसरी शती ई.), इसी काल का मूलदेव का एक सिक्का तथा एक भूरे रंग की केश-विहीन जैन मृण्मूर्ति है।[3] हनुमानगढ़ी से प्राप्त अन्य मृण्मूर्तियाँ पहली-दूसरी शताब्दी ई. पू. की हैं। ये मृण्मूर्तियाँ अहिच्छत्र, कौशांबी, पिपरहवा और वैशाली आदि क्षेत्रों से प्राप्त मृण्मूर्तियों के समान ही हैं। इस प्रकार की मृण्मूर्तियों को वासुदेवशरण अग्रवाल ने विजातीय प्रकार से अभिहित किया है। महत्त्वपूर्ण उपलब्धि: आद्य ऐतिहासिक काल के रोलेटेड मृण्भांडों की प्राप्ति:- इस उत्खनन में सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि आद्य ऐतिहासिक काल के रोलेटेड मृण्भांडों की प्राप्ति है। ये मृण्भांड प्रथम-द्वितीय शताब्दी ई. के हैं। इस प्रकार के मृण्भांडों की प्राप्ति से यह सिद्ध होता है कि तत्कालीन अयोध्या में वाणिज्य और व्यापार बड़े पैमाने पर होता था। यह व्यापार सरयू नदी के जलमार्ग द्वारा गंगा नदी से सम्बद्ध था। यह व्यापार मुख्यत: छपरा और पूर्वी भारत के ताम्रलिप्ति से होता था। अभी भी सरयू और गंगा नदी में बड़ी नावों से पूर्वी भारत से व्यापार होता है। रोलेटेड मृण्भांडों की प्राप्ति आतंरिक व्यापार का महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। उल्लेखनीय है प्रायद्वीपीय भारत में इस प्रकार के मृण्भांड कभी-कभी पृष्ठ प्रदेशों (जैसे-ब्रह्मगिरि और सेगमेडु) में भी मिलते हैं। ब्रजवासी लाल के नेतृत्व में उत्खनन:- आद्य ऐतिहासिक काल के पश्चात् यहाँ के मलबों और गड्ढों से प्राप्त वस्तुओं के आधार पर व्यावसायिक क्रम में अवरोध दृष्टिगत होता है। सम्भवत: यह क्षेत्र पुन: 11वीं शताब्दी में अधिवासित हुआ। यहाँ से उत्खनन में कुछ परवर्ती मध्यकालीन ईंटें, कंकड़, एवं चूने की फ़र्श आदि भी मिले हैं। अयोध्या से 16 किलोमीटर दक्षिण में तमसा नदी के किनारे स्थित नन्दीग्राम में भी श्री ब्रजवासी लाल के नेतृत्व में उत्खनन कार्य किया गया। उल्लेख है कि राम के वनगमन के पश्चात् भरत ने यहीं पर निवास करते हुए अयोध्या का शासन कार्य संचालित किया था। यहाँ के सीमित उत्खनन से प्राप्त वस्तुएँ अयोध्या की वस्तुओं के समकालीन हैं। अयोध्या तथा अन्य स्थानों के उत्खनन के आधार पर इसका काल 7वीं शताब्दी ई. पू. निर्धारित किया गया है। 3. तीसरी बार उत्खनन 1979-1980 :- श्री ब्रजवासी लाल के नेतृत्व में यह उत्खनन कार्य 1979-1980 में पुन: प्रारम्भ हुआ। इस उत्खनन के प्रारम्भिक चरणों से अच्छी तरह पकाए गए एवं चमकदार उत्तरी काली चमकीले मृण्भांड (एन. बी. पी. बेयर) मिले हैं। इस मृण्भांड संस्कृति के काल में निर्मित मकानों में मुख्यत: कच्ची ईंटों का प्रयोग मिलता है। मकानों में मृत्तिका वलय कूपों का प्रावधान था। इस संस्कृति के पश्चात् यह स्थान शुंग, कुषाण, और गुप्त एवं मध्य कालों में आबाद रहा। उत्खनन में कच्ची ईंटों से निर्मित एक शुंग-कालीन दीवार भी मिली है। इसके अतिरिक्त गुप्तकालीन भवन का एक भाग तथा कुछ तत्कालीन मृण्भांड भी मिले हैं, जो श्रृंगवेरपुर और भारद्वाज आश्रम के मृण्भांडों के समतुल्य हैं। 4. 4थी बार बार सीमित क्षेत्र में उत्खनन 1981-81:- 1981-1982 ई. में सीमित क्षेत्र में उत्खनन किया गया। यह उत्खनन मुख्यत: हनुमानगढ़ी और लक्ष्मणघाट क्षेत्रों में हुआ। इसमें 700-800 ई. पू. के कलात्मक पात्र मिले हैं। श्री लाल के उत्खनन से प्रमाणित होता है कि यह बौद्ध काल में अयोध्या का महत्त्वपूर्ण स्थान था। महात्मा बुद्ध की प्रमुख शिष्या विशाषा ने यहीं पर दीक्षा ग्रहण की थी, जिसकी स्मृतिस्वरूप विशाखा ने अयोध्या में मणि पर्वत के समीप एक बौद्ध मठ की स्थापना की थी। सम्भव है कि कालान्तर में समय-समय पर सरयू नदी के घारा परिवर्तन के कारण प्राचीन अयोध्या नगरी का कुछ क्षेत्र नदी द्वारा नष्ट कर दिया गया हो। 5. पांचवी बार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर रामजन्म भूमि क्षेत्र में उत्खनन 2002-03 :- 2003 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से खुदाई हुई।भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा बुद्ध रश्मि मणि और हरि माँझी के नेतृत्व में 2002-2003 ईसवी में रामजन्म भूमि क्षेत्र में उत्खनन कार्य किया गया। यह उत्खनन कार्य सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर संचालित हुआ। उत्खनन से पूर्व उत्तरी कृष्ण परिमार्जित संस्कृति से लेकर परवर्ती मुग़लकालीन संस्कृति तक के अवशेष प्रकाश में आए। प्रथम काल के अवशेषों एवं रेडियो कार्बन तिथियों से यह निश्चित हो जाता है कि मानव सभ्यता की कहानी अयोध्या में 1300 ईसा पूर्व से प्रारम्भ होती है। उत्खनन में उपलब्ध प्रथम काल की सामग्री एक सीमित क्षेत्र से ही प्राप्त हैं। संरचनात्क क्रियाकलापों से परे प्रथम काल की संस्कृति इस क्षेत्र के अन्य उत्खनित पुरास्थलों श्रृंगवेरपुर, हुलासखेड़ा, सोहगौरा, नरहन और राजघाट के समान है। इस नवीन पुरातात्विक साक्ष्य एवं अन्य स्थलों के तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यहाँ से प्राप्त पूर्व उत्तरी कृष्ण परिमार्जित संस्कृति, के साक्ष्य भारतीयों के आस्था एवं विश्वास को पुष्ट करते हैं। इस प्रमाण से हमें रामकथा और अयोध्या की प्राचीनता को कृष्ण, महाभारत और हस्तिनापुर के पूर्व के होने का सबल आधार मिलता है। 85 पिलर बेस मिले :- ASI की टीम को एक दो नहीं पूरे चौदह पिलर मिले। सारे पिलर मंदिर के थे लेकिन इन पर बाबरी मस्जिद खड़ी थी। काले पत्थर के इन पिलर्स पर हिन्दू पूजा पद्धति के चिन्ह भी साफ दिख रहे हैं। इन पत्थर के पिलर्स पर मूर्तियां भी हैं। किसी मस्जिद में हिन्दू मान्यताओं के निशान का क्या मतलब? 1977 में मस्जिद के बाहर पिलर बेस मिले जो एक लाइन में थे और बराबर दूरी पर थे। इस तरह के पिलर बेस और उसकी संरचना मंदिरों में मंडप बनाने के लिए इस्तेमाल होती है। चूंकि उस वक्त बाबरी ढ़ाचा खड़ा था इसलिए ये पता नहीं लगाया जा सका कि ये पिलरबेस कहां तक जाते हैं। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। चूंकि बाबरी ढ़ांचा 1992 में जमींदोज हो चुका था इसलिए इस बार खुदाई उस जगह पर भी हुई जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी। खुदाई में सबसे पहले पिलरबेस मिले। 1977 में दस पिलरबेस मिले थे लेकिन 2003 में 85 पिलरबेस मिले। यानि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी और उसके पिलर्स का इस्तेमाल हुआ और मंडप के खंभों को तोड़ पर उस जमीन को समतल कर दिया गया। अनेक हिन्दू मूर्तियों के अवशेष ;-बाबरी मस्जिद के नीचे से भगवान राम के मंदिर के सबूत मिलने अभी तो शुरू हुए थे। ऐसा हुआ मानो अयोध्या की जमीन खुद राम के सबूत पेश कर रही हो। उमामहेश्वर की मूर्ति जिसके हाथ में त्रिशूल है, कुबेर की मूर्ति, देवी-देवताओं की मूर्ति, भगवान शिव का वाहन नंदी, पत्थरों पर मौजूद कमल की आकृति इन सभी पुरातत्वों को उसी विवादित हिस्से की खुदाई कर निकाला गया जहां राम मंदिर औऱ बाबरी मस्जिद का विवाद चल रहा है। न्यायालय ने लटका रखा है मामला:- अप्रैल 2002 से अदालती प्रक्रिया में तेजी आई और विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। साल 2003 के मार्च से अगस्त माह के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल के इर्द-गिर्द के भू-क्षेत्र में खुदाई कराई और दावा किया कि जिस भूमि पर मस्जिद बनी थी, उसके नीचे मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। कालांतर में मंदिर-मस्जिद विवाद के निर्णय में खुदाई से प्राप्त रिपोर्ट निर्णायक भी बनी। 30 सितंबर 2010 को हाईकोर्ट की तीन जजों की विशेष पीठ ने मंदिर-मस्जिद विवाद के संबंध में फैसला दिया। इसमें 120 गुणे 90 फीट की विवादित भूमि को निर्मोही अखाड़ा, रामलला एवं सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर बांटे जाने की बात कही गई। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामजन्मभूमि वाली जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर एक हिस्से को रामलला, एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और एक वक्फ बोर्ड के लिए देने की बात कही थी. हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में भले ही सभी पक्षों को संतुष्ट करने की कोशिश की पर यह फैसला किसी को मान्य नहीं हुआ और संबंधित पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यही नहीं एक साल के भीतर ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक भी लगा दी। कि राम मंदिर मामले के लिए हजारों पन्नों के दस्तावेजों का सात अलग-अलग भाषाओं और लिपियों में अनुवाद करवाया गया है। ऐसे में देखना यह होगा कि क्या अब न्यायालय इसका समाधान कर सकेगा अथवा जनता के दबाव व प्रभाव में आकर कानून बनाकर सरकार इसका रास्ता निकाल सकेगी ।बीजेपी के चुनावी घोषणा-पत्र में भी राम-मंदिर है. लेकिन, जब कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण की बात आती है तो इस मुद्दे पर बीजेपी का रुख कोर्ट के फैसले पर आकर टिक जाता है. राम मंदिर मुद्दे पर कानून बनाने की मांग हिंदूवादी संगठनों की तरफ से होती आई है. लेकिन, इस मुद्दे पर बीजेपी आपसी बातचीत या कोर्ट के फैसले पर आगे बढ़ने की बात करती रही है. जल्द फैसला आने की उम्मीद ने संघ परिवार के साथ-साथ बीजेपी के लिए भी कुछ मुश्किलें कम कर दी हैं. 2019 के महासमर में बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा :- सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अपने फैसले में मस्जिद में नमाज पढ़ने को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा मानने से जुड़े मामले को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि यह मसला अयोध्या मामले से बिल्कुल अलग है. कोर्ट ने अयोध्या मामले को धार्मिक मानने से भी इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई प्रॉपर्टी डिस्प्यूट यानी जमीन विवाद के तौर पर ही होगी. सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि मुकदमे में तीन सदस्यीय पीठ के द्वारा 29 अक्टूबर से सुनवाई का निर्णय किया है, इसका हम स्वागत करते हैं और विश्वास करते हैं कि जल्द से जल्द मुकदमे का न्यायोचित निर्णय होगा.’ अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी बात रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह देश के हित में है अयोध्या विवाद का हल जल्द से जल्द निकाला जाए. इस देश के बहुसंख्यक लोग इसका समाधान चाहते हैं.2019 का लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने वाला है. लेकिन, 29 अक्टूबर से अगर लगातार अयोध्या मामले की सुनवाई चली तो इस पर फैसला जल्द आ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इस फैसले को लेकर सियासत काफी तेज होगी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हो अयोध्या मुद्दा पर अगर फैसला चुनाव से पहले आ गया तो यह मुद्दा 2019 के महासमर में बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा.

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