फेसबुक और अभिव्यक्ति की लक्ष्मणरेखा

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

फेसबुक पर अमर्यादित,गाली गलौज, पर्सनल कमेंटस (छींटाकशी) आदि को तुरंत हटा दें साथ ही सार्वजनिक तौर पर सावधान करें। न माने तो ब्लॉक कर दें।

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फेसबुक पर स्वीकृति या साख बनाने के लिए जरूरी है कि नियमित लिखें और सारवान और सामयिक लिखें।प्रतिदिन किसी भी मसले को उठाएं तो उससे जुड़े विभिन्न आयामों को अलग-अलग पोस्ट में दें। इससे एजेण्डा बनेगा। कभी-कभार अपनी कहें ,आमतौर पर निजता के सवालों और निजी उपलब्धियों के बारे में बताने से बचें। यदि आप प्रतिदिन अपनी रचनात्मक उपलब्धियां बताएंगे तो अनेक किस्म के कु-कम्युनिकेशन में कैद होकर रह जाएंगे, इससे मन संतोष भी कम मिलेगा। मन संतोष तब ज्यादा मिलता है जब सामाजिक सरोकारों के सवालों पर लिखते हैं और लोग उस पर तरह तरह की राय देते हैं।

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फेसबुक कम्युनिकेशन के लिए इसकी संचार अवस्था को स्वीकारने और समझने की जरूरत है। मसलन् आपने किसी के स्टेटस पर कोई टिप्पणी दी,जरूरी नहीं है वह व्यक्ति आपके उठाए सवालों का जबाव दे,आपने किसी को फेसबुक चैटिंग के जरिए मैसेज दिया,जरूरी नहीं है वह आपको तुरंत जबाव दे, धैर्य रखें और गुस्सा न करें।

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फेसबुक ,चैटिंग आदि में अधीरता पागल कर सकती है, ब्लडप्रैशर बढ़ा सकती है। दुश्मनी भी पैदा कर सकती है। मिसअंडरस्टेंडिंग भी पैदा कर सकती है। फेसबुक रीयलटाइम मीडियम है यह धैर्य की मांग करता है। रीयलटाइम में अधीरता,गुस्सा आदि बेहद खतरनाक हैं, इससे उन्माद पैदा होता है। फेसबुक कम्युनिकेशन को सहजभाव से लें और अधीर न हों।इसमें आपका भला है और दूसरे का भी भला है।

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फेसबुक पर यदि कोई व्यक्ति आपकी वॉल पर नापसंद बात लिख जाए तो उसे रहने दें। इससे यह पता चलता है कि आप अन्य को चाहते हैं,पसंद करते हैं।

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फेसबुक असल में कबीर की उक्ति का साकार अभिव्यक्ति रूप है। उनका मानना था “काल करै सो आज कर,आज करै सो अब।”यानी जो कुछ कहना अभी कहो।रीयलटाइम में कहो

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फेसबुक चूंकि कम्युनिकेशन है अतः वह रहेगा, इसके पहले के कम्युनिकेशन मीडियम भी रहेंगे, यह गलत धारणा है कि पूर्ववर्ती कम्युनिकेशन रूपों या माध्यमों का लोप हो जाएगा। पहले के माध्यमों की भी प्रासंगिकता रहेगी, उपयोगिता रहेगी और फेसबुक की भी। फेसबुक या अन्य रीयलटाइम माध्यम तो इस जगत को जानने में हमारी मदद कर रहे हैं।

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फेसबुक में कम्युनिकेशन महत्वपूर्ण है,अन्य चीजें जैसे वंश,जाति,धर्म,उम्र, हैसियत आदि गौण हैं। फेसबुक एक तरह से अभिव्यक्ति की अति तीव्रगति का खेल है। यहां आप मुस्कराते रहिए,लाइक करते रहिए, कोई आपको हाशिए पर नहीं डाल सकता।

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वर्चुअल तकनीक में अन्य माध्यमों की तुलना में ऑब्शेसन का भाव ज्यादा है। ऑब्शेसन की यह खासियत है कि यह जल्दी अंतरंग जगत को खोल देता है। यही वजह है वर्चुअल माध्यमों के जरिए आदान-प्रदान ,संवाद, खुलेपन की अभिव्यक्ति जल्दी और सहज ढ़ंग से हो जाती है।

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कलाओं में कलाकार का लगाव व्यक्त होता है। लेकिन फेसबुक लेखन में यूजर का कोई लगाव नहीं होता। यहां लोग व्यक्तिगत तौर पर आते हैं और जातें है। लाइक करते हैं,टिप्पणी करते हैं और निर्विकार अंजान भाव से चले जाते हैं। इस तरह का परायापन अन्य माध्यमो में नहीं देखा। फेसबुक पर लिखते समय शब्द और शरीर में अंतराल रहता है। कलासृजन में यह संभव नहीं है।

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फेसबुक यूजर का ऑब्शेसन अवसाद पैदा करता है और कलाकार का ऑब्शेसन कला की आत्मा से साक्षात कराता है।

मनुष्य अकेला प्राणी है जिसकी अभिव्यक्ति की इच्छाएं कभी शांत नहीं होतीं। वह इनको शांत करने के लिए नए नए उपाय और मीडियम खोजता रहता है। फेसबुक उस प्रक्रिया में उपजा एक मीडियम है ।पता नहीं कब जल्द ही नया मीडियम आ जाए और हम सब फेसबुक को छोड़कर वहां मिलें।

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सभी मानवीय उपकरण मानसिक सुख के लिए बने हैं । फेसबुक का भी यही हाल है इससे आप मानसिक सुख हासिल कर सकते हैं। फेसबुक वस्तुतः अभिव्यक्ति का फास्टफूड है।

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फेसबुक लेखन अ-कलात्मक सपाटलेखन है। आप यहां कला के जितने भी प्रयोग करें संतोष नहीं मिलेगा। फेसबुक का मीडियम के रूप में कला से बैर है।कलात्मक अभिव्यक्ति के लिहाज से फेसबुक बाँझ है।

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फेसबुक पर लिखते समय प्रत्येक यूजर यथाशक्ति कोशिश करता है बेहतरीन लिखे,लेकिन लिखने के बाद महसूस करता है अब अगली पोस्ट ज्यादा बेहतर लिखूँगा। लेकिन बेहतर पोस्ट कभी नहीं बन पाती।

फेसबुक असंतोष को हवा देता है। लोग संतोष के लिए यहां अभिव्यक्त करते हैं लेकिन असंतोष लेकर जाते हैं।

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