– योगेश कुमार गोयल
देश में लोकसभा चुनाव हों या किसी विधानसभा के चुनाव, मतदान प्रक्रिया पूरी होते ही लगभग सभी टीवी चैनल एग्जिट पोल का प्रसारण करते हैं, जिनमें दावों के साथ बताया जाता है कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिल रही हैं और सरकार किसकी बनने जा रही है। एग्जिट पोल्स के जरिये डंके की चोट पर बताया जाता है कि कौनसा दल कहां से बाजी जीत रहा है, किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी और अंततः विजय रथ पर कौन सवार होगा लेकिन बहुत बार ये तमाम एग्जिट पोल पूरी तरह हवा-हवाई साबित होते हैं। बिहार में पिछले तीन विधानसभा चुनावों में एग्जिट पोल गलत साबित हुए और यही इस बार के विधानसभा चुनाव में भी हुआ। अगर एग्जिट पोल की सटीकता की बात करें तो 2005, 2010, 2015 और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल जमीनी हकीकत से कोसों दूर साबित हुए। सही मायनों में एग्जिट पोल हकीकत कम, फसाना ज्यादा साबित होते रहे हैं।
2005 के एग्जिट पोल में किसी ने भी नीतिश कुमार के सत्ता में लौटने का अनुमान नहीं लगाया था, उसके बाद 2010 में एग्जिट पोल की भविष्यवाणियां गलत साबित हुई और 2015 के पिछले विधानसभा चुनाव में तो सभी एग्जिट पोल्स के अनुमान औंधे मुंह गिरे थे। तब चुनाव परिणामों में भाजपा गठबंधन ‘एनडीए’ महज 58 सीटों पर सिमट गया था और अन्य को मात्र 7 सीटें मिली थी जबकि महागठबंधन 178 सीटों पर विजय पताका लहराते हुए पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने में सफल रहा था लेकिन तमाम एग्जिट पोल में एनडीए की सरकार बनने की बात कही गई थी। टुडेज चाणक्य ने एनडीए को 155 सीटें और महागठबंधन को 83 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की थी जबकि इंडिया टुडे-सिसेरो के एग्जिट पोल में एनडीए को 113-127 सीटें तथा महागठबंधन को 111-123 सीटें मिलने का दावा किया था। सी-वोटर ने एनडीए को 101-121 तथा महागठबंधन को 112-132 जबकि नील्सन ने एनडीए को 108 तथा महागठबंधन को 130 सीटें मिलने की बात कही थी। इस बार के विधानसभा चुनाव में लगभग सभी एग्जिट पोल में महागठबंधन की सरकार बनने की भविष्यवाणी की गई लेकिन हुआ इसके उलट। एनडीए सारे कयासों को धत्ता बताते हुए बहुमत का आंकड़ा जुटाने में सफल रहा है जबकि न्यूज 18-टुडेज चाणक्य ने तो अपने एग्जिट पोल में एनडीए को महज 55 सीटों पर ही समेट दिया था जबकि महागठबंधन को 180 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की थी। एक्सिस माय इंडिया-आज तक ने अपने एग्जिट पोल में एनडीए को 69-91 जबकि महागठबंधन को 139-161 सीटें दी थी। जन की बात-रिपब्लिक ने भी एनडीए के 104 सीटों पर समेटते हुए महागठबंधन को 128 सीटों के साथ उसकी सरकार बनने की भविष्यवाणी कर दी थी।
यदि अपवाद स्वरूप कुछ चुनाव परिणामों को छोड़ दिया जाए तो चुनाव के बाद किए गए एग्जिट पोल का इतिहास कम से कम भारत में तो ज्यादा सटीक नहीं रहा है। अतीत में कई बार साबित हो चुका है कि एग्जिट पोल्स द्वारा लगाए गए अनुमान गलत साबित हुए। अगर लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो हालांकि 2019 के आम चुनाव के परिणाम काफी हद तक एग्जिट पोल के अनुमानों के करीब रहे थे लेकिन 1998 से 2014 के बीच के एग्जिट पोल पर नजर डालें तो हर बार एग्जिट पोल और चुनावी नतीजों के बीच काफी अंतर रहा। 1998 के आम चुनाव में लगभग सभी एग्जिट पोल ने एनडीए को सर्वाधिक सीटें देते हुए कांग्रेस सहित अन्य सभी दलों को लगभग नकार दिया था। हालांकि एनडीए को 252 सीटों पर जीत तो मिली थी लेकिन यूपीए 166 और अन्य 199 सीटें जीतने में सफल रहे थे। 13 महीने में ही वाजपेयी सरकार गिर जाने के बाद 1999 के चुनाव में एग्जिट पोल्स ने एनडीए को 350 के आसपास सीटें मिलने का अनुमान लगाया था जबकि कुछ ने तो अन्य पार्टियों को मात्र 39 सीटें ही दी थी। उस चुनाव में एनडीए को 292 जबकि अन्य पार्टियों को 113 सीटें मिली थी। 2004 में तो कांग्रेस की जीत ने सभी एजेंसियों के एग्जिट पोल आंकड़ों को गलत साबित कर दिया था। 2009 में भी वास्तविक परिणामों और एग्जिट पोल के आंकड़ों में 50 सीटों से भी ज्यादा का अंतर रहा और 262 सीटें हासिल कर यूपीए दूसरी बार सरकार बनाने में सफल हुआ था। 2014 के आम चुनाव में दो एजेंसियों को छोड़कर बाकी सभी ने अपने एग्जिट पोल में एनडीए को 270-290 के बीच और कांग्रेस को 150 के आसपास सीटें मिलने का अनुमान लगाया था लेकिन एनडीए के खाते में 336 सीटें आई थी जबकि यूपीए 60 सीटों पर ही सिमट गया था।
महत्वपूर्ण सवाल यह है कि एग्जिट पोल अपने दावों में क्यों बहुत बार इसी प्रकार फेल साबित होते रहे हैं? दरअसल एग्जिट पोल वास्तव में कुछ और नहीं बल्कि वोटर का केवल रूझान होता है, जिसके जरिये अनुमान लगाया जाता है कि नतीजों का झुकाव किस ओर हो सकता है। एग्जिट पोल के दावों का ज्यादा वैज्ञानिक आधार इसलिए भी नहीं माना जाता क्योंकि ये कुछ हजार लोगों से बातचीत करके उसी के आधार पर तैयार किए जाते हैं और प्रायः इसीलिए इन्हें हकीकत से दूर माना जाता रहा है। मतदाता जब अपना मत देकर मतदान केन्द्र से बाहर निकलता है तो एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसियां उससे उसका रूझान पूछ लेती हैं। अधिकतर एग्जिट पोल परिणामों को प्रायः समझ लिया जाता है कि ये पूरी तरह सही ही होंगे किन्तु वास्तव में ये सिर्फ अनुमानित आंकड़े होते हैं और कोई जरूरी नहीं है कि मतदाता ने सर्वेकर्ताओं को अपने मन की सही बात ही बताई हो। दरअसल सर्वे के दौरान मतदाता बहुत बार इस बात का सही जवाब नहीं देते कि उन्होंने अपना वोट किस पार्टी या प्रत्याशी को दिया है।
मतदाताओं की राय जानने के लिए ‘ओपिनियन पोल’ और ‘पोस्ट पोल’ भी किए जाते हैं। एग्जिट पोल हालांकि ओपिनियन पोल का ही हिस्सा होते हैं किन्तु ये मूल रूप से ओपिनियन पोल से अलग होते हैं। ओपिनियन पोल में मतदान करने और न करने वाले सभी प्रकार के लोग शामिल हो सकते हैं। ओपिनियन पोल मतदान के पहले किया जाता है जबकि एग्जिट पोल चुनाव वाले दिन मतदान के तुरंत बाद किया जाता है। ओपिनियन पोल के परिणामों के लिए चुनावी दृष्टि से क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों पर जनता की नब्ज टटोलने का प्रयास किया जाता है और क्षेत्रवार यह जानने की कोशिश की जाती है कि जनता किस बात से नाराज और किस बात से संतुष्ट है। इसी आधार पर ओपिनियन पोल में अनुमान लगाया जाता है कि जनता किस पार्टी या किस प्रत्याशी का चुनाव करने जा रही है। ओपिनियन पोल को ही ‘प्री-पोल’ भी कहा जाता है। पोस्ट पोल प्रायः मतदान की पूरी प्रक्रिया के समापन होने के अगले दिन या फिर एक-दो दिन बाद ही होते हैं, जिनके जरिये मतदाताओं की राय जानने के प्रयास किए जाते हैं और अक्सर माना जाता रहा है कि पोस्ट पोल के परिणाम एग्जिट पोल के परिणामों से ज्यादा सटीक होते हैं। देश में चुनाव प्रायः विकास के नाम पर या फिर जाति-धर्म के आधार पर लड़े जाते रहे हैं और अगर बात विधानसभा चुनावों की हो तो चुनाव में स्थानीय मुद्दे भी हावी रहते हैं, ऐसे में यह पता लगा पाना इतना आसान नहीं होता कि मतदाता ने अपना वोट किसे दिया है। दुनियाभर में अधिकांश लोग अब एग्जिट पोल को ज्यादा विश्वसनीय नहीं मानते और यही कारण है कि कई देशों में इन पर रोक लगाने की मांग होती रही है।